Wednesday, October 7, 2009

कहीं धूप तो कहीं छाँव

work
praveen
यह पोस्ट श्री प्रवीण पाण्डेय की बुधवासरीय अतिथि पोस्ट है।
मैने एक बार अपने एक मित्र से मिलने का समय माँगा तो उन्होने बड़ी गूढ़ बात कह दी। ’यहाँ तो हमेशा व्यस्त रहा जा सकता है और हमेशा खाली।’ मैं सहसा चिन्तन में उतरा गया। ऐसी बात या तो बहुत बड़े मैनेजमेन्ट गुरू कह सकते हैं या किसी सरकारी विभाग में कार्यरत कर्मचारी।
आप यदि अपने कार्य क्षेत्र में देखें तो व्यक्तित्वों के ४ आयाम दिखायी पड़ेंगे।

  1. पहले लोग वो हैं जो न केवल अपना कार्य समुचित ढंग से करते हैं अपितु अपने वरिष्ठ व कनिष्ठ सहयोगियों के द्वारा ठेले गये कार्यों को मना नहीं कर पाते हैं। कर्मशीलता को समर्पित ऐसे सज्जन अपने व्यक्तिगत जीवन पर ध्यान न देते हुये औरों को सुविधाभोगी बनाते हैं।
  2. दूसरे लोग वो हैं जो सुविधावश वह कार्य करने लगते हैं जो कि उन्हें आता है और वह कार्य छोड़ देते हैं जो कि उन्हें करना चाहिये। यद्यपि उनके कनिष्ठ सहयोगी सक्षम हैं और अपना कार्य ढंग से कर सकते हैं पर कुछ नया न सीखने के सुविधा में उन्हें पुराना कार्य करने में ही मन लगता है। इस दशा में उनके द्वारा छोड़ा हुया कार्य या तो उनका वरिष्ठ सहयोगी करता है या कोई नहीं करता है।
  3. तीसरे लोग वो हैं जिन्हें कार्य को खेल रूप में खेलने में मजा आता है। यदि कार्य तुरन्त हो गया तो उसमें रोमान्च नहीं आता है। कार्य को बढ़ा चढ़ा कर बताने व पूर्ण होने के बाद उसका श्रेय लेने की प्रक्रिया में उन्हें आनन्द की अनुभूति होती है।
  4. चौथे लोग वो हैं जो सक्षम हैं पर उन्हें यह भी लगता है कि सरकार उनके द्वारा किये हुये कार्यों के अनुरूप वेतन नहीं दे रही है तो वे कार्य के प्रवाह में ही जगह जगह बाँध बनाकर बिजली पैदा कर लेते हैं।
इन चारों व्यक्तित्वों से आप के कार्य क्षेत्र में ’कहीं धूप तो कहीं छाँव’ की स्थिति उत्पन्न होती है और जिसके द्वारा मित्र द्वारा कहे हुये गूढ़ दर्शन को भी समझा जा सकता है।
यदि समय कभी भी निकाला जा सकता है और कितनी भी मात्रा में निकाला जा सकता है, इस दशा में भी यदि मेरे मित्र अपने काम में लगनशीलता से लगे हैं तो उनका समर्पण तुलसीदास के स्वान्तः सुखाय से किसी भी स्तर में कम नहीं हैं। श्रीमान बधाई के पात्र हैं।

ज्ञानदत्त पाण्डेय का कथ्य
उक्त चार प्रकार के बारे में पढ़ते ही हम अपने को देखने लगते हैं कि कौन से प्रकार में आते हैं। मैं तो पहले अपने आप को प्रकार 1 में पाता था, पर अब उत्तरोत्तर प्रकार 2 में पाने लगा हूं। बहुधा जैसे जैसे हम अपनी दक्षता के बल पर प्रोमोशन पाते हैं तो जो कार्य दक्षता से कर रहे होते हैं, वही करते चले जाते हैं। यह सोचते ही नहीं कि हमारा काम बदल गया है और जो काम हम पहले करते थे, वह औरों से कराना है। एक प्रकार का फेक वर्क करने लगते हैं हम!

work1 बाकी, बड़बोले और खुरपेंचिये (प्रकार - 3 और 4) की क्या बात करें!

बड़बोले और खुरपैंचिये? मैने इन शब्दों का प्रयोग किया कोई बहुत मनन कर नहीं। मुझे नहीं मालुम कि प्रवीण सभी कार्य करने वालों को चार प्रकार में बांट रहे हैं, या मात्र कुछ प्रकार बता रहे हैं [1]। यदि पूरे का वर्गीकरण है तो हर प्रकार का एक सुगठित नाम होना चाहिये। और अन्य प्रकार के काम करने वाले हैं तो आप चुप क्यों हैं? उनके प्रकार/विवरण और नामकरण के लिये मंच खुला है! ओवर टू यू!

[1] - प्रवीण ने अपना स्पष्टीकरण टिप्पणी में दे दिया है। कृपया उसे ले कर चलें:
यह वर्गीकरण किसी कार्यव्यवस्था में ’कहीं धूप तो कहीं छाँव’ की स्थिति उत्पन्न करने वाले कारकों के लिये ही है । हम सभी को इन प्रभावों से दूर रहने का प्रयास करना चाहिये । यह पोस्ट आदरणीय ज्ञानदत्त जी की फेक कार्य पोस्ट से प्रेरित है ।


32 comments:

  1. पोस्ट पसंद आई. चारों मे से हर श्रेणी के लोग करीब रहे हैं. खुद को कहाँ रखता हूँ..यह नहीं बताता मगर मनन योग्य है कि अपनी श्रेणी देखें और प्रयास हो कि उपर बढ़ें.

    ReplyDelete
  2. यह तो हुई नौकरी शुदा लोगो की श्रेणी . और हम जैसे कुछ लोग तो इन श्रेणियों के दायरे से बाहर है . फिर भी धूप छाँव तो महसूस होती है

    ReplyDelete
  3. हमें तो जी जादे खुरपैंचिये ही मिले हैं ओइसे हम अपने को कटेगरी वन में पाते हैं..प्रवीण जी बडे पारखी हैं..

    ReplyDelete
  4. मैंनेजमेंट ट्रेनिंग के दौरान 12 Angry Men फिल्म हम लोगों को यही बातें बताने के लिये दिखाई गई थी।

    एक वो होते हैं जो बहुमत देख कर पलट जाते है, अपना निर्णय नहीं लेते

    एक वो होते हैं जो अपना निर्णय ले तो लेते हैं पर अपने लिये निर्णय पर विश्वास नहीं कर पाते

    और कुछ होते हैं जो अपने निजि दुखद या सुखद अनुभवों को निर्णय लेते समय घालमेल कर देते हैं और नतीजा कबाडा होने मे देर नहीं लगता है।

    और भी बहुत कुछ प्रकार के लोगों के बारे में यह फिल्म बता रही है।

    ReplyDelete
  5. बढ़िया और सटीक वर्गीकरण किया है |
    बड़बोले और खुरपेंचिये (प्रकार - 3 और 4) लोगों से हमेशा हर क. में वास्ता पड़ता है , ये लोग बहुत दुखी करते है |

    ReplyDelete
  6. प्रवीण जी !!
    सच कहूँ (बगैर कोई मुखौटा ? लगाए ) तो मै अपने को किसी भी कैटेगरी में नहीं रख पा रहा हूँ ?
    शायद यह 4 से आगे ज्यादा बढे ...? तो हमारे लिए गुंजाइश हो?
    वैसे कार्य और अपनी जिम्मेदारी को बखूबी निभाने का प्रयास करता हूँ .... बाकी यदि वह रूचि का है तो फिर क्या कहने ?
    रही बात बाँध बना बिजली पैदा करने की तो हमारे पेशे में कोई गंगा नहीं है सरकार!! सो कहने वाले मजबूरी के ईमानदार कह सकते हैं!

    कुछ तो है उस दंडधारी शख्स में ....?

    ReplyDelete
  7. बास चार में ही समेट दिया सब सरकारी कर्मचारियों को! जय हो!

    ReplyDelete
  8. @ "मुझे नहीं मालुम कि प्रवीण सभी कार्य करने वालों को चार प्रकार में बांट रहे हैं, या मात्र कुछ प्रकार बता रहे हैं। यदि पूरे का वर्गीकरण है तो हर प्रकार का एक सुगठित नाम होना चाहिये।"

    यह वर्गीकरण किसी कार्यव्यवस्था में ’कहीं धूप तो कहीं छाँव’ की स्थिति उत्पन्न करने वाले कारकों के लिये ही है । हम सभी को इन प्रभावों से दूर रहने का प्रयास करना चाहिये । यह पोस्ट आदरणीय ज्ञानदत्त जी की फेक कार्य पोस्ट से प्रेरित है ।

    ReplyDelete
  9. हमारे जैसी गृहस्थ स्त्रियाँ तो किसी भी खांचे में फिट नहीं बैठती ...शायद उनको वर्गीकरण की दृष्टि से देखा ही नहीं जाता ...!!

    ReplyDelete
  10. नक्षत्र तो सत्ताईस हैं पर कम से कम बारह श्रेणियाँ तो होनी चाहिए राशियों के हिसाब से। चार तो बहुत कम हैं।

    ReplyDelete
  11. बात निर्गुण से शुरू हो सगुण तक आ गयी -बढियां !

    ReplyDelete
  12. वे कार्य के प्रवाह में ही जगह जगह बाँध बनाकर बिजली पैदा कर लेते हैं।

    ठीक ही कहा, और आजकल ऐसे लोग इतनी बिजली पैदा कर रहे हैं कि स्विस बैंक तक को सप्लाई कर रहे हैं.

    वैसे मैंने तो कर्मचारियों, मातहतों, अधिकारीयों की गुणवत्ता समझाने और उसके अंकुल व्यव्हार करने के जो नुख्से पड़े थे वे इस प्रकार थे----- .

    He who knows not, and
    knows not he knows not
    he is a fool--shun him

    He who knows not, and
    knows he knows not--
    he is a child-- help him

    He who knows, and
    knows not he knows---
    He is asleep----wake him

    He who knows, and
    knows he knows----
    He is a wise----follow him.

    चन्द्र मोहन गुप्त
    जयपुर
    www.cmgupta.blogspot.com

    ReplyDelete
  13. गुरूदेव,प्रवीण जी से कहिये हम जैसे निट्ठल्ले लोगों के लिये भी केटेगरी बनायें।ये शायद पब्लिक डिमांड है और आप ज़रा ब्लागरो पर भी अपनी पैनी नज़र डालियेगा।प्रवीण जी की पोस्ट पढकर अब फ़ुरसत से खुद के बारे मे सोचूंगा।

    ReplyDelete
  14. हमें तो खुद की श्रेणी मिल गई परंतु हम उसे गोपनीय ही रखेंगे। बताने से हमें नुकसान हो सकता है। :) प्रबंधन पर अच्छा आलेख।

    ReplyDelete
  15. wakai main satish ji,gyndutt ji, praveen ji...

    jyun hi is post ko padha 12 angry man ki yaad taaza ho aaiye.

    waise praveen ka vishleshan accha hai....

    aur apka PS bhi.

    ReplyDelete
  16. हमारी तो बस हाजिरी लगा लीजिए,

    इससे ज्यादा कुछ कहा तो न जाने किसके पेट में दर्द हो जाय :)

    ReplyDelete
  17. सरल सी भाषा में कहें तो- वो जो कर सकते हैं और करते हैं, वो जो कर सकते हैं और नहीं करते, वो जो नहीं कर सकते पर कर रहे हैं और वो जो नहीं कर सकते और नहीं कर रहे हैं:)

    ReplyDelete
  18. एक वर्ग वो है जिसे काम करना ही पड़ता है... वर्ना कोई गुन्जाईस नहीं ! अगर आप केवल सरकारी की बात कर रहे हैं तो और बात है. इसलिए लिख गया क्योंकि मुझे ये पोस्ट याद आ गयी. http://feedproxy.google.com/~r/TheBigPicture/~3/ZEXRnn1qB20/

    ReplyDelete
  19. बड़ा ही सही और सार्थक वर्गीकरण और विवेचना की है आपने.....

    ReplyDelete
  20. sir ,

    namaskar...

    apne desh ki govt managed companies ke baare me accha vishleshan hai ..

    jab bhi main kisi govt. kaaryalaya me jaata hoon ... mujhe yahi chaaro divisions nazar aate hai..

    is post ke liye meri badhai sweekar kare..

    dhanywad

    vijay
    www.poemofvijay.blogspot.com

    ReplyDelete
  21. आदरणीय ज्ञानदत्त जी,

    एक अच्छी पोस्ट जो केवल क्लासिफिकेश/कॅटेगराईजेशन तक ही सीमित नही रही बल्कि प्रत्येक को परिभाषित भी करती है ताकि पाठक अपने आपको सुविधानुसार श्रेणीबद्ध कर सके।

    प्रवीण जी को बधाई,

    और अंत आपका तड़का तो जैसे जैसे रेसिपी में एरोमा को पैदा कर देता है। वाकई मास्टर शेफ तो मास्टर होता ही है।

    सादर,


    मुकेश कुमार तिवारी

    ReplyDelete
  22. sarkari naukri mein aadmi ke liye apni buddhi aur vivek ko zyada din tak bacha pana utna hi mushkil hota hai jitna ek bade sheher mein abla ladki ke liye apni izzat bachana hota hai........... kuchh apne se haar maan lete hain aur buddhiheen va vivek-heen ho jaate hain, aur jo nahin maante unki buddhi aur vivek par aaye din har koi ashleel fatbe kasta hai aur kisi din ek dardnaak hadse ke baad vo karmchari pata hai ki vo lut chuka hai ........... sirf kuchh chune huye log hi kaane logon ki duniya mein apni do aankhein bacha ke rakh paate hain....varna har kana uski 1 aankh fodne ke liye betaab rehta hai......aur jinki do aankhein hoti bhi hain, vo 1 band rakh kar hi kaam karte hain ki kahin kisi ko pata na chal jaaye ;)
    .....ummeed karta hun aapke "mitra" bina kisi darr ke apne dono chakshu khule rakh payenge taki vo aapke dwara ankit 4 shreniyon mein aane se bach saken .........
    aapka mitra
    Abhay

    ReplyDelete
  23. सुन्दर वर्गीकरण.

    ReplyDelete
  24. हमरे कॉलेज के जमाने चलता था,
    'रहिमन इस संसार में भाँति भाँति के लोग।
    कुछ थोड़े ________ कुछ बहुते ______।'
    अश्लील था लेकिन बहुत सी सम्भावनाएँ लिए था। काश !जटिल मानव स्वभाव को श्रेणीबद्ध कर देना इतना आसान होता । हाँ मानव स्वभाव से खेल कर अपना काम निकालने की कला (जिसे मैं प्रबन्धन कहता हूँ।) में माहिरों के लिए यह अच्छा मसाला है।

    ReplyDelete
  25. अजी कुछ ओर श्रेणी बढा ले इन चारो मे तो कोई फ़िट नही बेठती, ओर जबाब ना देना अपने आप को निखठू साबित करना है, जब कि हम निखटु नही है.
    बहुत सुंदर लिखा, लेकिन लिखा सिर्फ़ सरकारी नोकरी वालो के लिये ही

    ReplyDelete
  26. दफ़्तरों में बिखरे पड़े हैं-तीसरी कोटि के लोग

    ReplyDelete
  27. इन सभीश्रेणियो के लोग तो हमारे आसपास ही रहते हैं ।

    ReplyDelete
  28. एक श्रेणी और भी जोडी जा सकती है -

    वो लोग जिन्हे २४x७ आप एक कोने मे नही बिठा सकते और बिठाना है तो आपको उन्हे नये से नये काम से बाध कर रखना होगा..

    हम इसी श्रेणी मे आते है :) :) ..with a blush

    ReplyDelete
  29. Dinesh Ray jee se sahamat. shreniyan aur bhee honee chahiye. waise aajkal to hum jao bhee kam mil jaye kar lete hain bharsak koshish karake apne taeen badhiya karen.

    ReplyDelete
  30. अच्छी ---रोचक पोस्ट--किस श्रेणी में खुद को समायोजित करूं समझ नहीं पा रहा।
    हेमन्त कुमार

    ReplyDelete
  31. इसमें तो बड़ा लोचा है. अभी कई वर्ग छूट गए हैं. एक वर्ग वह है जिसे कुछ नहीं आता है, पर सब कुछ करने के लिए तैयार रहता है. एक वह भी है जो कुछ नहीं करता है, और यह प्रचार करता रहता है कि सब कुछ उसी ने किया. मुझे तो कई और वर्ग सूझ रहे हैं. लेकिन चूंकि यह काम समाजशास्त्रियों का है और मैं उनके पेट पर लात नहीं मारना चाहता, लिहाजा नहीं कर रहा हूं. :)

    ReplyDelete
  32. I have already learnt about 4 categories of government employees/officers from you but now through this blog, this cocept of 4 categories is shared with all the readers. Good article.

    ReplyDelete

आपको टिप्पणी करने के लिये अग्रिम धन्यवाद|

हिन्दी या अंग्रेजी में टिप्पणियों का स्वागत है|
--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय