Wednesday, January 13, 2010

मालगाड़ी के इंजन पर ज्ञानदत्त

footplate1 इलाहाबाद में आती मालगाड़ी, जिसपर मैने फुटप्लेट निरीक्षण किया। नेपथ्य में कोहरे के अवशेष देख सकते हैं आप।

यह कोई नई बात नहीं है। रेलवे इंजन पर चढ़ते उतरते तीसरे दशक का उत्तरार्ध है। पर रेलवे के बाहर इंजन पर फुटप्लेट निरीक्षण (footplate inspection) को अभिव्यक्त करने का शायद यह पहला मौका है।

मुझे अस्सी के दशक के पूर्वार्ध में रतलाम के आस-पास भाप के इंजन पर अवन्तिका एक्स्प्रेस का फुटप्लेट निरीक्षण अच्छी तरह याद है। उसके कुछ ही समय बाद भाप के इंजन फेज-आउट हो गये। उनके बाद आये डीजल और बिजली के इंजनों में वह पुरानेपन की याद नहीं होती।

पर कल मालगाड़ी में चलते हुये १०० कि.मी.प्र.घ. की रफ्तार पाना; वह भी तब जब मौसम भारी (रात में कोहरा पड़ा था इस क्षेत्र में) हो; बहुत मनभावन अनुभव था। भारी मौसम के मद्देनजर लोको पाइलट साहब पहले तो बहुत आत्मविश्वासी नहीं नजर आये; पर लगभग ३५-४० किलोमीटर का सफर ८०-९० किमीप्रघ से तय करने के बाद वे अचानक जोश में बोले – ई देखो साहब, स्पीडोमीटर १०० बता रहा है।

speedometer 100 kmph स्पीड दिखाता स्पीडोमीटर

मैने देखा – डिजिटल स्पीडोमीटर 100kmph बता रहा था, पर उसका चित्र साफ नहीं आ रहा था। एनेलॉग स्पीडोमीटर "लगभग" 100kmph  बता रहा था, उसका चित्र बाजू में देखें। सौ किलोमीटर की स्पीड लेने के बाद एक स्टेशन पर सिगनल न मिलने पर भी लोको पाइलट साहब पूरी दक्षता से बिना किसी झटके के गाड़ी रोकने में समर्थ थे।

सौ किमीप्रघ की स्पीड लेने के बाद तो लोको पाइलट श्री आर.आर. साहू की वाणी ट्रेन की गति के साथ साथ खुल गई। साथ ही खुला उनका आतिथ्य भी। उनके निर्देश पर उनके सहायक लोको पाइलट ने उनकी पोटली से काजू-बदाम-किशमिश रजिस्टर के ऊपर रख कर प्रस्तुत किये। साथ में क्रीम बिस्कुट भी। उनका मन रखने को एक दो टुकड़े छुये, पर असल में तो मेरा मन उनकी इस आतिथ्य भावना से गदगद हो गया।

मालगाड़ी में WAG9 लोकोमोटिव और BOXN-HL वैगनों के रेक का जोड़ तो मानो संगीत है ट्रेन परिचालन में। और WAG9 इंजन का लोकोपाइलट का कैब तो पहले के इंजनो के मुकाबले बहुत अधिक सुविधाजनक है।

रेलवे के बाहर के व्यक्ति ट्रेन इंजन में चलने को अनाधिकृत हैं। उसमें पाये जाने पर कड़ा जुर्माना तो है ही, मजिस्टेट न जाने कौन कौन रेलवे एक्ट या पीनल कोड की धाराओं में धर ले! लिहाजा आप तो कैब का फोटो ही देखें।

footplate मालगाड़ी के लोकोपाइलट आर आर साहू (कैब में बैठे हुये) और सहायक लोको पाइलट कामेन्द्र

कल लोको पाइलट श्री आर आर साहू और सहायक लोको पाइलट कामेन्द्र को देख कर यह विचार मन में आये कि नई पीढ़ी के ट्रेन चालक कहीं ज्यादा आत्मविश्वास युक्त हैं और पिछली पीढ़ी से कहीं ज्यादा दक्ष। पिछली पीढ़ी के तो पढ़ने लिखने में कमजोर थे। वे अपना पैसे का भी ठीक से प्रबन्धन नहीं का पाते थे। अपनी सन्ततियों को (ज्यादातर घर से बाहर रहने के कारण) ठीक से नहीं पाल पाते थे – उनके आवारा होने के चांस बहुत थे। अब वह दशा तो बिल्कुल नहीं होगी। मेरे बाद की पीढ़ी के उनके अफसर निश्चय ही अलग प्रकार से कर्मचारी प्रबन्धन करते होंगे।

तीन साल की वरीयता का मालगाड़ी चालक 100kmph पर ट्रेन दौड़ा रहा है। क्या बात है! नई पीढ़ी जिन्दाबाद!  

मेरी पत्नीजी का विचार है कि ट्रेन चालकों की घरेलू जिन्दगी में असली परिवर्तन उनकी पत्नियों के पढ़े लिखे होने से आया है। वे पैसे और घर का बेहतर प्रबन्धन करती हैं। कर्मचारियों की घरवालियों से सम्पर्क के चलते उनका यह ऑबर्वेशन महत्वपूर्ण है।

यह पोस्ट देखें - मालगाड़ी या राजधानी एक्स्प्रेस?!

54 comments:

  1. मालगाड़ी सौ की रफ़्तार से...? बाप रे बाप। भारत की रेल पटरियाँ इतनी मजबूत और टिकाऊ हैं यह जानकर अच्छा लगा।

    कालिख पुते कपड़ों में कोयले से यारी करते पहले के रेल ड्राइवर अब चाक-चौबन्द ‘पायलट’ हो गये हैं यह भी बड़ा अच्छा परिवर्तन है। मन प्रसन्न हुआ।

    बच्चों की देखभाल और घर का प्रबन्धन तो कुशल गृहिणी ही कर पाएगी। भाभी जी के ऑब्जर्वेशन से पूर्ण सहमत।

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  2. भाभीजी की बात में दम है.
    इंजन के भीतर के दर्शन कराने का धन्यवाद!

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  3. युवा चलते तो तेज़ है पर बुजर्गो के कुशल निर्देशन मे ही सुरक्षित रह सकते है

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  4. हर पीढ़ी, अपनी पिछली पीढ़ी से एक कदम आगे होती ही है. इट्स अ चेंजिंग वर्ल्ड.

    और आदरणीय भाभीजी ने जो कहा उसका भी सामान्यीकरण किया जा सकता है. वही समाज तरक्की करता है जहां महिलाएं अधिक शिक्षित और जागरूक होती हैं.

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  5. 100 किलोमीटर की गति पर तो इंजन ज़रूर महाराणा के चेतक की सी कुलाचें भर रहा होगा :-) एक प्रशिक्षु अधिकारी प्रशिक्षण के दौरान की जाने वाली इंजन-यात्रा के दौरान गिर कर बाजू तुड़वा बैठा था...बेचारा :-/)

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  6. @ मालगाड़ी में WAG9 लोकोमोटिव और BOXN-HL वैगनों के रेक का जोड़ तो मानो संगीत है ट्रेन परिचालन में।

    अपने धन्धे से यह जुड़ाव प्रेरणादायी है। अभी रेलवे आधुनिकीकरण की शुरुआत कर रही है। मंजिल बहुत दूर है। 'फॉग विजीबिलिटी' वाले यंत्र की यात्रा कहाँ तक पहुँची है?

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  7. आभार आपकी वजह से कैब का भीतरादर्शन संभव हो पाया...


    भाभी जी की सोच से सहमति...

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  8. आपके कार्यक्षेत्र से सम्बंधित बातें और सौ. रीता भाभी जी की सुलझी बातें
    हमेशा पढ़ना अच्छा लगता है
    ठण्ड कैसी है ?
    - स स्नेह,
    - लावण्या

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  9. माल-गाडी से अच्छा परिचय कराया आपनें,बढिया पोस्ट.

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  10. चलिए इंजन के बारे में कुछ जानने को मिला !!! अन्दर का नजारा भी दिखा दिया शुक्रिया जनाब!!

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  11. बढ़िया लगी जानकारी और बहुत ख़ुशी हुई मालगाड़ी की इतनी स्पीड जानकर |

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  12. भारतीय रेल इंजन के अन्दर से दर्शन करने के लिए आभार. पढ़े लिखे जीवन साथी तो पैसे और घर का बेहतर प्रबन्धन हमेशा ही सहायक होते हैं..आपकी पत्नी की बात शत प्रतिशत सत्य है

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  13. आप की पत्नी ठीक कहती हैं,
    'ट्रेन चालकों की घरेलू जिन्दगी में असली परिवर्तन उनकी पत्नियों के पढ़े लिखे होने से आया है। वे पैसे और घर का बेहतर प्रबन्धन करती हैं।'
    यह बात केवल ट्रेन चालकों के जीवन के लिये पर हम सब के जीवन में लागू होती है।

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  14. भाभी जी का विचार बिलकुल सही है।

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  15. हर पीढ़ी अपनी पहली पीढ़ी से बेहतर होती है.. इसमें कोई संदेह नहीं..


    "ट्रेन चालकों की घरेलू जिन्दगी में असली परिवर्तन उनकी पत्नियों के पढ़े लिखे होने से आया है। वे पैसे और घर का बेहतर प्रबन्धन करती हैं।" बिलकुल सही बात...

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  16. मान्यवर आपने तो रेलवे के सारे फोटोग्राफ़्स का ही कापीराइट ले डाला। सलाह भी दे डाली अपने टिप्पणीकारों को कि बाहर के व्यक्ति का इंजन में आना अपराध है लेकिन क्या आपने फोटोग्राफ़ी की अनुमति ली थी और फिर उसके प्रकाशन की भी विभाग से????? विभागीय गोपनीयता संबंधी नियम आप ताक पर रख रहे हैं दूसरी बात क्या आप बताएंगे कि आप इंजन में क्या कर रहे थे? सिर्फ़ पोस्ट लिखने के लिये चढ़े थे या फिर कोई विभागीय कार्य था? बिना उचित कारण(श्वेत पासधारक ही) इंजन में चालक की अनुमति से आ सकता है ये भी आपको पता होगा आप तो यातायात से संबद्ध हैं। नई पीढी के इन चालक और सहायक चालकों ने आपको ये सब बताया नहीं बल्कि १०० कि.मी./घंटा की गति पर लापरवाही से आपका अतिथि सत्कार कर रहे हैं आप सबके लिये दंडनीय है ये हरकत जबकि द्रश्यता साफ़ नहीं है।

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  17. बहुत अच्छी जानकारी दी। अंदर की भी। मेरा मतलब है इंजन के अंदर की। आपसे सहमत हूं --
    पिछली पीढ़ी के तो पढ़ने लिखने में कमजोर थे। वे अपना पैसे का भी ठीक से प्रबन्धन नहीं का पाते थे। अपनी सन्ततियों को (ज्यादातर घर से बाहर रहने के कारण) ठीक से नहीं पाल पाते थे – उनके आवारा होने के चांस बहुत थे।
    भाभी जी का विचार बिलकुल सही है।

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  18. इंजन के अन्दर की डिजाइन अच्छी दिख रही है. यह भी सुखद परिवर्तन है. मैं हमेशा से कर्मचारियों को अच्छा माहौल देने के पक्ष में रहा हूँ. कार्यकुशलता बढ़ती है. सरकारी लकड़ी की कूर्सियाँ देख कौफ्त होती थी.

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  19. तरक्की का बहुत बारीक विश्लेषण है।रेल का संगीत सच मे अद्भूत होता है और आदरणीय भाभी जी की बात से शत-प्रतिशत सहमत्।

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  20. @ अजय मोहन जी - अपका कहना सही हो सकता है। असल में मैं ब्लॉगिंग की सीमायें तलाश रहा हूं। बिना प्रयोग किये वह सम्भव लगता नहीं और यह भी है कि बहुत ज्यादा प्रयोग का मन भी नहीं है।

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  21. हमारे एक रिश्तेदार के सौजन्य से एक बार इंजन में घुसपैठ करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था और जाना कि भले ही पायलट(?) की स्थितियां पहले के मुकाबले सुधर गई हों, लेकिन फ़िर भी काम बेहद मुश्किल और जिम्मेदारी भरा है…

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  22. ट्रेन इंजन में यात्रा करना सच में एक अलग अनुभव है । शब्दों में व्यक्त कर पाना कठिन कार्य है पर श्री ज्ञानदत्त जी ने एक लालसा जगा दी है । सबसे आगे खड़े होकर दृश्यों को १०० किमी प्रति घंटा की गति से आते हुये देखना जबकि आप के पीछे ५००० टन का भार हो । ऐसा लगता है ट्रेन के सारी गतिज ऊर्जा आपके रोमांच में समाहित हो गयी हो ।

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  23. "रेलवे के बाहर के व्यक्ति ट्रेन इंजन में चलने को अनाधिकृत हैं। उसमें पाये जाने पर कड़ा जुर्माना तो है ही, मजिस्टेट न जाने कौन कौन रेलवे एक्ट या पीनल कोड की धाराओं में धर ले! लिहाजा आप तो कैब का फोटो ही देखें।"
    :( ...हार्दिक इच्छा थी जी इंजिन में बैठने की :(

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  24. यही तो मैं कहता हूं लोग युवाओं को पता नही क्यों बुरा भला कहते हैं. नई पीढ़ी, अपने पहले की जेनरेशन की तुलना में कही तेजी से सीखती है और दक्षता हासिल करती है. जब समय की पटरी पर जिंदगी सरपट भाग रही हो तो मालगाड़ी क्या चीज है. डिरेलमेंट का खतरा होने के बावजूद नई पीढ़ी में जोखिम उठाने का मद्दा है. शायद कड़ी स्पर्धा में धीरे चलने में पीछे रह जाने का खतरा होता है.

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  25. देव !
    रेल मोहकमा बहुत आधुनिक हो रहा है ( सीमाओं के साथ ) .. उम्मीद है कि
    एक दिन यह मोहकमा उदहारण बनेगा ... ऐसे में मालगाड़ी
    सौ की रफ़्तार पकड़ रही है , तब तो बड़ा अच्छा ....

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  26. आजकल इंजनो में हेड लाईट की पोजीशन कुछ बदली सी नजर आती है| कोई विशेष कारण? पहले ऊपर थी अब बीच में आ गयी है|

    कुछ दिनों पहले एक चैनल वाले को ऐसे ही कैब से बोलते देखा था| शायद उसने अनुमति ली हो|

    मैंने आपको रेल पर लिखने का अनुरोध किया था| आप बीच-बीच में ऐसे ही लिखें| मन रोमांचित हो जाता है|

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  27. भाभीजी की बात से सौ प्रतिशत सहमत।
    एक आधुनिक रेल गाड़ी के cabin का दर्शन कराने के लिए धन्यवाद।
    बचपन से ही एक रेल गाडी के चालक के cabin में प्रवेश करके उसके साथ सफ़र करने की इच्छा थी । आगे चलकर विमान के कॉकपिट का दर्शन करना चाहा। अभी तक अवसर नहीं मिला। बस एक बार एक ट्रक ड्राइवर के साथ बैठने का अवसर मिला था। और हाँ वह बचपन का अनुभव भी याद है जब ६ या ७ साल की आयु थी और मैं केरळ में बसे अपने दादाजी के यहाँ छुट्टियाँ बिताने गया था और पहली बार ताँगे मे, सबसे आगे ताँगेवाले के साथ बैठने का अवसर मिला था। घोडे की पूँछ मेरे पैर छू रही थी और वह गुदगुदी का अनुभव अब तक याद है।

    जाते जाते, ज्ञानजी यह बताइए, भारत में बुल्लेट ट्रेन का प्रवेश कब होगा? बेंगळूरु तो दक्षिण भारत के ठीक बीच में स्थित है और आशा करता हूँ कि इस जन्म में यहाँ से चेन्नै, हैदराबाद, कोच्ची या मंगळूरु, एक या ज्यादा से ज्यादा दो घंटे में पहुँच सकेंगे।

    शंकरांति के अवसर पर आपको और सभी मित्रों को मेरी हार्दिक शुभकामानाएं

    जी विश्वनाथ, जे पी नगर, बेंगळूरु

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  28. मेरी पत्नीजी का विचार है कि ट्रेन चालकों की घरेलू जिन्दगी में असली परिवर्तन उनकी पत्नियों के पढ़े लिखे होने से आया है। वे पैसे और घर का बेहतर प्रबन्धन करती हैं। कर्मचारियों की घरवालियों से सम्पर्क के चलते उनका यह ऑबर्वेशन महत्वपूर्ण है।

    Reeta bhabhi ne bilkul sahi kaha...

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  29. इंजन के अन्दर से दर्शन हो गए...और बहुत सारी बातें भी पता चलीं...इंजन ड्राइवर्स तो बहुत स्मार्ट लग रहें हैं..हमारी कल्पनाओं से एकदम अलग
    भाभी जी का कहना बिलकुल सही है.....शिक्षित औरतें ही लाती हैं,घर और बच्चों में बदलाव.

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  30. बहुत सुंदर, भाभी जी की बात से सहमत है

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  31. ज्ञानजी,

    सब यही कह रहे हैं, कि भाभीजी का कहना सच है।
    इस सन्दर्भ में एक लोकप्रिय quotation है।

    When you educate a man, you educate one person.
    When you educate a woman, you educate an entire family.

    यह भी लिखना चाहता था पहली टिप्पणी में लेकिन यह बात छूट गई

    जी विश्वनाथ, जे पी नगर, बेंगळूरु

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  32. डा. महेश सिन्हा की टिप्पणी -

    जानकारी के लिए धन्यवाद् . वैसे एक बार इंजन में सफर कर चुके हैं बहुत पहले . ये नहीं मालूम था कि इसकी इज्जत नहीं है .

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  33. अच्छे लोग सरकारी सेवाओं में जुडें, उनको काबिलियत के अनुसार वेतन और सुविधाएं मिलें तो क्यूँ सरकारी सेवाओं पर ऊँगली उठेंगी! आप इलाहाबाद की बातें बताते हैं, बहुत अच्छा लगता है!

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  34. बढिया जानकारी।

    WAG9 लोकोमोटिव और BOXN-HL अपने लिये तो अब भी अनजानी चीज ही है।

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  35. आदरणीय ज्ञानदत्त जी !
    ऐसे प्रयोग सिर्फ आप जैसे अधिकारी ही कर पाने की हिम्मत रखते हैं , अधिकतर अधिकारीयों में अपनी शक्तियों के प्रयोग करने मात्र में पसीना आ जाता है ! ऐसा करके आप हमारा ज्ञान ही नहीं बाधा रहे बल्कि रेलवे के साथ भी एक उपकार कर रहे हैं जो अभी तक किसी अधिकारी ने नहीं किया होगा !
    अगर कोई चांस हो तो कृपया राजभाषा के सहयोग के खातिर ही सही कुछ ब्लागर्स मीटिंग का आयोजन चलती रेलगाड़ी में हो जाये तो आपकी जय जय ....! आशा है किसी मद में से इसका रास्ता निकल ही आयेगा !

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  36. डिवीज़नल रेलवे हॉस्पिटल वाराणसी के अपने कार्यकाल में, यदि मैं किसी वर्ग से घबड़ाता और झुँझलाता था, तो वह वर्ग था ’ लोको रनिंग स्टाफ़ !’ मैं उन कटुताओं को स्मरण करना नहीं चाहता, पर वही मेरे इस्तीफ़े का कारण भी बने !
    आज हालात तो बेहतर हैं, पर मानसिकता जस की तस वहीं ठहरी हुई हैं !

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  37. पोस्ट तो पहले ही पढ़ ली थी. बस अजय मोहन जी की टिप्पणी ढूंढते-ढूंढते इधर आ गए. उनकी टिप्पणी पढ़कर उत्सुकता हुई. जनता को पुल/सड़क/रेल/बिजली घर आदि का चित्र न लेने से अंग्रेज़ी क़ानून आज भी मौजूद हैं इसका अंदाज़ तो तभी हो गया था जब मैंने अपने अमरीकी मित्रों को भारत में हो रहे परिवर्तन दिखाने की मंशा से दिल्ली मेट्रो के स्टेशन का चित्र लेना चाहा था और एक कर्मचारी ने आकर मुझे टोक दिया था. दूसरी बात यह है कि इंजन तो क्या चीज़ है एक पुलिसवाला चाहे तो एक आम आदमी को प्लेटफोर्म या फुटपाथ पर खडा होने के जुर्म में भी (बिना लिखापढ़ी के) अन्दर कर सकता है.
    अजय मोहन और पाण्डेय जी से मेरा सवाल यह है कि क्या रेलवे में ऐसे पुरातनपंथी नियमों का विरोध (या फिर अनदेखी at least) शुरू हुई है ताकि ऊर्जा दूसरे ज़्यादा ज़रूरी कामों में लगाई जा सके या नहीं?

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  38. आपकी इस पोस्‍ट ने, बरसों पहले कोल एंजिन में की गई, मल्‍हारगढ से मन्‍दसौर तक की यात्रा याद दिला दी। एंजिन में रहते हुए तो कुछ अनुभव नहीं हुआ किन्‍तु उतरने के बाद लगा था कि मैने कुछ अनूठा अनुभव लिया है। हॉं, दर्पण में देखा तो, कोल एंजिन में सफर करने के प्रभाव और परिणाम भी नजर आए। मैं काला-ढुस्‍स हो चुका था।

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  39. जो कुछ मैं कह सकता था पूर्व के टिप्पणीकारों ने कह ही दिया है। मेरे लिये मालगाड़ी की रफ़्तार १०० किमीप्रघं होना अश्चर्यजनक इसलिये लगता है क्योंकि जिस सेक्शन (इलाहाबाद-फ़ैज़ाबाद)पर मैं यात्रा करता हूँ उस पर ४० किमीप्रघं से ऊपर की गति प्रतिबन्धित है और उस गति पर भी सवारी गाड़ी झूले की भाँति हिचकोले लेते हुये चलती है। आजादी ६२-६३ साल बाद भी यह दशा सोचनीय है। आशा नई पीढ़ी जरूर कुछ नया सोचेगी।

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  40. पंडित जी
    बाबूजी भी फुट प्लेट -निरीक्षणों की चर्चा करतें हैं
    आज उनको पढ़ वाता हूँ
    हार्दिक शुभ कामनाएं

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  41. एकदम अलग ही दुनिया से परिचित कराते हैं आप. धन्यवाद.

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  42. पुराने इंजनों से कितना अलग है यह सब ...सही माने में विकासशीलता नजर आ रही है ...
    एक शिक्षित पत्नी पूरे परिवार का भली भांति सञ्चालन कर पाती है ...यहाँ शिक्षित से मेरा अभिप्राय डिग्री नहीं है ...जिन्दगी की पाठशाला भी बहुत कुछ सिखा देती है ...!!

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  43. पढ़े लिखे होने से परिवर्तन तो होना ही है. हर क्षेत्र में हो रहा है जी !

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  44. मालगाड़ी के तेज चलने की खबर तो आप दे ही चुके थे । उसका अनुभव भी लिया और बाँटा आपने इस पोस्ट के जरिये ।

    संभावनाशील है नई पीढ़ी, आप कह रहे हैं तो संभावनायें बनती हैं इसकी। मैं प्रमुदित हूँ इस घोषणा से आपकी ।

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  45. हम तो रेलवे क्रासिंग पर जब ट्रेन गुजरने वाली होती है तब रूकर खूब मजे लेकर देखते हैं । आज इंजन के बारे में भी पता चल गया । 100 की रफ्तार में दौड़ रहे हैं तो निश्चित ही तरक्की पर हैं ।

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  46. "रेलवे के बाहर के व्यक्ति ट्रेन इंजन में चलने को अनाधिकृत हैं। उसमें पाये जाने पर कड़ा जुर्माना तो है ही, मजिस्टेट न जाने कौन कौन रेलवे एक्ट या पीनल कोड की धाराओं में धर ले! लिहाजा आप तो कैब का फोटो ही देखें।"
    :( ...हार्दिक इच्छा थी जी इंजिन में बैठने की :(

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  47. ट्रेन इंजन में यात्रा करना सच में एक अलग अनुभव है । शब्दों में व्यक्त कर पाना कठिन कार्य है पर श्री ज्ञानदत्त जी ने एक लालसा जगा दी है । सबसे आगे खड़े होकर दृश्यों को १०० किमी प्रति घंटा की गति से आते हुये देखना जबकि आप के पीछे ५००० टन का भार हो । ऐसा लगता है ट्रेन के सारी गतिज ऊर्जा आपके रोमांच में समाहित हो गयी हो ।

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  48. बहुत अच्छी जानकारी दी। अंदर की भी। मेरा मतलब है इंजन के अंदर की। आपसे सहमत हूं --
    पिछली पीढ़ी के तो पढ़ने लिखने में कमजोर थे। वे अपना पैसे का भी ठीक से प्रबन्धन नहीं का पाते थे। अपनी सन्ततियों को (ज्यादातर घर से बाहर रहने के कारण) ठीक से नहीं पाल पाते थे – उनके आवारा होने के चांस बहुत थे।
    भाभी जी का विचार बिलकुल सही है।

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  49. मान्यवर आपने तो रेलवे के सारे फोटोग्राफ़्स का ही कापीराइट ले डाला। सलाह भी दे डाली अपने टिप्पणीकारों को कि बाहर के व्यक्ति का इंजन में आना अपराध है लेकिन क्या आपने फोटोग्राफ़ी की अनुमति ली थी और फिर उसके प्रकाशन की भी विभाग से????? विभागीय गोपनीयता संबंधी नियम आप ताक पर रख रहे हैं दूसरी बात क्या आप बताएंगे कि आप इंजन में क्या कर रहे थे? सिर्फ़ पोस्ट लिखने के लिये चढ़े थे या फिर कोई विभागीय कार्य था? बिना उचित कारण(श्वेत पासधारक ही) इंजन में चालक की अनुमति से आ सकता है ये भी आपको पता होगा आप तो यातायात से संबद्ध हैं। नई पीढी के इन चालक और सहायक चालकों ने आपको ये सब बताया नहीं बल्कि १०० कि.मी./घंटा की गति पर लापरवाही से आपका अतिथि सत्कार कर रहे हैं आप सबके लिये दंडनीय है ये हरकत जबकि द्रश्यता साफ़ नहीं है।

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  50. आप की पत्नी ठीक कहती हैं,
    'ट्रेन चालकों की घरेलू जिन्दगी में असली परिवर्तन उनकी पत्नियों के पढ़े लिखे होने से आया है। वे पैसे और घर का बेहतर प्रबन्धन करती हैं।'
    यह बात केवल ट्रेन चालकों के जीवन के लिये पर हम सब के जीवन में लागू होती है।

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  51. @ मालगाड़ी में WAG9 लोकोमोटिव और BOXN-HL वैगनों के रेक का जोड़ तो मानो संगीत है ट्रेन परिचालन में।

    अपने धन्धे से यह जुड़ाव प्रेरणादायी है। अभी रेलवे आधुनिकीकरण की शुरुआत कर रही है। मंजिल बहुत दूर है। 'फॉग विजीबिलिटी' वाले यंत्र की यात्रा कहाँ तक पहुँची है?

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  52. मालगाड़ी सौ की रफ़्तार से...? बाप रे बाप। भारत की रेल पटरियाँ इतनी मजबूत और टिकाऊ हैं यह जानकर अच्छा लगा।

    कालिख पुते कपड़ों में कोयले से यारी करते पहले के रेल ड्राइवर अब चाक-चौबन्द ‘पायलट’ हो गये हैं यह भी बड़ा अच्छा परिवर्तन है। मन प्रसन्न हुआ।

    बच्चों की देखभाल और घर का प्रबन्धन तो कुशल गृहिणी ही कर पाएगी। भाभी जी के ऑब्जर्वेशन से पूर्ण सहमत।

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--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय