Saturday, April 24, 2010

महानता के मानक-3 / क्यों गिरते हैं महान

थरूर, टाइगर वुड्स, क्लिंटन, तमिल अभिनेत्री के साथ स्वामी, चर्च के स्कैन्डल पर पोप, सत्यम, इनरॉन, रोमन राज्य। कड़ी लम्बी है पर सब में एक छोटी सी बात विद्यमान है। सब के सब ऊँचाई से गिरे हैं। सभी को गहरी चोट लगी, कोई बताये या छिपाये। हम कभी ऊँचाई पर पहुँचे नहीं इसलिये उनके दुख का वर्णन नहीं कर सकते हैं पर संवेदना पूरी है क्योंकि उन्हें चोट लगी है। पर कोई कभी मिल गया तो एक प्रश्न अवश्य पूँछना है।


महानता की ऊँचाई पर हम अकेले हैं, सबकी पैनी दृष्टि है हम पर --- बहुत लोग इस स्थिति को पचा नहीं पाते हैं और सामान्य जीवन जीने गिर पड़ते हैं। महानता पाना कठिन है और सहेज कर रख पाना उससे भी कठिन।
भाई एक तो परिश्रम कर के आप इतना ऊपर पहुँचे। इतनी बाधाओं को पार किया। कितने प्रलोभनों का दमन किया। तब क्या शीघ्रता थी हवा में टाँग बढ़ा देने की? वहीं पर खूँटा गाड़ कर बैठे रहते, तूफान निकल जाने देते और फिर बिखेरते एक चॉकलेटी स्माइल।

क्या कहा? आपका बस नहीं चलता। किस पर ? हूँ..हूँ... अच्छा।

उत्तर मिल गया है। आकर्षण के 6 गुण (सम्पत्ति, शक्ति, यश, सौन्दर्य, ज्ञान और त्याग) यदि किसी से पीडित हैं तो वे हैं 6 दोष।
काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर (ईर्ष्या)
अब गोलियाँ भी 6 और आदमी भी 6। अब आयेगा मजा। तेरा क्या होगा कालिया?

यह पोस्ट श्री प्रवीण पाण्डेय की इस श्रृंखला की तीसरी अतिथि पोस्ट है। प्रवीण बेंगळुरू रेल मण्डल के वरिष्ठ मण्डल वाणिज्य प्रबन्धक हैं।
आप पर निर्भर करता है कि महान बनने की दौड़ में हम उन दोषों को अपने साथ न ले जायें जो हमें नीचे गिरने को विवश कर दें। नौकरशाही, राजनीति, बाहुबल सब पर ये 6 दोष भारी पड़ते हैं। आप बहुत ज्ञानी हैं पर आपको दूसरे से ईर्ष्या है। आप त्यागी और बड़े साधु हैं पर आप धन एकत्रीकरण में लगे हैं।

Monica Bill इन ऊपर ले जाने वाले गुणों में व नीचे खीचने वाले दोषों में एक होड़ सी लगी रहती है। हर समय आपके सामने प्रलोभन पड़े हैं। झुक गये तो लुढ़क गये। जो ऊँचाई पर या शक्तिशाली होता है उसके लिये इन दोषों में डूब जाना और भी सरल होता है, उसे सब प्राप्त है। गरीब ईर्ष्या करे तो किससे, मद करे तो किसका?

अमेरिका कितना ही खुला क्यों न हो पर किसी राष्ट्रपति का नाम किसी इन्टर्न महिला के साथ उछलता है तो वह भी जनता की दृष्टि में गिर जाता है।

महानता की ऊँचाई पर हम अकेले हैं, सबकी पैनी दृष्टि है हम पर, यह जीवन और कठिन बना देती है। बहुत लोग इस स्थिति को पचा नहीं पाते हैं और सामान्य जीवन जीने गिर पड़ते हैं। महानता पाना कठिन है और सहेज कर रख पाना उससे भी कठिन।

राम का चरित्र अब समझ आता है। ईसा मसीह की पीड़ा का अब भान होता है। धर्म का अंकुश लगा हो, जीवन जी कर उदाहरण देना हो, पारदर्शी जीवनचर्या रखनी पड़े तो लोग ऊँचाई में भी टूटने लगते हैं।

वाह्य के साथ साथ अन्तः भी सुदृढ़ रखना पड़ेगा, तब सृजित होंगे महानता के मानक।

प्रवीण पाण्डेय एक कठिन परिश्रम करने वाले अतिथि ब्लॉगर हैं। उन्होने उक्त पोस्ट के साथ एक पुछल्ला यह जमाया है कि पाठकों से पूछा जाए कि फलाने महान में वे क्या मुख्य गुण और क्या मुख्य दोष (अवगुण) पाते हैं। उदाहरण के लिये, प्रवीण के अनुसार रावण में शक्ति और काम है। टाइगर वुड्स में यश और काम है। दुर्वासा में त्याग के साथ क्रोध है। हिटलर में शक्ति के साथ मद है।

आप नीचे दी गयी प्रश्नावली भर कर पोस्ट में ही प्रविष्टि सबमिट कर सकते हैं। आप किसी महान विभूति को चुनें – आप किसी महान टाइप ब्लॉगर को भी चुन सकते हैं! :)

यह रही प्रश्नावली। आपके उत्तर की स्प्रेड शीट मैं प्रवीण को दे दूंगा। फिर देखें वे क्या करते हैं उसका! 



यह पोस्ट मेरी हलचल नामक ब्लॉग पर भी उपलब्ध है।

19 comments:

  1. सब के सब ऊँचाई से गिरे हैं।
    कहीं ऐसा तो नहीं कि हम जिसे ऊँचाई समझ रहे हों वह ऊँचाई का आभासी बिम्ब ही रहा हो और वे ऊँचाई पर रहे ही न हों. वैसे भी ऊँचाई और निचाई सापेक्ष हैं.

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  2. ज्ञानदत्तजी एवं प्रवीण जी नमस्कार,

    पिछली तीनों ही प्रविष्टियाँ पढीं और बहुत कुछ सोचा भी, इसी से मिलते जुलते विषय पर एक बार बहुत सोचा था तो वही लिखने की दृष्टता कर रहे हूँ। शायद लम्बी भी हो जाये टिप्पणी,

    अवगुण सफ़लता से पहले भी मौजूद रहते हैं। फ़िर भी मनुष्य सोचता है कि सफ़लता के बाद रातोंरात अपने अवगुण छोडकर सज्जन बनकर ठाठ से जीवन बिताऊंगा, सफ़लता के बाद पैसे की फ़िक्र तो शायद ही होगी। लेकिन अवगुण कहाँ पीछा छोडते है? फ़िर शुरू होती है, उन्हे छुपाने की जद्दोजहद...इधर से उधर से आगे से पीछे से कानून के दायरे में, कभी उससे बाहर जाकर, डराकर धमकाकर, लोभ देकर...आदि आदि...

    अब महत्वपूर्ण बात आती है Ethics अथवा संस्कारों की। अगर आपको संस्कार अथवा एथिक्स गलत कार्य करने पर प्रताडित न करें तो गलत काम का भी अपना थ्रिल है। आप उसमें भी अपनी सफ़लता देख सकते हैं कि कितनी सफ़ाई से कानून की ऐसी तैसी की। चोर की आत्मा पर अगर चोरी का बोझ न हो तो वो भी एक वैज्ञानिक की भांति तन/मन लगाकर चोरी की प्लानिंग और उसके सफ़ल होने पर उसकी सफ़लता में आत्म्मुग्ध हो सकता है। और होते भी होंगे...

    माफ़िया की प्रवत्ति भी तो ऐसी ही होती है। जब पहली बार उपन्यास गाडफ़ादर में "Its not personal, its business" कहकर किसी का कत्ल होते देखा तो मन बेचैन रहा। शायद कत्ल करने वाले का आब्जेक्टिव साफ़ था तो जाकर रात में उसे बढिया नींद भी आयी हो। लेकिन बस एथिक्स का ही खेल है, आपको अपने मानक निर्धारित करने पडेंगे, उसके बाद भी आप इस मोहमाया के संसार में नैया पार लेंगे, इस पर शक है। लेकिन, फ़िर भी कम से कम दंड स्वरूप आपकी आत्मा तो प्रताडित होती रहेगी। और रोज होती भी है...

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  3. इसीलिए कहते हैं न कि
    सावधानी हटी, दुर्घटना घटी...
    बढ़िया पोस्ट

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  4. 'अल्लाहो अकबर' ईश्वर महान है, कमी ये कि वह कभी सामने नहीं आता, लोग उस का नाम ले बंदूक ताने रहते हैं।

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  5. सम्पत्ति, शक्ति, यश, सौन्दर्य, ज्ञान और त्याग

    यह छ: गुण जिनमें हों उसमें अवगुण हो ही नहीं सकता और यह छ: गुण जिनमें हों तो वो केवल भगवान ही हो सकते हैं। गुण मतलब ऐसा नहीं कि सीमित मात्रा में सम्पत्ति, शक्ति, यश, सौन्दर्य, ज्ञान और त्याग, मतलब कि असीमित मात्रा में जिसकी कोई सीमा न हो। ऐसा कोई व्यक्ति मिलना असंभव है।

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  6. संसार में न कुछ भला है न बुरा, केवल विचार ही उसे भला-बुरा बना देते हैं।

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  7. सब के सब ऊँचाई से गिरे हैं। जी!!! अगर कोई अच्छॆ कर्म कर के उस ऊचाई तक पहुचे तो उसे भगवान भी नही गिरा सकते... यह सब लोग जिस प्रकार उस ऊचाई पर पहुचे.... गिरना ओर जुते खाना इन के लिये निशचित था

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  8. @ M VERMA
    पर उनको तो वही लग रहा है, कदाचित इसीलिये पीड़ा भी हो रही हो । :)
    वैसे तो
    जिनको कछु नहिं चाहिये, वे शाहन के शाह ।

    @ Neeraj Rohilla
    सच कहा आपने नीरज जी । दोष पहले से भी रहते हैं । छिपाने से और बढ़ते हैं और आपकी और ऊर्जा खाते हैं । श्रेयस्कर है उसे मान लेना और दूर करने का प्रयास करना । आप नाँव में कितने भी पत्थर लेकर चल सकते हैं पर जब लहरें हिलोरें लेंगी तब वह सब पत्थर हमें फेंकने पड़ेंगे ।
    चोर और माफिया की आत्मा तो कचोटती है पर उसकी अवहेलना कर लोग जीना चाहते हैं । किसके लिये जी रहे हैं तब ?

    @ Vivek Rastogi
    प्रयास ऊपर बढ़ने के हों तो संसार सुन्दर हो जायेगा ।

    @ राज भाटिय़ा
    स्थायी महानता और क्षणिक प्रस्फुटता में यही अन्तर हो संभवतः ।

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  9. इतिहास गवाह है कि‍ मनुष्‍य होने के नाते महान पुरूषों में कोई न कोई मानवीय कमजोरी भी रही है। और यह कोई हैरान करने वाली बात नहीं।

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  10. आकर्षण के 6 गुण (सम्पत्ति, शक्ति, यश, सौन्दर्य, ज्ञान और त्याग)

    satwaan blogging.

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  11. पूरे पोस्ट के समग्र चिंतन में इसका भी जिक्र सामयिक लगा-अब गोलियाँ भी 6 और आदमी भी 6। अब आयेगा मजा। तेरा क्या होगा कालिया?

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  12. @ जितेन्द़ भगत
    मानवीय कमजोरी रहती है पर उस कारण गुणों का दुरुपयोग हो, इसे कोई स्वीकार नहीं कर पाता है ।

    विद्या विवादाय धनं मदाय
    शक्तिः परेषां परिपीडनाय ।
    खलस्य साधोर्विपरीतमेतत्
    ज्ञानाय दानाय च रक्षणाय ॥

    @ कृष्ण मोहन मिश्र
    :)

    @ डॉ. मनोज मिश्र
    मेरे पीछे तो 6 गोलियाँ पड़ी हैं और गब्बर ठहाका लगाये जा रहा है । बोल रहा है "अब गोली खा" ।

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  13. महान बनने के बाद महान बने रहना और भी मुश्किल है। "गाइड" फिल्म का वह दृश्य याद आता है जब देवानन्द गाँव वालों की नजर में वर्षा के लिये उपवास रखे होते हैं तो भूख लगने पर अकेले होने पर भी खाना नहीं खा पाते।

    बहुत से लोग महानता के स्तर पर पहुँचे हैं पर कायम नहीं रख पाये, जो रख पाये वे इतिहास में दर्ज हो गये।

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  14. सम्पत्ति, शक्ति, यश, सौन्दर्य, ज्ञान और त्याग
    ये 6 गुण? क्या एक ही धरातल के हैं
    संपत्ति, शक्ति, सौंदर्य - भौतिक हैं
    यश, ज्ञान और त्याग - आध्यात्मिक है
    अगर महानता भौतिक से जुड़ी है तो हमेशा नीचे आने का अंदेशा रहेगा .

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  15. जिन्‍होंने 'आत्‍मा' की सुनी, महान् हो गए। जिन्‍होंने 'लोगों' की चिन्‍ता की, स्‍खलित हो गए।
    प्रश्‍नावली भरवा कर क्‍यों हमें पाप में डाल रहे हैं?

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  16. @ ePandit
    जन अपेक्षायें महान जनों को महान बने रहने पर बाध्य करती हैं । गाइड की भी कहानी वही है । अपेक्षाओं पर खरा उतरने पर आपका अन्तःकरण निखरता है और आपको अथाह बल मिलता है ।

    @ डॉ महेश सिन्हा
    संपत्ति, शक्ति, सौंदर्य - भौतिक हैं
    यश, ज्ञान और त्याग - आध्यात्मिक है

    बहुत ही सुन्दर व्याख्या । आपका धन्यवाद । भौतिक आध्यात्मिक व्याख्या कई प्रश्नों के सहज उत्तर दे देती है ।

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  17. @ विष्णु बैरागी
    लोग अपनी राय देते रहेंगे । एक विषय पर सारी संभावनायें व्यक्त करते हुये । निर्णय तो स्वयं को ही लेना है ।
    पर आपकी राय आवश्यक है, प्रश्नावली भरने में ।

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  18. महान बनने के बाद महान बने रहना और भी मुश्किल है। "गाइड" फिल्म का वह दृश्य याद आता है जब देवानन्द गाँव वालों की नजर में वर्षा के लिये उपवास रखे होते हैं तो भूख लगने पर अकेले होने पर भी खाना नहीं खा पाते।

    बहुत से लोग महानता के स्तर पर पहुँचे हैं पर कायम नहीं रख पाये, जो रख पाये वे इतिहास में दर्ज हो गये।

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  19. ज्ञानदत्तजी एवं प्रवीण जी नमस्कार,

    पिछली तीनों ही प्रविष्टियाँ पढीं और बहुत कुछ सोचा भी, इसी से मिलते जुलते विषय पर एक बार बहुत सोचा था तो वही लिखने की दृष्टता कर रहे हूँ। शायद लम्बी भी हो जाये टिप्पणी,

    अवगुण सफ़लता से पहले भी मौजूद रहते हैं। फ़िर भी मनुष्य सोचता है कि सफ़लता के बाद रातोंरात अपने अवगुण छोडकर सज्जन बनकर ठाठ से जीवन बिताऊंगा, सफ़लता के बाद पैसे की फ़िक्र तो शायद ही होगी। लेकिन अवगुण कहाँ पीछा छोडते है? फ़िर शुरू होती है, उन्हे छुपाने की जद्दोजहद...इधर से उधर से आगे से पीछे से कानून के दायरे में, कभी उससे बाहर जाकर, डराकर धमकाकर, लोभ देकर...आदि आदि...

    अब महत्वपूर्ण बात आती है Ethics अथवा संस्कारों की। अगर आपको संस्कार अथवा एथिक्स गलत कार्य करने पर प्रताडित न करें तो गलत काम का भी अपना थ्रिल है। आप उसमें भी अपनी सफ़लता देख सकते हैं कि कितनी सफ़ाई से कानून की ऐसी तैसी की। चोर की आत्मा पर अगर चोरी का बोझ न हो तो वो भी एक वैज्ञानिक की भांति तन/मन लगाकर चोरी की प्लानिंग और उसके सफ़ल होने पर उसकी सफ़लता में आत्म्मुग्ध हो सकता है। और होते भी होंगे...

    माफ़िया की प्रवत्ति भी तो ऐसी ही होती है। जब पहली बार उपन्यास गाडफ़ादर में "Its not personal, its business" कहकर किसी का कत्ल होते देखा तो मन बेचैन रहा। शायद कत्ल करने वाले का आब्जेक्टिव साफ़ था तो जाकर रात में उसे बढिया नींद भी आयी हो। लेकिन बस एथिक्स का ही खेल है, आपको अपने मानक निर्धारित करने पडेंगे, उसके बाद भी आप इस मोहमाया के संसार में नैया पार लेंगे, इस पर शक है। लेकिन, फ़िर भी कम से कम दंड स्वरूप आपकी आत्मा तो प्रताडित होती रहेगी। और रोज होती भी है...

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--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय