Sunday, October 25, 2009

जवाहिरलाल बीमार है

Sanichara Sickजवाहिरलाल गंगदरबारी (बतर्ज रागदरबारी) चरित्र है। कछार में उन्मुक्त घूमता। सवेरे वहीं निपटान कर वैतरणी नाले के अनिर्मल जल से हस्तप्रक्षालन करता, उसके बाद एक मुखारी तोड़ पण्डाजी के बगल में देर तक मुंह में कूंचता और बीच बीच में बीड़ी सुलगा कर इण्टरवल लेता वह अपने तरह का अनूठा इन्सान है।

कुत्तों और बकरियों का प्रिय पात्र है वह। आदमियों से ज्यादा उनसे सम्प्रेषण करता है। कुत्तों के तो नाम भी हैं – नेपुरा, तिलंगी, कजरी। आप जवाहिरलाल से पूर्वपरिचित हैं। तीन पोस्टें हैं जवाहिरलाल पर -

हटु रे, नाहीं त तोरे… 
देसी शराब 
मंगल और तिलंगी

जवाहिरलाल गुमसुम बैठा था। मैने पूछ लिया – क्या हालचाल है? सामान्यत मुंह इधर उधर कर बुदबुदाने वाला जवाहिरलाल सम्भवत: अपनेपन का अंश देख कर बोल उठा – आज तबियत ठीक नाही बा (आज स्वास्थ्य ठीक नहीं है)।

क्या हुआ? पूछने पर बताया कि पैर में सीसा (कांच) गड़ गया था। उसने खुद ही निकाला। मैने ऑफर दिया – डाक्टर के पास चलोगे? उसने साफ मना कर दिया। बताया कि कड़ू (सरसों) के तेल में पांव सेंका है। एक सज्जन जो बात सुन रहे थे, बोले उस पर शराब लगा देनी चाहिये थी (जवाहिरलाल के शराब पीने को ले कर चुहुलबाजी थी शायद)। उसने कहा – हां, कई लेहे हई (हां, कर लिया है)।

जवाहिरलाल मूर्ख नहीं है। इस दुनियां में अकेला अलमस्त जीव है। अपनी शराब पीने की लत का मारा है।

अगले दिन मेरी पत्नीजी जवाहिरलाल के लिये स्वेटर ले कर गयीं। पर जवाहिरलाल नियत स्थान पर आये नहीं। तबियत ज्यादा न खराब हो गई हो!

श्री सतीश पंचम की प्रीपब्लिकेशन टिप्पणी (बाटलीकरण की अवधारणा): 

मुंबईया टोन में कहूं तो आप ने सनीचरा (जवाहिरलाल) को काफी हद तक अपनी बाटली में उतार लिया है    ( अपनी बाटली में उतारना मतलब - किसी को शराब वगैरह पिला कर विश्वास में लेकर बकवाना / कोई काम निकलवाना .....  हांलाकि आपने उसे मानवीय फ्लेवर की शराब पिलाई लगती है : ) 

   बाटली का फ्लेवर मानवीय सहानुभूति के essence में डूबे होने के कारण सहज ही सामने वाले को अपनी ओर खींच लेता है। सनीचरा भी शायद आपकी ओर उसी essence की वजह से खींचा होगा.....तभी तो उसने खुल कर बताया कि कडू तेल के साथ दारू भी इस्तेंमाल किया है इस घाव को ठीक करने में :)

बहुत पहले  मेरे बगल में एक कन्नड बुढिया रहतीं थी मलम्मा......खूब शराब पीती थी औऱ खूब उधम मचाती थी। पूरे मोहल्ले को गाली देती थी लेकिन मेरे पिताजी को  शिक्षक होने के कारण मास्टरजी  कह कर इज्जत से बुलाती थी। हमें अचरज होता था कि ये बुढिया इतना मान पिताजी को क्यों देती है।

   दरअसल, उस बुढिया की बात पिताजी ही शांति और धैर्य से सुनते थे...हां ...हूं करते थे। चाहे वह कुछ भी बके...बाकि लोग सुन कर अनसुना कर देते थे.... लेकिन केवल पिताजी ही थोडी बहुत सहानुभूति जताते थे....कभी कभी उसे भोजन वगैरह दे दिया जाता था....... यह सहानुभूति ही एक तरह से बाटली में उतारने की प्रक्रिया थी शायद....तभी वह अपने दुख सुख हमारे परिवार से बांटती थी .....

  अब तो वह बुढिया मर गई है पर अब भी अक्सर अपनी भद्दी गालियों के कारण याद आती है...हंसी भी आती है सोचकर......

बाटली में उतारना अर्थात बाटलीकरण कितनी जबरदस्त ह्यूमन रिलेशंस की अवधारणा है, जिसपर हम जैसे टीटोटलर भी मुग्ध हो सकते हैं। यह बाटलीकरण में दक्षता कितना भला कर सकती है मानवता का! सतीष पंचम जी ने तो गजब का कॉंसेप्ट दे दिया!

अपडेट:

आज डाला छठ के दिन सवेरे घाट पर गये। जवाहिरलाल बेहतर था। अलाव जलाये था।

Sanichara update

डाला छठ का सूरज 6:17 पर निकला। यह फोटो 6:18 का है:

Dala Chhath1

और यह नगाड़े का टुन्ना सा 6 सेकेण्डी वीडियो (डालाछठ पर गंगा किनारे लिया):


21 comments:

  1. जवाहिरलाल अकेला तो नही है. हर मुहल्ले, हर नुक्कड पर एक न एक जवाहिरलाल मिल ही जाता है.

    ReplyDelete
  2. लगता है यह गंगा भ्रमण निराला की भाव विह्वलता और परदुःख कातरता भी दम्पति में अता कर गयी है !

    ReplyDelete
  3. बाटली में उतारना अर्थात बाटलीकरण कितनी जबरदस्त ह्यूमन रिलेशंस की अवधारणा है

    सही कहा आपने ये बाटलीकरण भी जबरदस्त है अब देखिये न आपने भी अपनी कलम से हम जैसे कईयों को बाटली में उतार रखा है जो सुबह उठते ही घुमने जाने के बजाय पहले आप की पोस्ट टटोलते है |

    ReplyDelete
  4. सनीचरा के लिये 'गंगदरबारी' शब्द बहुत ही सटीक लग रहा है। अब चित्र में ही देखिये कि... सनीचरा के पीछे बाकी लोग खडे हैं और सनीचरा कैसे अलमस्त हो अलाव के पास गंगा किनारे दरबार लगाये बैठा है :)

    सनीचरा सीरीज की पोस्टें धीरे धीरे रोचक होती जा रही हैं।

    ReplyDelete
  5. जवाहरलाल द्वितीय सकुशल हैं यह जानकार खुशी हुई. स्वेटर का क्या हुआ?

    ReplyDelete
  6. @ स्मार्ट इण्डियन - आज डाला छठ देखने गये थे, सो स्वेटर ले कर नहीं गये थे। कल देखा जायेगा। वैसे पक्का नहीं कि जवाहिरलाल स्वीकार भी करेगा या नहीं।

    ReplyDelete
  7. बाटलीकरण एक नया शब्द हमने सहेज लिया है अपने शब्दकोश में, कभी उपयोग करके देखेंगे।

    ReplyDelete
  8. जय हो जवाहिर लाल अऊ बाटलीकरण-आभार

    ReplyDelete
  9. जवाहिर को हमारा नमस्ते कहियेगा

    ReplyDelete
  10. आप के नगर में ब्लॉगर सम्मेलन हुआ है और बहुत कुछ घटित भी हुआ है। मुझे तद्विषयक आप के लेख की प्रतीक्षा है।. . जवाहिरलाल को मुल्तवी करिए न कुछ देर के लिए।

    ReplyDelete
  11. बहुत कुछ पढ़ने को बकाया रह गया है। शुरुआत इस गंगदरबारी से ही कर रहा हूँ।

    ब्लॉगिंग की बातें बहुत हो लीं। अब इसके कन्टेन्ट को ही पढ़ने का मन कर रहा है। यहाँ आ कर बहुत सकून मिला।

    ReplyDelete
  12. बढिया रहा बाटलीकरण।बाटली मे कैसे उतारा जाता है यह सीख भी मिल गई।धन्यवाद।;)

    ReplyDelete
  13. जवाहिरलाल बेचारा... बहुत से जवाहिरलाल मिल जायेगे जो अपने हाल पर खुश रहते है या खुश रहने का दिखावा करते है

    ReplyDelete
  14. इससे एक किस्सा याद आया..एक बार लखनऊ मे हम कैब से कही जा रहे थे.. बगल मे दो कन्याए बैठी थी..तभी कैब मे एक महिला चढी.. बाल खुले हुए..

    जैसे चढी, उन लड्कियो से बात करने लगी, उनका दुपट्टा देखने लगी, बोलने लगी बहुत अच्छा है और कहा से लिया, इत्यादि...लड्किया भी उन्हे चोहले लेने लगी, लेग पुलिग करने लगी.... वो अपनी बातो से ’पागल’ कही जा सकती थी...

    तभी उन महिला ने बताया कि उनके देवर ने उन्हे कोर्ट से पागल घोशित करवा दिया है और उनके पति की जायदाद ले ली है.. और वो उस समय कोर्ट ही जा रही है..कैब मे बैठे लोगो को फिर भी लगा कि बुढिया पागल है..

    तब उन्होने अन्ग्रेज़ी मे अपनी बात बोलनी शुरु की, एकदम धाराप्रवाह ..... मैने देखा सबके चेहरे पर एक भाव था - ग्लानि और पश्चाताप का... कुछ वैसा भाव तो ’चरित्रहीन’ पढ्ने के बाद पाठ्क को आता है क्यूकि वो उस पुस्तक के पात्रो मे ’चरित्रहीन’ को ढूढता है लेकिन ’चरित्रहीन’ तो वो खुद होता है...

    (होप बहुत ज्यादा न लिख दिया हो :))

    ReplyDelete
  15. "वैतरणी नाले के अनिर्मल जल से हस्तप्रक्षालन करता".....

    इसे ही तो भारतीय कला कहते हैं:)

    बाटली में उतारने की कला में तो अरब लोग कब के माहिर थे। जवाहर जैसे को बाटली में उतारते और उसे जिन का नाम देते:)

    ReplyDelete
  16. ज्ञान भाई साहब
    अच्छा किया जवाहरीलाल की दूसरी
    कड़ियाँ भी यहां दीं -
    - आशा है वो सुखी रहेगा
    - लावण्या

    ReplyDelete
  17. जवाहिर उर्फ सनीचर के स्‍वास्‍थ्‍य लाभ की खबर से कुछ राहत मिली । कौड़ा सेंकता जवाहिर मन को संतोष देता है । नगाड़े का टुन्‍ना सा संगीत जोरदार है ।

    ReplyDelete
  18. जब तक हम आये जवाहरलाल ठीक भी हो गया :) बाटलीकरण बड़ा धाँसू कांसेप्ट है.

    ReplyDelete
  19. जवाहिर उर्फ सनीचर के स्‍वास्‍थ्‍य लाभ की खबर से कुछ राहत मिली । कौड़ा सेंकता जवाहिर मन को संतोष देता है । नगाड़े का टुन्‍ना सा संगीत जोरदार है ।

    ReplyDelete
  20. इससे एक किस्सा याद आया..एक बार लखनऊ मे हम कैब से कही जा रहे थे.. बगल मे दो कन्याए बैठी थी..तभी कैब मे एक महिला चढी.. बाल खुले हुए..

    जैसे चढी, उन लड्कियो से बात करने लगी, उनका दुपट्टा देखने लगी, बोलने लगी बहुत अच्छा है और कहा से लिया, इत्यादि...लड्किया भी उन्हे चोहले लेने लगी, लेग पुलिग करने लगी.... वो अपनी बातो से ’पागल’ कही जा सकती थी...

    तभी उन महिला ने बताया कि उनके देवर ने उन्हे कोर्ट से पागल घोशित करवा दिया है और उनके पति की जायदाद ले ली है.. और वो उस समय कोर्ट ही जा रही है..कैब मे बैठे लोगो को फिर भी लगा कि बुढिया पागल है..

    तब उन्होने अन्ग्रेज़ी मे अपनी बात बोलनी शुरु की, एकदम धाराप्रवाह ..... मैने देखा सबके चेहरे पर एक भाव था - ग्लानि और पश्चाताप का... कुछ वैसा भाव तो ’चरित्रहीन’ पढ्ने के बाद पाठ्क को आता है क्यूकि वो उस पुस्तक के पात्रो मे ’चरित्रहीन’ को ढूढता है लेकिन ’चरित्रहीन’ तो वो खुद होता है...

    (होप बहुत ज्यादा न लिख दिया हो :))

    ReplyDelete
  21. 2009 की टिप्पणियां 2011 में कॉपी-पेस्ट क्यों की गई है ?...... ऐसे किरदार होते तो आसपास ही हैं पर सबको नज़र नहीं आते

    ReplyDelete

आपको टिप्पणी करने के लिये अग्रिम धन्यवाद|

हिन्दी या अंग्रेजी में टिप्पणियों का स्वागत है|
--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय