Friday, May 8, 2009

क्वैकायुर्वेद


कठवैद्यों की कमी नहीं है आर्यावर्त में। अंगरेजी में कहें तो क्वैक (quack – नीम हकीम)। हिमालयी जड़ीबूटी वालों के सड़क के किनारे तम्बू और पास में बंधा एक जर्मन शेफर्ड कुकुर बहुधा दीख जाते हैं। शिलाजीत और सांण्डे का तेल बेचते अजीबोगरीब पोशाक में लोग जो न आदिवासी लगते हैं, न आधुनिक, भी शहरी माहौल में पाये जाते हैं। नामर्दी और शीघ्रपतन का इलाज करने वाले अखबार में विज्ञापन तक देते हैं। बवासीर – भगन्दर का इलाज कोई सही साट अस्पताल में नहीं कराता होगा। सब दायें – बांयें इलाज सुविधा तलाशते हैं।

क्वैक+आयुर्वेद=क्वैकायुर्वेद।


जब क्वैकायुर्वेदीय वातावरण चहुंओर व्याप्त है तो उसे चरक या सुश्रुत संहिता की तरह कोडीफाई क्यों नहीं किया गया? और नहीं किया गया तो अब करने में क्या परेशानी है? कौन कहता है कि यह कोडीफिकेशन केवल वैदिक काल में ही हो सकता था। अब भी देर नहीं हुई है। पर अभी भी यह नहीं हुआ तो यह वेदांग विलुप्तीफाई हो सकता है।

Pilesमुझे तो इस विषय में जानकारी नहीं है। अन्यथा मैं ही पहल करता कोडीफिकेशन की। पर मन में सिंसियर हलचल अवश्य होती है – जब भी मैं पास की एक तथाकथित डाक्टर साहब की दुकान के पास से गुजरता हूं। ये डाक्टर द्वय किसी क्षार-सूत्र विधि से बवासीर-भगन्दर का इलाज करते हैं। बाकायदा डाक्टरी का लाल क्रॉस का निशान भी लगा है – क्वैकायुर्वेद को आधुनिक जामा पहनाने को।

मोतियाबिन्द के मास-ऑपरेशन क्वैकाचार्यों द्वारा बहुधा किये जाते हैं। हड्डी बिठाने और फ्रैक्चर का इलाज करते जर्राह अब भी ऑर्थोपेडिक डाक्टर की टक्कर का कमाते हैं। दांतों की डाक्टरी बहुत समय तक चीनी डाक्टर बिना डिग्री के अपने मोंगोलाइड चेहरों की ख्याति के बल पर करते रहे हैं। आज भी डेंटिस्ट की डिग्री की परवाह नहीं करते लोग।

डाक्टरों की संख्या कम है, या उनकी बजाय क्वैकाचार्यों पर भरोसा ज्यादा है लोगों का – पता नहीं। शायद यह है कि भारत में स्वास्थ्य के मद में लोग पैसा कम ही खर्चना चाहते हैं। लिहाजा क्वैकायुर्वेद का डंका बजता है। Jarrah    


१. वैसे बवासीर और भगन्दर में क्या अन्तर है - यह मुझे नहीं मालुम। दोनो मल निकासी से सम्बन्धित हैं - ऐसा प्रतीत होता है। आपको अन्तर मालुम हो और न बतायें तो भी चलेगा! smiley-laughing[4]


30 comments:

  1. तत्काल चिकित्सा सेवा मिलने से गांव के लोगों की नीम हकीमों के प्रति सहानुभूति रहती है।इन नीम हकीमों का न तो तरीका वैज्ञानिक होता है और न ही उनकी दवाइयों के असर की कोई प्रमाणिकता होती है। लेकिन अशिक्षित या गरीब लोगों को ये ही सुलभ लगते हैं। सरकारी अस्पतालों में सुविधाओं और दवाओं का टोटा होने से भी मरीज इनसे मुंह मोड़ने लगे हैं।नीम हकीमों से 10 से 40 रुपए में घर बैठे इलाज करवाने की सुविधा के आदी हो चुके हैं हम !!

    आश्चर्यजनक रूप से अब इन नीम हकीमों का शहरी प्राइवेट नुर्सिंग होम से भी रिश्ता बन चुका है !!




    भगन्‍दर गुदा द्वार पर एक प्रकार की फुन्‍सी से पैदा होकर यह गुदा द्वार के अन्‍दर तथा बाहर नली के रूप में घाव पैदा करता है । English मे इसे फिस्‍चुला (Fistula) कहते हैं ।

    बवासीर(piles) एक रोग है। इस रोग में मलाशय के दीवारों की नस सूज जाती है. इस रोग की लक्षण है जलन और रक्तस्राव।




    प्राइमरी का मास्टरफतेहपुर

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  2. किसी बीमारी के बारे मे प्रमाणिक जानकारी प्राप्त करने का सबसे अच्छा लिंक ये रहा-
    http://www.nlm.nih.gov/medlineplus/encyclopedia.html
    अब अगर आपको भगंदर के बारे में जानने की इतनी ही उत्सुकता है तो पहले fistula फिर anal fistula खोज लीजिये :)

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  3. परंपरागत पद्धतियों में भी कुछ इलाज कारगर होते हैं .. पर उनकी जांच पडताल का कोई काम नहीं होने से सच झूठ में फैसला करना मुश्किल है .. इसलिए हमारे सामने तो उनलोगों के लिए सदा प्रश्‍नवाचक चिन्‍ह ही लगा होता है।

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  4. बवासीर के मस्सों के लिए क्षारसूत्र विधि तो आयुर्वेद की मान्य शल्य चिकित्सा विधि है और पुस्तकों में उपलब्ध ज्ञान है। शल्य चिकित्सा आयुर्वेद में पश्चिम से अधिक प्राचीन है और पुस्तकों में उन का ज्ञान उपलब्ध है। आवश्यकता तो इन्हें विकसित करने की है। आधुनिक शल्य चिकित्सा इतनी अधिक विकसित है कि उसे आयुर्वेद के ज्ञान के साथ जोड़ा जा सकता है।

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  5. कौन दुनिया में हैं जी आप...बवासीर और बगंअर तो ९०% लोग लेज़र से करवा रहे हैं..बहुत कम लोग इन नीम हकीमों के चक्कर में आते हैं मगर इनके जीविकोपार्जन के लिए काफी हो जाते हैं.

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  6. हे भगवान , अब मेरे ही नाम का विज्ञापन मिला था आपको फोटू खींचने के लिए ? नए शब्द संग्रह ही नहीं नए शब्द निर्माण में भी आपको महारत हासिल है -इस लिए कोई उपाधि यथा शीघ्र आपको मिल जानी चाहिए !
    वाह क्वैकायुर्वेद -अरे मुझे किसी से मिल्वायिये तुंरत -सुबह अचानक लोअर बैक पेन आ घेरा है -बमुश्किल नेट तक लाकर बच्चे जहन्नुम में जाईये स्टाईल में कुर्सी पर धर दिए हैं -अब कोई कोई क्वैकायुर्वेदचारी ही जादू कर सकता है -अब तो आज के ब्लोगिंग वर्कशाप में जाना भी दूभर लग रहा है -और चल भी दूं तो अंगदीय संशय आ घेरता है ! कोई उपाय -शब्दाधिराज ?

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  7. लिंग्विस्टिक्स के पेपर में अपने एक समायु छात्र को आपके बहुत से शब्दों को उदाहरण के तौर पर प्रयुक्त करने की अनुशंसा कर दी है । कमोबेश फिट ही हो जायेंगे ये शब्द ।

    क्वैक-ब्लॉगरी के लिये भी कुछ कहेंगे ।

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  8. उपर गुणीजनओं ने दोनों बीमारियों का फ़र्क और विवेचना कर ही दी है. हम तो बस आपकी खोजी बुद्धि की तारीफ़ ही करेंगे.

    और शब्द रचना मे तो आपको महारत हासिल हो ही गई है. अगर कभी ताऊ की सरकार बनी तो अवार्ड की व्यवस्था की जायेगी. आज का शब्द "क्वैकायुर्वेद " बहुत पसंद आया. इसको भी हम इनिशियल एडवांटेज सरीखा ही इस्तेमाल करेंगे.


    रामराम.

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  9. नये शब्द गढ़ने में आपकी माहरत है...

    जब एलो्पैथिक चिकित्सक मनमानी फीस लेकर, तरह तरह की जाँच अपने कमिशन वाली लैब से करवा कमिशन वाली दवा लिखॆगा तो आम आदमी इनके पास क्यों नहीं जायेगा?

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  10. ये क्वैकायुर्वेदाचार्य उन्हीं रोगों का इलाज करते हैं जिन्हें प्रायः मरीज सार्वजनिक नहीं करना चाहता या जो रोग गरीबों को पैसे के अभाव में घेरे रहते हैं।

    बवासीर, भगन्दर, शीघ्र पतन, मर्दाना कमजोरी आदि पहली श्रेणी में तथा हड्डी, दाँत सम्बन्धी रोग दूसरी श्रेणी में आते हैं जिनका वैज्ञानिक इलाज अपेक्षाकृत महंगा होता है।

    क्वैक का विस्तारित रुप अच्छा लगा।

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  11. क्वैकायुर्वेद!
    चलिए, "ज्ञानिक्शनरी" में एक और शब्द जुड गया।
    शुभकामनाएं
    जी विश्वनाथ

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  12. क्षार सूत्र विधि नीम हकीमों की इजाद नहीं है यह सुश्रत द्वारा आयुर्वेद का उपचार है जो आज भी लेजर तकनीक से लाख गुना असरकारक है . और आधुनिक चिकित्सक भी इसकी अनुशंषा करते है . नीम हकीमों की क्या कहे वह तो ऐड्स का भी गारंटी से ईलाज करते है , और अखवार देखे तो पूरा क्लासी फयीद विज्ञापन इन्ही नीम हकीमों से भरे होते है

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  13. त्राहिमाम त्राहिमाम.. गुरुवर ! सत्य है, गुरु को कोई चेला गुड़-गोबर नहीं कर सकता । अद्भुत है, यह क्वैकाचार्य ! नये शब्द मुझे भी सूझ जाते हैं, पर आप हमेशा बाजी मार ले जाते हैं, त्राहिमाम त्राहिमाम गुरुवर !

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  14. गौर की बात यह है कि ये क्वैकाचार्य गुप्त रोगों के इलाज के माहिर होते हैं। गुप्त रोगों के मरीज की आफत यह है कि धोखा खाने के बाद वह किसी को बताने काबिल नहीं होता कि हाय मैंने धोखा खाया। किसी भी कंजूमर कोर्ट अभी तक ऐसा केस नहीं आया कि शीघ्र पतन के इलाज के इन क्वैकाचार्य ने इत्ते पैसे लिये थे। और रिजल्ट ना आया। गुप्त रोगों की खुली दुकान इसलिए फल फूल रही है।

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  15. साहब नीम हकिमी ब्राण्डेड भी होती है. हमारे यहाँ आयुर्वेद के नाम पर कुछ भी बेच सकते है. लोगों को लगता है आयुर्वेदिक है तो दोष मुक्त है, यह बहुत खतरनाक है. च्वनप्राश में शीशे की मात्रा तय मानको से अधिक होती है. और भी कई मामले है. शक्ति वर्धक दवाएं पता नहीं क्या क्या खिला रही है लोगों को.

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  16. छतीसगढ की जनता का इलाज भी कभी सरकारी अस्पताल रहे,मंत्रालय मे बैठ कर आयुर्वैदिक डाक्टर रमन सिंह बिना चीर-फ़ाड के कर रहे हैं।

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  17. बहुसंख्यक आबादी तो इन्ही से प्रभावित है .

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  18. ट्रेन से सफ़र करते हुए ऐसे हकीमों/वैद्यों के प्रचार खूब दीखते हैं.

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  19. इनडोर के रजवाड़ा बाज़ार में हमने नब्ज़ देखकर रोग बताने वाले एक वैध जी देखे थे हमने .......वैसे इस देश में कई किस्मों के नीम हकीम है......बड़े बड़े कोर्पोरेट .फेयर एंड लवली जो गोरा बना दे ......सिर्फ पानी पी कर प्यास नहीं बुझती .राम देव जी भी ऐड्स का इलाज़ करते है......आज का ही हिंदी का अखबार देखिये ...कोई न कोई तेल का विज्ञापन होगा.....

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  20. sahee kaha rahe hain. dillee me to kwaikayrvedacharyon kee bahut badi fauj hai.

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  21. नीम-हकीमो की भी बहुत सी प्रजातियाँ है। पहले तो वे जो आक आपकी पोस्ट पर है। इनपर भरोसा माने अपने पैरो मे कुल्हाडी। दुनिया मे ऐसी कोई भी बीमारी नही होगी जिसकी सफल चिकित्सा का दावा ये नही करते। हमारे यहाँ तो अब ये स्थायी रुप से विराजमान है। मैने इन पर कई घंटो की फिल्म बनायी है। ज्यादातर ये गुप्त रोगो की चंगुल के फसे लोगो को लूटते है।

    दूसरे नीम-हकीम आजकल गाँवो मे सक्रिय है। ये शहरी लाइसेंसी डाक्टरो के एजेंट की तरह काम करते है। साथ ही नोनी जैसे फर्जी उत्पादो की मार्केटिंग करते है। जो भी मर्ज हो नोनी ही देंगे। ये मोटी रकम वसूलते है। गाँवो मे सरकारी डाक्टर न होने का फायदा ये उठाते है।


    कानूनी रुप से नीम-हकीम कहे जाने वाले एक और प्रकार को मै जानता हूँ जो जडी-बूटियो से चिकित्सा करते है। उनके पूर्वजो ने वचन लिया है कि यदि इस ज्ञान से एक पैसा भी कमाया तो ज्ञान खत्म हो जायेगा। वे पैसे नही लेते। खेती करते है। इसमे वे सर्प विशेषज्ञ भी है जो साँप का जहर अपने मुँह से खीचते है और बदले मे एक नारियल लेते है। इनके पास बहुत सा ज्ञान है जिसके बारे मे आधुनिक समाज नही जानता। जितना प्राचीन भारतीय ग्रंथो मे लिखा है वह इनके ज्ञान के आगे सागर मे एक बून्द के समान है। मै उन्हे पारम्परिक चिकित्सक कहता हूँ और उन्ही के साथ काम करता हूँ। इनसे लाइसेंसी डाक्टरो को कोई लाभ नही होता। इस लिये किसी काम के नही माने जाते। पुलिस आये-दिन इन्हे परेशान करती है। चीन मे इन्हे नीम-हकीम न कहकर बेअर फुट डाक्टर का तमगा दिया गया। आज जडी-बूटियो के ज्ञान मे चीन दुनिया मे पहले नम्बर पर है। आफ्रीका मे इन्हे बकायदा लाइसेंस दिया गया। वहाँ ये फल-फूल रहे है। हमारे यहाँ आने वाले बीस सालो मे ये पूरी तरह से समाप्त हो जायेंगे। इनके साथ सारा ज्ञान भी चला जायेगा।

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  22. नीम हकीमों की तो क्या कहें, हर सड़क पर नज़र आ जाते हैं अपना कैम्प लगाए। पुराणिक जी की बात से सहमति है कि ये लोग गुप्त रोगों का इलाज करने का अधिक दावा करते हैं!! :)

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  23. बहुत से लोग पड़ाल ऐसे मिल ही जाते है।

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  24. आधा भारत इसी भरोसे है.. हालाँकि फ्रेक्चर में हम भी एक पहलवान द्वारा निपटा दिए गये थे बचपन में.. पर वो एक डॉक्टर के प्लास्टर से ज़्यादा आरामदायक था..

    नया शब्द भा गया मन को..

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  25. नीम हकीमों के विषय में जो कुछ भी कहा जा सकता था, टिप्पणियों में कहा जा चुका है और इसीलिये मेरे पास कुछ कहने के लिये नहीं रह गया है। बस एक कहावत याद आ रही है "जब तक बेवकूफ लोग हैं तब तक बुद्धिमान भूखा नहीं मर सकता"। आखिर लोग इनसे इलाज करवाते हैं तभी तो इनकी दूकानें चल रही हैं।

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  26. आजकल क्‍वैकाचार्यों की बाढ सी आई हुई है।

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    SBAI TSALIIM

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  27. ‘क्वैकायुर्वेद’ पुनः ‘ज्ञानिकश्नरी’, जैसे नये गठन के शब्दों कों ‘शब्दों के सफर’ में स्थान देंने के लिए अजित भाई को सीरियशतापूर्वक सोंचना चाहिये? ‘क्वैकायुर्वेद’ शब्द देखनें में अच्छा बन पड़ा है किन्तु उचित नहीं है। शब्दों की यात्रा में नवीन आकार ले रहा शब्द अपनें मूल विचार या पहचान को पददलित कर रहा है या संस्कारित कर पदोन्नति करा रहा है यह आविष्कर्ता पर निर्भर है। पण्ड़ित- पानी देना, मौलाना जरा ड़ाढ़ी जल्दी से बना दो या मास्टर कालर सही बनाना, इसी प्रक्रिया से पददलित हुए हैं। कभी अज्ञान वश तो कभी जातीय/साम्प्रदायिक द्वेष वश। विस्तृत टिप्पड़ी मेरे ब्लाग पर है।

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  28. नीम हकीम ख़तरा ए जान.
    शिक्षा का अभाव ,जागरूकता की कमी और भाग्य पर भरोसा करने वाली मानसिकता के साथ साथ डॉक्टरों की बढती फीसें,सरकारी हस्पतालों की बदहाली और इलाज के लिए इंतज़ार में लगी पंक्तियाँ इस तरह के कथित डॉक्टरों व हकीमों को बढावा दे रही हैं.बहुत जरुरी है की जनसाधारण को इस बारे में जागरूक किया जाये और ऐसे नीम हकीमों की धर पकड़ हो.

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  29. The information is very useful but here one thing is equally important that the modern dispensaries are also doing the same thing claiming themselves to be scientific

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  30. हिन्दी को ब्लॉग जगत की तरफ से आपके माध्यम से एक और भेंट - क्वैकायुर्वैद

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--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय