Saturday, October 18, 2008

ब्लॉग पर यातायात - फुटकर सोच


मानसिक हलचल पर सर्च-इन्जन द्वारा, सीधे, या अन्य ब्लॉग/साइट्स से आने का यातायात बढ़ा है। पर अभी भी फीड एग्रेगेटरों की सशक्त भूमिका बनी हुई है। लगभग एक चौथाई क्लिक्स फीड एग्रेगेटरों के माध्यम से बनी है।

मैं फीड संवर्धन की कोई स्ट्रेटेजी नहीं सोच पाता और न ही हिन्दी ब्लॉगरी में मीडियम टर्म में फीड एग्रेगेटरों का कोई विकल्प देखता हूं। सर्च इंजन (मुख्यत: गूगल) पर प्रभावी होने के लिये कुछ वाक्य/शब्द अंग्रेजी में होने चाहियें (वास्तव में?)। पर अब, हिन्दी में अधिक लिखने के कारण लगता है, अंग्रेजी में लिखना हिन्दी की पूअर-कॉपी न हो जाये। और वह बदरंग लगेगा; सो अलग!

फीड एग्रेगेटर मैनेजमेंट भी ठीक से नहीं कर पाता। न मेरी फीड में आकर्षक शब्द होते हैं और न मेरी पोस्ट की "पसंदगी" ही जुगाड हो पाती है। निश्चय ही मेरी पोस्ट घण्टा दो घण्टा पहले पन्ने पर जगह पाती होगी एग्रेगेटरों के। उतनी देर में कितने लोग देख पाते होंगे और कितने उसे प्रसारित करते होंगे। पोस्टों को लिंक करने की परंपरा जड़ नहीं पकड़ पाई है हिन्दी में। ले दे कर विभिन्न विचारवादी कबीले पनप रहे हैं (जिनमें उस कबीले वाले "दारुजोषित की नाईं" चक्कर लगाते रहते हैं) या लोग मात्र टिप्पणियां गिने जा रहे हैं। घणा फ्रस्ट्रेटिंग है यह सब।

लिहाजा जैसे ठेला जा रहा है – वैसे चलेगा। फुरसतिया की एंगुलर (angular) चिठ्ठाचर्चा के बावजूद हिन्दी भाषा की सेवा में तन-मन (धन नहीं) लगाना जारी रखना होगा! और वह अपने को अभिव्यक्त करने की इच्छा और आप सब की टिप्पणियों की प्रचुरता-पौष्टिकता के बल पर होगा।  

Blog Traffic
इस पाई-चार्ट में मेरे अपने आई-पी पतों से होने वाले क्लिक्स बाधित हैं।

ओइसे, एक जन्नाटेदार आइडिया मालुम भवाबा। ब्लॉग ट्राफिक बढ़ावइ बदे, हमरे जइसा “उदात्त हिन्दूवादी” रोज भिगोइ क पनही चार दाईं बिना नागा हिन्दू धरम के मारइ त चार दिना में बलाग हिटियाइ जाइ! (वैसे एक जन्नाटेदार आइडिया पता चला है ब्लॉग पर यातायत बढ़ाने के लिये। हमारे जैसा "उदात्त हिन्दूवादी" रोज जूता भिगा कर चार बार बिना नागा हिन्दू धर्म को मारे तो ब्लॉग हिट हो जाये!)
Beating A Dead Horse 2


40 comments:

  1. पाई चार्ट काफी अच्छा है |

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  2. इतने चिन्तन मंथन की क्या आवश्यक्ता आन पड़ी??

    आप त यूँ ही टॉप पर हैं, और कहाँ जाना चाहते हैं जी?

    आप क्रीम हैं..दूध भरता जायेगा..क्रीम उपर तैरती रहेगी!!

    अनेकों शुभकामनाऐं.

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  3. ये बात कुछ अटपटी लग रही है कि अपने ब्लॉग पर हिंदू धर्म पर दोषारोपण करो तो ब्लॉग हिट हो जायेगा। अभी परसों ही सुरेश चिपलूणकर के ब्लॉग पर कुछ ईसी तरह का लेख था.....हांलाकि उसमे लिखी काफी बातों से मैं सहमत हूं कि जो लोग हिंदू धर्म के खिलाफ बोलते या लिखते हैं उन्हें मिडियॉकर के रूप मे आसानी से मान लिया जाता है औऱ उन्हे स्टूडियो या चैनल मे खूब बुलाया जाता है...पर फिर भी असहमति का पक्ष मेरी ओर से बना हुआ है कि सिर्फ हिंदू धर्म के खिलाफ लिखने भर से हिट होने के चांसेस हैं।
    वैसे ये पोस्ट पढ कर मैं अब कुछ असमंजस मे हूँ... क्योंकि अपनी आज की पोस्ट में करवा चौथ या नवरात्रि व्रत के नाम पर लोगों के द्वारा ऑफिस में नंगे पैर पहुँचने के मुद्दे पर लिखने जा रहा था कि तभी ये पोस्ट पढ ली। अब सोच रहा हूँ लिखूँ या न लिखूँ :)

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  4. कुछ को तो ये भी नसीब नहीं ज्ञानदत जी।

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  5. ब्लॉग ट्राफिक बढ़ावइ बदे, हमरे जइसा “उदात्त हिन्दूवादी” रोज भिगोइ क पनही चार दाईं बिना नागा हिन्दू धरम के मारइ त चार दिना में बलाग हिटियाइ जाइ!

    ऊ फ़िर चारै दिना रही। यहिके बाद मुंह भरे गिरि जाई।

    ऐसा है कि हर बात से उसका पुछल्ला भी साथ चलता है। जैसे चार की चांदनी उसके साथ फ़िर अंधेरी रात।

    ऐसे ही चार दिन में हिट फ़िर दो दिन में चित।

    वैसे ज्ञानजी ऊ वाला आइडिया जो आपने अपनाया पिछलकी पोस्ट में कि अरुण कुमार वाला झन्नाटेदार कमेंट जुगाड़ा ऊ भी कम धांसू नहीं है। वो कैसे मैनेज किया आपने? अपनी कविता को कैसे कूड़ा कहलवाया अरुणजी से? जो भी है बड़े भले जीव हैं। आपको वैकल्पिक रोजदार सुझा रहे हैं। आप उनको धन्यवाद भी नहीं दे रहे। यह अच्छी बात नहीं है!

    और समीरलाल जी की बात से कित्ते मुदित-प्रमुदित हुये जरा खुलासा करिये अपनी एक पोस्ट में-आप क्रीम हैं..दूध भरता जायेगा..क्रीम उपर तैरती रहेगी!! वैसे एक बात है कि समीरलाल जी बहादुर आदमी हैं। डरते नहीं तारीफ़ करने में।

    अल्लेव लिंकिंग-क्रासलिंकिग तो रह ही गयी। लिकिंग करने की परंपरा इसलिये नहीं कि काफ़ी लोगों को इसके महत्व की जानकारी ही नहीं। हमी को नहीं है-खाली लगा लेते हैं।

    सबसे जरूरी और शनीचरी बात अंत में। आपने लिखा न! अंग्रेजी में लिखना हिन्दी की पूअर-कॉपी न हो जाये। और वह बदरंग लगेगा; सो अलग! आजकल कापियर बहुत अच्छे आ रहे हैं। एकदम डिट्टो कापी करते हैं। बदरंग लगेगा अगर मूलप्रति वैसी होगी। और इसी बात पर पेशे खिदमत एक शेर-
    साफ़ आइनों में चेहरे भी नजर आये हैं साफ़
    धुंधला चेहरा हो तो आईना भी धुंधला चाहिये।

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  6. आप के ब्लोग पारा आपके आलेख पढ़ने लोग बराबर
    आते रहते हैं हमने तो यही देखा है ~~

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  7. बहुत अच्छी पोस्ट !

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  8. संकट यह है कि तमाम लोग हिन्दू को एक धर्म मानने लगे हैं। यह धर्म से बढ़ कर है, एक ऐसी जीवन शैली है जिस में अनेक धर्म, पंथ स्थान पाते हैं और व्यक्ति भी। इसे धर्म कह कर इस का निम्न मूल्यांकन किया जाता रहा है।
    कोई घर का या पड़ौसी आप की पतलून की फ्लाई की चैन खुली देख कर आप को बता देता है कि आप उसे बंद कर लें तो उसे जूता मारना कहें तो आप की इच्छा। अच्छा तो यह कि हम उसे खुली न छोड़े और सावधानी पूर्वक बंद करने की आदत डालें।

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  9. गुरु जी कभी-कभी आप कंफ़्यूसिया देते है। हम जैसे लोग जो आपके पिछे चल रहे हैं जब तक हिन्दू धर्म को गाली बकने की प्रेक्टिस कर पायेंगे आप फ़िर नया आइडिया पट्क दोगे।वैसे बात लिखी सही है आपने ये आंकडेबाजी पर अपन को भी ध्यान देना पडेगा लगता है।

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  10. पोस्ट और अद्यावधि टिप्पणियां पढी -कुछ जिज्ञासा -भारी चीजें जब नीचे बैठती हैं तो क्रीम सतह पर क्यों ? इसका मायने वह भारी नहीं ? यह छुपा व्यंग ? अनूप जी ने अच्छा सावधान किया -हिन्दूधर्म पर ऐड हाक कुछ मत लिखियेगा -आपको जरूरत भी नही है !

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  11. जनवरी तक मुझे 80% ट्रैफिक एग्रीगेटर से ही मिलता था.. पर अब मुझे 20% भी नहीं मिलता है.. हां मैं यह तो अवश्य करता हूं कि पहला पारा में लुभाने वाले शब्द जरूर हों जिससे एग्रीगेटर से ज्यादा लोग पढने आयें..
    अरे सर अगर आप जैसे लोग ऐसा सोचेंगे तो मेरे जैसे छोटे ब्लौगरों का क्या होगा? :)

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  12. दीपावली की हार्दिक शुभ कामनाएं /दीवाली आपको मंगलमय हो /सुख समृद्धि की बृद्धि हो /आपके साहित्य सृजन को देश -विदेश के साहित्यकारों द्वारा सराहा जावे /आप साहित्य सृजन की तपश्चर्या कर सरस्वत्याराधन करते रहें /आपकी रचनाएं जन मानस के अन्तकरण को झंकृत करती रहे और उनके अंतर्मन में स्थान बनाती रहें /आपकी काव्य संरचना बहुजन हिताय ,बहुजन सुखाय हो ,लोक कल्याण व राष्ट्रहित में हो यही प्रार्थना में ईश्वर से करता हूँ ""पढने लायक कुछ लिख जाओ या लिखने लायक कुछ कर जाओ "" कृपा बनाए रखें /

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  13. ब्‍लॉग के ऑंकड़ो की समझ तो नहीं है, लेकि‍न आपको हि‍ट होने के लि‍ए साधारण प्रपंच में पड़ने की जरूरत तो नहीं दि‍खती। आप इसके बि‍ना भी सुपर लि‍खते है।

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  14. Sameerji Aur nitish Raj ki baat se sehmat, mere blog me to 50-60% traffic search se hi aata hai usme se bhi shayad 30% hindi me search karte hue aate hain.

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  15. फीड एग्रीगेटर पर निर्भरता निःसंदेह कम हुई है. गूगल का नया गेजेट भी इसके लिए जिम्मेदार है. लगभग सभी लोगों ने अपने पसंदीदा ब्लॉग्स की सूची अपने ब्लॉग-रोल में लगा रखी है और शायद वहीं से पहुँचते होंगे. मैं ख़ुद एग्रीगेटर पर अब हफ्ते में दो या तीन बार ही जा रहा हूँ, खास तौर पर सिर्फ़ ये जानने के लिए कि कोई नया अच्छा ब्लॉग शुरू हुआ क्या.

    हिन्दी ब्लॉग पर अंग्रेजी के शब्द ट्रैफिक बढ़ने के लिए इस्तेमाल करना उचित नहीं लगता. मुझे लगता है की ये सर्चक के साथ बेईमानी है. अगर कोई अंग्रेजी शब्द से सर्च कर रहा है संभवतः अंग्रेजी में ही पढ़ना चाहता होगा. अंग्रेजी शब्द से सर्च करके हिन्दी ब्लॉग पर आने वाला व्यक्ति कितनी देर वहां रुकता है, इसका भी आँकड़ा हो सके तो बताइयेगा.

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  16. मतबल ये हुवा की लोग-बाग़ आपको भी गुगलिया रहे हैं, ठीक समझे न हम?

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  17. क्या कोई यात्री रफ़्तार (हिन्दी सर्च इंजन) से भी आए?

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  18. @ स्मॉर्ट इण्डियन - "रफ्तार" और "वेबदुनियां" से इक्का-दुक्का आये। लगभग सभी गूगल से (>८०% हिन्दी शब्द सर्च से। कुछ गूगल चित्र सर्च से, कुछ अंग्रेजी शब्द सर्च से, और शेष याहू से)।

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  19. मेरे यहाँ रफ्तार या अन्य खोजी साइट से कोई नहीं आता, यह आश्चर्य की बात है.

    गूगल द्वारा अन्य एग्रीगेटर साइट से ज्यादा लोग आ रहे हैं, मगर खोज-शब्द निराश करने वाले है, लोग कामुक सामग्री खोजते हुए आते है ऐसा लगता है और निराश होते हैं :)

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  20. लीजिए आप फिर टॉप पे आ गये.. जल्दी उतार जाइए कही कोई इल्ज़ाम ना लगा दे की आप टंकी पर चढ़े है..

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  21. ट्रैफिक बढाने के लिए जूतमपैजार करना जरुरी है। आप सह ब्लागरों को मां बहन की गाली देते हुए हेडिंग लगा दें, अंदर माफी मांग लें। विकट मारधाड़ एक समय तक ट्रेफिक को आकर्षित कर सकती है। थो़ड़े समय तक यही चलाइये, फिर आगे कुछ और भी सोचा जा सकता है।

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  22. सच कहूँ तो हमारा टेक्नोलोजीकली ज्ञान बहुत पुअर है ...कितने लोग आए ,गए ,कहाँ से आये ,कहाँ से गये...नही मालूम .. .रेंकिंग .....नो आईडिया ..कभी कोशिश भी नही की .
    हाँ आपकी इस बात से इत्तेफाक है की कुछ लोग जरूर ऐसे विषय बार बार लगातार उठाते है ...जो हिंदू विरोधी है...सिर्फ़ हिट होने के लिए .....

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  23. ज्ञानदा की ज्ञानदा पोस्ट...
    लोग जहां से भी आएं , जिन रास्तों से भी आएं आपको क्या ?
    आप तो ज़ायकेदार पोस्ट तैयार रखिये .....लोग आते रहेंगें...

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  24. बहुत बढिया विषय पर लिखा आपने ! वैसे मेरी समझ में तो लोग अपनी २ पसंद के ब्लॉग की सूची अपने ब्लॉग पर ही रखते हैं और वहीं से ही आते है ! मैं तो निजी रूप से उसी पर निर्भर हूँ ! कभी भी किसी अग्रीगेटर पर गया ही नही !

    "ओइसे, एक जन्नाटेदार आइडिया मालुम भवाबा। ब्लॉग ट्राफिक बढ़ावइ बदे, हमरे जइसा “उदात्त हिन्दूवादी” रोज भिगोइ क पनही चार दाईं बिना नागा हिन्दू धरम के मारइ त चार दिना में बलाग हिटियाइ जाइ!"

    क्या बेहतरीन देशी भाषा की मिठ्ठास है इसमे ! मजा आ गया सर जी ! दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं !

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  25. मेरा अपना अनुभव कहता है कि फीड एग्रीगेटरों पर निर्भरता कम होती जाएगी, मेरा पन्ना पर 75% से ज्यादा पाठक, दूसरे माध्यमों से आते है। इन सबमे गूगल सबसे प्रमुख है। आप अपने ब्लॉग पर जितने पापुलर शब्दों का प्रयोग करेंगे (गाली गलौच नही, लोकप्रिय शब्द), उतने लोग आपके ब्लॉग पर आएंगे (कम से कम गूगल के द्वारा एक बार तो जरुर आएंगे), उसके बाद ये आपके लेखन, विषय, शैली की जिम्मेदारी है कि इस विजिटर को आप नियमित पाठक मे तब्दील कर सकते है अथवा नही।

    वैसे आप इतना अच्छा लिखते है, कि आपको किसी तरह की चिंता करने की जरुरत ही नही। पाठक अपने आप आएंगे, आज नही तो कल।

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  26. हम भी जाके देखते हैं २ महीनों से एनालिटिक्स देखी ही नहीं.

    लेकिन एक बात समझ में नहीं आई पनहीं बोल के गोजी (लाठी) से मार रहे हैं फोटो में :-)

    अभी घर पर था तो एक दिन यूँ हीं बच्चों से पूछ लिया की बताओ पनहीं क्या होता है और फिर ये ... चलो पनहीं छोडो ये बताओ गोजी क्या होता है?

    भाषा बदल रही है और बोलचाल से ये शब्द लुप्त हो रहे हैं... मुझे एक छोटे परिवेश में ये बखूबी दिखा बाकी जगह भी शायद ऐसा हो रहा हो... हम अपने दादाजी की पीढी के लोगों से कई ऐसे शब्द सुनते थे जो अब लुप्त हो गए.

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  27. kisi bhi dharam ko kosne se kuch nahi hoga .dosre dharam ka bhi samman kiya jaye yeh jyada jaruri hai.iska arath yeh nahi ki hum apne dharam ki ninda karne lage.

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  28. @ अभिषेक ओझा - लेकिन एक बात समझ में नहीं आई पनहीं बोल के गोजी (लाठी) से मार रहे हैं फोटो में
    पनहीं (जूता) का स्माइली नहीं मिला। आपके पास हो तो बता दें। रिप्लेस कर दूंगा। तब तक गोजी को पनहीं समझियेगा! :-)

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  29. हिन्दू धर्म के खिलाफ़ लिखने से शायद केवल अपने देश में "हिट्स" में बढोत्तरी होगी।

    बस एक बार इस्लाम के खिलाफ़ लिखकर देखिए क्या होता है।
    विश्व भर में ब्लॉग के "हिट्स" बढेंगे। और बाद में आपको भी "हिट्स" सहने पढेंगे, कट्टरपंथियों से।

    जहाँ तक ट्रैफ़िक की बात है, मेरी राय में केवल वही लोग जो आपके लेखों से परिचित हैं और जो आपके ब्लॉग पढ़ने के लिए सीधे आपके साईट पर आते हैं, उन लोगों की संख्या को महत्ता दी जानी चाहिए।

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  30. लगता है मुझे भी आंकड़े देखने चाहिए..देख कर आती हूँ .

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  31. ज्ञान जी, भाई हम तो दिनेश जी की हां मै ही हां मिलायेगे, ओर फ़िर अगर ज्यादा ही हिट होना है तो भाई जी विश्वानाथ जी की सलाह भी अच्छी है, अरे लब्ली अभी तक आंकडॆ देख कर आई नही,
    धन्यवाद

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  32. आपका पोस्‍ट सहेज लिया गया है ...............

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  33. टिप्पणीया खाने मे नमक की तरह है ज्यादा है तब भी मुश्कील कम है तब भी मुश्कील !!इतना हिट काफ़ी है नही तो लोग आप को हिट करने लगेंगे !!हा हा हा

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  34. ओइसे, एक जन्नाटेदार आइडिया मालुम भवाबा। ब्लॉग ट्राफिक बढ़ावइ बदे, हमरे जइसा “उदात्त हिन्दूवादी” रोज भिगोइ क पनही चार दाईं बिना नागा हिन्दू धरम के मारइ त चार दिना में बलाग हिटियाइ जाइ! (वैसे एक जन्नाटेदार आइडिया पता चला है ब्लॉग पर यातायत बढ़ाने के लिये। हमारे जैसा "उदात्त हिन्दूवादी" रोज जूता भिगा कर चार बार बिना नागा हिन्दू धर्म को मारे तो ब्लॉग हिट हो जाये!)

    फ़िर हमारे जैसे लोग जो (कम्यूनिस्ट + आर.आर.अस. शाखा वाले दोनों हैं) क्या सोचकर टिपियायेंगे ? हमें धर्म संकट में न डालें ।

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  35. ये एग्रीगेटर क्‍या होता है और इनके जरिए ब्‍लाग पर कैसे कोई आता है ।
    जो जितना कम जानता है, उतना ही सुखी रहता है । लेकिन आपकी पोस्‍ट पढ कर लग रहा है कि इस क्षेत्र की जानकारी और बढानी चाहिए । रतलाम इस मामले में रेगिस्‍तान बन गया है । रविजी थे, वे भोपाल चले गए ।
    अब किससे जानें, किससे पूछें - सूझ नहीं पडता ।
    विषय की जानकारी न होने से आपकी पोस्‍ट पल्‍ले ही नहीं पडी ।

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  36. ऎ गुरु जी, आप इतने आत्ममुग्ध क्यों रहा करते हो ?
    यह तो यह इंगित कर रहा है, " चिट्ठालेखक रूग्णो वा शरीरेन वा मनसा वा "
    इस तरह की यातायात विश्लेषण से आख़िर सिद्ध ही क्या हो रहा है, मुझ मूढ़मति को इतने सुजान टिप्पणीकर्ताओं के मध्य प्रतिवाद न करना चाहिये क्या ?
    एक ब्लागिये को उलझाये रखने के लिये यह अमेरीकन लालीपाप है, क्या फ़र्क पड़ता है
    कितने आये, किधर से आये, कितनी देर टिके, दुबारा आये, यूनिक ( ? ) आगंतुक कितने रहे ?
    रही हिन्दूविरोधी बीन बजाने पर ज़्यादा भीड़ खड़ी हो जायेगी..
    तो यह सूचना सविताभाभी के लिये अधिक उपयोगी हो सकती है, यदि एक्टिव व पैसिव
    सब्जेक्ट्स की अदला बदली दोनों धर्मों के चरित्रों से करती रहें..
    पर, उनकी यहाँ की ट्रैफ़िक को इस जन्म में छू भी नहीं सकते
    तो क्या ट्रैफ़िक मोह में हमें भी ऎसा कु्छ अपनाना चाहिये , यदि हाँ तो जुगाड़ भिड़ाइये !
    हम आपके साथ हैं, दिनेश जी बिल्कुल काँटे की बात कह गये हों तो क्या..
    हम उनको मना लेंगे, आप यह टिप्पणी भी माडरेट कर जाओ तो भी कोई वांदा नहीं,
    अब वैसे भी यहाँ आने का मन नहीं करता ! बाई द वे आज एक एग्रीगेटर ही फ़ुसला कर ले आया है, ' चलो चलो, वहाँ कोई बड़ा तमाशा चल रहा है, दो ढाई दर्ज़न आदमी जुटे झख लड़ा रहे हैं ।' देखो भाई लोगों, यदि पोस्ट पढ़ा है तो टीपियाऊँगा अवश्य, यह अनर्गल ही सही किन्तु अनर्गल होने का कोई कारण भी तो होता होगा, न्यूटन की मानें तो ?

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  37. 'अभी तो कर्म किए जा फल की इच्छा न रख'...की बात हम हिन्दवी लोगों पर लागू होती है. लेकिन ऐसी चर्चा होते रहने से कुछ सार्थक विचार आयेंगे और फ़िर उस पर अमल भी होगा. कब तक भागेगी......मंजिले मक़सूद हमसे. आप तो ज्ञान देते रहें.

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  38. apan to bas typist hain.jo aaya likhta gaya.
    na charcha ki fikr na hit na honeki bukhar.

    khair dawat qabul kar lijiye ik bewaqufi ki hai.
    musalman jazbati hona chhoden

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  39. गुरुदेव, मैने तो इस जोड़ घटाना को समझ पाने में अपने आप को अक्षम मानते हुए सिर खपाना बन्द ही कर दिया है। सोचता हूँ सन्तोष का मीठा फल चखता रहूँ। :)

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  40. ये लो, मैं ये चालिस्वां आदमी हो गया, जो आपको सलाह और सांत्वना दे रहा हूँ.

    ट्रैफिक बढ़ाना है. आख़िर क्यों भाई.. इतनी बेचैनी काहे को? अब आप कोई साबुन तेल तो बेचते नहीं हैं कि ज्यादा लोग आयेंगे तो आपको खूब फायदा होगा...

    अब आप अपने कटहल के बारे में लिखते हैं, फिर भी लोग आके उसका हाल चाल पूछ लेते हैं ... अब आख़िर क्या चाहते हैं, जान लेंगे क्या ...

    यहाँ किसी के पास अपनी जिंदगी के लिए फुर्सत नहीं है और आप हैं कि बस अपनी मानसिक हलचल की वजह से चिंतित हैं.

    बस अब बस करिए.. मजा करिए.. मस्त रहिये...

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--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय