Friday, March 20, 2009

बगुला और ऊंट


bagoolaa वह बगुला अकेला था। झुण्ड में नहीं। दूर दूर तक और कोई बगुला नहीं था। इस प्रकार का अकेला जीव मुझे जोनाथन लिविंगस्टन सीगल लगता है। मुझे लगा कि मेरा कैमरा उसकी फोटो नहीं ले पायेगा। पर शायद कुछ सीगलीयता मेरे कैमरे में भी आ गयी थी। उसकी फोटो उतर आई।

बगुला मुझे ध्यान की पराकाष्ठा का जीव लगता है। ध्यानजीवी है। ध्यान पर ही उसका भोजन निर्भर है। इतना कंसंट्रेशन हममें हो जाये तो लोक भी सुधर जाये और परलोक भी। हे प्रभु हमें बगुले का ध्यान-वर दो।

bagoolaa-diving
खैर बगुले को लग गया कि हमारे रूप में अध्यानी पास आ रहा है। सो गुरुमन्त्र दिये बगैर बकुलराज उड़ गये। मेरे पास गंगा किनारे से लौटने का ही विकल्प बचा।
जीवन में उष्ट्र-माधुर्य तभी है, जब निस्पृह भाव से, जो भी लादा जाये, वह लादने को तैयार हों हम।


पर वापसी में ऊंटदेव मिल गये जो गोबर की खाद के लदान के लिये बैठने की प्रक्रिया में थे।

बगुले का ध्यान न मिल सके, ऊंट की सुन्दरता और ऊंचाई ही मिल जाये जीवन में। बहुत साल जीने के हैं – भगवान न जाने क्या देंगे! न जाने किस करवट बिठायेंगे। यही बगुला-ऊंट-कुकुर-बिलार-बकरी-भैंस दिखाते ही तत्वज्ञान देदें तो महती कृपा। निरर्थक आत्मदर्प से तो बचा रहेगा यह जीवन।oont2

आजकल ऊंट बहुत दीखता है – कछार से लौकी-कोंहड़ा ले कर मण्डी जाते अक्सर दीखता है। खाद भी लादता है, यह अब पता चला। जीवन में उष्ट्र-माधुर्य तभी है, जब निस्पृह भाव से, जो भी लादा जाये, वह लादने को तैयार हों हम।

आइये तैयार हों लदने को, नित्य की समस्याओं से! समस्यायें चाहे लौकी-कोंहड़ा हों या चाहे गोबर! 


oont   
जोनाथन लिविंग्स्टन सीगल: jonathan


35 comments:

  1. आप बगुले की तरह ध्यान चाहते हैं उंट सी लदान चाहते हैं! क्या क्या लेकर धरेंगे। कुछ तो जैसा है वैसा रहने देंगे कि घर के सारे पर्दे बदलने की तरह सब आदतें बदल डालेंगे!

    ReplyDelete
  2. एक और दत्तात्रेय रूपाकार ले रहा है ! हर्ष ! हर्ष !!

    ReplyDelete
  3. यह तो सच ही है -काक चेष्टा बकुल ध्यानम

    ReplyDelete
  4. इन्सान सीखना चाहे
    तब हमारे आस पास
    और भीतर भी बहुत से गुरु हैँ
    आत्म दर्प से बचे रहना
    ईश्वर की विशेष कृपा से ही सँभव होता है
    ..जैसे बगुले
    के पीछे घास से झुकना सीखेँ
    और ऊँट अल्ल्हाबाद मेँ देख विस्मय हुआ -
    ये नई घटना है क्या ?
    हमेँ तो लगा ये राजस्थान मेँ ही दीखते हैँ

    - लावण्या

    ReplyDelete
  5. इन दोनों की ज़रुरत तो मुझे है... न बगुले सा ध्यान मिला न ऊँट सी ऊंचाई.

    ReplyDelete
  6. मन चंचल होता है शायद यही बताना चाहते हैं सब को।
    वैसे ऊँट के बोझा ढोने की सीमा होती है।

    ReplyDelete
  7. "इतना कंसंट्रेशन हममें हो जाये तो लोक भी सुधर जाये और परलोक भी। "
    तो चलिए ना, रामदेव बाबा के पास चलते हैं:)

    ReplyDelete
  8. ऐसा लगा मनो अंतरात्मा बोल रही हो. मुक्ति मार्ग में अग्रसर होने के लिए यह दोनों आवश्यक तो हैं. मष्तिष्क में मिक्सी चल रही है. आभार

    ReplyDelete
  9. अच्छा हुआ रास्ते में हाथी न मिला वरना तो आप उस मोड में आ लिए थे कि स्वतः भावविभोर कह उठते कि हे गजराज!! अपका शरीर मुझे मिल जाये. वो खुशी खुशी देकर सटक भी लेता और आप हमारी तरह दाँत चियारे पछता रहे होते.

    जय हो आपकी...वैसे लदान की सीख सीखने वाली है, अतः साधुवाद!!!

    ReplyDelete
  10. जीवन में उष्ट्र-माधुर्य तभी है, जब निस्पृह भाव से, जो भी लादा जाये, वह लादने को तैयार हों हम।

    क्या बात कह दी सरजी आज..

    ReplyDelete
  11. मन किसी के बांधे नहीं बंधता सर जी .जिसने बाँध लिया वो बुद्ध हो गया !

    ReplyDelete
  12. एकाग्रता के लिए आतमौर से बगुला को याद किया जाता है, पर बहुत से सांप ऐसे होते हैं जो अपने शिकार के पास आने की प्रतीक्षा में घंटो बिना हिले डुले बैठे रहते हैं।

    ReplyDelete
  13. हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर .................

    ReplyDelete
  14. प्रणाम
    बगुला जैसा ध्यान और ऊंट जैसी ताकत (शायद केवल ऊंट ही बोझ लाद कर खडा होता है )मिल जाये तो जीवन बिना कष्ट के गुजर जाये .

    ReplyDelete
  15. और पशु-पंखी सोचते होंगे, प्रभू मानव जैसी बुद्धी दे दो...

    ReplyDelete
  16. बचपन मे बगुले और केकड़े की तो कहानी भी पढ़ी है । :)

    ReplyDelete
  17. बगुले और ऊंट को देखकर यह विचार पैदा होना शायद आत्मचिन्तन का लक्षण है. शुभकामनाएं.

    रामराम.

    ReplyDelete
  18. सीखने के लिए तो सृष्टि का प्रत्‍येक जीव प्रेरणा स्रोत है। बस, एक नजर चाहिए।

    ReplyDelete
  19. वकोध्यान ,उष्ट्र काण्ड निश्चित ही लुभा तो रहा है और आपकी परखी नज़र उसकी तो बात ही कुछ और है . { कुछ लोग बुरा न मान जाए इस लाइन पर }

    ReplyDelete
  20. बगुला ऊंट के साथ साथ छोटा हाथी आपके कैमरे को क्यों नजर नहीं आया . बहुत रोचक सचित्र पोस्ट बधाई .

    ReplyDelete
  21. सच कहूं तो मैं ऊंट की उंचाई या सुंदरता चाहने की बजाय बगुले का ध्यान पाना चाहूंगा, क्योंकि मेरी नज़र में एक इसी बात का अभाव है मुझमे, वह है एकाग्रता।

    बहुत ही गुनने वाली पोस्ट।

    ReplyDelete
  22. वाह वाह क्या मालगाड़ी दर्शन ठेला है कि निस्पृह भाव से जो कुछ लादा जाये, उसे ठेले जाने के लिए तैयार रहें। मालगाड़ी डिवीजन में जाने पर तो आप फिलोसोफिर हो लिये जी। मालगाड़ी दर्शन पर कुछ और पोस्ट हों जी।

    ReplyDelete
  23. ham to upar aalok ji ki baat sun kar chakit ho gaye...aisa jeevan darshan maalgadi division se bhi aa sakta hai, kabhi socha hi nahin tha.
    bagule ka dhyan mil jaaye to kya baat hai, hamara to man kisi cheez par tikta hi nahin.
    aap bhi kis kis cheez me se post likhne ka material nikal lete hain :)

    ReplyDelete
  24. जीवन में उष्ट्र-माधुर्य तभी है, जब निस्पृह भाव से, जो भी लादा जाये, वह लादने को तैयार हों हम।

    बहुत उम्दा विश्लेषण है बड़े भाई. कृतकृत्य हुए हम.

    ReplyDelete
  25. ठीक कह रहे हैं समीर भाई..अच्‍छा हुआ जो रास्‍ते में आपको गजराज नहीं मिले :)

    ReplyDelete
  26. ज्ञानदत्त पाण्डेय साहब,

    सादर वन्दे,

    बगुला, ऊँट के प्रतीकों से जीवन की सच्चाईयों से रु-ब-रू कराती रचना बहुत सिखाती भी है खासकर दृष्टीकोण कितना पैना होना चाहिये किसी लेखक के लिये.

    साधुवाद.

    मुकेश कुमार तिवारी

    ReplyDelete
  27. रेगिस्तानी जहाज संकट मे है और तेजी से घट रहे है। क्यो घट रहे है? यह जानने के लिये इस लेख पर नजर डाले

    Reasons for the decrease include a loss of grasslands to development and the growing use of modern transportation.

    http://www.wwenglish.com/en/voa/spec/2009/01/2009011329633.htm

    ReplyDelete
  28. जय हो ! ज्ञान सर्वत्र बिखरा पड़ा है बस आप जैसी दृष्टि चाहिए.

    ReplyDelete
  29. ऊँट में कोई रूचि नहीं है, हाँ यदि बगुले का ध्यान मंत्र मिले तो मेरे को भी अवश्य बताईयेगा! :)

    वैसे आपके ब्लॉग के साथ पता नहीं पिछले एक-डेढ़ महीने से क्या समस्या आ रही है, पोस्ट वाला पन्ना एक बार में पूरा लोड ही नहीं होता, रिफ्रेश करने के बाद ही पूरा लोड होता है। ऐसी समस्या किसी अन्य वर्डप्रैस अथवा ब्लॉगस्पॉट वाले ब्लॉग में नहीं आ रही। आपकी तरफ़ मामला ठीक है तो लगता है अपने इंटरनेट कनेक्शन का ही कोई बैर है आपके ब्लॉग से! :)

    ReplyDelete
  30. ऊँट में कोई रूचि नहीं है, हाँ यदि बगुले का ध्यान मंत्र मिले तो मेरे को भी अवश्य बताईयेगा! :)

    वैसे आपके ब्लॉग के साथ पता नहीं पिछले एक-डेढ़ महीने से क्या समस्या आ रही है, पोस्ट वाला पन्ना एक बार में पूरा लोड ही नहीं होता, रिफ्रेश करने के बाद ही पूरा लोड होता है। ऐसी समस्या किसी अन्य वर्डप्रैस अथवा ब्लॉगस्पॉट वाले ब्लॉग में नहीं आ रही। आपकी तरफ़ मामला ठीक है तो लगता है अपने इंटरनेट कनेक्शन का ही कोई बैर है आपके ब्लॉग से! :)

    ReplyDelete
  31. ज्ञानदत्त पाण्डेय साहब,

    सादर वन्दे,

    बगुला, ऊँट के प्रतीकों से जीवन की सच्चाईयों से रु-ब-रू कराती रचना बहुत सिखाती भी है खासकर दृष्टीकोण कितना पैना होना चाहिये किसी लेखक के लिये.

    साधुवाद.

    मुकेश कुमार तिवारी

    ReplyDelete
  32. बगुला ऊंट के साथ साथ छोटा हाथी आपके कैमरे को क्यों नजर नहीं आया . बहुत रोचक सचित्र पोस्ट बधाई .

    ReplyDelete
  33. हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर .................

    ReplyDelete
  34. अच्छा हुआ रास्ते में हाथी न मिला वरना तो आप उस मोड में आ लिए थे कि स्वतः भावविभोर कह उठते कि हे गजराज!! अपका शरीर मुझे मिल जाये. वो खुशी खुशी देकर सटक भी लेता और आप हमारी तरह दाँत चियारे पछता रहे होते.

    जय हो आपकी...वैसे लदान की सीख सीखने वाली है, अतः साधुवाद!!!

    ReplyDelete
  35. इन्सान सीखना चाहे
    तब हमारे आस पास
    और भीतर भी बहुत से गुरु हैँ
    आत्म दर्प से बचे रहना
    ईश्वर की विशेष कृपा से ही सँभव होता है
    ..जैसे बगुले
    के पीछे घास से झुकना सीखेँ
    और ऊँट अल्ल्हाबाद मेँ देख विस्मय हुआ -
    ये नई घटना है क्या ?
    हमेँ तो लगा ये राजस्थान मेँ ही दीखते हैँ

    - लावण्या

    ReplyDelete

आपको टिप्पणी करने के लिये अग्रिम धन्यवाद|

हिन्दी या अंग्रेजी में टिप्पणियों का स्वागत है|
--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय