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सरकारी नौकरी - जो देर सबेर पक्की होने वाली हो, लड़के को जवान होती लड़की के मां-बाप का आदर्श बना देती है. सो पड़ोस की लड़की से बात भी पक्की हो गई. सगाई के समय तक भरतलाल गांव के लोगों को पैसे बांटते-बांटते तंग हो गया था. सगाई में खर्चे की बात आई तो सब किनारा कर गये. उल्टे, भरतलाल को इस बात पर ब्लैकमेल भी करने लगे कि वे सगाई में न आ सकेंगे.
सगाई का पूरा इन्तजाम-खर्च भरतलाल ने किया. परिजनों ने उसे सामाजिक प्रतिष्ठा प्रदान करने की कस कर कीमत वसूली. सारे आये. ठसक कर आवभगत कराई. गांव मे शहर के स्टाइल का ३०० लोगों का भोज भी भरतलाल के खर्चे पर डकारा. सब की मदद करने वाला भरतलाल १५-२० हजार रुपये के नीचे उतर गया. लगभग इतना ही पैसा उसने लोगों को मुसीबत के समय बिना ब्याज के कर्ज दिया था, जो लोगों ने उसका काम पड़ने पर नहीं लौटाया. भरतलाल अब यदा कदा अवसाद से ग्रस्त रहता है, कुछ बुदबुदाता रहता है.
भरतलाल भोन्दू नहीं है. भरतलाल संवेदनशील जीव है. उसकी संवेदना गांव का हरामीपन मारे दे रहा है. गांव का हरामीपन और भरतलाल की संवेदना किस सीमातक जाते हैं, यह देखने की बात होगी.
ह्ह्म्म्म्म्म ....
ReplyDeleteयह सही है... कि अधिक सम्वेदनशीलता भी अच्छी नहीं, किन्तु बिना इसके भी आदमी और जानवर में भेद नहीं किया जा सकता।
रिपुदमन पचौरी