Thursday, April 9, 2009

यशस्वी भव! नकुल!


श्री सिसिल रोड्स की प्रतिमा, विकीपेडिया से। Rhodes'_portrait_bust

सम्भव है आपने सिसिल जॉन रोड्स (१८५३-१९०२) के बारे में पढ़ रखा हो। वे किम्बर्ले, दक्षिण अफ्रीका के हीरा व्यापारी थे और रोडेशिया (जिम्बाब्वे) नामक देश उन्ही का स्थापित है। शादी न करने वाले श्री रोड्स के नाम पर ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में कॉमनवेल्थ देशों और अमेरिका के विद्यार्थियों के लिये छात्रवृत्ति है और उस छात्रवृत्ति को पाने वाले को रोड्स स्कॉलर कहा जाता है। हमारे श्री गोपालकृष्ण विश्वनाथ के सुपुत्र नकुल रोड्स स्कॉलर हैं।

श्री विश्वनाथ इस पोस्ट के माध्यम से नकुल की आगे की पढ़ाई के बारे में बता रहे हैं।


पिछले साल, अनिता कुमारजी के ब्लॉग पर मैने अपने बेटे नकुल के बारे में लिखा था।

Nakul2 नकुल २००७ के, भारत के पाँच रोड्स स्कॉलर (Rhodes Scholars) में से एक है।
पिछले दो साल से ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय (Oxford University) में पढ़ाई कर रहा है।

अगले महीने उसकी दो साल की पढ़ाई पूरी हो रही है और दो साल के बाद  छुट्टियों के लिए घर आ रहा है।

मुझे आप सब मित्रों को यह बताने में अत्यंत हर्ष हो रहा है कि, नकुल को आगे की पढ़ाई के लिए भी, वहीं ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में ही प्रवेश मिल गया है। वह वहां मास्टर्स प्रोग्राम और पी.एच.डी. भी करना चाहता है और उसे ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस की दी हुई Clarendon Scholarship भी हासिल हुई है। इसके साथ ब्रिटिश सरकार की दी जा रही  ORS (Overseas Student Scholarship) भी मिली है।


नकुल के फोटोग्राफ्स का स्लाइड-शो:

ट्यूशन फीस, कॉलेज फीस और रहने का खर्च (लिविंग अलाउंस) भी उसे प्राप्त हो जाएगा। अर्थात मुझे मेरी अपनी जेब से कोई खर्च की आवशयकता नहीं पढ़ेगी।

ये छात्रवृत्तियाँ उसे अपनी योग्यता के कारण मिली हैं और इसके लिए उसे दुनिया भर के उत्तम छात्रों से स्पर्धा करनी पढ़ी है।

मेरी चिंताएं अब दूर हो गई हैं। मेरे अपने करीयर का अंत अब सामने है। भविष्य अगली पीढ़ी का है। ईश्वर की बड़ी कृपा है हम पर कि हमें ऐसा बेटा मिला।

अपनी खुशी आप सब से बाँटना चाहता हूँ, ज्ञानजी के ब्लॉग के माध्यम से।

सबको मेरी शुभकामनाएं

Vishwanath in 2008
जी विश्वनाथ, जे पी नगर, बेंगळूरु


41 comments:

  1. जी विश्वनाथ जी के सुपुत्र की मेधा को सलाम । नकुल का परिचय प्रसन्न कर गया ।

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  2. नकुल के बारे में जान कर अच्छा लगा -पिता पुत्र दोनों को ढेर सारी बधाई और शुभकामनाएं !

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  3. नकुल जी के बारे में पड़ कर बहुत अच्छा लगा | नकुल और आप सभी को ढेर सारी बधाई और शुभकामनाएं |

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  4. विश्वनाथ जी को बहुत बहुत बधाई! नकुल के बारे में जान कर अच्छा लगा।

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  5. सच मे नकुल चर्चा के लायक है और पढने वाले बच्चो के लिए प्रेरणा श्रोत है . ऐसे बच्चे अपने माँ बाप के साथ अपने देश का भी नाम रोशन करते है

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  6. वाह! बधाई! विश्वनाथजी को। शुभकामनायें नकुल को!

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  7. मुझे नकुल के बारे में जानकारी पाकर के अच्छा लगा -मेरी तरफ से ढेर सारी बधाई और शुभकामनाएं उन सभी को प्रेषित करें .

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  8. बहुत अच्छा लगता है जब इस तरह की प्रतिभाओं के बारे मे जानने का अवसर मिलता है. क्योंकि इसी से अन्य बच्चे भी मोटीवेटेड होते हैं.

    चि.नकुल को बहुत शुभकामनाएं और श्री विश्वनाथ जी को बधाई ऐसे पुत्र रत्न की परवरिश पर. आखिर संस्कार और जज्बा तो उन्हि का दिया हुआ है.

    रामराम.

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  9. विश्वास नहीं होता कि आज भी अच्छे जौहरी इस दुनिया में है जिन्हें पूत के पांव पालने में दिखाई दे जाते हैं.

    उत्तम जानकारी एवं अच्छे संस्कार दाता की लेखनी से अवगत कराने का शुक्रिया.

    गोपालकृष्ण विश्वनाथ जी और उनके कुलोद्भव चिरंजीव नकुल जी को मेरा सलाम.

    चन्द्र मोहन गुप्त

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  10. नकुल की प्रतिभा के विषय मे जानकर अच्छा लगा। नकुल शुभकामनाएं और विश्वनाथ जी को बहुत-बहुत बधाई।

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  11. प्रतिभावान नकुल को ढ़ेरों शुभकामनायें, विश्वनाथ जी और परिवार को बधाईयाँ।

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  12. विश्वनाथजी, आपकी खुशी में हम भी शामिल है. बहुत बहुत बधाई. व नकुल को शुभकामनाएं.

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  13. हम भी यही कहेंगे.. यशस्वी भव! नकुल!

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  14. विश्वनाथ जी, आपको बहुत बहुत बधाई!

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  15. जब विश्वनाथ सर से मिला उस समय नकुल के बारे में बताते हुये उनके चेहरे पर गर्व मिश्रित खुशी देखी थी और सहसा अपने पापा की याद हो आयी थी..
    मेरी ओर से नकुल को ढ़ेर सारी शुभकामनायें.. :)

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  16. नकुल के बारे में जानकर बहुत अच्छा लगा .
    विश्वनाथ जी और नकुल को ढेर सारी बधाई और शुभकामनाएं !

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  17. होनहार बच्चा माता -पिता को कितनी खुशी देता है यह तो उसके मां-बाप ही जानते हैं।हमारी शूभकामनाए...वह निरन्तर सफलता की सीढी चढता रहे।

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  18. नकुलजी को ढेर सी शुभकामनाएं, विश्वनाथजी को भी ढेर सी शुभकामनाएं। योग्य संतान निश्चय ही भाग्यवानों को मिलती हैं।

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  19. विश्वनाथ जी नकुल को मेरी तरफ़ से ढेर सारी बधाई और भविष्य के लिए शुभकामानाएं। अगली पीढ़ी की पौध को फ़लते फ़ूलते देख जो हर्ष होता है वो अपने जीवन में पायी किसी भी उपलब्धी से कहीं ज्यादा होता है, इस बात का एहसास हर मां बाप को है। आप के इस हर्षोल्लास में हम भी आप के साथ शामिल हैं। आप को भी बधाई। भगवान करे भारत के हर घर में ऐसे सपूत हों

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  20. चि. नकुल बेटे को आशिषे तथा विश्वनाथ जी के परिवार को हार्दिक बधाई -
    २१ वीँ सदी भारत के यशस्वी सँतान की यशोगाथा लिखेगी ये मेरा द्रढ विश्वास है -
    - लावण्या

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  21. विश्‍वनाथजी को हार्दिक अभिनन्‍दन। हम अपने बच्‍चों के कारण पहचाने जाएं, सम्‍मान पाएं - इससे अच्‍छी बात और क्‍या हों सकती है।

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  22. सभी मित्रों को मेरा हार्दिक धन्यवाद।

    नकुल को आप सब की टिप्पणियों के बारे में अवश्य अवगत कराऊँगा।
    आशा है कि यह सब पढ़कर वह और भी ज्यादा प्रोत्साहित होगा।

    तीन साल पहले जब उसने कहा था कि मैं humanities में डिग्री लेना चाहता हूँ तब अवश्य मुझे कुछ चिंता हुई थी।
    कभी सोचा भी नहीं था कि वह इतनी सफ़लता पाएगा अपने चुने हुए विषय में। हम मध्यवर्गीय लोग यही सोचके चलते हैं कि सफ़लता या तो इंजिनीयरी, या मेडिकल या Accountancy या MBA में है।

    पुराने जमाने में माँ-बाप अपने बच्चों पर अपने इरादे थोंपते थे।
    अच्छा हुआ हमने ऐसी गलती नहीं की

    नकुल की आगे की प्रगति के बारे में अवश्य लिखकर आप सब को सूचना देता रहूँगा
    शुभकामनाएं

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  23. विश्‍वनाथजी एवम नकुल को बधाईजी! नुकुल घर परिवार एवम देश का नाम रोशन करो ऐसी दुआ मे भगवान् से करता हु।
    ज्ञानजी आपका आभार अच्छी बात के लिए।

    जय जिनेन्द्र हे प्रभु कि और से

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  24. अनिता कुमार जी के ब्लॉग पर नकुल के बारे में पिछले साल पढ़ा था। इस प्रतिभाशाली संतान के माँ बाप के सपने बेटा जरूर पूरा करेगा। ऐसा हमारा विश्वास है। विश्वनाथ जी को बधाई। ज्ञान जी को शुक्रिया।

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  25. किसी भी पिता को अपने पुत्र की उन्नती गौरवान्वित करती है। आज विश्वनाथ जी को अपने पुत्र के छात्रवत्त पाने पर गौरवान्वित होना स्वभाविक है । बहुत बहुत बधाई विश्वनाथजी को और भविष्य के लिए नकुल को शुभकामनाएं॥

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  26. "मध्यवर्गीय लोग यही सोचके चलते हैं कि सफ़लता या तो इंजिनीयरी, या मेडिकल या Accountancy या MBA में है।" आपने इस सोच को नकुल पर नही थोपा...इस विषय को विस्तार देकर अगर आप एक पोस्ट बनाए तो शायद कई अभिवावक नई सोच को अपना ले.
    बेटे नकुल को प्यार और आशीर्वाद..

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  27. राजीव टण्डन जी की ई-मेल से प्राप्त टिप्पणी:

    And yes, Please do convey my blessings and well wishes to Nakul and congratulations to his proud father.
    This is indeed an extraordinary achievement.

    --
    Rajeev

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  28. मेधावी पुत्र और गौरवशाली पिता को बधाई.. जय हिंदुस्तान..

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  29. पूरे आदर और नम्रता के साथ मै विश्वनाथ जी से कुछ पूछना चाहता हूँ।

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    आदरणीय विश्वनाथ जी, आपके बालक की पढाई मे मेरे देश भारत का बहुत कुछ लगा है। आधारभूत शिक्षा लेकर अब वह विदेश चला गया है। अब वह दूसरे देश के लिये कमायेगा। यदि ऐसा ही होता रहा तो इस देश का क्या होगा? आप नही सोचते कि आने वाले दशको मे हमे विद्वान हायर करने होंगे जैसे अभी विदेशी कर रहे है। यदि आप कहते है कि मेरा बालक कम पैसो पर ही सही पर देश मे रहकर देश के लिये कमायेगा तो सही माने मै भी आपकी प्रशंसा मे चार लाइन लिखता।

    आज ज्ञानदत्त जी को पूरी दुनिया मे कही भी रेल संचालन की नौकरी मुँहमाँगी कीमत पर मिलसकती है पर वे भारत मे है, ये मेरे लिये गर्व की बात है। काश, सारे माँ-बाप और नये बच्चे ऐसा सोचते-----
    --------

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  30. ----------------------------------------------------------------------
    खरी-खरी said...
    पूरे आदर और नम्रता के साथ मै विश्वनाथ जी से कुछ पूछना चाहता हूँ।
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    अवश्य पूछिए। इस पूछताछ के लिए धन्यवाद।
    पिछले दो दिन से दौरे पर था, इसलिए उत्तर देने में कुछ देर हुई है। क्षमा चाहता हूँ।
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    आदरणीय विश्वनाथ जी, आपके बालक की पढाई मे मेरे देश भारत का बहुत कुछ लगा है।
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    सहमत।
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    आधारभूत शिक्षा लेकर अब वह विदेश चला गया है।
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    विदेश "चला नही गया", फ़िलहाल विदेश में आगे की पढ़ाई कर रहा है।
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    अब वह दूसरे देश के लिये कमायेगा।
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    यह आपने कैसे मान लिया? कमाई छोडिए, उसकी पढ़ाई पूरी होने में कुछ और साल लगेंगे। उसका भविष्य अब तय भी नहीं हुआ है।
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    यदि ऐसा ही होता रहा तो इस देश का क्या होगा?
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    ऐसा ही होता नहीं रहेगा। आजकल हज़ारों की संख्या में भारतीय नागरिक अपने देश लौट रहे हैं। आपको कैसे पता है कि नकुल वापस नहीं लौटेगा?
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    आप नही सोचते कि आने वाले दशको मे हमे विद्वान हायर करने होंगे जैसे अभी विदेशी कर रहे है। यदि आप कहते है कि मेरा बालक कम पैसो पर ही सही पर देश मे रहकर देश के लिये कमायेगा तो सही माने मै भी आपकी प्रशंसा मे चार लाइन लिखता।
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    मैंने यह खबर किसी से प्रशंसा पाने के लिए नहीं दी।
    कृपया मेरी प्रशंसा मत कीजिए। बस अपनी खुशी बाँटना चाहता था।
    मुझे खेद है कि आपको इस समाचार से प्रसन्नता नहीं हुई।
    चलो कोई बात नहीं। आशा करता हूँ कि जब नकुल पढ़ाई पूरी करके देश लौटेगा तब आप अवश्य प्रसन्न होंगे। आप को सूचना अवश्य दूँगा।
    लेकिन कैसे? आपका सही नाम तो मैं जानता भी नही?
    नाम और पता बताने की कृपा करेंगे? बडी मेहरबानी होगी।
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    आज ज्ञानदत्त जी को पूरी दुनिया मे कही भी रेल संचालन की नौकरी मुँहमाँगी कीमत पर मिलसकती है पर वे भारत मे है, ये मेरे लिये गर्व की बात है। काश, सारे माँ-बाप और नये बच्चे ऐसा सोचते-----
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    ज्ञानजी महान हैं, इसमे दो राय नहीं हो सकती।
    मुझे भी उतना ही गर्व है उनके काम पर।
    रेल यात्रा मैं भी करता हूँ, और हर बार इस विशाल नेटवर्क, और उसको चलाने के लिए जो योग्यता, समर्पण और सत्यनिष्ठा की आवशकता है, उसके बारे में जब सोचता हूँ तब मुझे गर्व होता है कि ज्ञानजी जैसे मित्र मैने पाया है। क्या हुआ अगर हम अब तक मिले भी नहीं? एक दिन अवश्य मिलेंगे। क्या आप से भी कभी मिलने का सौभाग्य मुझे प्राप्त होगा? आप बड़े दिलचस्प सवाल करते हैं जिसका जवाब देने में मुझे बहुत खुशी होती है। फ़िलहाल आपका असली नाम जानना ही मेरे लिए काफ़ी है।
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    हार्दिक शुभकामनाएं

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  31. ध्न्यवाद। निश्चित ही आपको अपने बेटे के लिये निर्ण्य लेने का पूरा अधिकार है। आपने कुछ बाते कही है। मै उसकी चर्चा करना चाहूँगा।
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    ऐसा ही होता नहीं रहेगा। आजकल हज़ारों की संख्या में भारतीय नागरिक अपने देश लौट रहे हैं। आपको कैसे पता है कि नकुल वापस नही आयेगा?

    *** अरे ये वापस नही आ रहे बल्कि नौकरी खो जाने के बाद लौट रहे है। अब देखिये हम कितने सहनशील है। इन लोगो ने खाया हमारा और जब लौटाने की बात हुयी तो विदेश चले गये। जब वहाँ से लात पडी तो दुम हिलाते हुये वापस आ गये। ऐसे लज्जाहीन लोगो को तो वापस लौटा देना चाहिये।

    आप और ज्ञान दा जिस शिक्षा संस्थान मे पढकर आगे बढे वे क्या अब बन्द हो गये है। फिर हमारे देश का हीरा यानि आपका बेटा विदेश गया है वो भी पढने। यदि वह भारत मे पढता तो उसके दिमाग से हमारे छात्र रिच होते। तिस पर आपका छाती ठोककर कहना कि मेरा बेटा विदेश मे ये उपलब्धियाँ पा रहा है, एक आम भारतीय के नाते मुझे नही हजम होता। मै यदि आपकी जगह होता तो बेटे मे संस्कार ऐसे डालता कि वह कभी विदेश न्ही जाता। मेरे दोनो बेटे विदेश जाना चाहते थे हवा मे बहकर। हमने उन्हे समझाया कि भारत माँ को सपूतो की जरुरत पहले है। मैने लाखो खर्च करके उन्हे भारत दर्शन के लिये भेजा। एक को हिमालय भाया और वह वही रुक गया। एक को गुजरात भाया। उसने वही पैर जमाया। दोनो जितना वेतन मिलता है उसका आधा जरुरतमन्दो को देते है क्योकि उन्होने असली भारत देखा है। यदि आपका बेटा भी भारत दर्शन करना चाहे तो मै खर्च उठाने को तैयार है। कम से कम एक उर्वर दिमाग तो देश वापस आ जायेगा।

    ========

    एक बार फिर कहना चाहूँगा कि यह आपका अपना नजरिया है, पर आपके माध्यम से मै उन अहसान फरामाशो पर चोट करना चाहता हूँ जो देश का खाकर देश के नही हुये।

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  32. आदर्णीय खरी-खरी जी,

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    आपके विचार
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    मेरी टिप्पणी
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    ध्न्यवाद। निश्चित ही आपको अपने बेटे के लिये निर्ण्य लेने का पूरा अधिकार है। आपने कुछ बाते कही है। मै उसकी चर्चा करना चाहूँगा।
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    ======================
    बहस जारी रखने के लिए धन्यवाद।
    आपके अपने बेटों के लिए निर्णय लेना आप ठीक समझते होंगे।
    हम बेटे को उपदेश ही देंगे, निर्णय नहीं लेंगे।
    निर्णय वही करेगा और जो भी करेगा, मुझे स्वीकार होगा।
    वैसी भी, इस निर्णय में मैंने उसका साथ दिया।
    मैं नहीं समझता कि पढ़ाई करने के लिए विदेश जाना कोई गलत काम है।
    और नौकरी वहीं मिल गई तो उसे स्वीकार करने में भी कोई बुराइ है।
    यदी कोई वापस भी नहीं आता तो भी मुझे कोई आपत्ति नहीं होगी।
    आपका सोच अवश्य भिन्न है और इसपर आगे बहस मैं नहीं करूँगा।
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    *** अरे ये वापस नही आ रहे बल्कि नौकरी खो जाने के बाद लौट रहे है। अब देखिये हम कितने सहनशील है। इन लोगो ने खाया हमारा और जब लौटाने की बात हुयी तो विदेश चले गये। जब वहाँ से लात पडी तो दुम हिलाते हुये वापस आ गये। ऐसे लज्जाहीन लोगो को तो वापस लौटा देना चाहिये।
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    जो भारत में ही रहे और जिनकी नौकरी चली गई है, उनका हम क्या करें?
    क्या विदेश में मंदी के कारण या किसी और कारण अपनी नौकरी खोना लज्जित होने की बात है?
    आप से मैं सहमत नहीं हूँ।
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    आप और ज्ञान दा जिस शिक्षा संस्थान मे पढकर आगे बढे वे क्या अब बन्द हो गये है। फिर हमारे देश का हीरा यानि आपका बेटा विदेश गया है वो भी पढने। यदि वह भारत मे पढता तो उसके दिमाग से हमारे छात्र रिच होते।
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    नहीं, बन्द नहीं हुए। लेकिन भारत के अच्छे संस्थानों में सीटें सीमित हैं।
    और आरक्षण की नीति के कारण हजारों योग्य छात्र/छात्राओं की आकांक्षाएं मिट्टी में मिल जाते हैं। कभी कभी ऐसा भी होता है कि जिस विषय में छात्र योग्यता पाना चाहता है उस विषय में हमारे देश में अवसर कम हैं या अवसर हैं ही नहीं।
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    तिस पर आपका छाती ठोककर कहना कि मेरा बेटा विदेश मे ये उपलब्धियाँ पा रहा है, एक आम भारतीय के नाते मुझे नही हजम होता। मै यदि आपकी जगह होता तो बेटे मे संस्कार ऐसे डालता कि वह कभी विदेश न्ही जाता।
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    मैं छाती टोक रहा हूँ? जी नहीं । आप मुझे बिल्कुल गलत समझ रहे हैं। मुझे केवल आप मिले जिसने आपत्ति की, और सभी लोग, न केवल इस ब्लॉग में बल्कि अन्य चर्चा समूहों में, और मेरे रिश्तेदार और मित्र सभी खुश हुए हैं। मुझे इस बात का संतोष है कि मेरे बेटे की कामयाबी से इतने सारे लोग खुश हो रहे हैं। बस एक केवल आप हैं जिसे यह समाचार "हजम नहीं होता"। मैं इस मामले में लाचार हूँ। आगे कुछ नहीं कहूँगा।
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    मेरे दोनो बेटे विदेश जाना चाहते थे हवा मे बहकर। हमने उन्हे समझाया कि भारत माँ को सपूतो की जरुरत पहले है। मैने लाखो खर्च करके उन्हे भारत दर्शन के लिये भेजा। एक को हिमालय भाया और वह वही रुक गया। एक को गुजरात भाया। उसने वही पैर जमाया। दोनो जितना वेतन मिलता है उसका आधा जरुरतमन्दो को देते है क्योकि उन्होने असली भारत देखा है। यदि आपका बेटा भी भारत दर्शन करना चाहे तो मै खर्च उठाने को तैयार है। कम से कम एक उर्वर दिमाग तो देश वापस आ जायेगा।
    एक बार फिर कहना चाहूँगा कि यह आपका अपना नजरिया है, पर आपके माध्यम से मै उन अहसान फरामाशो पर चोट करना चाहता हूँ जो देश का खाकर देश के नही हुये।
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    मैंने यह आशा रखकर आपकी टिप्पणी पर प्रति टिप्पणी की थी, कि आप के बारे में कुछ जान सकूँ। कम से कम आपका नाम, आप कहाँ स्थित हैं, और आपका पे़शा क्या है, यह जानने की उत्सुकता थी। आपने हमें मायूस कर दिया। आपको गुमनाम रहने का अधिकार अवश्य है। चलो आपके बारे में कम से कम इतना तो पता चला कि आप दो योग्य सुपुत्रों के बाप हैं, एक जो गुजरात में बस गया है और दूसरा हिमालय के पास और दोनों ने आपका उपदेश मानते हुए विदेश जाने का विचार त्यागकर भारत दर्शन किए हैं आपकी कृपा से। मेरा बेटा भी अवश्य भारत दर्शन करेगा। केवल भारत दर्शन नहीं बल्कि दुनिया भी घूम आएगा, यही मेरी आशा है। उसका भारत दर्शन का खर्च उठाने का आपका ऑफ़र सराहनीय है और आपको दिल से धन्यवाद देता हूँ लेकिन मेरा बेटा एक ऐसा नौजवान है जो अपने ही बल पर यह काम करना चाहेगा। उसे मुझसे भी पैसे लेने में हिचक होगी। आपसे तो वह बिल्कुल नही लेगा।

    आपके दोनों बेटों को हमारी शुभकामनाएं। जब तक आपका नाम, निवास्थान और पेशा नहीं जानता हूँ, इस विषय पर आगे बहस मैं नहीं करूँगा।
    मेरा विचार है कि आप का सोच और हमारे सोच के बीच इतना बड़ा अंतर है के हम एक दूसरे से सहमत नहीं हो सकेंगे। मेरा सुझाव है कि बहस को यहीं खत्म की जाए। यदि आप "Having the last word on the subject" में विश्वास रखते हैं और इस का उत्तर भी देते हैं तो उसे मैं अवश्य पुरे ध्यान से पढ़ूँगा पर आगे उत्तर नहीं दूँगा।

    राम राम
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  33. लगता है कि आपने मेरी बातो को दिल पर ले लिया। मै तो बस स्वस्थ्य चर्चा करना चाहता हूँ।

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    मै दिनेश हूँ, दो बेटो और एक बेटी का पिता, पेशे से किसान हूँ। एक प्रोविजन स्तोर भी है। पडोसी ने हिन्दी का चस्का लगा दिया है। बस उन्ही के कम्प्यूटर से इस नाम से टिप्पणी भेजता हूँ। उम्मीद है अब तो आपका जवाब मिलेगा। (वैसे मेरा नाम सुरेश होता और मै आटो चलाता तो क्या आपके जवाब अल्ग होते? नाम मे क्या रख्खा है।

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    आपने लिखा है


    नहीं, बन्द नहीं हुए। लेकिन भारत के अच्छे संस्थानों में सीटें सीमित हैं।
    और आरक्षण की नीति के कारण हजारों योग्य छात्र/छात्राओं की आकांक्षाएं मिट्टी में मिल जाते हैं। कभी कभी ऐसा भी होता है कि जिस विषय में छात्र योग्यता पाना चाहता है उस विषय में हमारे देश में अवसर कम हैं या अवसर हैं ही नहीं।

    *** अरे विश्वनाथ भाई, जब अपना घर टूट जाता है तो क्या हम दूसरे के घर चले जाते है? अपने घर को सुधारते है कि नही? ये देश भी तो अपना घर है। नयी पीढी के लोग इसे सुधारेंगे। यदि सभी ऐसे बहाने करके विदेश चले गये तो इस घर की कौन सुध लेगा? बहाने बनाने से कुछ नही होगा। सब चाहते है कि भगतसिन्ह पैदा हो पर उनके घर मे पैदा नही हो। हम नही तो कौन उदाहरण प्रस्तुत करेगा?

    चलिये छोडिये नकुल की बात। आप कलाम साहब के साथ काम कर चुके है। आप ही सुझाइये कि इस देश मे क्या करना चाहिये कि ब्रेन ड्रेन रुके। चलिये ज्ञान दा के इस ब्लाग से ही इस सार्थक चर्चा की शुरुआत करे।

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  34. दिनेशजी (खरी-खरी जी),

    अपना परिचय देने के लिए धन्यवाद।
    ज्ञानजी के ब्लॉग की कृपा से मुझे मेरा पहला मौका मिला है किसी किसान और प्रॉविज़न स्टोर के मालिक से एक गंभीर विषय पर चर्चा करने का।
    आपका नाम जानकर अच्छा लगा। वैसे आपने पूछा है के आप सुरेश होते और ऑटो चलाते तो क्या फ़र्क पढ़ता।
    बात यह है एक सार्थक चर्चा के लिए आवश्यक है कि थोडी बहुत जान पहचान भी हो। आप मेरे बारे में इतना सब जानते हैं लेकिन मैं आपके बारे में अब तक कुछ भी नहीं जानता था। यह भी नहीं की आपकी उम्र क्या है, क्या आप एक प्रौढ व्यक्ति हैं या कोई नौजवान लड़का, महिला या पुरुष, और आपका पेशा क्या है। कम से कम इतना ज्ञान तो होना चाहिए एक दूसरे की दृष्टिकोण समझने के लिए।
    पर्दे की पीछे से जब आप हमसे बात करते थे तो मुझे कुछ अजीब लग रहा था।

    मेरे पेशे में, और रोजमर्रा जीवन में आप जैसे व्यक्ति से ऐसे विषय पर चर्चा करने का अवसर कभी मिलता ही नहीं था। आप लोगों के विचार जानने का अवसर आज मिल गया है और संतुष्टि हुई है। आपके पडोसी को भी मेरा नमन। बडा अच्छा चस्का लगा है उसने आपको।

    आप को यह जान कर शायद खुशी होगी कि खरीदते समय मैं ज्यादा से ज्यादा देशी उत्पाद ही खरीदता हूँ। मेरी दोनों गाडियाँ (मारुति वैगन आर, और रेवा) भारत में बनी हैं) कोका कोला या पेप्सी मैं पीता नहीं। लस्सी, नारियल का पानी पीना ज्यादा पसन्द करता हूँ । घर मे साबुन और टूथपेस्ट भी देशी ही हैं।

    जहाँ तक शिक्षा का सवाल है आप ने एक पेचीदा सवाल उठाया है। क्या हमारे योग्य छात्र / छात्राओं का विदेश जाना ही नहीं चाहिए?
    इस बात पर भुहुत कुछ लिखा जा सकता है और किसी और समय चर्चा हो सकती है।

    आप से परिचय करने का यह अवसर मुझे अच्छा लगा।
    आशा करता हूँ कि आगे भी आप बिना हिचक ज्ञानजी के ब्लॉग पर अपनी टिप्पणी भेजते रहेंगे। आपको और आपके परिवार के सदस्यों को हमारी शुभकामनाएं।

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  35. khari-khari Ji aur Vishwanath Sir ke bich jo baten ya bahas chal rahi hai us par main kuchh nahi kahna chahunga, lekin khari-khari ji ki jaankari ke liye main itna jaroor kahunga ki apni chhote se corporate jivan me hi main abhi kam se kam 15-20 logon ko janta hun jo kuchh saal videsh me rahkar, vahan achchha paisa bana kar aur apni ichchha se(na ki naukari se nikale jane par) vahan ka paisa bator kar vapas bharath aayen hain aur yahan ke logon ko rojgar muhaiya kara rahe hain..

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  36. आप अपने से ऊपर उठकर चर्चा करे। और आधी चर्चा मे पलायन न करे। आप से अनुरोध है कि अपने विचार रखे ताकि हम इस चर्चा मे सभी हिन्दी ब्लागरो को शामिल कर सके। प्रशांत तो शामिल हो चुके है।
    ======

    ब्रेन ड्रेन को कैसे रोका जाये- इस बारे मे अपने विचार रखे।

    ======

    ज्ञान दा, आपकी मौन अभिव्यक्ति नही चलेगी। आप भी विचार रखे और इन टिप्पणियो को मुख्य धारा मे लाकर दूसरो को भी शामिल करे।

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  37. वाह ! बधाई ! ऊपर की चर्चा आगे भी चली क्या?

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  38. बहुत बढ़िया।

    बधाई विश्वनाथ जी व नकुल को।

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  39. लगता है कि आपने मेरी बातो को दिल पर ले लिया। मै तो बस स्वस्थ्य चर्चा करना चाहता हूँ।

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    मै दिनेश हूँ, दो बेटो और एक बेटी का पिता, पेशे से किसान हूँ। एक प्रोविजन स्तोर भी है। पडोसी ने हिन्दी का चस्का लगा दिया है। बस उन्ही के कम्प्यूटर से इस नाम से टिप्पणी भेजता हूँ। उम्मीद है अब तो आपका जवाब मिलेगा। (वैसे मेरा नाम सुरेश होता और मै आटो चलाता तो क्या आपके जवाब अल्ग होते? नाम मे क्या रख्खा है।

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    आपने लिखा है


    नहीं, बन्द नहीं हुए। लेकिन भारत के अच्छे संस्थानों में सीटें सीमित हैं।
    और आरक्षण की नीति के कारण हजारों योग्य छात्र/छात्राओं की आकांक्षाएं मिट्टी में मिल जाते हैं। कभी कभी ऐसा भी होता है कि जिस विषय में छात्र योग्यता पाना चाहता है उस विषय में हमारे देश में अवसर कम हैं या अवसर हैं ही नहीं।

    *** अरे विश्वनाथ भाई, जब अपना घर टूट जाता है तो क्या हम दूसरे के घर चले जाते है? अपने घर को सुधारते है कि नही? ये देश भी तो अपना घर है। नयी पीढी के लोग इसे सुधारेंगे। यदि सभी ऐसे बहाने करके विदेश चले गये तो इस घर की कौन सुध लेगा? बहाने बनाने से कुछ नही होगा। सब चाहते है कि भगतसिन्ह पैदा हो पर उनके घर मे पैदा नही हो। हम नही तो कौन उदाहरण प्रस्तुत करेगा?

    चलिये छोडिये नकुल की बात। आप कलाम साहब के साथ काम कर चुके है। आप ही सुझाइये कि इस देश मे क्या करना चाहिये कि ब्रेन ड्रेन रुके। चलिये ज्ञान दा के इस ब्लाग से ही इस सार्थक चर्चा की शुरुआत करे।

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--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय