Thursday, August 16, 2007

मैं अंग्रेजी से नकल का जोखिम ले रहा हूं


रीडर्स डाइजेस्ट के अगस्त-2007 अंक में गिविंग बैक स्तम्भ में फ्रूट्स ऑफ प्लेण्टी नामक शीर्षक से पद्मावती सुब्रह्मण्यन का एक लेख है (पेज 39-40). मुम्बई में 66 वर्षीया सरलाबेन गांधी हर रोज 6 दर्जन केले खरीदती हैं. इतने केले क्यों? कितने नाती-पोते हैं उनके?

सरलाबेन केले ले कर 300 मीटर दूर घाटकोपर के राजवाड़ी म्युनिसिपल अस्पताल में जाती हैं. वहां गर्भ की परीक्षा के लिये आउट-पेशेण्ट-विभाग (ओपीडी) में गर्भवती महिलायें प्रतीक्षारत होती हैं. उनमें से बहुत सी कुपोषित प्रतीत होती हैं. सरलाबेन मेज पर अपना केलों वाला थैला रख कर उन स्त्रियों को केले देती हैं. वे औरतें कृतज्ञता से स्वीकार करती हैं.

केले के छिलके जमीन पर मत फैंकना सरलाबेन कहती हैं. कुछ देर बाद वे केले के छिलके एक प्लास्टिक की थैली में जमा करती हैं और घर के लिये रवाना हो जाती हैं.

इनमें से बहुत सी औरतें दूर-दूर से आती हैं और थक चुकी होती हैं. राजवाड़ी अस्पताल की गायनिक डा. कृपा अशोक बताती हैं. केला बहुत अच्छा ऊर्जादायक फल है. वास्तव में केले में पोटैशियम, मैग्नीशियम, विटामिन और लौह तत्व हैं, जो गर्भावस्था में बहुत लाभदायक हैं.

सरलाबेन यह जानती हैं. उनके पति डॉक्टर हैं. वे नर्स बनना चाहती थीं, पर उनकी जल्दी शादी हो गयी. फिर तीन बच्चियां हुईं. दस साल पहले उन सब की शादी हो गयी. सरलाबेन के पास बहुत सा वक्त खाली बचने लगा. वे एक स्वयमसेवी संस्था के साथ जुड़ कर गर्भवती स्त्रियों को राजवाड़ी अस्पताल में केले बांटने लगीं. बाद में यह काम वे अलग से स्वयम करने लगीं. अब वे सप्ताह में 5 दिन सुबह शाम (दो बार) यह करती हैं. सवेरे वे बच्चों को बिस्कुट-ब्रेड देती हैं और दोपहर में गर्भवती स्त्रियों को केले. शनिवार को उनकी बड़ी लड़की यह काम सम्भालती है. रविवार को ओपीडी नहीं होती, सो छुट्टी होती है.

कब तक करेंगी वे यह कार्य? पूछने पर सरलाबेन मुस्कुरा कर कहती हैं जब तक जियूंगी.

मित्रों यह पढ़ने पर कई दिन मैं सोचता रहा. ध्येय खोजने के लिये लम्बी-चौड़ी योजना चाहिये क्या? शायद नहीं.

और मैं रीडर्स डाइजेस्ट से यह अनुवाद कर प्रस्तुत करने में दो प्रकार का जोखिम ले रहा हूं पहला यह कि कुछ मित्र कह सकते हैं कि इस व्यक्ति के पास कुछ ओरीजिनल तो होता नहीं, अंग्रेजी से टीप कर प्रस्तुत करता है. दूसरा यह कि शायद इसका कॉपीराइट पद्मावती सुब्रह्मण्यन या/और रीडर्स डाइजेस्ट के पास हो.

पर यह इतना सरल और सशक्त लेखन लगा मुझे कि मैं प्रस्तुत कर ही दे रहा हूं इस विचार के साथ कि शायद कुछ लोग होंगे जिन्होने इसे अंग्रेजी में न पढ़ा हो.
(ऊपर दायें सरलाबेन और महिलाओं का धुंधला चित्र रीडर्स डाइजेस्ट से)


16 comments:

  1. वाकई जी बस इच्छा होनी चाहिये..शुरुआत चाहे तिनके से ही हो बस जारी रहे..तो भी मिसाल बन जाती है..और आप एक बडा काम कर जाते है..

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  2. धन्‍यवाद सर,

    आपने इसे यहां देकर अच्‍छा किया, प्रेरक विचारों को ब्‍लाग प्‍लेटफार्म में प्रस्‍तुत करना ही चाहिए भले ही वह पूर्व प्रकाशित हो । सरलाबेन एक आदर्श नारी हैं उनका कार्य न केवल सराहनीय है वरण हम सब के लिए अनुकरणीय है ।

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  3. सही किया आपने. यह सहज अनुवाद आवश्यक था इस विचारधारा को विस्तार देने के लिये. यह भी एक सेवा है कि ऐसे विचारों को सबके सामने लाया जाये भले ही अंग्रेजी को अंग्रेजी मे या अंग्रेजी को हिन्दी में करके ज्यादा विस्तार देकर.

    हर हाल में आप साधुवाद के अधिकारी हैं.

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  4. नकल का अपराध बोध मिथ्या है। कमलेश्वर जी अपनी उम्र ५०५० साल बताते थे। यह कहते हुये कि उनसे पहले के जितने लेखक हुये उनके अनुभव भी उनकी ही विरासत हैं। आपकी बात सच है कि करने को तमाम काम हैं। कही से शुरू कर दें।

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  5. निश्चित ही ध्येय खोजने के लिए लंबी-चौड़ी योजना की जरुरत नही होती है बस मन मे विश्वास होना चाहिऐ। सरला बेन का कार्य सराहनीय है और आप के द्वारा किया गया अनुवाद भी।

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  6. sorry for comment in english-
    u said-
    मित्रों यह पढ़ने पर कई दिन मैं सोचता रहा. ध्येय खोजने के लिये लम्बी-चौड़ी योजना चाहिये क्या? शायद नहीं.
    great inspiring post
    is kahani se hame yeh shiksha milti hai ki plan nahin banae chaiye jyada
    kuch na karne ki haramkhori 2 tarah se ho sakti hai
    1-paehle plan karke
    2-pahle plan nahin karke

    jahir hai plan na kare banda to, urja bach jati hai, use aur jyada sone mein lagaya ja sakta hai
    great lesson

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  7. शायद समय आ गया है, जब आम इंसान प्रेरणा के लिए महापुरुषों की तरफ न देखें. एक आम इंसान के अच्छे काम को दोहराना ज्यादा व्यावहारिक होता है. इसलिये ऐसे लोगों के द्वारा किए गये अच्छे काम को सामने लाना ज्यादा जरूरी है.

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  8. सही बात है. ध्येय खोजने के योजना नहीं सिर्फ सच्ची चाहत की जरुरत होती है. इस प्रेरक प्रसंग के लिए साधुवाद.

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  9. सच आप का प्रयास जैसा भी है, मेरे लिए तो प्रेरणादाई है धन्यवाद

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  10. मेरी टिप्प्णी यहाँ है
    http://nahar.wordpress.com/2007/08/16/sewa/

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  11. इस तरह के प्रेरक प्रसन्ग को इसी तरह जन-जन को बताने की जरुरत है।

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  12. ज्ञानद्त्त जी,आप ने बहुत बढिया कार्य किया है जो ऐसे प्रेरणा देने वाले विचार यहाँ दिए हैं। हम जैसे लोग जिन्हें अंगेजी नही आती,उन के लिए किया गया यह आपका कार्य बहुत महत्व रखता है। आशा है आप अपना यह कार्य जारी रखेगें।

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  13. सराहनीय कार्य है, प्रेरणापद भी... काश मुझ मे भी ऐसी स्वतः भावना पैदा हो :)

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  14. ज्ञानजी को नमस्कार
    परमजीत जी की बात से सौ फीसद सहमत हूं पांडेय साहब। ये पुण्यकर्म चलता रहे तो सचमुच भला होगा जीवन में आस्था बनी रहेगी।
    आपका ईमेल क्या है ?

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  15. आपसे प्रेरणा लेकर ऐसे रचनात्मक/प्रेरक समाचार सभी हिन्दी ब्लॉग लेखकों को उद्धृत करना चाहिए।

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  16. इस पोस्‍ट के आगे तो मेरी केले वाली पोस्‍ट बहुत बेजान लगती है। इस जानकारी के लिए ह्रदय से आभार।

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--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय