Tuesday, December 8, 2009

नत्तू "भागीरथ" पांड़े

NattuBahgirath Pandey कल मैं नत्तू पांड़े से बात कर रहा था कि उन्हे इस युग में भागीरथ बन कर मृतप्राय गंगा को पुन: जीवन्त करना है। नत्तू पांड़े सात महीने के हो रहे हैं। पता नहीं अगर भागीरथ बन भी पायेंगे तो कैसे बनेंगे। उसके बाबा तो शायद उससे अपनी राजनैतिक विरासत संभालने की बात करें। उसके पिता उसे एक सफल व्यवसायी/उद्योगपति बनाने के स्वप्न देखें। पर उसे अगर भागीरथ बनना है तो भारत के सूक्ष्म तत्व को पहचान कर बहुत चमत्कारी परिवर्तन करने होंगे भारतीय मेधा और जीवन पद्यति में।

Ashwath बरगद के चौतरे पर गणेश। बनवारी की पुस्तक "पंचवटी" का एक पन्ना
प्राचीन काल के भागीरथ प्रयत्न से कहीं अधिक कठिन प्रयास की दरकार होगी। भागीरथ को चुनौतियां केवल भौगोलिक थीं। अब चुनौतियां अत्यधिक बुद्धिनिर्भर मानव की भोग लिप्सा से पार पाने की हैं। वह कहीं ज्यादा दुरुह काम है।

मुझे इतना तो लगता है कि पर्यावरण को ठीक करने के पश्चिमी मॉडल से तो यह होने से रहा। नत्तू पांड़े को इस प्रान्त-प्रान्तर के बारे में बहुत कुछ समझना होगा। जीवन में अश्वथ, शमी, यज्ञ, वन, गौ, आयुर्वेद, अथर्वण, उद्योग, अरण्य, कृषि और न जाने कितने प्रतीकों को नये सन्दर्भों में स्थापित करना होगा। जैसे कृष्ण ने समझा था इस देश के मानस को, उससे कम में काम नहीं चलने वाला।

प्राचीन से अर्वाचीन जहां जुड़ते हैं, वहां भविष्य का भारत जन्म लेता है। वहीं भविष्य के सभी समाधान भी रहते हैं! 

बेचारा नत्तू पांड़े! कितनी अपेक्षा है उससे!


मुझे जनसत्ता में बनवारी जी को पढ़ना अच्छी तरह याद है। दिनमान में पढ़ा था या नहीं, वह स्मृति में नहीं है। उनकी पंचवटी मेरे पास अंग्रेजी अनुवाद (आशा वोहरा द्वारा) में है। यह सन १९९२ में श्री विनायक पब्लिकेशंस, दिल्ली ने छापी है। इसमें एनविरॉनमेण्ट (पर्यावरण) पर भारतीय दृष्टि है। यह जरूर है कि कुछ आधुनिक लोगों को यह अव्यवहारिक लगे। पर मैं इस पुस्तक के पुनर्पठन की सोच रहा हूं।   

29 comments:

  1. सोचिये मत कर डालिए ताकि बनवारी जी को हम भी पढ़ लें
    वैसे आवश्यकता तो है भागीरथ की और प्रांत - प्रांतर को समझने की

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  2. आपने बहुत सही कहा
    "प्राचीन काल के भागीरथ प्रयत्न से कहीं अधिक कठिन प्रयास की दरकार होगी। भागीरथ को चुनौतियां केवल भौगोलिक थीं। अब चुनौतियां अत्यधिक बुद्धिनिर्भर मानव की भोग लिप्सा से पार पाने की हैं। वह कहीं ज्यादा दुरुह काम है।"

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  3. ज़बरदस्‍त बात कही. चुनौतियां अब सिर्फ भौगोलिक नहीं है नत्‍तू जी का काम अधिक दुष्‍कर होगा इसमें शक नहीं पर देखिये तो आपकी बात पर वे कितने आराम से हल निकाल लेने की मुद्रा में दिख रहे है.

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  4. नत्तू पांड़े! आय हाय!! कित्ते प्यारे..हम तो उन पर मोहाय बकिया पढ़े ही नहीं...

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  5. गिरिजेश राव जी की टिप्पणी:

    आप की ताजी पोस्ट पर मेरी यह टिप्पणी:
    _______________

    कोपेनहेगन के होपेनहेगन .. होने की सम्भावना/आशा पर जो टिप्पणी दी थी, यहाँ भी दे रहा हूँ:

    "हिन्दी ब्लॉगरी में ऐसे लेखों की कमी है। अच्छी पोस्ट।
    भोगवादी विकास की अवधारणा ने बहुत से ऐसी प्रक्रियाएँ शुरू कर स्थापित कर दी हैं जिनको रिवर्स करने के लिए बहुत ही दृढ़ इच्छाशक्ति और जनता को समझाने की आवश्यकता पड़ेगी। सवाल यह है कि क्या वैश्विक नेतृत्त्व इसमें सक्षम है? क्या वाकई रोकथाम और रिवर्सल के लिए ईमानदार है?
    आर्थिक विकास और रोजगार के मुद्दे भी इनसे जुड़े हुए हैं। बहुत जटिल सा मामला है। जाने क्यों भूटान जैसे छोटे देश से सीख लेने को मन करता है !"

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  6. आदरणीय पाण्डेय जी,
    आपने नत्तू जी की बहुत खूबसूरत फ़ोटो लगाई है।इस बार इलाहाबाद आऊंगी तो इनसे मिलने जरूर आऊंगी।
    पूनम

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  7. बेहतरीन आलेख, सम-सामयिक भी और generation-next को संबोधित. एक पीढी पर कितना दबाव होता है अपेक्षाओं का...अपेक्षाओं का भी एक hierarchy है..वैसे इससे प्रत्येक पीढी गुजरे ना गुजरे इस कसौटी पे कसी जरूर जाती है. पर्यावरण की बहस कोई भी हो मुझे गांधी सबसे प्रासंगिक लगते हैं. सिर्फ बाहरी उपाय काफी नहीं होंगे..प्रयासों की उम्र लम्बी हो जिसके सार्थक परिणाम भी हों तो अपने भीतर कुछ परिवर्तन करने होंगे. वस्तुओं का न्यूनतम प्रयोग..मितव्ययी जीवन शैली और एक साफ़-सुथरी आध्यामिकता को भी अपनाना होगा जिससे जो भी समक्ष है जड़-चेतन..उसकी ईज्जत हो मन में. कई बार सोचता हूँ, हर जड़-चेतन में देवत्व देखना कितना ठीक था अपने पर्यावरण के लिए..खैर उचित और श्रेष्ठ के चयन की आवश्यक प्रज्ञा के साथ नत्तू "भागीरथ" पांड़े को अपनी चुनौती स्वीकारनी होगी. इस भागीरथ प्रयास में नत्तू बाबु को अकेले छोड़ना ठीक नहीं होगा. वर्तमान की सारी पीढ़ियों को अपना योग देना होगा. अक्सर आगत पीढी से हम अपेक्षा ज्यादा रखते हैं और उसकी चुनौतियों को हम underestimate करते हैं पर यहाँ इस पोस्ट में दो पीढियां एक-दूसरे की सीमाओं से और क्षमताओं से भली-भांति अवगत लगती हैं..इस शुभ लक्षण के शुभ मायने हैं...आभार इस बेहतरीन पोस्ट के लिए.

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  8. यह रचना सामयिक प्रश्नों का उत्तर देने के साथ-साथ जीवन के शाश्वत मूल्यों से भी जुड़ी है। मानव बाह्य जगत से जितना जुड़ा है; उतना ही वह अन्तर्जगत् में भी जी रहा है। बाहरी संसार के नदी, पर्वत, पशु-पक्षी उसके मन से जुड़े हैं ; तो वह मानव होकर भी मानवेतर पात्रों से जुड़ा है। गतिशील होकर भी वह स्थिर,गतिशील मूर्त्त-अमूर्त्त सभी का सगा -संबंधी है। आपने बिल्कुल ठीक कहा है नत्तू पांड़े को इस प्रान्त-प्रान्तर के बारे में बहुत कुछ समझना होगा। आपका आभार।

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  9. आदरणीय पाण्डेय जी,
    नत्तू जी की तस्वीर ने तो मन मोह लिया---इस बार इनसे मुलाकात जरूर करूंगा।
    हेमन्त कुमार

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  10. बड़ी जिम्मेदारी है नत्तु पांडे की.. सोरी.. नत्तु "भागीरथ" पांडे जी की..

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  11. बेहतरीन आलेख.

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  12. बेहतरीन आलेख. एक चुटकी सिन्दूर की कीमत तुम क्या जानो रमेश बाबू. एक चुटकी सिन्दूर औरत की मांग का गहना होता है. गहना से याद आया कि सोने के दाम आसमान छूने लगे हैं. अब आसमान में सितारों वाली वो रौनक कहाँ? रौनक का क्या कहें, केवल आसमान से ही नहीं, मनुष्य की ज़िंदगी से चली गई है. जैसे-तैसे ज़िंदगी काट रहा है मनुष्य. गंगा के पानी की काट सबसे बड़े प्रशांत महासागर के पानी में भी नहीं मिलेगी. गाने के अनुसार जाएँ तो सबसे से बड़ा महासागर तो हिंद महासागर है क्योंकि कवि प्रदीप ने लिखा था कि "दक्षिण में चरणों को धोता सागर का सम्राट है." सम्राट अशोक की तो क्या कहने? कहने को बहुत कुछ है क्योंकि हमेशा कुछ न कुछ होता रहता है. होने को लेकर कोई पंगा नहीं है. पंगा तो राज ठाकरे ने लिया था अबू आज़मी से. कैफ़ी आज़मी के जिले के ही हैं अबू आज़मी. वही कैफ़ी आज़मी जिनकी सुपुत्री शबाना आज़मी हैं. सुपुत्रियों को लोग-बाग़ जिन्दा ही नहीं रहने दे रहे. जिंदा रहने की बात क्या कही जाय, इंसान कहाँ जिन्दा है अब? किसी शायर ने ठीक ही लिखा था कि; "मौत तो लफ्ज़ बेमानी है, जिसको मारा हयात ने मारा". कहते हैं हयात का मतलब होता है ज़िंदगी. मतलब इसलिए बता दिया कि उर्दू न जानने के कारण आपके ऊपर एक अभियोग लगा था. अभियोग की क्या बात कहें, अभियोग तो चलते रहते हैं और भारतीय अदालतों से अभियोगी छूट ही जाता है. लेकिन नत्तू पाण्डेय के ऊपर भागीरथ प्रयास न करने का अभियोग नहीं लगेगा इस बात का विश्वास है मुझे.

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  13. भइया, ये तो गड़बड़ हो गई. दूसरी टिप्पणी एक कविता वाली पोस्ट के लिए लिखी थी मैंने. आपकी पोस्ट के लिए अप्रसांगिक है यह टिप्पणी.....वैसे कोई बात नहीं, तमाम पोस्ट पर अप्रासंगिक टिप्पणियां होती रहती हैं. आपकी पोस्ट पर भी सही. वैसे भी आपकी पोस्ट अप्रासंगिक टिप्पणियां कभी दिखाई ही नहीं देतीं. इसलिए इसे रहने ही दीजिये. डिलीट मत कीजिये. पड़ी रहेगी एक कोने में.

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  14. नन्ही ही जान पर आपने अपेक्षाओं का पहाड़ ही डाल दिया है. क्या क्या करेंगे बेचारे :)

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  15. ` पता नहीं अगर भागीरथ बन भी पायेंगे तो कैसे बनेंगे। उसके बाबा तो शायद उससे अपनी राजनैतिक विरासत संभालने की बात करें’

    चिंता की क्या बात है! आज का हर नेता भागिरथ ही तो है.... तो नत्थू जी राजनीति में आएं तो समझ लो गंगा पार हो गई:)

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  16. नत्तू पांडे जिन्दाबाद , नाना का भागीरथ ,बाबा का राजनितिक ,पापा का उध्योगपति सब का सपना पूरा करेगा .

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  17. अभी कल-परसों चालीस समथिंग अखबारों का एक साझा एडिटोरियल पढ़ा था, और अब आपकी यह पोस्ट...

    सच है, आशावादिता की बहुत जरूरत है- हमें और इस सृष्टि को भी।

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  18. आजकल आमिर की फिल्म का एक प्रोमो आ रहा है जिसमें बताया जाता है कि पैदा होते ही पिता ने पालने में देखते हुए कहा मेरा बेटा डॉक्टर बनेगा.....मुझसे किसी ने पूछा ही नहीं कि मैं क्या बनूंगा।
    नत्तू पांडे जी भी कहीं कल को न कहें- मेरे नानाजी ने पर्यावरण, मृदा क्षरण और तरह तरह के फिलॉसिफी वाले भारी भरकम बातों को मुझे थमाते गये औऱ मैं थामता गया.... मुझसे पूछा ही नहीं कि मैं क्या करना चाहता हूँ :)

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  19. बहुत बढिया पोस्ट !! भागीरथ बनने के लिए भागीरथी कोशिश करने वाला कॊई नजर तो नही आता.....फिर भी उम्मीद पर दुनिया कायम है..

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  20. ... प्रसंशनीय अभिव्यक्ति !!!!

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  21. सार्थक चिंतन को जगाती और अपनी अगली पीढ़ियों के सम्मुख महती किन्तु आवश्यक अपेक्षा को दर्शाती पोस्ट...



    "प्राचीन से अर्वाचीन जहां जुड़ते हैं, वहां भविष्य का भारत जन्म लेता है। वहीं भविष्य के सभी समाधान भी रहते हैं!" सत्य वचन और उत्तम अपेक्षा



    साधू! साधू !!

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  22. देव !
    बुखार है सो इन दिनों निष्क्रिय सा हूँ..
    आपकी पोस्ट में वर्तमान का भविष्य से बड़ा ख़ूबसूरत
    संवाद किया गया है , ऐसी स्थिति में अतीत 'बेनीफिटेड'
    होगा ही ..
    '' सगरपुत्रों'' को तारने के लिए भगीरथ ने भागीरथ-प्रयास
    किया , आज तो सब 'सगरपुत्र' की त्रासदी को प्राप्त हो गए
    है .. 'नत्तू पांड़े' पर आने वाले वक़्त में कितना दबाव होगा , यह
    सहज अनुमेय है !
    ... क्या हम नत्तू की पीढी को जवाब दे पाएंगे ..

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  23. SMS Comment from Shri Manoj Dube:

    Sir, read your Nattu Bhagirath Pandey blog ... it was so apt... he is blessed to have academic and political input from nana and baba ...let us see he becomes laser like and searchlight like ... am sure you are having best of time with him ... regards, manoj.

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  24. प्राचीन से अर्वाचीन जहां जुड़ते हैं, वहां भविष्य का भारत जन्म लेता है। वहीं भविष्य के सभी समाधान भी रहते हैं!
    ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
    Sarthak -- Lekhan --
    ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
    Nattoo " Bhageerath " Pande ko mere dhron ashish va bahut sneh :)
    Kitta pyara Laal hai ...Jug Jug jiye ...Sub ki ashaon ko poora kare
    ashish sahit,
    - Lavanya

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  25. भागीरथ के पास चुनौतियां कम थी तो रिसोर्सेस भी कम थे. अब दोनों बढे हैं साथ-साथ अन्योन्याश्रित सम्बन्ध दीखता है इनका. बाकी नत्तू पण्डे कि तस्वीर देखकर ही निहाल हो लिए हम तो.

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  26. प्राचीन काल के भागीरथ प्रयत्न से कहीं अधिक कठिन प्रयास की दरकार होगी। भागीरथ को चुनौतियां केवल भौगोलिक थीं। अब चुनौतियां अत्यधिक बुद्धिनिर्भर मानव की भोग लिप्सा से पार पाने की हैं। वह कहीं ज्यादा दुरुह काम है।
    --आपने सही कहा अब चुनौतियाँ और भी कठिन हैं अब तो घर-घर में एक नत्तू पाण्डे की आवश्यकता होगी।

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  27. " जीवन में अश्वथ, शमी, यज्ञ, वन, गौ, आयुर्वेद, अथर्वण, उद्योग, अरण्य, कृषि और न जाने कितने प्रतीकों को नये सन्दर्भों में स्थापित करना होगा"
    बहुत ही प्रेरक और विचारणीय विचार .मास्टर नत्तू पाण्डे जी की फोटो बहुत बढ़िया लगी .... आभार

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  28. हमने गंगा से अंटार्कटिक तक कुछ नहीं बख़्शा. सब
    जी भर कर रौंदा और ज़िद भी किए बैठे हैं कि क्योतों और कोपेहेगनों को किसी भी हाल में कामयाब भी नहीं होने देंगे..चाहे कुछ भी हो जाए..
    लम्हों ने ख़ता की थी सदियों ने सज़ा पाई.
    मेरी अपराधों की सज़ा के लिए तैयार रहें बेचारे निरीह नत्तू पाण्डे.

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--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय