Friday, December 4, 2009

लेकॉनिक टिप्पणी का अभियोग

श्रीश पाठक “प्रखर” का अभियोग है कि मेरी टिप्पणी लेकॉनिक (laconic) होती हैं। पर मैं बहुधा यह सोचता रहता हूं कि काश अपने शब्द कम कर पाता! बहुत बार लगता है कि मौन शब्दों से ज्यादा सक्षम है और सार्थक भी। अगर आप अपने शब्द खोलें तो विचारों (और शब्दों) की गरीबी झांकने लगती है। उसे सीने के प्रयास में और शब्द प्रयोग करें तो पैबन्द बड़ा होता जाता है।

ज्यादतर यह कविता पर टिप्पणी करने के मामले में होता है। बहुधा आप टटोलते हैं अपने से ज्यादा बुद्धिमान लगने वाले पाठक की टिप्पणी को। उसके आस-पास की टेनटेटिव सी टिप्पणी करते हैं – जिससे सरासर लण्ठ न लगें। टिप्पणी भी, लिहाजा, टर्स (terse) लगती हैं वाक्य विन्यास में। पर वे खास मतलब नहीं रखतीं!!! आप ज्यादा चादर तान कर फंसने का जोखिम नहीं ले सकते!

श्रीश सम्भवत: इस टिप्पणी को सन्दर्भित कर रहे हैं। इस कविता में ढेर सारी उर्दू थी। मेरे बहुत पल्ले नहीं पड़ी। पहले टिप्पणी करने वालों से भी बहुत सहायता नहीं मिली। लोग कविता पर ज्यादातर सेफ साइड टिपेरते हैं – दो लाइने कट-पेस्ट कर वाह वाह चेपते हैं। लिहाजा मैने टेंजेंशियल टिपेरा - बड़ी झकाझक टेम्प्लेट है!

shreesh_2स्लाइड शो मे मुखड़े के साथ टेम्प्लेट वास्तव में झकाझक थी! और मैं यह ईमानदारी से दर्ज करना चाहता था।

टिपेरना महत्वपूर्ण क्यूं है? मुझे मालूम है इस प्रश्न का कायदे से समीर लाल को उत्तर देना चाहिये। पर एक बढ़िया कारण बताया है पंकज उपाध्याय ने। उन्होने कहा -  आप एक बार ब्लाग पर कुछ टिपिया देते है तो हम बार बार पोस्ट और कमेन्ट पढते रहते है...। असल में मैं भी पुरानी अपनी पोस्टें पढ़ता हूं तो अपने रचे को निहारने नहीं, टिप्पणियां पढ़ने के लिये। टिप्पणियों में बहुत कीमती चीजें मिलती हैं। गद्य लिखने वाले को वैसे भी बहुत वाहवाहियत भरी टिप्पणियां नहीं मिलती! लोगों की सोच के नमूने ज्यादा मिलते हैं। 

Googlereader एक और बात जो मैं लिखना चाहता हूं, वह यह है कि मैं कैसे ब्लॉग पोस्टों पर जाता हूं। मैं फीड एग्रेगेटर से चुनाव नहीं कर पाता। मेरा फीड रीडर (जैसा अमित बार बार कहते हैं अपने बारे में), बहुधा भर जाता है। आप अमित की ट्वीट -   Been more than a week since I opened my feed reader - damn its gonna be stuffed full!! देखें।

सो अपना फीड रीडर खंगालने में ही फेचकुर निकल जाता है। यह अवश्य है कि फीडरीडर की पोस्टें पढ़ कर उनपर टिप्पणी करने का भरसक प्रयास करता हूं। मेरे ब्लॉग पर जो रोचक टिप्पणी करते हैं, उनका ब्लॉग कौतूहल वश अवश्य देखता हूं और पसन्द आने पर उसे फीडरीडर में बिना देरी जोड़ लेता हूं। उसके बाद उन्हे पढ़ना और टिपेरना प्रारम्भ हो जाता है। फीड रीडर में एक बार जोड़ने पर ब्लॉग लगभग स्थाई हो जाते हैं वहां। अत: पठन सामग्री भी बढ़ती जा रही है। और कठिन होता जा रहा है पठन प्रबन्धन! यह भी एक कारण है लेकॉनिक टिप्पणी का।

बहुत हुआ मोनोलॉग। पोस्ट लम्बी सी हो गयी है संक्षिप्त टिप्पणी की सफाई देने में। अब चला जाये!  


47 comments:

  1. संक्षिप्त टिप्पणी ही सारगर्भित होती है!
    आपका उत्तर सटीक रहा!

    ReplyDelete
  2. मुझे आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा! बढ़िया लिखा है आपने जो काबिले तारीफ है!
    मेरे ब्लोगों पर आपका स्वागत है!

    ReplyDelete
  3. टिपेरना महत्वपूर्ण क्यूं है? मुझे मालूम है इस प्रश्न का कायदे से समीर लाल को उत्तर देना चाहिये।


    -चलिये, आपके कहे को टालने की औकात तो हम जैसे अदना ब्लॉगर की है नहीं. तो जल्द ही पोस्ट दे देते हैं इस पर.

    :)

    ReplyDelete
  4. बहुत बार लगता है कि मौन शब्दों से ज्यादा सक्षम है और सार्थक भी। अगर आप अपने शब्द खोलें तो विचारों (और शब्दों) की गरीबी झांकने लगती है।

    बात तो बहुत सही है | पर टिप्पणी में मौन कैसे रहे ?

    ReplyDelete
  5. लेकॉनिक का मतलब पता चला! शास्त्री जी की टिप्पणी से आधा और बबलीजी की टिप्पणी से पूरा सहमत!

    ReplyDelete
  6. हमारे एक (अब स्वर्गीय) मित्र कहा करते थे, "आज के भारत में ईमानदार रहना न सिर्फ कठिन है बल्कि कभी-कभी खतरनाक भी है."

    ReplyDelete
  7. टिप्पणी विधा पर एक विशेषग्य विचार ! आपकी पोस्टों से एक फयादा यह होता
    है की आंग्ला भाषा का शब्द ज्ञान भी तरोताजा होता रहता है !

    ReplyDelete
  8. स्पष्टीकरण के बहाने टिपण्णी करने की पूरी तकनीक समझा दी आपने ...
    यह सही है कि कई बार शब्दों की गरीबी के कारण माकूल टिपण्णी नहीं लिखी जा सकती ...कई बार ये कंगाली बहुत दिल दुखाती है ...!!

    ReplyDelete
  9. अभियोग भी हुआ उस की स्वीकृति और सफाई भी। भारतीय अदालतों की तरह फैसला भी गायब ही रहेगा?

    ReplyDelete
  10. आपकी पोस्ट कई बार अंग्रेजी शब्दकोश खोलने को मजबुर करती है.. आज नया शब्द सीखा.. laconic..

    टिप्पणी अगर laconic नहीं होगी तो पोस्ट बन जायेगी.. और विस्तार से लिखना है तो एक पोस्ट ठेल दें टिप्पणी काहे करने का..:)

    ReplyDelete
  11. एक बात कहना रह गई:


    आपका मेरे ब्लॉग पर स्वागत है..


    यह पहले लिख देते तो कम से कम आधी ही सही, अनूप फुरसतिया जी की सहमति मिल जाती..हा हा!!

    ReplyDelete
  12. कायल हो गए ! (लेकॉनिक टिपण्णी :) )

    आभार

    ReplyDelete
  13. टिप्पणी हो या पोस्ट कम से कम शब्दों में होना ही भला है.

    ReplyDelete
  14. लो जी संक्षिप्त टिप्पणी
    निशब्द हूँ

    ReplyDelete
  15. मुझसे जो बन पड़ा है मैंने अपने ब्लॉग http://shreeshuvach.blogspot.com/2009/12/blog-post.html पर कह दिया है...!!!

    ReplyDelete
  16. .
    .
    .
    आदरणीय ज्ञानदत्त पान्डेय जी,

    "बहुत बार लगता है कि मौन शब्दों से ज्यादा सक्षम है और सार्थक भी। अगर आप अपने शब्द खोलें तो विचारों (और शब्दों) की गरीबी झांकने लगती है। उसे सीने के प्रयास में और शब्द प्रयोग करें तो पैबन्द बड़ा होता जाता है।
    ज्यादातर यह कविता पर टिप्पणी करने के मामले में होता है।"

    कई बार यह भी तो लगता है कि इस रचना पर कुछ न ही कहा जाये तो ठीक रहेगा क्योंकि रचना से रचनाकार के विचारों और शब्दों की गरीबी साफ दिखती है यदि आप अपनी टिप्पणी से उसे ढांप देंगे... तो खतरा यह रहेगा कि अगली पोस्ट के लिये और बड़ा पैबंद लगाना पड़ेगा।

    मैं तो मानता हूँ कि पोस्ट पढ़कर कुछ न टिपियाना भी एक तरह की टिप्पणी ही है।

    ReplyDelete
  17. समीर जी को डेडीकेटेड आपकी पोस्ट टिप्पनिवेस्टमेण्ट ही बहुत है टिप्पणी का खेला समझने के लिये...

    और रही बात आपकी टिप्पणी की तो हमारे ब्लाग पर आपकी पोजिशन तीसरी है टिप्प्णियो के मामले मे, तो हमे तो कोई शिकायत नही.. :P

    ओन अ सीरिअस नोट - कभी कभी वन लाईनर्स मे जो बात होती है, वो लम्बे चौडे पैराग्राफ़्स मे नही.. ट्विटर वन लाइना ही तो है, आपके जैसे सटीक बोलने वालो के लिये सबसे उचित टूल....

    ReplyDelete
  18. आलेख पढ़ा। टिप्पणियां भी पढ़ी। सब अच्छा लगा।

    ReplyDelete
  19. ब्लॉग पर जो रोचक टिप्पणी करते हैं, उनका ब्लॉग कौतूहल वश अवश्य देखता हूं और पसन्द आने पर उसे फीडरीडर में बिना देरी जोड़ लेता हूं। उसके बाद उन्हे पढ़ना और टिपेरना प्रारम्भ हो जाता है।
    विचारोत्तेजक!

    ReplyDelete
  20. अब यहाँ तो सारी टिप्पणियां महत्वपूर्ण हैं. किसी एक की टिपण्णी को महत्वपूर्ण कैसे कहा जाए? वैसे यह ज़रूर कहा जा सकता है कि द्विवेदी जी की टिपण्णी ज्यादा महत्वपूर्ण है.

    वैसे, श्रीश पाठक 'प्रखर' जी से एक सवाल था. अपनी टिप्पणियों में वे आपको 'महामना' लिखकर संबोधित करते हैं. ऐसे संबोधन में कितनी ईमानदारी है?

    ReplyDelete
  21. @"श्रीश सम्भवत: इस टिप्पणी को सन्दर्भित कर रहे हैं। इस कविता में ढेर सारी उर्दू थी।"- ऐसा तो नहीं लगता मुझे कि वहाँ ऐसी उर्दू थी कि आप समझ न सकें !

    हाँ श्रीश भाई के बहाने टिप्पणी करने की प्रक्रिया पर एक फौरी नज़र तो मार ही दी है आपने !

    ReplyDelete
  22. टिप्‍पणी इस अर्थव्‍यवस्‍था की एक ओवरवैल्‍यूड कोमोडिटी हो गई है... कुछ करेक्‍शन होना चाहिए! ..नही?

    ReplyDelete
  23. @ हिमांशु > ऐसा तो नहीं लगता मुझे कि वहाँ ऐसी उर्दू थी कि आप समझ न सकें !

    ओह, और आपको विश्वास नहीं कि मुझे कामचलाऊ उर्दू भी नहीं आती?! स्तरीय उर्दू की कौन कहे! और मेरे जैसे अनेक होंगे!

    ReplyDelete
  24. ज्ञान जी, हम जैसे लम्बी टिप्पणियां ठेलने वालों को तो ब्लागवाणी ने शब्द सीमा लगाकर अपनी औकात में रहने का सन्देश दे ही दिया है सो अब laconic में ही भलाई है वरना कुछ लोग सोचते होंगे कि बैल जुआठे से लगे नहीं कि ये कूद पड़ते हैं लंगोट बांधे गुलाटियां मारने............

    ReplyDelete
  25. खालिस उर्दू जुबान की नफासत से तो हमारा तार्रुफ़ भी मुमकिन नहीं... बाकि आपके सवालात तो निहायत ही उम्दा है..

    ReplyDelete
  26. मनोज जी पहली टिप्पणी से सहमत :)

    ReplyDelete
  27. ज्ञान जी ..श्रीश से सहमत हूं ....फौरी टिपण्णी करने से बेहतर है वहां टिप्पणिया ही न की जाए ...हाँ कई बार लिखने वाला इतना प्रभावित कर देता है के आप के पास शब्द नहीं होते उस पोस्ट पर कुछ लिखने के .तो बात अलग है पर आपकी ओर शुक्ल जी इस कंजूसी की शिकायत तो हम भी कर चुके है .....
    फिर आपने भी तो अपनी पोस्ट पे लम्बी टिप्पणियों करने वालो का जिक्र कई बार किया है ..... ..प्रशंसा सभी को अच्छी लगती है ...ये एक एक लड़के का आदर युक्त आग्रह था जो वास्तव में आपकी लेखनी का सम्मान करता है .......आप इसे अन्यथा न ले .......खुद हम आपसे कई बार असहमत हो चुके है पर ठेठ ब्लोगरी में अगर दस नाम लेने हो तो निसंकोच आपका स्थान उसमे है ...
    ओर सच मानिए "बहुत बढ़िया "........शानदार कहने वालो से तो अच्छे वही पाठक है जो आपका लिखा एक एक शब्द पढ़ते है भले ही वे दस क्यों न हो.......

    ReplyDelete
  28. देव !
    मैंने '' तारेक और मिसेल सलाही '' वाली आपकी पोस्ट पर टिप्पणी के क्रम में श्रीश मियां को
    संबोधित करते हुए कहा था --- '' पिछली पोस्ट
    पर की गयी आपकी टिप्पणी ब्लॉग की एकरसता और श्रेष्ठ
    ब्लागरों की टिप्पणी विषयक काहिली को ले कर थी |
    आपकी शिकायत हल्की न होने पर भी हलके ढंग से ली गयी |
    ऐसा क्यों ... मैं नहीं जानता ... मुझे ' मिस अंडर स्टैंडिंग ' जैसा कुछ लग रहा है ... '' |
    अब मुझे कोई गिला नहीं ... श्रीश जी का भी पोस्ट पढ़ कर आया हूँ और उनकी बेबाकी पर
    आपकी उदात्त व सहृदय मुहर भी ... कोई इसे ब्लोगिंग का खेल कहना चाहे तो कहे पर
    व्यक्तिगत तौर पर मैं खुशी हूँ ... कम-से कम पक्ष तो सामने आये ... लोग सोच तो रहे हैं ...

    @ Shiv Kumar Mishra
    श्रीश भाई से सवाल करते हुए आपने कहा कि ''महामना'' संबोधन में कितनी ईमानदारी है ?
    मैं आपसे पूंछता हूँ कि तार्किक प्रश्नों को रखने के बजाय अन्धश्रधा रखना क्या ज्यादा ईमानदारी है ?
    आप यह क्यों मान बैठते है कि प्रश्न सदैव नकारात्मक संबोधन के साथ आते है ?
    प्रश्न - कर्ता किसी का अपमान - कर्ता तो नहीं होता ...

    ReplyDelete
  29. जहां तक मैंने अपने आप को समझा है (?), वो यह कि अपने मन की बात तो मैं टिप्पणियों में कहता ही हूँ, लेकिन कभी कभी टिप्पणीयों को रोचक बनाने के क्रम मे उनकी लंबाई बढ जाती है।
    सोचता तो हूँ कि केवल वाह, बहुत बढिया, उम्दा कह कर निकल लूँ लेकिन फिर सोचता हूँ, ऐसा भी क्या कतराना, लिख डालो जो मन में है :) Who cares.... Who cares.... Who cares ....


    ( Courtesy for Who cares - Gyandutt pandey :-)

    ReplyDelete
  30. अगर आप अपने शब्द खोलें तो विचारों (और शब्दों) की गरीबी झांकने लगती है, अजी गरीबी तो बाद मै झांके गी अब बताये इन शव्दो को बन्द केसे करुं, एक को पकडता हुं तो दुसरा भाग खडा होता है..

    ReplyDelete
  31. यह जरूरी नहीं कि टिप्पणीकर्ता अपनी बात लम्बी टिप्पणी में ही कर सके। जो कुशल और प्रखर हैं वे कम शब्दों में ही कमाल कर जाते हैं। मैं तो संक्षिप्त और loaded comments करने का कौशल ज्ञान जी से नकल करने की कोशिश करता रहता हूँ, लेकिन आजतक नहीं जान पाया इस विलक्षण कला को।

    मैने बहुत लम्बी टिप्पणियाँ करने वालों को भी भूसा परोसते देख लिया है। एक उदाहरण स्वयं हूँ। :)

    ReplyDelete
  32. अर्से पहले मैं इस विषय पर कुछ बोल चुका हूं। इस पर आलसी काया पर कुतर्कों की रजाई झेली थी। अब देखते हैं कि नया क्‍या आता है। मेरा विचार है कि छोटी टिप्‍पणी नए ब्‍लॉगर का उत्‍साहवर्द्धन तो कर सकती है....


    बाकी लिखकर मैंने वापस डिलीट कर दिया। मैं छोटी टिप्‍पणियों के पक्ष में नहीं हूं फिर भी मुझे मिलती है तो खुशी होती है।

    ReplyDelete
  33. @ अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी

    त्रिपाठी जी, तार्किक प्रश्नों को रखा ही जाना चाहिए. तार्किक प्रश्न न रखे जाएँ, यह मैंने कब कह दिया? इस पोस्ट की बात जाने दीजिये. ज्ञान जी की इससे पहले की पोस्ट पर 'प्रखर' जी का कमेन्ट पढ़िए. जिस तरह से वे ज्ञान जी के लिए महामना संबोधन लिखते हैं, पढ़कर लगता है जैसे उनका मज़ाक उड़ा रहे हैं. कल उनकी पोस्ट पर तमाम लोगों ने उनकी ईमानदारी की प्रशंसा की इसलिए मैंने उनसे यह प्रश्न किया कि महामना जैसे संबोधन में कितनी ईमानदारी है?

    मुझे पता नहीं कि आपको क्यों लगा कि मैं अंध-श्रद्धा का पक्षधर हूँ.

    ReplyDelete
  34. पहले मैं laconic शब्द का अर्थ तो देख आउं..मैं तो अभी तक iconic, lexicon ही सुने हुए था..

    ReplyDelete
  35. हम्म्म...तो ये मसला है.
    इस बीव, श्रीश जी को पढ़ आया हूं.
    चलो अच्छा है कुछ क्रियाशील मस्तिष्क कार्य पर हैं...

    ReplyDelete
  36. @ शिव कुमार मिश्र जी
    (आपको जवाब नहीं देना चाहता था पर आपने बाध्य कर दिया)
    शब्दों का लिजलिजा प्रयोग नहीं करता मै...मुझमे किसी के लिए कितना सम्मान है इसकी स्केल खींचने की जिम्मेदारी/इजाजत मै आपको नहीं दे सकता. "महामना" शब्द में बेईमानी की बू कहाँ से ले आये आप..? मुझे आहत ना करें...असहमति की आवश्यकता का महत्व तो नहीं ही बताना होगा मुझे...! आदरणीय ज्ञानदत्तजी मेरे पितातुल्य हैं..संबंधों का नियमन और संचलन हम दोनों पर ही छोड़ दें..उनकी डांट भी सुन लूँगा और दुलार पर मेरा विशेषाधिकार तो चाह कर भी आप छीन नहीं सकते....!!!

    ReplyDelete
  37. महामना पर महासमर तो शायद नहीं होनी चाहिये। हमारे लिये तो यह सम्बोधन पण्डित मदन मोहन मालवीय के लिये आरक्षित है।
    और उन सा बनने के लिये तो अगले जन्म का सोचना होगा। यह तो निरर्थक जा रहा है!
    शब्द से तो इण्टेलेक्चुअल खेलते हैं। ब्लॉगर इण्टेलेक्चुअल नहीं होता और अगर होता है तो स्तरीय ब्लॉगर नहीं बन सकता।

    ReplyDelete
  38. @ श्री Shiv Kumar Mishra जी , ये रही वह टिप्पणी जिसपर आप ' महामना ' का ऐसा अर्थ-विस्तार कर रहे हैं ...
    श्रीश द्वारा --- '' सेलियुग / गैटक्रैशीय तरीका / शब्दों से प्रयोग सर्वोत्तम ढंग ढंग से महामना आप करते हैं. उम्दा. और ये लगभग
    हर पोस्ट की विशेषता है. इतिहास की सबसे बड़ी सेलिब्रिटी से इतना स्नेह-प्रेम रखने वाला खुद भी तो एक सेलेब्रिटी ही होगा....!
    आपका सफल सफाई-अभियान एक ही साथ व्यष्टि और समष्टि के व्यापक चिंतन का परिणामस्वरूप उपजा यथार्थ-प्रकटीकरण है ''
    कोई भी यहाँ अगर महामना में मजाक उड़ाना देखे तो यह यथार्थ देखने की अपेक्षा उसके पूर्वाग्रह का आरोपण ज्यादा होगा ..
    देव जी ( यानी ज्ञान दत्त जी )शब्दों से प्रयोग सर्वोत्तम ढंग ढंग से करते हैं , यह कहना क्या मजाक उड़ाना है ?.. आपकी बात
    पढ़कर मैंने श्रीश द्वारा देव जी पर की गयी अन्य टिप्पणियों को देखा , कहीं भी मुझे मजाक उड़ाने जैसा नहीं दिखा | ३० oct .
    की '' देव दीपावली @ '' वाली पोस्ट पर श्रीश की छोटी-सी टिप्पणी है --- '' महामना को नमन...'' | कोई चाहे तो अपने पूर्वाग्रह
    का आरोपण यहाँ भी कर दे .. परन्तु यह संवाद-धर्मिता तो नहीं होगी .. ईगो-धर्मिता भले हो ..

    हाँ , देव जी ने भी अब तक जो किया है उससे 'महामना' में मजाक के अर्थ-विस्तार का जरा भी स्पर्श नहीं दिखता ..

    @ ''मुझे पता नहीं कि आपको क्यों लगा कि मैं अंध-श्रद्धा का पक्षधर हूँ.''
    मेरी क्या मजाल है जो आपको अंध-श्रधा का पक्षधर मानूँ .. मैंने उस प्रक्रिया की बात की जिसमे अंध-श्रधा , प्रश्न-परकता
    का गला घोटने लगती है .. सवाल अपमान माना जाने लगता है .. ऐसी प्रक्रिया के साथ जो भी हो , उसका स्टैंड गलत कहा जायेगा ..
    आपसे विनम्र असहमति ..

    ReplyDelete
  39. जब कभी भी पोस्ट पढ़ता हूँ तो यह सत्य है कि यदि विषय पहचाना सा लगता है तो तुरन्त टिप्पणी लिखना प्रारम्भ करता हूँ । अधिक भी लिखता हूँ और लिखने में डूब जाता हूँ । यदि पोस्ट में केवल कोई पंक्ति मन उकेरती है तो केवल उसी पर ही टिप्पणी लिखता हूँ । इस स्थिति में टिप्पणी लम्बी नहीं होती है पर उसे सारगर्भित रखने का प्रयास रहता है । यह रही मेरी । हाँ यह विषय जाना पहचाना था ।

    ReplyDelete
  40. इनबाक्स मे देखा तब पता चला कि यहा तो ठेलम ठेली हो गयी है....

    मुझे बस इतना बता दीजियेगा कि फ़ैसला क्या हुआ है..ग्यान जी लैकोनिक टिप्पणी करते है या नही करते है??

    तब तक एक चाय पीकर आता हू... :)

    ReplyDelete
  41. मेरे मामले में मामला लैकॉनिक होने या ना होने का कम रहता है, मैं नहीं सोच के रखता कि फलां जगह टिप्पणी करनी है या नहीं। यदि ब्लॉग पोस्ट में कुछ ऐसा दिखा कि टिप्पणी की जाए तो कर देता हूँ अन्यथा नहीं करता - फीड रीडर में जितना माल है उसको पढ़ अवश्य लेता हूँ। इसलिए कई जगह टिप्पणी पोस्ट के किसी वाक्य को उद्धरित कर सिर्फ़ "खूब" या "हा हा हा" वाली भी हो जाती है मात्र अपने भाव की अभिव्यक्ति के लिए। कही कुछ अधिक ही कहने का मन हो आता है कुछ पढ़ के तो टिप्पणी पोस्टनुमा भी बन जाती है। :)

    ReplyDelete
  42. अब यहाँ तो सारी टिप्पणियां महत्वपूर्ण हैं. किसी एक की टिपण्णी को महत्वपूर्ण कैसे कहा जाए? वैसे यह ज़रूर कहा जा सकता है कि द्विवेदी जी की टिपण्णी ज्यादा महत्वपूर्ण है.

    वैसे, श्रीश पाठक 'प्रखर' जी से एक सवाल था. अपनी टिप्पणियों में वे आपको 'महामना' लिखकर संबोधित करते हैं. ऐसे संबोधन में कितनी ईमानदारी है?

    ReplyDelete
  43. समीर जी को डेडीकेटेड आपकी पोस्ट टिप्पनिवेस्टमेण्ट ही बहुत है टिप्पणी का खेला समझने के लिये...

    और रही बात आपकी टिप्पणी की तो हमारे ब्लाग पर आपकी पोजिशन तीसरी है टिप्प्णियो के मामले मे, तो हमे तो कोई शिकायत नही.. :P

    ओन अ सीरिअस नोट - कभी कभी वन लाईनर्स मे जो बात होती है, वो लम्बे चौडे पैराग्राफ़्स मे नही.. ट्विटर वन लाइना ही तो है, आपके जैसे सटीक बोलने वालो के लिये सबसे उचित टूल....

    ReplyDelete
  44. कायल हो गए ! (लेकॉनिक टिपण्णी :) )

    आभार

    ReplyDelete
  45. अभियोग भी हुआ उस की स्वीकृति और सफाई भी। भारतीय अदालतों की तरह फैसला भी गायब ही रहेगा?

    ReplyDelete

आपको टिप्पणी करने के लिये अग्रिम धन्यवाद|

हिन्दी या अंग्रेजी में टिप्पणियों का स्वागत है|
--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय