Friday, October 2, 2009

पकल्ले बे, नरियर!


Coconut पांच बच्चे थे। लोग नवरात्र की पूजा सामग्री गंगा में प्रवाहित करने आ रहे थे। और ये पांचों उस सामग्री में से गंगा में हिल कर नारियल लपकने को उद्धत। शाम के समय भी धुंधलके में थे और सवेरे पौने छ बजे देखा तब भी। सवेरे उनका थैला नारियल से आधा भर चुका था। निश्चय ही भोर फूटते से ही कार्यरत थे वे।

गरीब, चपल और प्रसन्न बच्चे।

उनमें से एक जो कुछ बड़ा था, औरों को निर्देश देता जा रहा था। “देखु, ऊ आवत बा। हिलु, लई आउ! (देख, वह आ रहा है। जा पानी में, ले आ।)”

Coconut1 घाट पर नहाती स्त्रियां परेशान हो जा रही थीं। गंगा की धारा तेज थी। बच्चे ज्यादा ही जोखिम ले रहे थे। बोल भी रही थीं उनको, पर वे सुन नहीं रहे थे। पता नहीं, इन बच्चों के माता पिता होते तो यह सब करने देते या नहीं!

एक छोटा बच्चा नारियल के पीछे पानी में काफी दूर तक गया पर पकड़ नहीं पाया। मायूस हो पानी से निकल खड़ा हो गया। दो दूसरे दूर धारा में बहते नारियल को देख कर छप्प से पानी में कूद गये। उनका रिंग लीडर चिल्लाया – पकल्ले बे, नरियर! (पकड़ ले बे, नारियल!)

पर बहाव तेज था और नारियल दूर बहता जा रहा था। तैरे तो वे दूर तक, लेकिन पकड़ नहीं पाये।Coconut5

घाट पर नवरात्र की पूजा सामग्री फैंकने आये जा रहे थे लोग। पॉलीथीन की पन्नी समेत फैंक रहे थे। घाट पर कचरा पाट उसकी ऐसी-तैसी कर; गंगा का पानी सिर पर छिड़क रहे थे और बोल रहे थे – जय गंगा माई!

कलियुग है। सन्तान अपनी मां का वध कर दे रही है। इन सब की एक बाजू में श्रद्धा है और दूसरी में गंगाजी को मारने का फंदा, जिसे वे धीरे धीरे कस रहे हैं सामुहिक रूप से। बनारस में वरुणा की मौत देखी है। सईं और गोमती मृतप्राय हैं। गंगाजी कतार में हैं।

खैर, छोड़ें यह पर्यावरणीय रुदन!

पकल्ले बे, नरियर!

Coconut6


34 comments:

  1. सन्तान अपनी मां का वध कर दे रही है। इन सब की एक बाजू में श्रद्धा है और दूसरी में गंगाजी को मारने का फंदा, जिसे वे धीरे धीरे कस रहे हैं सामुहिक रूप से।
    बहुत दुखद है...!!

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  2. दृश्य कोई भी हो, प्रसंग कैसा भी , पर आपकी इंगिति वही है, चिन्ता भी वही है - हर प्रविष्टि की तरह !

    आभार ।

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  3. पता नहीं, इन बच्चों के माता पिता होते तो यह सब करने देते या नहीं!
    आज के दौर में ये भी एक बहुत बड़ा यक्ष प्रश्न हो गया है............
    मुझे लगता है की हमारी वर्तमान बहुतसी समस्याओं का जन्म माता-पिता की यही जिम्मेदारी ढंग से न निभाने से है.............

    खाई जो भी हो, आज तो अपने उस बापू का जन्म दिन है, जो कानून के ज्ञाता होने के बावजूद अपने बच्चे हरी की ठीक से कभी न समझा पाए....., न अपने बचपन के दोस्त जिन्ना को न राजनीतिक सफ़र में युवा साथी बने नेहरु को, न गर्म दल नेता सुभाष बाबु को. फिर भी बापू के जन्म दिन की हार्दिक बधाई. राष्ट्रीय अवकाश का भरपूर लाभ उठाइए...........

    चन्द्र मोहन गुप्त
    जयपुर
    www.cmgupta.blogspot.com

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  4. पूरे इलाहाबदियन फार्म में हैं -अमे ऊ नारियल नहीं है -सुतली क गोला है की बम है कौन ससुरा गंगा में बहाई देहेस -ई संवाद नहीं सुनाई पड़ा क्या ?
    गंगा ज्ञान लहरी उत्तरोत्तर समृद्ध हो रही है -शुभकामनाएं !

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  5. मैं सोचता हूँ जब वह बच्चे नारियल लेने के लिये पानी में छपाक से कूदते होंगे तो वह छोटा नारियल कहता होगा

    - अबे मुझे मत पकड, मैं तो छोटा हूं बे, वो देख बगल में एक सेठ के घर वालों ने नारियल छोडा था, उसे क्यों नहीं पकडता, बहुत बडा और बहुत पैसे का है वो नारियल.....उसे पकड।

    और तब बच्चा कहता होगा,

    - चुप बे.........मुझे मालूम है जो नारियल ज्यादा बडा होता है वह सेठ लोगों की तरह खोखला होता है, उसकी गरी सूख चुकी होती है.. ... गरी तो छोटे गरीब नारियल में ही होती है तभी तो 'गरीब' शब्द में भी 'गरी'है:)

    वरना जैसे जैसे गरीबी हटती है, गरी सूखते सूखते केवल 'ब' रह जाता और उस 'ब' को लोग 'बडमनई' कहते हैं....'बडे लोग' कहते हैं...या फिर 'बिजनेस टाईकून' तक कह देते हैं :)

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  6. हर जगह यही हाल है. हरिद्वार गया था बच्ची का मुंडन कराने, पचास आँखें गडी थीं मेरे प्रसाद पर की कब मैं उसे गंगाजी में प्रवाहित करूंगा!

    नारियल, बर्फी, सिक्का, पानी में छोड़ते ही गायब! पानी में नहीं जी, छोटे-छोटे बच्चों के हांथों में.

    पुलों से गुज़रती ट्रेन के सवार नदियों में सिक्के छोड़ते हैं, बहुत से तो नदी में गिरते हैं जिन्हें लपकने के लिए नीचे बच्चे खड़े होते हैं, नदियों में पानी इतना कम रह गया है. बहुत से सिक्के पुल पे गिरकर खनकते हैं, उन्हें भी कोई ट्रेन निकलने के बाद उठाने के लिए आता ही होगा.

    दिल्ली में यमुनाजी पर बने पुलों में प्रशासन ने हर व्यवस्था की है की लोग पूजन-कचरा न फेंक पायें लेकिन लोग तो जैसे गोला फेंक में प्रवीण लगते हैं.

    इष्ट देव के चित्र, नारियल का कचरा, और भी न जाने क्या-क्या. सब मय पन्नी के पवित्र जल में प्रवाहित.

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  7. भारतीय जन की इस दरिद्रता ने गंगा को ही नहीं देश को क्या से क्या बना दिया है? चार दिन पहले अपने शहर की नदी के पुल पर से गुजरा था। जहाँ हम निर्मल जल में तैरा करते थे और जिस के दोनों किनारे खजूरों के वृक्षों से भरपूर थे। वहाँ मीलों तक बस्तियाँ थीं और नदी में पानी नहीं मल-मूत्र बह रहे थे। नर्क की कल्पना भी इस से बेहतर है जहाँ वह होदियों में होता है जिस में सजायाफ्ताओं को फेंक दिया जाता है। किनारे पर रहने वाले लोग शायद यहाँ की अपेक्षा वहाँ जाना पसंद करेंगे।

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  8. नारियल समुद्र के किनारे उत्पन्न होते हैं और पुनः समुद्र में पहुँचाने के लिये श्रद्धालु उन्हे नदी में प्रवाहित कर देते हैं । एक पूरा परिचक्र । नारियल की यात्रा का आरोह धन पर आधारित है और अवरोह श्रद्धा पर । श्रद्धालुओं की श्रद्धा का प्रसाद पंच प्यारों को पाता देखकर बहुत ही अच्छा लगा । लेकिन आपको यह जान कर दुख पहुँचेगा कि नारियल पुनः मन्दिरों में चढ़ने व गंगा में प्रवाहित होने पहुँच जायेंगे । यदि मंदी के समय यदि नारियल जैसी वस्तु अपनी कीमत से कई गुना धन अर्थव्यवस्था में प्रवाहित कर सकता है तो उससे अधिक प्रसाद देश को कहाँ मिलेगा ।

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  9. गोसाईं जी कह गए हैं
    :
    'बड़वागि ते बड़ी है आग पेट की।'

    ये बच्चे बिना किसी योजना के पैदा होते हैं, 'किए' नहीं जाते। धरती मैया के सहारे ये बढ़ते हैं। माँ बाप तो बस...

    नदी की धार से जूझते हैं ये बच्चे।
    कूड़े के ढेर से बीनते हैं ये बच्चे।
    कंचा खेलते छीनना सीखते हैं ये बच्चे।
    सड़क पर यों ही घूमते हैं ये बच्चे।
    ...
    ये बच्चे रिस्क नहीं लेंगे तो जिएँगे कैसे ?
    चचा, जीना बड़ा 'जालिमाना स्वभाव' है।
    ..पेट की आग बहुत कुछ करा देती है। पर्यावरण प्रदूषण तो लघु बात है।

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  10. क्या कहा जाये ऐसी स्थितियों पर..सिवाय दुख व्यक्त करने के.

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  11. @ गिरिजेश राव -
    इन बच्चों पर यह पोस्ट है - ई पापा बहुत हरामी हौ!

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  12. कलियुग है। सन्तान अपनी मां का वध कर दे रही है। इन सब की एक बाजू में श्रद्धा है और दूसरी में गंगाजी को मारने का फंदा, जिसे वे धीरे धीरे कस रहे हैं सामुहिक रूप से।

    बिल्कुल सटीक और सत्य कथन है.

    रामराम.

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  13. पूत कपूत सुने लेकिन माता न सुनी कुमाता . इसीलिए बच्चो के सब खून माफ़ कर देती है माँ चाहे वह उसका ही क्यों न हो . ठीक ही कहा गंगा जी मर रही है या कहे हम मार रहे है धीरे धीरे

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  14. हमने अपने जंगल काट डाले,पहाड फ़ोड कर रास्ते बना लिये और अब बची नदियां,उसे भी मार डालेंगे और फ़िर खुद कैसे ज़िंदा रहेंगे ये सोचने वाली बात है।और नरियर पकडते बच्चों का रिस्क,तो गरीबी जो ना कराये वो कम है।बढिया पोस्ट,अब नदी-घाट पर पूजा सामग्री विसर्जित करते समय शायद हाथ भी कांपेंगे,मगर………………ये सिलसिला शायद बंद नही होगा।

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  15. खैर, छोड़ें यह पर्यावरणीय रुदन!

    ...nahi ye gyandutt ji nhai ho sakte....

    ...ye shayad frustation se upja jumla ho !!

    nyways...

    ...aap jaise jagkrook prayavaran sanrakash (i mean it) ko ye jumla frustation main ya sarcasm main bhi shobha nahi deta...

    ...agar aap jaise log hi himmat har gaye to baaki 'kalyug main maa ka vadh karne wale ' to apne prays main safal ho hi jaiyenge:

    waise in kalugi logon ke liye ek she'r maine bhi likha tha kabhi:
    "ये कलयुग है इस कलयुग में ऐसा तो होना ही था ,
    बेटा माँ को अंधा करके श्रवण कुमार कहलाता है ."

    ganga ko dekhkar dukh hota hai kahi ye saraswati ki rah par to nahi ja rahi ?

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  16. सन्तान अपनी मां का वध कर दे रही है. वह नदी है, तालाब है, वह धरती है, पृथ्वि है.

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  17. गगा मैया आपको गजब का समृद्ध बना रही हैं। लेकिन, पता नहीं कितने बाद तक की पीढ़ी ऐसी समृद्धि पा सकेगी।

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  18. शायद हम अपने अंतिम दिनों में गंगा मैया को देख पाएं ! लगता तो मुश्किल है.

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  19. आधुनिक उपयोगितावादी मनस के लिए कौन माँ, कौन बाप, कौन गंगा मैया, कौन पर्यावरण... जैसे भी हो, बस "पकल्ले बे"।

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  20. जब ओलाद नालायक निकले तो बुजुर्ग क्या करे? हमारे बुजुर्गो को पता था कि आने वाली पीढी नालायको से भरी होगी, इस लिये उन्होने नदीयो ओर पेड पोधो को पबित्र बता कर इन्हे पुजवाना शुरु करवा दिया, ताकि जिन चीजो की हम पुजा करते है उन्हे साफ़ रखे? लेकिन हो इस से उलटा रहा है, हम जिन नदियो को पुजते है सब से ज्यादा गंदगी वही फ़ेकते है, गंगा को मां कहते है, ओर उसे ही गंदा करने मै कोई कसर नही छोडते.... तो हुये ना हम नालायक.
    आप ने बहुत सुंदर कहा.
    धन्यवाद

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  21. गंगा के किनारे रोज़ एक कहानी जन्म लेती है...रोज़ कुछ जिन्दगियां जाने क्या क्या कह जाती हैं..जो आपकी ये हलचल न हो तो हमारी मानसिक शक्ति इतनी नहीं कि सब कुछ मन में साकार हो जाये....
    आभार इस पोस्ट के लिये भी....और हकीकत के लिये तो दुख ही दुख..

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  22. कभी राजा सगर के शापित पुत्रों को शाप मुक्त कर मोक्ष प्रदान करने वाली गंगा की आज ये हालत कर दी गई है कि यह स्वयं अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही है। पतित पावनी माँ गंगा को आज लोगों नें अपने लोभ और अज्ञानवश एक गन्दे नाले में तब्दील कर के रख दिया है। बाकी रही-सही कसर तथाकथित विकासवादी पूरी किए जा रहे हैं। देख लीजिएगा,वो दिन दूर नहीं जब गंगा भी सरस्वती की भान्ती सिर्फ इतिहास के पन्नों में अंकित हो के रह जाएगी....
    जय गंगा मईया........

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  23. आप अच्छा लिखने लगे हैं, ऎसे ही लिखते रहें जी ।
    आपके लिखने से मेरा हौसला बढ़ता है, जी ।
    मेरे मेल इनबाक्स में तो अक्सर ही यह सब आता रहता है, " पकल्ले बे, ई पोस्ट !"

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  24. गंगा जी विलुप्त हो रही है…………………

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  25. कलियुग है। सन्तान अपनी मां का वध कर दे रही है। इन सब की एक बाजू में श्रद्धा है और दूसरी में गंगाजी को मारने का फंदा, जिसे वे धीरे धीरे कस रहे हैं सामुहिक रूप से। बनारस में वरुणा की मौत देखी है।
    "तमसो मा ज्योतिर्गमय" की जितनी आवश्यकता आज प्रतीत होती है उतनी शायद कभी नहीं थी| धर्म डूब रहा है और घातक अंध-श्रद्घा उसका स्थान लेती जा रही है|

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  26. सच कहा आपने। हमने नदियों को मां का दर्जा दिया और फिर उस पर गंदगी का तांडव करने लगे। धर्म हमें इतना भीरु क्यूं बनाता है कि एक नारियल और चंद फूलों को नदी में बहाने से हमारा कल्याण हो जाएगा।

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  27. शाश्त्रों की माने तो कलयुग के मध्य में ही गंगाजी सरस्वती नदी की तरह धरती पर से लुप्त हो जायेंगी.....
    यह असंभव भी नहीं लगता.......

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  28. कलेजा पत्थर का करना होगा
    तब तक
    जब तक
    कारगर उपाय
    सार्थक रूप न ले लें ।
    दुखती रग पर हांथ रख दिया आपने ।

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  29. सचमुच हम सभी प्रकृति के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं।
    पूनम

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  30. नारियल की जुगत तो हर पूजा स्थल पर हो रही है। मंदिर में पंडे नारियल थैलों में जमा करते हैं तो बच्चे गंगातीरे:) प्रदूषण और प्रकृति का दोहन तो मनुष्य अनादि काल से करता आ रहा है.... ये बच्चे तो इसी मानव जाति का अंग ही तो हैं:)

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  31. आदरणीय सर,
    सच कहा आपने, हम गंगाजी पर भी तरस नहीं खाते। काश, ये दुनिया बदल उठे।

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  32. आदरणीय पाण्डेय जी,
    लेख और फ़ोटो दोनों अच्छे लगे---लेख पढ़ने और टिप्पणी देने का मार्ग थोड़ा सरल कर दें तो पढ़ने का आनन्द बढ़ जाय।
    हेमन्त कुमार

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  33. @ हेमन्त कुमार जी - लेख पढ़ने के तुरन्त बाद टिप्पणी देने ले लिये एक लिंक अब आप पायेंगे। वही लिंक सभी टिप्पणियों के अन्त में भी है।
    आशा है, मार्ग सरल हो जायेगा।

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--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय