Tuesday, February 9, 2010

माघ मेला के बाद गंगा कछार में खेती

माघ मेला के बाद गंगा नदी में पानी की आमद घट गई है। लिहाजा नये टापू उभरने लगे हैं। आज सवेरे देखा कि पिछले हफ्ते में उभर आये टापू पर भी खेती प्रारम्भ हो गयी है। सवेरे सवा छ बजे सूर्योदय नहीं हुआ था, पर एक नाव उन पर जा रही थी।

यह फोटो मोबाइल कैमरे से नाइट मोड में लिया गया है।

16 comments:

  1. आनन्द आयेगा .तरबुज,खरबुज,ककडी, लौकी ,गन्गा फ़ल,करेला,तुरई ना जाने क्या क्या होगा .अब तो थैला लेकर ही जाये वहा फ़सलाना जो मिलेगा

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  2. कैमरा मॉडल नोकिया N70-1 और समय ९ फरवरी को सुबह ६:३४ बजे का समय बता रही है ये तस्वीर. अच्छा हुआ आपने नाइट मोड के बारे मे भी बता दिया।
    धन्यवाद।

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  3. घूमने का रतिया में ही निकर जाते हैं??

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  4. फोटो बेहतर है । दिख रहा है सब कुछ ।
    हाँ हमें अब टापुओं की हलचल का पता चलता रहेगा यहाँ ।

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  5. सरकार कहती है कि पैदावार कम हो गयी है तो शायद गंगा मईया को लोगों पर रहम आ गया है। तस्वीर अच्छी है आभार्

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  6. कभी मोबाईल का भी फ़ोटो लगा दिया जाये, पता तो चले कि कौन नामुराद कंपनी का है जो इत्ते अच्छॆ फ़ोटू खेंचता है।

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  7. जीवन सदैव नए जीवन के अवसर तलाशता है और इसी में छुपा है जीवन की निरंतरता का रहस्य।

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  8. देव !
    टापुओं का स्थिर समर्पण दर्शनीय है .. धारा तो वहनीय है ...
    फोटो से पता नहीं चला कै बीघा खेत है ... गंगा जी की गोद में ... आभार ,,,

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  9. मिश्राजी,
    आप लिखते हैं
    "कैमरा मॉडल नोकिया N70-1 और समय ९ फरवरी को सुबह ६:३४ बजे का समय बता रही है ये तस्वीर"

    यह सूचना आपको कहाँ से मिली?
    तसवीर को ध्यान से देखा। यह सूचना ईस ब्लॉग पर छपी तसवीर पर कहीं भी दिख नहीं रही।
    जी विश्वनाथ

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  10. खेती तो हो जायेगी पर मीठे फल होने के लिये लू चलना आवश्यक है । पता नहीं फलों में रस लाने के लिये प्रकृति को कठोर क्यों होना पड़ता है ? जाड़े में भी, गर्मी में भी ।

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  11. रचना (दोनों - चित्रों वाली और शब्दों वाली) अच्छी लगी। तुलसी दास जी के शब्दों में कहूँ तो –
    थोड़े महँ जानिहहिं सयाने।

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  12. विश्वनाथ जी,
    आज कल के कैमरे तस्वीरों के साथ ये EXIF डाटा अटैच कर देते हैं| जिसको तस्वीर की प्रापर्टीज मे देखा जा सकता है।
    आप इस फ़ाइल को अपने कम्प्यूटर पर सेव कीजिये उस पर माउस प्वाइन्टर ले जाते ही ये सूचना आपको दिख जायेगी।

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  13. वाह जी मिश्राजी !
    यह तो हमें इतने सालों से पता ही नहीं था।
    सूचना के लिए धन्यवाद
    जी विश्वनाथ

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  14. Waah....kya manohaaree drishy hai...Aabhaar hamare sang baantne ke liye..

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  15. सही है जी, जो भी ज़मीन मिले जहाँ मिले खेती हो जावे, खूब। वैसे भी गंगा की छोड़ी भूमि है, मिनरल वगैरह जो बहकर आए होंगे वे जम गए होंगे वहाँ तो भूमि उपजाऊ भी हो गई होगी।

    @मिश्रा जी, नोकिआ का एन७० म्यूज़िक एडीशन है कैमरा, वैसे नाईट मोड न भी बताते तो आईएसओ और शटर स्पीड द्वारा पता चल जाता! :)

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--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय