Monday, August 3, 2009

रेलगाड़ी का इन्तजार


Train on Bridge
मेरी जिन्दगी रेलगाड़ियों के प्रबन्धन में लगी है। ओढ़ना-बिछौना रेल मय है। ऐसे में गुजरती ट्रेन से स्वाभाविक ऊब होनी चाहिये। पर वैसा है नहीं। कोई भी गाड़ी गुजरे – बरबस उसकी ओर नजर जाती है। डिब्बों की संख्या गिनने लगते हैं। ट्रेन सभी के आकर्षण का केन्द्र है – जब से बनी, तब से। स्टीम इंजन के जमाने में बहुत मेस्मराइज करती थी। डीजल और बिजली के इंजन के युग में भी आकर्षण कम नहीं है। जाने क्यों है यह। मनोवैज्ञानिक प्रकाश डाल सकते हैं।

सवेरे ट्रेन की आवाज आ रही थी। यह लग रहा था कि कुछ समय बाद फाफामऊ के पुल से गुजरेगी। मैं कयास लगा रहा था कि यह दस डिब्बे वाली पसीजर (पैसेंजर)होगी या बड़ी वाली बुन्देलवा (बुन्देलखण्ड एक्स्प्रेस)। अपना कैमरा वीडियो रिकार्डिंग मोड में सेट कर गंगा की रेती में खड़ा हो गया। तेलियरगंज की तरफ से आने वाली रेलगाड़ी जब पेड़ों के झुरमुट को पार कर दीखने लगेगी, तब का वीडियो लेने के लिये। पर अनुमान से ज्यादा समय ले रही थी वह आने में।

रेल की सीटी, पटरी की खटर पटर सुनते सुनते पत्नीजी बोलीं – तुम भी अजब खब्ती हो और तुम्हारे साथ साथ मुझे भी खड़ा रहना पड़ रहा है। आने जाने वाले क्या सोचते होंगे!

अन्तत: ट्रेन आयी। वही दस डिब्बे वाली पसीजर। दसों डिब्बे गिनने के बाद वही अनुभूति हुई जो नर्सरी स्कूल के बच्चे को होमवर्क पूरा करने पर होती होगी!  

यह हाल नित्य 400-500 मालगाड़ियों और दो सौ इन्जनों के प्रबन्धन करने वाले का है, जो सवेरे पांच बजे से रात दस बजे तक मालगाड़ियों का आदानप्रदान गिनता रहता है तो रेलवे से न जुड़े लोगों को तो और भी आकर्षित करती होगी रेल!


अपडेट साढ़े छ बजे -

आज श्रावण का अन्तिम सोमवार है। आज भी चेंचामेची मची है शिवकुटी के कोटेश्वर महादेव मन्दिर पर। संपेरा भी आया है दो नाग ले कर। यह रहा उसका वीडियो:


32 comments:

  1. अरे वाह,
    आपके फोन से तो बोले तो चकाचक क्वालिटी का वीडियो बनता है, आज हम भी अपने फोन में देखेंगे कि आप्शन है कि नहीं |
    दूसरी बात, की वीडियो से पहले और बाद में टेक्स्ट किस सॉफ्टवेर से डाला जाता है?

    यहाँ पर ट्रेन कम दिखती हैं, दिखती हैं तो वो भी मालगाडी, खिड़कियों पर कोहनी टिकाये और दरवाजों पर हवा खाते लोग नहीं दिखते|

    नीरज

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  2. बुरा न मानना जी,

    हमें ट्रेन में लम्बी लम्बी यात्रायें करने का बिल्कुल भी शौक नहीं है .

    बल्कि यह कहें कि हमें ट्रेन में छोटी छोटी यात्रा करने का भी शौक नहीं है,

    या फ़िर यह भी कह सकते हैं कि हमें यात्रा करने का ही शौक नहीं है,

    पहले था !

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  3. क्लासवर्क, होमवर्क -दोनों बढ़िया

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  4. लगता है आप रेल को जीते हो . ऐसा लगाव हर आदमी को अपने काम से हो जाए तो क्या बात हो

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  5. तेजी से गुजरती हुए रेल के सामने खड़े होकर खुद को चलायमान समझना ...बच्चों का प्रिय शगल है...आप भी करते हैं ऐसा ही ...!!

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  6. यह बाल सुलभ उत्कंठा आप के अपने व्यवसाय से गहरे जुड़ाव को भी दर्शाती है। रेल तो सम्मोहक होती ही है।

    बचपन में स्कूल जाते समय 2-3 किमी. का रेलवे ट्रैक पड़ता था। हमलोग लकड़ी के स्लीपरों पर कूदते फाँदते और गिनते जाते थे। स्लीपरों पर जिस साल लगे थे उन वर्षों के नम्बर खुदे होते थे। हम लोगों में होड़ लगी रहती कि कौन सबसे नई और पुरानी स्लीपर खोजता है? क्या दिन थे !
    लेकिन एक बात तब भी कष्ट देती थी और आज भी। मांनव मल । तकनीकी इतनी उन्नत हो चुकी है, क्या कोई राह नहीं कि ट्रेन के टॉयलेट का मल पटरियों पर न गिरे?

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  7. ट्रेन का आकर्षण अपनी जगह और गंगाजी के किनारे खड़े होकर उसकी फोटो उताराना..भाभी सही कह रही हैं, खब्तिनेस!! प्यूर!!


    वैसे उस समय हमारे परिचित वहीं से निकले थे , फोन आया कि कोई हिन्दी का ब्लॉगर लगता है कि गंगा तट पर खड़ा है, तुम्हारे टाईप हरकत कर रहा है.

    :)

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  8. वाह आप तो श्रावण सोमवार को शिवकुटी के कोटेश्वर महादेव मन्दिर पर दर्श्न भी कर आये, और ट्रेन भी देख आये, वैसे हम तो रोज फ़्लायओवर से लोकल ट्रेन देखकर ही संतुष्ट हो जाते हैं।

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  9. लगभग तीन घंटे के इंतज़ार के बाद प्रयाग -बरेली एक्सप्रेस में बैठते ही लैपटॉप खोला तो आपका ट्रेंन का इंतज़ार पढने को मिला
    अजीब है इंतज़ार आपने भी किया हमने भी पर हम इस इंतज़ार से चिढे हुए हैं और आप को तसल्ली मिली है.
    विवेक जी की बात का समर्थन करने को जी चाहता है और क्या कहें

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  10. कल्याणकारी शिव के गले में पहुँचकर नाग किस तरह वंदनीय हो जाता है और अपने पालकों का पालक बन जाता है। वीडियो पसंद आए।
    हम जब पढ़ते थे तो मोटर वाहनों की हेड लाइट और हॉर्न की आवाज से बताने लगे थे कि कौन सा है। कोशिश करने पर इंद्रियाँ बहुत संवेदनशील हो जाती हैं।

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  11. "पर अनुमान से ज्यादा समय ले रही थी वह आने में" । सच है यदि इतने लोग चाल, ढाल और आकार देखने के पीछे पड़े हों तो कोई भी मनौना लेगा आने में ।

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  12. आपको इतना ही इँतज़ार अखर गया.. जो लोग प्लेटफ़ार्म पर अपने परिजनों को छोड़ने आयें होंगे.. और ट्रेन आने का नाम नहीं ?
    उनके ऊब की लिखिये कहानी
    जरा याद उन्हें भी कर लो

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  13. जोरदार...यही तो ब्लॉगिंग है...मजा आता है पढ़ कर और अब तो देख कर भी :)

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  14. ज्ञान जी,रेल देखने का शोक तो हमे भी बचपन से है.....जब भी कभी धड़ड़ाती भागती रेल को देखता हूँ मन को सुखानुभूति महसूस होती है।बढिया वीडियो हैं।बधाई।

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  15. डिब्बे गिनने में तो हमें भी मजा आता है.. मालगाड़ी हो तो क्या कहने.. ३०-४०....

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  16. गाड़ी बुला रही है, सीटी बजा रही है....आज भी दिन-रात सीटी की आवाज़ कानों में पड़ती रहती है- स्टेशन जो पास है:)

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  17. ना जाने कब से रेलगाड़ी को देख रहे हैं और ना जाने कब तक देखते रहे हैं। रेल तो जीवन का अंग है जी। आपके तो क्या कहने, आपका तो जीवन ही रेल का अंग है जी।

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  18. आप इस पैसंजर गाडी का इन्तज़ार करते हैं।
    हम, बेंगळूरु में, मेट्रो रेल का इन्तज़ार कर रहे हैं।

    हाँ, देश में पहले बुल्लेट ट्रेन का भी इन्तज़ार है।

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  19. रेल तो सभी को अपनी ओर आकर्षित करती है . रोचक अभिव्यक्ति आभार.

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  20. श्री अरविन्द मिश्र जी की टिप्पणी -
    पूरा पेज ही नहीं खुल रहा मानसिक हलचल का -कृपया यह टिप्पणी स्वीकारें
    वाह ज्ञान जी छोटे छोटे गदेलों को भी मात करते हैं आप -गाडी बुला रही है को बढियां दिखाया है आपने
    और हाँ नाग नागिन भी बेजोड़ हैं -मगर वन्य जीव अधिनियम १९७२ में नाग का पकड़ना और (फोटो खीचना -मजाक ) इस के प्रदर्शन पर रोक है !
    सादर
    अरविन्द मिश्र

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  21. आशा है आपने कैमरे को ज़ूम करने के बाद नाग-नागि‍न का वि‍डि‍यो बनाया होगा:)

    बहुत दि‍नों के बाद बीन की धुन सुनी, अच्‍छा लगा।
    ( एक-दो बार से टि‍प्‍पणी करने में असुवि‍धा हो रही है, बॉक्‍स नजर नहीं आता)

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  22. फोटू अउर विचार दोनों ही मस्त हैं.

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  23. Kya Baat hai Kaka.
    Ek post mein do do filmon
    ka premier kar diya. "Pul par Rail" Aur "Nag, Nagin ka Dance". Khenchak aap aur Darshak Hum. Mugdh Ho gaye Train aur Naag dekh kar . Mere to dono hi favourite hein.

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  24. अच्छी फोटो ,विवरण भी ।बचपन में माँ से कहती थी कि माँ ट्रेन को ही घर बना कर रहा जाए तो कितना अच्छा होता... .

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  25. सबसे ऊपर लगी पुल की फोटू बहुत बढ़िया लग रही है। ट्रेन का मज़ा पूरा तभी आता है जब उसकी आवाज़ भी साथ हो, तभी एहसास होता है कि यह रेलगाड़ी है। :)


    बाकी यह बताएँ कि यह "फाफामाऊ" पुल क्या है? नाम कुछ अजीब सा लग रहा है, यदि इसके संदर्भ में बता सकें कि इसका क्या अर्थ है या कैसे पड़ा तो ज्ञानवर्धन होगा, अग्रिम आभार ले लें उसके लिए। :)

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  26. @ अमित जी - फाफामऊ; इलाहाबाद-लखनऊ लाइन पर पहला स्टेशन है गंगा पार करते। भारतीय नाम तो बस यूं ही बन जाते हैं! :)

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  27. गाड़ी बुला रही है सीटी बजा रही है। पांच बजे से दस बजे रात तक गाड़ी गिनने की बात से कौनौ सरकारी अफ़सर का इमेज चमक जायेगा का जी?

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  28. गाडी के डब्बे गिनने और हवाई जहाज की आवाज सुनकर नजर उठ जाना तो बचपन की आदत है. पर आप रोज गिनकर भी बोर नहीं हुए ये अलग है :)
    पह्के विडियो में टिटहरी की बोली सुने दी, बाकी थोडी कमेंटरी होती तो और मजा आता. सपेरे वाले में थी एकदम झन्नाटेदार आवाज.

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  29. आदरणीय ज्ञानदत्त जी,

    काबिल-ए-तारीफ है आपका वीडियो शूटिंग करना बिल्कुल सधा हुआ हाथ जो भी थोड़ी हलचल हुई है वह तो स्वाभाविक है कि पास में आदरणीया भाभी साहब हों और हाथ ना कांपे?

    फाफामऊ के पुल से गुजरते हुये यही कहा है, जय गंगा मईया!!!

    सादर,

    मुकेश कुमार तिवारी

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  30. शुक्र है अरविन्द मिश्र जी कही तो दो शब्दों से ज्यादा टिपियाते है वरना तो अक्सर दो शब्द कह कर निबटा देते है...वैसे भी हमने सबसे संशिप्त टिपण्णी का अवार्ड में उनके नाम की प्रस्तावना भेज दी है .....रेल गाडियों पे आपसे आलेख में कुछ ओर उम्मीद है सर जी...वैसे वाकई उब से बचे रहना कठिन कार्य है

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  31. नाग भी देख लिया और बीन्वाला भी और फाफामऊ का पुल भी :-)
    ये ब्लोगींग के मज़े हैं

    - लावण्या

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--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय