Friday, October 24, 2008

सौर चूल्हा


एक खबर के मुताबिक एसोशियेटेड सीमेण्ट कम्पनी अपने सीमेण्ट उत्पादन के लिये जल और पवन ऊर्जा के विकल्प तलाश रही है। पवन ऊर्जा के क्षेत्र में कम्पनी पहले ही राजस्थान और तमिलनाडु में १० मेगावाट से कुछ कम की क्षमता के संयंत्र लगा चुकी है। इसी प्रकार आई.टी.सी. तमिलनाडु में १४ मेगावाट के पवन ऊर्जा संयन्त्र लगाने जा रही है।

कम्पनियां अक्षय ऊर्जा के प्रयोग की तरफ बढ़ रही हैं। और यह दिखावे के रूप में नहीं, ठोस अर्थशास्त्र के बल पर होने जा रहा है।

मैं रोज देखता हूं – मेरे उत्तर-मध्य रेलवे के सिस्टम से कोयले के लदे २५-३० रेक देश के उत्तरी-पश्चिमी भाग को जाते हैं। एक रेक में लगभग ३८०० टन कोयला होता है। इतना कोयला विद्युत उत्पादन और उद्योगों में खपता है; रोज! पिछले कई दशक से मैने थर्मल पावर हाउस जा कर तो नहीं देखे; यद्यपि पहले से कुछ बेहतर हुये होंगे प्लॉण्ट-लोड-फैक्टर में; पर उनमें इतना कोयला जल कर कितनी कार्बन/सल्फर की गैसें बनाता होगा – कल्पनातीत है। अगर कोयले का यह प्रयोग भारत की बढ़ती ऊर्जा आवश्यकताओं के साथ बढ़ा तो सही मायने में हम प्रगति नहीं कर पायेंगे।

हम लोगों को रोजगार तो दिला पायेंगे; पर उत्तरोत्तर वे अधिक बीमार और खांसते हुये लोग होंगे।

घर के स्तर पर हम दो प्रकार से पहल कर सकते हैं नॉन-रिन्यूएबल ऊर्जा के संसाधनों पर निर्भरता कम करने में। पहला है ऐसे उपकरणों का प्रयोग करें जो ऊर्जा बचाने वाले हों। बेहत ऊर्जा उपयोग करने वाले उपकरणों का जमाना आने वाला है। इस क्षेत्र में शायद भारत के उपकरण चीन से बेहतर साबित हों। हम बैटरी आर्धारित वाहनों का प्रयोग भी कर सकते हैं – गैसों का उत्सर्जन कम करने को। सौर उपकरण और सोलर कंसंट्रेटर्स का प्रयोग काफी हद तक अक्षय ऊर्जा के दोहन में घरेलू स्तर पर आदमी को जोड़ सकते हैं। 

solar cookerमैं पाता हूं कि सबसे सरल अक्षय ऊर्जा से चलित संयन्त्र है सोलर कूकर (सौर चूल्हा)। यह हमने एक दशक से कुछ पहले खरीदा था। प्रारम्भ में इसे जोश में खूब इस्तेमाल किया। फिर धीरे धीरे जोश समाप्त होता गया। उसका प्रयोग करना काफी नियोजन मांगता है भोजन बनाने की प्रक्रिया में। फटाफट कुकिंग का विचार उसके साथ तालमेल नहीं रख पाता। कालान्तर में सोलर कुकर (सौर चूल्हा) खराब होता गया। उसके रबर पैड बेकार हो गये। काला पेण्ट हमने कई बार उसके तल्ले और बर्तनों के ढ़क्कनों पर किया था। पर धीरे धीरे वह भी बदरंग हो गया। फिर उसका शीशा टूट गया। वह स्टोर में बन्द कर दिया गया।

वह लगभग ६०० रुपये में खरीदा था हमने और ईंधन की कीमत के रूप में उससे कहीं अधिक वसूल कर लिया था। पर अब लगता है कि उसका सतत उपयोग करते रहना चाहिये था हमें।

गांधीजी आज होते तो खादी की तरह जन-जन को सौर चूल्हे से जोड़ना सिखाते।

1021-for-PETRO-web पेट्रोलियम प्राइस पस्त!

१४७ डॉलर प्रति बैरल से ६७ डॉलर पर आ गिरा।  ईरान का क्या हाल है जहां आर्थिक प्रतिबन्धों को बड़ी कुशलता से दरकिनार किया गया है। और यह मूलत पेट्रोलियम के पैसे से हो रहा है। ईराक/लेबनान और इज्राइल-फिलिस्तीनी द्वन्द्व में ईरान को प्रभुता इसी पैसे से मिली है। वहां मुद्रास्फीति ३०% है।

मैं महान नेता अहमदीनेजाद की कार्यकुशलता को ट्रैक करना चाहूंगा। विशेषत: तब, जब पेट्रोलियम कीमतें आगे साल छ महीने कम स्तर पर चलें तो!

पर कम स्तर पर चलेंगी? Doubt

27 comments:

  1. सरजी,
    बडा बुरा हाल है, तेल पस्त है । १९९० के आस पास जब तेल बहुत सस्ता था तो तेल कम्पनियों ने शोध के क्षेत्र में निवेश बहुत कम कर दिया था, जिसका परिणाम हुआ कि आज कच्चे तेल के उत्पादन समबन्धी बहुत सी समस्याओं का हल हमारे पास नहीं है ।

    कल ही अपने एडवाईजर के साथ Schlumberger के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक से बात हुयी और उन्होने कहा कि तेल के अच्छे दामों से जो नये शोध कार्य प्रारम्भ हुये थे वो प्रोजेक्ट्स पानी में न चले जायें । तेल के दाम गिरने से वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों पर होने वाले शोध कार्यों पर भी बहुत प्रतिकूल असर पडेगा क्योंकि अचानक से वो प्रोजेक्टस तेल के मुकाबले मंहगे दिखने लगेंगे ।

    देखिये क्या होता है ।

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  2. गुरुदेव, आज काफी गम्भीर मसला छेड़ दिया है आपने।

    सोलर कूकर तो थोड़ा झंझटी आइटम है, लेकिन सोलर लाईट बहुत अच्छी चीज है। ग्रामीण इलाकों में जहाँ बिजली की आपूर्ति बहुत अनियमित है, वहाँ सौर ऊर्जा वरदान, बल्कि एकमात्र समाधान हो सकती है।

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  3. जितना कहा, काफी भी है मगर मसला ज्यादा गंभीर है// कोल्डारिन से हल न होगी यह खांसी..वजह कोई और है.

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  4. थरमल पावर प्लाण्ट से ईरान तक की ज्ञानदार यात्रा!

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  5. अपरंपरागत उर्जा स्त्रोत ही भविष्य है। तेल के बाजार ही हालत और खराब हो सकती है यदि बराक ओबामा जनवरी में चुन कर आते है और अपने कहे अनुसार दस सालों में मध्य एशिया के तेल पर अमेरिकी निर्भरता को खत्म करने का वादा पूरा कर दिखाते हैं।

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  6. ऊर्जा के नए स्रोत तो तलाशने ही होंगे। सौर ऊर्जा का सब से अच्छा तो जैव ऊर्जा है। लकडी और लकड़ी का कोयला। वनस्पतियाँ सौर ऊर्जा को ही वहाँ एकत्र कर देती हैं। बस कमी इस नियोजन की है कि हम जरूरत के मुताबिक लकड़ियों के उत्पादन की योजना बनाएँ। जंगल जो इन के कारखाने हैं उन्हें नष्ट होने से बचाएँ।

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  7. सोलर चूल्हे के तो सबके यहाँ आप जैसे ही हाल हुए हैं ! बहुत झंझटी काम था वो ! आज के जमाने में महिलाओं के भी पास समय नही है ! पुरूष उस पर हमारी तरह कभी शौकिया हाथ आजमा ले , ये अलग बात है ! हाँ मैं सोचता हूँ की अगर संयुक्त परिवार होते तो ये सौर चुल्हा बिल्कुल सफल होता !

    पेट्रोल के बाबद आपने बिल्कुल सही चिंता दिखाई है ! ये वो जिन् है जो ऊपर या नीचे , दोनों तरफ़ ही प्रभावित करता है !
    बहुत शुभकामनाएं !

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  8. सरजी जिन घरों में छत नहीं ना है वहां सौर चूल्हे कईसे काम करेंगे। कुछ इस टाइप की शोध वगैरह कहीं हो रही है क्या। महानगरों में बालकनी तक का मामला है, छत अपनी ना है। वहां किस टाइप के सौर चूल्हे बनेंगे। दिल्ली के एक सज्जन ने सौर टार्च बना ली है, पर वह दो हजार रुपये की है। कुछ सस्ती वगैरह का जुगाड़ हो तो बताइये।
    कच्चे तेल के भाव फिलहाल तो गिरायमान हैं। अमेरिका में तेल की खपत 1999 के लेवल पर पहुंच ली है। विश्व के सबसे बड़े तेल पीऊ राष्ट्र की हालत खराब है, सो तेल फिलहाल तो डाऊन रहेगा। ऐसा माना जा सकता है।

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  9. समय आ गया है गैर पारंपरिक ऊर्जा के इस्तेमाल पर विचार करना ही पडेगा।

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  10. ऊर्जा का गैरपरंपरागत स्रोत ही भवि‍ष्‍य का वि‍कल्‍प है- यह आप सभी ने सही सुझाया है मगर इसे लोकप्रि‍य बनाने के लि‍ए इसे यूजर फ्रैंडली होना जरूरी होगा, साथ ही कीमत भी कम होनी चाहि‍ए।

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  11. सामयिक लेख है। ऊर्जा की बढ़ती आवश्यकताओं के कारण अब अपारंपरिक स्रोतों के दोहन की क्षमता के विकास का समय आ गया है। विकसित देशों की ओर ताकने की आदत छोड कर हमें इस क्षेत्र में पहल करनी ही होगी।

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  12. अभी सौर कूकर 2500 का पड़ रहा है, कीमत कम हो और जागृति आए तो देश का कम पैसा फालतू सोच वाले देशों में जाने से बचे.

    राजस्थान में सौर व पवन उर्जा के लिए जबरदस्त सम्भावनाएं है. बाकि देश में भी छह से आठ महिने सौर कूकर का उपयोग हो सकता है. शहरों में समस्या रहेगी.

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  13. आज बाज़ार में सौर उर्जा से चलने वाले कई यंत्र आ गये है जिन्हे बहुत आसानी से उपयोग में लाया जा सकता है.. परंतु इनकी कीमत अधिक होने से ये आमा आदमी की पहुँच में नही है..

    सर्दियो में पानी गर्म करने के लिए विध्युत गीजर के स्थान पर सौर उर्जा से चलने वाला गीजर बहुत बढ़िया विकल्प है.. हालाँकि इसके लिए दुगने दाम चुकाने पड़ेंगे..

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  14. सोलर चूल्हा जब हमारे घर आया था तो बड़ा झंझटी हुआ करता था उसका उपयोग. अगर इसे सरल और अधिक उपयोगी बनाया जा सके तो हमारे देश में जहाँ सूरज इतना चिढा हुआ सा नजर आता है कुछ उर्जा की बचत ही होगी.

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  15. मेरे अनुभवों।

    बेंगळूरु में मेरा अपना २००० वर्ग फ़ुट का अपना मकान है। छ्त भी ही जहाँ सूरज की किरणें बिना कोई बाधा के, ६ से सात घंटे उपलब्ध हैं।

    १) Solar Water Heater
    कामयाब रहा। ८००० रुपये की पूंजी लगाई थी, १९९० में। आज तक ठीक काम कर रहा है। बिजली पर खर्च आधा हुआ और तीन चार सालों में मुझे मेरी पूँजी वापस मिल गई।

    २) Solar cooker: 1992 में खरीदी थी। Flop हुआ। चार पाँच घंटे इनतज़ार कौन करेगा खाना तैयार होने में। बीवी ground floor (जहाँ रसोई घर स्थित है) से second floor छत तक चढ़ने के लिए तैयार नहीं थी। मुझे भेजती थी! जाओ देखो कुछ पका है के नहीं। बादलों ने भी परेशान कर दिया। बेंगळूरु में साल में एक दो महीने छोडकर धूप की तेज़ी पर्याप्त नहीं थी। कुछ साल पडा रहा छत पर और बाद में कबाड़ीवाले के हाथ बेच दिया।

    ३) Solar lighting: दिन में तीन चार घंटों तक load shedding के कारण, तीन चार महीनों से सोच रहा हूँ इस के बारे में लेकिन निर्णय नहीं ले पा रहा हूँ। ३२००० का खर्च होगा और ६ बल्ब (११ watts का) जला सकता हूँ दिन में पाँच घंटों के लिए।
    २२००० में भी काम चल सकता है लेकिन केवल ३ या चार बल्ब (केवल ७ watts के ) जला सकेंगे।


    ४) Solar charging for my Reva car: काफ़ी बहस चली थी इस के बारे में रेवा वालों से। एक विशेषज्ञ से भी मिला था। उसने कहा feasible तो है लेकिन आठ लाख का खर्च होगा! अब केवल महीने में ५०० रुपये में काम चल जाता है। कौन पागल ८ लाख खर्च करेगा महीने में पाँच सौ रुपये बचाने के लिए?

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  16. सौर कुकर खरीदने की तो मेरी भी बड़ी इच्छा रही है, पर इसके दाम ही इतने ज्यादा है कि खरीद नहीं पाये, और फिर जिन लोगों ने इसे अपनाया है उनके अनुभव कुछ खास नहीं रहे, मेरे जानकारों के भी और टिप्पणीकर्ताओं के भी!

    वैसे जब तेल की कीमतें इतनी कम हो रही है तो हमारें यहाँ उसका असर क्यों नहिं पड़ रहा, मतलब पेट्रोल की कीमतें कम क्यों नहीं हो रही?

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  17. तेल कोयले से मामला प्रदुषण के साथ भी ज्यादा दिन तक नहीं चल सकता... नए उपाय तो लाने ही पड़ेंगे.

    अब इस घोर मंदी में खपत कम होगी तो कीमत भी कम होगी, आज ओपेक ने उत्पादन में कटौती की है पर इसका असर भी छोटे समय के लिए होगा... असली karan तो मंदी ही है.

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  18. उर्जाश्रोत के नए विकल्प प्रयोग में आने ही चाहिए,नही तो तेजी से व्यवहृत हो रहे प्राकृतिक संसाधनों के भण्डार के क्षय की बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी हमें.

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  19. वाह आज तो बचत योजना पर बात चल रही है, बहुत सुन्दर, अब धीरे धीरे LED लाईट के बल्ब आ रहि है जो अभी तो काफ़ी महंगे है, लेकिन धीरे धीरे यह सस्ते हो जायेगे, ओर इन का खर्च आम बलबो से ९५% कम है, ओर लाईट भी ज्यादा ओर इन बल्बो की लाईफ़ भी दुसरे किसी बल के मुकाबले १००% ज्यादा, यानि पुरे घर मै रोशनी करो खर्च (बिजली का) करीब १० से २० रुपये, ओर सन २०१४ से आप के नर्मल बलब बन्नए ही बन्द हो जायेगे फ़िर सिर्फ़ LED बल्ब ही मिलेगे.
    किचन को पानी गर्म करने के लिये G Vishwanath जी क ओर बाकी अन्य दोस्तो की टिपण्णीयां भी अच्छी है,
    धन्यवाद

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  20. विश्वनाथ जी के अनुभव रोचक लगे
    ..विकल्पोँ की खोज + आजमाइश जारी रहेगी ऐसा लगता है
    परिवार के सभी के सँग दीपावली का त्योहार सेलीब्रेट कीजै यही शुभकाँक्षा है
    स्नेह सहित --
    - लावण्या

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  21. लगता है मेरे और आपके सौर चूल्हे की कहानी समांतर चलती रही बिल्कुल एक ही जैसी !

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  22. सौर जल उष्मक जैसा विश्वनाथ जी नें कहा सबसे उपयोगी और सफल रहा है।फ्लैट्स में भी आसानीं से लग सकता है। सौर चूल्हे की बनी खीर बहुत स्वादिष्ट होती है।

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  23. सौर चूल्हा - सुनने में कितना अच्छा लगता है, पर गुनने लायक खूबियाँ कुछ कम लगती हैं।

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  24. मुझे लगता है कि लगभग सभी लोगों का अनुभव सौर पकावक के साथ कुछ ऐसा ही होगा. हमारे यहाँ ये कच्ची मूंगफली को भूनने और स्टोर करने के ही काम आ रहा है.

    OPEC देशों ने पेट्रोलियम उत्पादन में कमी करने की मंशा जताई है जिससे गिरते दाम काबू किए जा सकें. वैसे भी डॉलर के मुकाबले रूपये के और कमजोर होने से कम से कम आम जनता तक दामों में कमी नहीं पहुँचने वाली.

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  25. सोलर कुकर सचमुच में उत्‍कृष्‍ट उपकरण है लेकिन एक तो मंहगा और दूसरा - वहीं, धूप न मिलने की कठिनाई । मेरी पत्‍नी सरकारी नौकरी में है । सोलर कुकर ने उसकी बहुत सहायता की - मानो रसोइया रख लिया हो । अब जहां मकान बनाया है वहां आंगन में धूप नहीं मिलती और छत तीसरी मंजिल पर चली गई है । इतनी सीढियां कौन चढे ।

    यदि विश्‍वनाथजी यह टिप्‍पणी पढें तो एक सलाह प्रदान करें । पानी गरम करने के लिए मैं भी सोलर हीटर लगाना चाहता हूं । लेकिन मेरे अंचल के लोगों का अनुभव बहुत अच्‍छा नहीं है । उसकी नलियों में जल्‍दी ही 'स्‍केल' आ जाता है और पहले तो पानी आने की गति धीमी होती है,बाद में पानी आना बन्‍द हो जाता है । इसका कोई स्‍थायी निदान (कि 'स्‍केलिंग' न हो) स‍म्‍भव हो तो बताएं ।

    आपकी पोस्‍ट इस बार 'जनोपयोगी' और 'सामयिक' रही ।

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  26. विष्णु बैरागीजी,

    मैंने आपकी टिप्पणी शनिवार रात को दस बजे के बाद ही देखी।
    समस्या solar heater में नहीं, आपके इलाके का पानी में है।
    calcium carbonate, जो ठंडे पानी में घुला मिला रहता है, वही गरम पानी में कम soluble होता है और धीरे धीरे scale बनकर पानी को ठीक से बहने नहीं देता।
    यह एक Chemical engineering की पुरानी समस्या है और boilers में भी पायी जाती है।
    समाधान औद्योगिक क्रियाओं के लिए ढूंढे गए हैं जो हमारे लिए बहुत ही महंगा साबित होगा।
    इस विषय में मेरी जानकारी बहुत कम है। मैं यहाँ वहाँ पूछताछ करूँगा और यदि कुछ अच्छी और उपयोगी जानकारी मिली जो हमारी इस समस्या के लिए उपयुक्त हो तो आप को बता दूँगा।
    फ़िलहाल, मेरा सुझाव है की pipe diameter जरूरत से कुछ ज्यादा हो, पाईप को दीवारों के अन्दर न गाढें (भले ही देखने में बुरा लगे), ताकि पुराने पाइप को निकालकर कुछ सालों के बाद नये पाईप फ़िट करने में सहूलियत हो। लेकिन पाईप को बदलने में काफ़ी खर्च होगा। लगता है solar water heater आपके लिए किफ़ायती नहीं होगा।
    बेंगळूरु में ऐसी कोई समस्या नहीं। कावेरी का पानी एकदम soft होता है।

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  27. ज्ञान जी मसला बिल्कुल सही है...समस्या बढ़नी ही घटनी नहीं ..इसलिए वैकल्पिक उर्जा के क्षेत्र में योजनाबद्ध ढंग से शोध और प्रबंधन को बढ़ावा देना होगा. यही आज की आवश्यकता है और कल के लिए दूरदर्शिता. सोलर चूल्हा या इस तरह गैर परंपरागत उर्जा से जुड़े सभी उपकरणों का मंहगा, झंझटी और कुछ कुछ आज की स्थिति में अनुपयुक्त होना स्वाभाविक है...इसमें और अधिक "ऊर्जा" के साथ शोध की जरुरत है.....हम अपने सुविधा के अनुसार उपकरण बनने में माहिर हैं...शीघ्र ही बदला हुआ उपकरण परिदृश्य सामने आएगा...ऐसी आशा है.

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--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय