Wednesday, October 8, 2008

मैकदोनाल्द में देसी बच्चे


चार थे वे। आइसक्रीम ले कर काउण्टर से ज्यादा दूर चल कर सीट तलाशने का आत्मविश्वास नहीं था उनमें। सबसे नजदीक की खाली दो की सीट पर चारों बैठे सहमी दृष्टि से आस-पास देखते आइस्क्रीम खा रहे थे।

मैं आशा करता हूं कि अगली बार भी वे वहां जायेंगे, बेहतर आत्मविश्वास के साथ। मैकदोनाल्द का वातावरण उन्हें इन्टीमिडेट (आतंकित) नहीं करेगा। 


माइक्रोपोस्ट? बिल्कुल! इससे ज्यादा माइक्रो मेरे बस की नहीं!
ज्यादा पढ़ने की श्रद्धा हो तो यह वाली पुरानी पोस्ट - "बॉस, जरा ऑथर और पब्लिशर का नाम बताना?" देखें!
@@@

सुना है सिंगूर से साणद सादर ढो ले गये टाटा मोटर्स को गुजराती भाई।Ha Ha


29 comments:

  1. बहुत गजब लिखा है. मुझे याद आया वो दिन, जब बम्बई में पहली बार फाईव स्टार में गया था एक दोस्त के साथ बीयर पीने. ऐसा ही तो दिख रहा था मैं-शायद थोड़ा और मोटा. :)

    आप एक अति संवेदनशील हृदय के मालिक है...ईश्वर करे इस धड़कन की धुन यूँ ही बजती रहे...कभी सुर से अलग न हो!!

    साधुवाद!!!

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  2. घटनाओं पर माईक्रो नजर.....और उस पर एक माईक्रोपोस्ट..वाह।

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  3. भारत के भविष्य को मेरी शुभकामनाएं!

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  4. माईक्रोपोस्ट..वाह!
    क्या नजर है ?
    सहमत है भइया!
    अरे हमारी भी हिम्मत कभी कभी नहीं पड़ती है
    बड़ी शीशे वाली दुकानों में , .....

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  5. चार थे वे
    आइसक्रीम ले
    काउण्टर से ज्यादा दूर
    सीट तलाशने का आत्मविश्वास नहीं था उनमें।
    सबसे नजदीक की खाली दो की सीट पर
    बैठे चारों
    सहमी दृष्टि से आस-पास देखते
    खा आइस्क्रीम रहे थे।

    अगली बार भी वे आयेंगे वहां
    बेहतर आत्मविश्वास के साथ
    आतंकित नहीं करेगा
    मैकदोनाल्द का वातावरण
    उन्हें तब।

    माइक्रो पोस्ट?
    आप कविता करने लगे हैं।

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  6. मुझे याद आता जब हम लोगों का ग्रुप पहली बार भोपाल में खाना खाने होटल में गया था | खाना खाने के बाद होटल में कटोरी में गर्म पानी तथा एक साबुन पानी में भीगा नेपकिन दिया | मेरे मित्र ने उस पानी को पी लिया :) बाद में हमने उसे बताया अबे वो पानी हाथ धोने के लिए था | हमने अपने मित्र का काफी दिन तक मज़ा लिया | ग्रुप में कुछ कन्याएं भी थी अच्छा हुआ उन्होंने थोड़ा इंतजार किया | अन्यथा मुझे पता था की कुछ ऐसी यादें और जुड़ती |

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  7. बहुत संवेदनशील और पैनी नजर है आपकी ! आपकी ये माइक्रो पोस्ट नही आज इसको कविता-पोस्ट कहना पडेगा ! शुभकामनाएं !

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  8. आईस्क्रीम खा रहे थे, और वह भी मैक्डॉनल्ड जैसी जगह पर?
    यह देखकर प्रसन्न होता हूँ।
    कम से कम बाल श्रमिक तो नहीं थे?
    यहाँ ऐसे लडकों को रास्ते के होटलों में मेज़ साफ़ करते देखे जा सकते हैं।
    =====================
    पुराना पोस्ट भी पढा।
    बॉस, जरा नौटियाल का असली नाम बताना!

    उसी पोस्ट पर प्रियंकरजी ने टिप्पणी में लिखा था:
    "भैंस के आगे बीन बजाना"
    बहुत दिनों से "Casting pearls before swine" का सही हिन्दी अनुवाद ढूँढ रहा था। आज मिल गया।
    =====================

    सानन्द से नैनो निकलेगी: आनन्द महसूस होता है।
    सही निर्णय लिया टाटाने।
    कर्नाटक सरकार ने भी उन्हें आमण्त्रित किया था।
    येदियूरप्पा तो भले आदमी हैं लेकिन विधान सभा में सीटों की कमीं है।
    बंगाल में ममताने जो किया, वही यहाँ देवेगौड़ा कर सकते थे और येदियूरप्पा का वही हाल हो सकता था जो बुद्धदेवजी का बंगाल में हुआ।
    अच्छा हुआ टाटा यहाँ नहीं आए।

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  9. भई, फोटू ने ही सारी बात कह दी। आप तो फोटोग्राफर बन लीजिये। एलजी का क्विटी नामक मोबाइल ले लीजिये, इसमें भौत अच्छी क्वालिटी का कैमरा बताते हैं। दिये जाइये दनादन। सिटी बैंक, या किसी अमेरिकन बैंक, या अब तो भारतीय निजी बैंकों में जाते हुए भी कभी कभार घबराहट होती है, विकट आतंककारी माहौल होता है, फूं फां टाइप। हालांकि अमेरिका के बैठने के बाद यह आतंक खत्म हो गया है जी।

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  10. अभी उस दिन का किस्सा बयां करता हूँ -बनारस के माल में मक्दोनाल्ड का बर्गर खा रहा था -अभिजातों वाली क्षद्म वाली मुखमुद्रा में ! एक सी अर्चिन न जाने कहाँ से नमूदार हुआ -नए कपडों में बन ठन कर -पर दांत और मिची मिची आँखें पोल खोल दे रही थी -उसने एक बर्गर की फरमाईश की -अब क्या किया जाय -लगा सारा रेस्तरां मेरी और ही देख रहा है -अभिजात्य होने की कीमत चुकाई उसके लिए भी २० रूपये का बर्गर मगा कर -बैरा शायद मुस्कराया भी था -पर बड़ी कोफ्त हुयी बाद में फिर उसे किसी और से वैसे ही पेश आते हुए -वह प्रोफेसनल था .....
    बच के रहना रे बाबा !

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  11. मेरी ओर से माइक्रो बधाई,झन्नाटेदार पोस्ट्।

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  12. कमेट पढने में भी मजा आया और पोस्ट पढने में भी..
    दिनेश सर ने तो आपकी पोस्ट को कविता का ही रूप दे डाला.. बढ़िया रहा..
    विश्वनाथ सर ने भी सही कहा की कम से कम बाल-श्रमिक तो नहीं थे..
    आलोक जी ने भी सही पह्रामाया.. आप फोटोग्राफर बन ही जाइए.. एस एक आर कैमरा खरीद लीजिये.. बस 500$ से शुरू होती है.. १२ मेगा पिक्सेल की.. :)
    कई लोग अपने-अपने अनुभव साथ लेते आये..

    अब मैं भी बताता चलता हूँ.. मैं किसी बड़े मॉल में जाता हूँ तो सबसे ज्यादा इसी तरह की चीजों पर ध्यान देता हूँ.. कुल मिला कर बहुत अच्छा माईक्रो पोस्ट थी..

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  13. bahut accha lekh
    agar wqat ho to humare dustbin me thuk ke janye
    regards

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  14. सस्ता है ज्यादा महंगा नही ,ऐ सी में बैठना ओर नाम भी बड़ा ....इसलिए आलू की टिक्की वहां खाइये .. पर उन्हें कितनी खुशी मिली होगी ओर कई दिनों तक ये हम ओर आप सोच नही सकते

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  15. बहुत ही सुन्दर रचना.अब जो मैक्डॉनल्ड मै जाये गे वो तो नौटियाल साहब जेसै ही होगे, साहब लोग :)
    धन्यवाद

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  16. bahut acha pakda hai sir... sach mujhe to koi bhi naya kaam karte waqt yu hi lagta hai ki are kahi sabse galat mujhse hi na ho jaye..

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  17. मैकदोनाल्द में देसी बच्चे- ज्ञानजी के कैमरे चढ़े!

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  18. कुछ दिन पहले मैं रेलवे स्टेशन पर फ्रूटी खरीद रहा था ,दो बच्चे बड़ी हसरत से फ्रूटी की और देख रहे थे . उन्हें देने का मन किया लेकिन झिझक ने रोक दिया . नई आर्थिक परिस्थितियां इन मासूमों तक इन चीजों की पहुँच बना रही हैं ,ये एक अच्छी बात है .

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  19. असल में इन बच्चों को आप समझ नहीं सके, ताज्जुब है कि कोई टिप्पणी देने वालों ने भी नोटिस न किया ।

    असल में ये बच्चे घर से ट्यूशन पढने के पहले या बाद में थोडी मौज मस्ती करने के प्लान से मैक डी आये होंगे । लगता है बच्चों के ऐन पीछे कोई जानकार अंकल/भईया/आंटी खडे होंगे । जिनसे बचने के लिये सारे बच्चे एक ही सीट पर बैठ गये, सामने वाली सीट पर बैठते तो साफ़ दिख जाते । अब जल्दी से आईसक्रीम खत्म करके घर पे तेजी से साईकल चलाकर बिना शक हुये पहुंचने की प्लानिंग हो रही होगी ।

    हमने अपने टाईम में ऐसे काम बहुत किये हैं । पता नहीं पिताजी के दोस्त कहाँ कहाँ मिल जाते थे और हमारी खबर पिताजी को मिल जाती थी । हम जब ठेले पर खडे होकर मौज लेते हुये समोसे खाते थे तो लगता था बस कोई आस पडौसी न देख ले और हमारी पढाकू छवि न खराब हो जाये :-)

    फ़िर स्कूल बंक करके क्रिकेट खेलते समय भी बडी समस्या रहती थी कि खबर लीक न हो जाये :-)

    सौ बातों की एक बात, बच्चों का आत्मविश्वास आजकल देखते ही बनता है । वो नहीं डरने वाले मैक डी से, हम और आप ही भले असहज रहें ।

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  20. माइक्रो पोस्‍ट पर मैक्रो टिप्‍पणियां :)

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  21. बचपन ऐसा ही होता है ..
    हाँ भारत तेजी से बदल रहा है :)

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  22. गुरुजी, कहते हैं कि एक तस्वीर कई बड़े समाचार से बड़ी होती है।
    आपकी यह माइक्रो पोस्ट नही है, बहुत ही बड़ी पोस्ट है।
    बस जरुरत है इसे समझने की।

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  23. कम शब्दों में बहुत बढ़ी बात कर गये आप, अनुभव से कहूँ तो ये आत्मविश्वास दूसरी बार में इससे कहीं ज्यादा होगा।

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  24. बड़ी बात। बड़ी पोस्ट । वैसे नीरज जी की बात में भी दम है....
    विजयादशमी की शुभकामनाएं

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  25. ब्‍लाग अपने आप में एके विधा है । आपने इस पर 'माइक्रो विधा' शुरु कर दी है । उम्‍मीद करें कि जल्‍दी ही 'हाइकू विधा' सामने आएगी ।

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  26. जब इन बच्चों की आर्थिक स्तिथि बदलेगी तब आत्मविश्वास भी आ जायेगा....काश ये स्तिथि जल्द बदले!

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  27. कई अमीर ऐसे होंगे जो मैक्‍डी से वापस लौटने लगेंगे कि‍ यहॉं का माहौल भी खराब होने लगा है। गाजि‍याबाद के एक मॉल में एक व्‍यक्‍ति‍ को अंदर जाने नहीं दि‍या गया था क्‍यूँकि‍ वह चप्‍पल पहने हुए था। वर्ग भेद इतनी जल्‍दी मि‍टनेवाला नहीं है,बस आत्‍मवि‍श्‍वास की दरकार है।

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  28. पहली बार हवाई जहाज में या, फाइव स्टार होटल में या फिर मैकडोनाल्ड में अवस्था ऐसी ही होती है. हाँ शायद देसी न होते तो बचपन से ही कुछ अलग होते.
    हम (मैं) भी शायद इन देसी की श्रेणी में ही आते हैं... यही सच्चाई है.

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--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय