Monday, August 20, 2007

नेटवर्क मार्केटिंग का झमेला


एक सज्जन नेटवर्क मार्केटिंग के तहद घर पर इलेक्ट्रोमैग्नेटिक कुकिंग सिस्टम का डिमॉंस्ट्रेशन कर के गये हैं. पूरे जादुई अन्दाज में. चार कप चाय बना कर बताई है. कूकर की प्लेट पर 500 रुपये का नोट रख कर बताया है कि कुकिंग सिस्टम की प्लेट गरम नहीं होती और नोट जलता नहीं. हाथ भी पीसी सरकार की मुद्रा में चलाये हैं. नेटवर्क मार्केटिंग पर छोटा-मोटा व्याख्यान भी दे दिया है.

उनके जाने के बाद घर में सब चर्चा रत हैं और मैं इण्टरनेट पर यह कुकिंग सिस्टम सर्च कर रहा हूं. अपने लिये तो सारी सूचना इसी कम्प्यूटर के डिब्बे में बन्द है. तीन चार साइटें चीन और चैन्ने के साथ और जगहों के पते भी हैं. बताया है कि बिजली बहुत कम लेता है, बर्तन जलने-उफनने का झंझट नहीं. आगे आने वाले समय में जब पेट्रोल 100 रुपये लीटर होगा और रसोई गैस पर सबसिडी खतम होगी तब तो यह खूब चलेगा...

घर में सब मगन हैं. अब दूसरे स्तर पर चर्चा चल पड़ी है अरे चुन्नू के यहां भी यही आया है. उसे मालूम नहीं, तभी बिजली का हीटर बोल रहा था जो गरम नहीं होता. जब तक वे कंटिया फंसा कर बिजली लेते थे, तब तक खाना उसी पर बनाते थे. अब बन्द कर दिया है.... और साथ में जो विमल सूटिंग का सूट लेंथ फ्री मिलेगा, वह काम का है. सर्दी में एक सूट बनवाना ही है (सूट की सिलाई खर्च की चर्चा कोई नहीं कर रहा).... रसोई गैस तो फिर भी रखनी होगी. बिजली का क्या भरोसा कब चली जाये.

न जी, यह वाला कूकर लो, साथ में चपटे पेन्दे के स्टील वाले बर्तन/प्रेशर कूकर लो... खर्चा ही खर्चा...और बोल ही तो रहा है बेचने वाला कि महीने में 200-250 रुपये की बिजली लगेगी. ज्यादा लगी तो? यह सुन कर मैं नेट पर देखता हूं - 1.8 किलोवाट की रेटिंग है कुकिंग सिस्टम की. पर घर में कोई नहीं बता पाता कि रोज कितने समय तक यह चलेगा खाना बनाने में. मेरा कैल्कुलेटर इस्तेमाल ही नहीं हो पाता. बाकी लोगों को यूनिट उपयोग की कैल्क्युलेशन से लेना-देना नहीं है. चर्चा जारी रहती है.

अच्छा अम्मा, आप ले रही हैं? अम्मा पल्ला झाड़ लेती हैं आप लोग बनाते हो, आप जानो. फिर मेरी तरफ देखा जाता है इण्टरनेट पर देख रहे हो, बताओ? मैं कम्पनी का टर्नओवर ढूंढ़ रहा हूं. अगर इतने लाख लोग नेटवर्क से जुड़े हैं (जैसा वह डिमॉंस्ट्रेटर बता रहा था) और प्रतिव्यक्ति टर्नओवर 5-6 हजार का है तो नेटवर्क कैसा. हर आदमी केवल उत्पाद खरीद कर अंगूठा चूस रहा होगा और शेखचिल्ली की तरह लखपति बनने का ख्वाब देख रहा होगा!

मुझे केवल (और केवल) खर्चा नजर आ रहा है. कुल 7100 रुपये का चूना. नेटवर्क मार्केटिंग कर आगे बेच पाना मेरे घर में किसी के बूते का नहीं. साल भर बाद एक कोने में एक और मॉन्यूमेण्टल पीस जमा हो जायेगा. बिल्कुल सोलर कूकर के बगल में? सूट और टाई मैं पहनता नहीं. वह भी पड़ा रहेगा, इस प्रतीक्षा में कि कभी मैं शायद साहब बनना चाहूं. शायद रिटायरमेण्ट के बाद उपयोग हो, जब लोग वैसे साहब मानना बन्द कर दें!

रविवार के 2-3 घण्टे मजे से पास हो गये हैं.


25 comments:

  1. कल बच गये तो अब बच ही गये समझ लीजिये। इसे पढ़ने के बहाने आलोक पुराणिक का प्रचचन भी पढ़ लिया पुरानी पोस्ट पर!

    ReplyDelete
  2. अरे नही आप खरीद ही ले बद मे और कुछ नही तो किसी रोज लिखने के ही काम आयेगा ,कि इस से नेट वर्किंग के कितने सपने जुडे थे..

    ReplyDelete
  3. ज्‍यादा रूचि मत दिखाईये, वरना हर रविवार ये साप्‍ताहिक सजीव प्रसारण होता रहेगा और आप बचते फिरेंगे

    ReplyDelete
  4. कब तक बचेंगे आज नहीं तो कल पड़ोसियों के दबाव या उत्सुकता के चलते फंसना तो पड़ेगा ही।
    गुरुदेव अच्छा है।

    ReplyDelete
  5. सरजी
    ना लीजिये। ये तमाम एडवांस्ड तकनीकी टाइप आइटमों की लाइफ साइकिल कुछ इस टाइप की होती है।
    फूं फां शूं शां टाइप डेमो
    पूरा परिवार इंप्रेशित
    एक विचित्र सा ग्रेटिफिकेशन
    परचेज
    एक दिन बिजली का वोल्टेज ज्यादा या कम
    या यंत्र का एकाध तार इधर या उधर
    काम अटक गया
    किसी मिस्त्री को दिखाया
    उसने बताया जी यह तो यहां नहीं हो पायेगा
    मुंबई, होनोलूलू या टोकियो टोरंटो में होगा
    यंत्र को पोटली में बांधकर वहां रखा जाना, यहां पुराना वीसीआर पड़ा है, व अन्य फूं फां यंत्र पड़े हैं
    जो नेटवर्किंग वाला आपको माल बेचकर गया होगा, वह कहीं और किसी को ठेल रहा होगा।
    नेटवर्किंग मार्केटिंग शरीफ लोगों का काम नहीं है। इसके लिए विकट बेशर्मी, महाविकट संवेदनहीनता, प्राणी मात्र, भाई बहन, नातेदारों,रिश्तेदारों, जीजा, दामाद दोस्तों को सिर्फ और सिर्फ ग्राहक मानने की किलिंग इंस्टिंक्ट की जरुरत होती है। नेटवर्क मार्केटिंग का काम हरेक के बूते का नहीं है। जरा अपने आसपास चेक कराइये एमवे के मारे पांच-दस कराह रहे होंगे। ये यंत्र तो छोड़िये, एमवे का टूथपेस्ट तक भी ना बेच पायेंगे।
    शेर सुनिये -
    वह हर शख्स जिसका दिल वहीं का वहीं है
    वह नेटवर्क मार्केटिंग के काबिल नहीं है

    ReplyDelete
  6. का पांडेय जी, एक छोटा सा आइटम खरीदने मे इत्ता सोचते हो। ये सोचो एक पोस्ट तो खरीदने के सोचने मे लिखे, एक उस दिन लिखोगे जिस दिन इसे घर ले आओगे, फिर एक चाय पर, एक डिनर पर....


    (खराब होने पर भी लिखना जरुर), हमारे लिए तो ये फायदे का सौदा है, अब खरीद भी डालो ना। सूटलेंथ ना चाहिए तो बताना, शुकुल बहुत दिनो से शाल खरीदने की जिद कर रहा था।

    ReplyDelete
  7. जीतेन्द्र> ... शुकुल बहुत दिनो से शाल खरीदने की जिद कर रहा था।

    सुकुल का इशारा समझो. उनके नागरिक अभिनन्दन का जुगाड़ करो. शाल का इंतजाम कर लो, श्रीफल/नारियल के पैसे मैं दे दूंगा. :)

    ReplyDelete
  8. ज्ञानदत्तजी,
    ये तो कुछ नहीं है, यहाँ पर विद्यार्थियों को लोग सब्जबाग दिखाकर इस प्रकार की नेटवर्किंग में खूब फ़ंसाना चाहते हैं । कभी फ़ुरसत में लिखेंगे इस बारे में ।

    वैसे जीतूजी का विचार उत्तम है, शुक्लजी को शाल नहीं तो कम्बल तो ओढा ही दीजिये :-)

    ईस्माईली लगा दी है, तो अब बाकी आपकी जिम्मेदारी है ।

    ReplyDelete
  9. ज्ञानदत्तजी,

    आपको याद है कि एक बार आपने पोस्ट लिखी थी कि लोग अपने ब्लाग पर Comment Moderation क्यों करते हैं । अब आपने खुद ही अपने ब्लाग पर ये लगा दिया है, जरूरत न हो तो इसे हटा लीजिये; टिप्पणी तुरंत आनी चाहिये ।

    कई बार होता है कि टिप्पणियों के माध्यम से अ-सार्थक चुहलबाजी नहीं हो पाती है क्योंकि पुरानी टिप्पणियाँ Moderation के चक्कर में पडी रहती हैं और नये टिप्पणीकर्ताओं का विचार-क्षेत्र Limited रह जाता है ।

    अब जीतूजी वाली बात में बडा दम है लेकिन इस Moderation के चक्कर में कई बेचारे रह गये होंगे :-)

    ReplyDelete
  10. मैं तो कहता हूँ की नेटवर्क मार्केटिंग वालों से बचने का सबसे अच्छा तरीका ये है की उन्हें बैठाकर हिन्दी ब्लागिंग के बारे में बतायें. दो दिन अगर बता देंगे तो ये लोग आगे से किसी घर में घुसने से पहले इस बात की जानकारी लेंगे की इस घर में कोई हिन्दी ब्लॉगर तो नहीं रहता.

    ReplyDelete
  11. शिव जी ये मेरा कापीराईट आईडिया है आप इसको प्रयोग नही कर सकते ,मै टेलीकालर्स को पहले अपना ब्लोग पढकर टिपियाने को कहता हू,इस चक्कर मे मेरे पास आने वाले फ़ोन २५% ही रह गये है..वैसे ज्ञन जी को ये खरीद ही लेना चाहिये बाद मे इस पर भी पोस्ट लिखी जा सकेगी,"बेकार पडा सामान" इसका कया करे टाईप..:)

    ReplyDelete
  12. बधाई हो बचने की, देखते है कब तक बचते हो आप!!
    इहां हम तो चार साल से बचते आ रहे हैं। रोज्जै एक ना एक बंदा चेप लेता है नेटवर्किंग महिमा सुनाने के लिए, ये अलग बात है कि उसके बाद उल्टे लद गए बांस बरेली को वाले अंदाज़ में निकल लेता है वो!!

    ReplyDelete
  13. आपको इससे बचने की बधाई। :)

    कई साल पहले एक बार हम इस चक्कर मे पड़ चुके है। पर उसके बाद से कान पकड़ा की कभी ऐसे झांसों मे नही आएंगे।

    ReplyDelete
  14. कभी अगर प्रमोशन होकर आप टी टी हो गये तब तो सूट काम आयेगा. ब्लैक वाला मांग लें उससे.

    एक चिनॉय सेठ का सुभाषित याद आ रहा है-

    ‘जिनके घर में कटिया की बिजली होती है, वो बिजली का भाव नहीं आंका करते.’ फिर इलाहबाद में रहकर आप किस केलकूलेशन में डूबे हैं? ले लिजिये न!!

    आलोक भाई का शेर जबरदस्त है:

    वह हर शख्स जिसका दिल वहीं का वहीं है
    वह नेटवर्क मार्केटिंग के काबिल नहीं है.
    वो भी कहाँ व्यंग्य लेखन में फंसे हैं. शेर शायरी करना चाहिये उनको अब.

    ReplyDelete
  15. समझ नहीं आ रहा कि लेख की तारीफ करें या टिप्पणियों की । सब एक से एक हैं ।
    घुघूती बासूती

    ReplyDelete
  16. दूध का दूध पानी का पानी

    नेटवर्क मार्केटिंग एक उम्दा व सैद्धांतिक व्यापारिक प्रणाली है परंतु फिर भी इसे लेकर आम लोगों के मन में इतनी ज्यादा शंकाएं व भ्रांतियां है, जितनी शायद किसी व्यापार को लेकर नहीं होगी। मैंने कई बार गहराई से सोचा कि आखिर क्यों इस प्रणाली के विपक्ष में इतना कुछ कहा जाता है। काफी विचार और अध्ययन के बाद मैं यह कह सकता हूँ कि ये भ्रांतियां–

    • उन कंपनियों के द्वारा फैलाई गई हैं जिनके व्यापार को यह प्रणाली प्रभावित कर रही थी।

    • उन फर्जी नेटवर्क कंपनियों के कारण पैदा हुई है, जो गलत सिद्धांत और नीयत के बाजार में आई थी और हजारों लोगों के सपनों से खिलवाड़ कर के चंपत हो गई या फिर उन्हें अपना कामकाज समेटना पड़ा।

    • ये भ्रांतियां उन लोगों द्वारा भी फैलाई गई हैं, जो इस व्यवसाय में आधे-अधूरे मन से उतरे थे और असफल हो गये।

    • ये शंकाएं उन लोगों द्वारा पैदा की गई हैं जो फटाफट अमीर बनने की नीयत रखते थे परंतु सच्चाई जानते ही बिजनेस छोड़ भाग खड़े हुए।

    • ये अफवाहें उन लोगों के द्वारा भी फैलाई गई है जो इस प्रणाली का हिस्सा तो थे परंतु स्थापित सिद्धांतों का पालन नहीं करते थे, अपलाइन की बात नहीं सुनते थे और स्वयं को अति बुद्धिमान समझते थे। घोर असफलता और हताशा के कारण जब उन्हें यह व्यापार छोड़ना पड़ा तो स्वयं की कमजोरी को ढंकने के लिए उन्होंने प्रणाली के विरोध में बोलना शुरू कर दिया।

    रोज मुझे कई देशों से पाठकों के विभिन्न विषयों पर ई-मेल मिलते हैं और पत्र आते हैं। नेटवर्क मार्केटिंग से संबंधित अधिकांश पत्रों का विश्लेषण करके मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि लोग इस प्रणाली के बारे में विभिन्न भ्रांतियों से, गहरे तक ग्रसित हैं। मैं इस पुस्तक की शुरुआत बिल्कुल निष्पक्ष होकर करना चाहता हूं, दूध का दूध और पानी का पानी करना चाहता हूँ इसलिए इस अध्याय को मैंने प्रथम क्रम पर रखा है।

    ReplyDelete
  17. विविध >> कितना सच कितना झूठ
    उज्जवल पाटनी
    प्रकाशक :daयमंड पब्लिकेशन्स
    आईएसबीएन : 81-903900-6-6

    प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
    मेरे मन की बात
    ‘‘जानना नहीं; करना महत्वपूर्ण है’’
    आप इस क्षेत्र में पुराने हैं, आप ज्ञानी हैं, आपको नेटवर्क मार्केटिंग के बारे में सब कुछ मालूम है, आपको सारे कम्पेन्सेशन प्लान की जानकारी है, आपको सारी नेटवर्क कंपनियों की जानकारी है, आपने सारे श्रेष्ठ लेखकों की किताबें पढ़ी हैं, आपने एक से बढ़कर एक टेप सुने है और वीडियो देखे हैं, आप नेटवर्क मार्केटिंग पर शास्त्र लिखने की योग्यता रखते हैं।

    मैं सिर्फ एक बात जानता हूं कि ‘‘आप कितना जानते हैं, वह उतना महत्त्वपूर्ण नहीं है, महत्त्वपूर्ण यह है कि आप कितना करते हैं’’। हो सकता है कि आप 100 सूत्र जानते हैं लेकिन सिर्फ 5 सूत्रों का ही पालन करते हो और एक दूसरा व्यक्ति सिर्फ 20 सूत्र जानता है लेकिन उसमें से 15 का पालन करता है तो मेरी नजर में वह दूसरा व्यक्ति आपसे ज्यादा सफलता के योग्य है।

    सुप्रसिद्ध फिल्म ‘लगान’ का वह सीन याद करिए जब एक सरदार देवासिंह आकर टीम में शामिल होने की इच्छा जाहिर करता है। यह सुनकर एलिजाबेथ पूछती है कि तुम क्रिकेट के बारे में क्या जानते हो, तो देवासिंह जवाब देता है–मैं सिर्फ दो बात जानता हूँ कि जब भी गेंद फेकूँ तो गिल्लियां बिखेर दूं और जब भी गेंद को मारूं तो सीमा रेखा के बाहर जा गिरे।
    इन्हीं लाइनों में जीवन का मर्म छुपा है। आप सिर्फ उतनी ही जानें जितनी बातें काम की है और उन पर पूरी ताकत लगा दें तो आपकी सफलता को कोई नहीं रोक सकता। इसके विपरीत आपका ज्ञान भंडार तो बहुत विशाल है लेकिन उपयोग में नहीं आता है तो आपकी विफलता को कोई नहीं रोक सकता। इस कृति को पढ़ने के बाद आपकी कई धारणाएं टूटेंगी, कुछ बातों पर विश्वास होगा तो कुछ पर अविश्वास, लेकिन एक बात तय है कि आपकी सोचने की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। एक बार सोचने की प्रक्रिया शुरू हो गई तो सुधरने की प्रक्रिया भी शुरू हो जाएगी।

    इस कृति को अमली जामा पहनाने का साहस मुझे ‘‘नेटवर्क मार्केटिंग–जुड़ो जोड़ो जीतो’’ की अपार सफलता से मिला। हर रोज सुबह पांच बजे से लेकर रात दो बजे तक पाठकों के फोन कॉल्स ने मुझे प्रेरणा दी। मुझे असलियत का ज्ञान हुआ कि कितनी ज्यादा तादात में लोग इस व्यापार के माध्य से सुनहरे भविष्य का सपना संजोए हुए हैं। मुझे ट्रेनिंग का मौका देने वाली कंपनियों का, ई-मेल, पत्र व फोन से स्नेह व्यक्त करने वाले पाठकों का तथा मुझ पर भरोसा करने वाले परिवारजनों का मैं हृदय से आभारी हूँ।

    ReplyDelete
  18. विविध >> कितना सच कितना झूठ
    उज्जवल पाटनी
    प्रकाशक :daयमंड पब्लिकेशन्स
    आईएसबीएन : 81-903900-6-6

    प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
    मेरे मन की बात
    ‘‘जानना नहीं; करना महत्वपूर्ण है’’
    आप इस क्षेत्र में पुराने हैं, आप ज्ञानी हैं, आपको नेटवर्क मार्केटिंग के बारे में सब कुछ मालूम है, आपको सारे कम्पेन्सेशन प्लान की जानकारी है, आपको सारी नेटवर्क कंपनियों की जानकारी है, आपने सारे श्रेष्ठ लेखकों की किताबें पढ़ी हैं, आपने एक से बढ़कर एक टेप सुने है और वीडियो देखे हैं, आप नेटवर्क मार्केटिंग पर शास्त्र लिखने की योग्यता रखते हैं।

    मैं सिर्फ एक बात जानता हूं कि ‘‘आप कितना जानते हैं, वह उतना महत्त्वपूर्ण नहीं है, महत्त्वपूर्ण यह है कि आप कितना करते हैं’’। हो सकता है कि आप 100 सूत्र जानते हैं लेकिन सिर्फ 5 सूत्रों का ही पालन करते हो और एक दूसरा व्यक्ति सिर्फ 20 सूत्र जानता है लेकिन उसमें से 15 का पालन करता है तो मेरी नजर में वह दूसरा व्यक्ति आपसे ज्यादा सफलता के योग्य है।

    सुप्रसिद्ध फिल्म ‘लगान’ का वह सीन याद करिए जब एक सरदार देवासिंह आकर टीम में शामिल होने की इच्छा जाहिर करता है। यह सुनकर एलिजाबेथ पूछती है कि तुम क्रिकेट के बारे में क्या जानते हो, तो देवासिंह जवाब देता है–मैं सिर्फ दो बात जानता हूँ कि जब भी गेंद फेकूँ तो गिल्लियां बिखेर दूं और जब भी गेंद को मारूं तो सीमा रेखा के बाहर जा गिरे।
    इन्हीं लाइनों में जीवन का मर्म छुपा है। आप सिर्फ उतनी ही जानें जितनी बातें काम की है और उन पर पूरी ताकत लगा दें तो आपकी सफलता को कोई नहीं रोक सकता। इसके विपरीत आपका ज्ञान भंडार तो बहुत विशाल है लेकिन उपयोग में नहीं आता है तो आपकी विफलता को कोई नहीं रोक सकता। इस कृति को पढ़ने के बाद आपकी कई धारणाएं टूटेंगी, कुछ बातों पर विश्वास होगा तो कुछ पर अविश्वास, लेकिन एक बात तय है कि आपकी सोचने की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। एक बार सोचने की प्रक्रिया शुरू हो गई तो सुधरने की प्रक्रिया भी शुरू हो जाएगी।

    इस कृति को अमली जामा पहनाने का साहस मुझे ‘‘नेटवर्क मार्केटिंग–जुड़ो जोड़ो जीतो’’ की अपार सफलता से मिला। हर रोज सुबह पांच बजे से लेकर रात दो बजे तक पाठकों के फोन कॉल्स ने मुझे प्रेरणा दी। मुझे असलियत का ज्ञान हुआ कि कितनी ज्यादा तादात में लोग इस व्यापार के माध्य से सुनहरे भविष्य का सपना संजोए हुए हैं। मुझे ट्रेनिंग का मौका देने वाली कंपनियों का, ई-मेल, पत्र व फोन से स्नेह व्यक्त करने वाले पाठकों का तथा मुझ पर भरोसा करने वाले परिवारजनों का मैं हृदय से आभारी हूँ।

    ReplyDelete
  19. कभी अगर प्रमोशन होकर आप टी टी हो गये तब तो सूट काम आयेगा. ब्लैक वाला मांग लें उससे.

    एक चिनॉय सेठ का सुभाषित याद आ रहा है-

    ‘जिनके घर में कटिया की बिजली होती है, वो बिजली का भाव नहीं आंका करते.’ फिर इलाहबाद में रहकर आप किस केलकूलेशन में डूबे हैं? ले लिजिये न!!

    आलोक भाई का शेर जबरदस्त है:

    वह हर शख्स जिसका दिल वहीं का वहीं है
    वह नेटवर्क मार्केटिंग के काबिल नहीं है.
    वो भी कहाँ व्यंग्य लेखन में फंसे हैं. शेर शायरी करना चाहिये उनको अब.

    ReplyDelete
  20. शिव जी ये मेरा कापीराईट आईडिया है आप इसको प्रयोग नही कर सकते ,मै टेलीकालर्स को पहले अपना ब्लोग पढकर टिपियाने को कहता हू,इस चक्कर मे मेरे पास आने वाले फ़ोन २५% ही रह गये है..वैसे ज्ञन जी को ये खरीद ही लेना चाहिये बाद मे इस पर भी पोस्ट लिखी जा सकेगी,"बेकार पडा सामान" इसका कया करे टाईप..:)

    ReplyDelete
  21. मैं तो कहता हूँ की नेटवर्क मार्केटिंग वालों से बचने का सबसे अच्छा तरीका ये है की उन्हें बैठाकर हिन्दी ब्लागिंग के बारे में बतायें. दो दिन अगर बता देंगे तो ये लोग आगे से किसी घर में घुसने से पहले इस बात की जानकारी लेंगे की इस घर में कोई हिन्दी ब्लॉगर तो नहीं रहता.

    ReplyDelete
  22. ज्ञानदत्तजी,
    ये तो कुछ नहीं है, यहाँ पर विद्यार्थियों को लोग सब्जबाग दिखाकर इस प्रकार की नेटवर्किंग में खूब फ़ंसाना चाहते हैं । कभी फ़ुरसत में लिखेंगे इस बारे में ।

    वैसे जीतूजी का विचार उत्तम है, शुक्लजी को शाल नहीं तो कम्बल तो ओढा ही दीजिये :-)

    ईस्माईली लगा दी है, तो अब बाकी आपकी जिम्मेदारी है ।

    ReplyDelete
  23. का पांडेय जी, एक छोटा सा आइटम खरीदने मे इत्ता सोचते हो। ये सोचो एक पोस्ट तो खरीदने के सोचने मे लिखे, एक उस दिन लिखोगे जिस दिन इसे घर ले आओगे, फिर एक चाय पर, एक डिनर पर....


    (खराब होने पर भी लिखना जरुर), हमारे लिए तो ये फायदे का सौदा है, अब खरीद भी डालो ना। सूटलेंथ ना चाहिए तो बताना, शुकुल बहुत दिनो से शाल खरीदने की जिद कर रहा था।

    ReplyDelete
  24. सरजी
    ना लीजिये। ये तमाम एडवांस्ड तकनीकी टाइप आइटमों की लाइफ साइकिल कुछ इस टाइप की होती है।
    फूं फां शूं शां टाइप डेमो
    पूरा परिवार इंप्रेशित
    एक विचित्र सा ग्रेटिफिकेशन
    परचेज
    एक दिन बिजली का वोल्टेज ज्यादा या कम
    या यंत्र का एकाध तार इधर या उधर
    काम अटक गया
    किसी मिस्त्री को दिखाया
    उसने बताया जी यह तो यहां नहीं हो पायेगा
    मुंबई, होनोलूलू या टोकियो टोरंटो में होगा
    यंत्र को पोटली में बांधकर वहां रखा जाना, यहां पुराना वीसीआर पड़ा है, व अन्य फूं फां यंत्र पड़े हैं
    जो नेटवर्किंग वाला आपको माल बेचकर गया होगा, वह कहीं और किसी को ठेल रहा होगा।
    नेटवर्किंग मार्केटिंग शरीफ लोगों का काम नहीं है। इसके लिए विकट बेशर्मी, महाविकट संवेदनहीनता, प्राणी मात्र, भाई बहन, नातेदारों,रिश्तेदारों, जीजा, दामाद दोस्तों को सिर्फ और सिर्फ ग्राहक मानने की किलिंग इंस्टिंक्ट की जरुरत होती है। नेटवर्क मार्केटिंग का काम हरेक के बूते का नहीं है। जरा अपने आसपास चेक कराइये एमवे के मारे पांच-दस कराह रहे होंगे। ये यंत्र तो छोड़िये, एमवे का टूथपेस्ट तक भी ना बेच पायेंगे।
    शेर सुनिये -
    वह हर शख्स जिसका दिल वहीं का वहीं है
    वह नेटवर्क मार्केटिंग के काबिल नहीं है

    ReplyDelete
  25. ज्‍यादा रूचि मत दिखाईये, वरना हर रविवार ये साप्‍ताहिक सजीव प्रसारण होता रहेगा और आप बचते फिरेंगे

    ReplyDelete

आपको टिप्पणी करने के लिये अग्रिम धन्यवाद|

हिन्दी या अंग्रेजी में टिप्पणियों का स्वागत है|
--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय