Thursday, March 22, 2007

नौजवानों; यह गलती न करना

गलतियों का भी कोटा होता है. कुछ लोग अपना कोटा जल्दी-जल्दी पूरा करते हैं, फिर उन्नति की राह पर सरपट दौड़ने लगते हैं. कुछ बार-बार एप्लिकेशन देकर अपना कोटा बढ़वाते रहते हैं. हमारे जैसे तो अपरिमित कोटा लेकर आते हैं. गलतियों से फुर्सत ही नहीं मिलती कि उन्नति की राह को झांक भी सकें. हमसे कोई पूछे कि आप करना क्या चाहते हैं? आपके लक्ष्य क्या हैं? तो हम ब्लैंक लुक देते हुये कुछ ये भाव चेहरे पर लायेंगे - "देखते नहीं, गलतियां करने से ही फुर्सत नहीं है. कितनी और करनी बाकी हैं. ऐसे मे लक्ष्य-वक्ष्य की क्या सोचें."

खैर हास्य को विदा कह कर काम की बात की जाये.

मैं धन के प्रति गलत अवधारणा को एक गम्भीर गलती मानता हूं. यह कहा जाता है कि आज का युवा पहले की बजाय ज्यादा रियलिस्टिक है. पर मैने अपने रेल के जवान कर्मचारियों से बात की है. अधिकांश को तो इनवेस्टमेंट का कोई खाका ही नहीं मालूम. ज्यादातर तो प्राविडेण्ट फण्ड में पैसा कटाना और जीवन बीमा की पालिसी लेने को ही इनवेस्टमेंट मानते हैं. बहुत से तो म्यूचुअल फण्ड और बॉण्ड में कोई अन्तर नहीं जानते. स्टाक की कोई अवधारणा है ही नहीं. मैं जब पश्चिम रेलवे के जोनल ट्रेनिंग सेण्टर का प्रधानाचार्य था तो नये भर्ती हुये स्टेशनमास्टरों/गार्डों/ट्रेन ड्राइवरों को पैसे का निवेश सिखाने की सोचता था. पर उस पद पर ज्यादा दिन नहीं रहा कि अपनी सोच को यथार्थ में बदलता.

रेलवे का ग्रुप सी स्टाफ बहुत कमाता है - मैं अवैध कमाई की बात नही कर रहा. पर फिर भी पैसे के प्रति गलत और लापरवाह सोच से वह उन्नति नहीं कर पा रहा है. मेरे विचार से रेलवे इतना विस्तृत है कि पूरे समाज का हुलिया बयान कर सकता है.

जरूरत है कि धन और निवेश के प्रति व्यापक तौर पर नजरिया बदले.

3 comments:

  1. ज्ञानदत्त जी, अगर हो सके तो निवेश संबंधी कुछ गुरुमंत्र यहीं दे डालिये..हमारा भी भला हो जायेगा

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  2. सही कह रहे हैं आप. मेरे पिता भी मुझसे कहते हैं 'जो बचाया, सो कमाया'. हम जीवन की शुरूआत में ही जो हम निवेश कर देते हैं, वही हमारे काम आता है. स्टाक की अवधारणा का तो मुझे भी पता नहीं है पर मुझे हाउस लोन लेकर रीयल एस्टेट में निवेश बहुत पसन्द है. इस पर ब्याज पर में छूट भी मिलती है और किश्त पर आयकर में कटौती भी. हमारे वरिष्ठ चिठ्ठाकार जगदीश भाटिया जी निवेश के मामलों पर विशेषज्ञ हैं.
    आप इस विषय पर एक श्रंखला क्यों नही लिखते.

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  3. Nivesh ke maamle mein log khul kar baat nahin karte, sabse badi samasya ye hai. Hamare desh mein bachat aur nivesh ko chhupa kar rakhne ki 'sanskriti'chali aa rahi hai.Shaayad 'joint family' mein rahne ka prabhaav logon ko bachat aur nivesh ko chhupa kar rakhne ke liye uksaata hai.

    Nivesh ke maamle par 'gurumantra' dene waalon ki kami nahin hai.Kewal itna dekhne ki zaroorat hai ki 'Guru' achchhe hain ki nahin.Humein is baat ka zaroor dhyaan rakhna hai ki kahin 'Guru' koi mantra dene ka 'guru dakshina' pahle hi to nahin wasool kar le raha.

    Lekin ye baat zaroor hai ki bachat aur nivesh ke baare mein humein apni soch badalne ki zaroorat hai.

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--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय