Friday, September 18, 2009

कछार पर कब्जा


भाद्रपद बीत गया। कुआर के शुरू में बारिश झमाझम हो रही है। अषाढ़-सावन-भादौं की कमी को पूरा कर रहे हैं बादल। पर गंगामाई कभी उतरती हैं, कभी चढ़ती हैं। कभी टापू दीखने लगते हैं, कभी जलमग्न हो जाते हैं।

दिवाली के बाद कछार में सब्जी की खेती करने वाले तैयारी करने लगे हैं। पहले कदम के रूप में, कछार पर कब्जा करने की कवायद प्रारम्भ हो गयी है।

Parvezएक बारह तेरह साल का बच्चा मदार की डण्डी गाड़ रहा था गंगा तट पर। अपने खेत की सीमा तय करने को। उससे पूछा क्या कर रहे हो, तो साफ साफ जवाब न दे पाया। घर वालों ने कहा होगा यह करने को। मैने नाम पूछा तो बताया परवेज। परवेज़ अगले दिन भी दिखाई दिया। पूछने पर बताया कि चिल्ला गांव का रहने वाला है। पिछले साल तरबूज की खेती की थी। इस साल भी उसे आशा है कि गंगा और पीछे हटेंगी। और जमीन देंगी खेती करने को।

अच्छा है, गंगामाई हिन्दू-मुसलमान का भेदभाव नहीं करतीं।

केवल गंगा तट पर ही नहीं गाड़ रहे हैं लोग चिन्ह। दूर जहां टापू उभर रहे हैं, उनपर भी जा कर डण्डियां या लकड़ी गाड़ आ रहे हैं। बहुत विस्तार है गंगा तट पर और बहुत सी रेतीली जमीन। पर आदमी की हाह और भी ज्यादा है। मुझे लगता है कि आने वाले महीने में इस कब्जे को ले कर आपसी झड़पें-झगड़े भी होंगे!


एक टापू पर चिन्ह गड़ा है। मैं फोटो लेने का प्रयास करता हूं तो देखता हूं कि दो कुत्ते तैरते हुये उस द्वीप की ओर चले जा रहे हैं। कुत्ते भी तैर लेते हैं। टापू पर कोई मछली या जलीय जीव फंसा है, जिसे ये अपना आहार बनाने को तैरने का जोखिम ले रहे हैं। एक कुतिया भी वहां जाने को पानी में हिलती है, पर उसकी हिम्मत अंगद छाप है – कछु संशय पुनि फिरती बारा! वह वापस आ जाती है।

मुझे इन्तजार है जब यहां सब्जी के खेत तैयार होने शुरू होंगे! आप तो पिछले साल की पोस्ट देखें – अरविन्द का खेत!  
Ganga Spateयह पोस्ट लिखे एक सप्ताह हो गया। उसके बाद यमुना में कहीं से पानी छोड़ा गया। संगम के पास पंहुच उस पानी ने धक्का मारा और शिवकुटी के पास गंगाजी का बहाव बहुत धीमा हो गया। तट पर यमुना से बैक वाटर आ गया। नाले जो गंगा में पानी डालते थे, उनमें पानी वापस जाने लगा। आज भी वह दशा है। अब गंगा किनारे सैर का मैदान ही न बचा! परवेज के कब्जा करने के ध्येय से गड़े डण्डे न जाने कहां चले गये। पर आदमी एक हफ्ते बार फिर वही काम चालू करेगा – डण्डा-झण्डा गाड़ने का!

Dinesh Grover पिछले शनिवार मैं लोकभारती प्रकाशन पर गया। वहां दिनेश ग्रोवर जी मिले। बात बात में दसवीं कक्षा की परीक्षा वैकल्पिक करने की चर्चा हुई। बड़ी सटीक टिप्पणी थी दिनेश ग्रोवर जी की -

ये अमेरिका की नकल कर रहे हैं वकील साहब (श्री सिब्बल)! जैसे निकम्मे बच्चे अमेरिका में बन रहे हैं, वैसे यहां भी पैदा होने लग जायेंगे।

आप ग्रोवर जी से सहमत हों या न हों। पर उनकी अस्सीवें दशक की उत्तरार्ध की उम्र में सोच की गहराई से प्रभावित हुये बिना नहीं रह सकते। (और यह मेरा कहना इस बात से प्रेरित नहीं है कि दिनेश ग्रोवर जी ने बहुत बढ़िया कॉफी पिलाई! )

30 comments:

  1. Asha karati hoon ki Gangamaee sabko jameen dengi aur bharan poshan ka sadhan bhee koee parmanent kabja thodehee karana hai.
    Ab Grover jee ki coffee to aapne pee hum kaise kahen ?

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  2. अच्छा है, गंगामाई हिन्दू-मुसलमान का भेदभाव नहीं करतीं।


    ग्रोवर जी की बात की गहराई को तो कैसे नकारा जा सकता है. आखिर कॉफी भी तो पिलाई है.

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  3. आशा रखती हूं कि बिना झडप और झगडे के गंगा मैया के इतने बडे किनारे में खेती के लिए सभी लोगों जगह मिल ही जाएगी।
    ये अमेरिका की नकल कर रहे हैं वकील साहब (श्री सिब्बल)! जैसे निकम्मे बच्चे अमेरिका में बन रहे हैं, वैसे यहां भी पैदा होने लग जायेंगे।
    दिनेश ग्रोवर जी की बात से सहमत हूं .. परीक्षा के बिना पढाई कैसी ?

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  4. ...कुआर के शुरू में बारिश झमाझम हो रही है।

    Aapki monlate ki bhavishyavani satik rahi :)

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  5. १९९० के Decade of the Brain and the Decade of education का एक प्रसिद्द वाक्य था use it or loose it. ग्रोवर साहब की बात से सहमत हूँ, अपना तो रोज का भुगतना है.............. अमेरिकन एजूकेशन सिस्टम बाप रे बाप.

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  6. एक एक हफ़्ते धरी रहती हैं पोस्टें लिखी हुई! हे भगवान क्या हो रहा इस ब्लाग जगत में!

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  7. हमारे यहाँ तो गंगाजी के तट पर माफियाओं का कब्जा है ५०० रु बीघा तक लेते है पालेजो की खेती के लिए आसमीओं से . जहाँ तक रायफल की गोली जाती है वह जमीन उनकी .
    ग्रोवर जी का अनुभव सत्य ही कह रहा है . निक्कमे और नाकारा पीढी का आगमन सुनिश्चित है .

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  8. बहुत बढ़िया लिखा है आपने! पढ़कर बहुत अच्छा लगा! गंगामाई के लिए सब एक बराबर है कोई भेद भाव नहीं है!

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  9. अच्छा है, गंगामाई हिन्दू-मुसलमान का भेदभाव नहीं करतीं।

    गंगा माई तो धार्मिक आधार पर कभी भेदभाव नहीं करती , इन्सान ही ऐसे काम करते है |

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  10. लोकभारती प्रकाशन ,गंगा ज्ञान लहरी ,सबकुछ सही रस्ते पर जा रहा है !

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  11. नालायकी की बात तो सही है पर आज हालत ये है कि बच्चा 90% से कम नंबर लाए तो मां-बाप कहीं मुंह दिखान लायक नहीं रहते. आज के बच्चों को पता नहीं कल यहां फ़र्स्ट क्लास फ़र्स्ट जैसी भी कोई चीज़ हुआ करती थी...

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  12. पूण्य सलिला मां जाह्नवी सच में भेदभाव नहीं करती । आभार ।

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  13. सच है ..गंगामाई हिन्दू-मुसलमान का भेदभाव नहीं करतीं।
    दिनेशजी का कथन सही है..परीक्षा के बिना पढ़ाई का इतना मोल नहीं रह जाएगा..कमजोर छात्रों को प्रोत्साहन देने के और भी तरीके हो सकते है मगर नक्कारखाने में तूती की आवाज कौन सुने..!!

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  14. गंगा माई कौनो राजनीतिक पार्टी थोड़े न हैं जो धर्मनिरपेक्षता की नौटंकी करेंगी! ऊ तो सच्चैमुच्च करती हैं, जो भी करना होता है.

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  15. दसवीं बोर्ड परीक्षा - एक महीने पहले मैंने सारथी ब्लॉग (जे. सी. फ़िलिप शास्त्री जी) पर अपनी टिप्पणी में यही बात कही थी. उसे यहां दोहराना चाहूंगा.
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    "पहले बुश और फ़िर बाद में ओसामा अपने देश में बच्चों से कहते हुए पाये गये हैं कि पढ़ो वरना सारी नौकरियाँ भारतीय बच्चे ले जायेंगे. हो भी यही रहा है. जहाँ भी अवसर मिल रहा है सबको पछाड़कर भारतीय अपनी जगह बना रहे हैं. ऐसे में कुछ कुतर्कों का सहारा लेकर शिक्षा के मूल ढांचे से छेड़खानी उचित नहीं लगती.

    दसवीं बोर्ड हटाना महामूर्खतापूर्ण कदम होगा."

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    भारतीय शिक्षा व्यवस्था के वर्तमान स्वरूप को पलीता लगाने का जो भागीरथी प्रयास सिब्बल साहब कर रहे हैं, उसके पीछे अमेरिकी षड्यंत्र के एंगल से भी सोचा जाना चाहिये. इस देश के सारे नेता बिकाऊ हैं और सबसे ज्यादा पर्चेसिंग पॉवर अमेरिका के पास है.

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  16. @ अनूप जी,

    होता है, होता है.

    हमने एक पोस्ट लिखी थी मौसम के ऊपर,

    पोस्ट प्रकाशित करने ही वाले थे कि मौसम बदल गया,

    अब अगले साल शायद एसा मौसम आए तब पोस्ट करेंगे,

    ड्राफ़्ट में पड़ी है, उधार चाहिए तो सम्पर्क करें!

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  17. गंगा तो जगह दे देती है सब को, लेकिन गंगा के लिए कोई जगह छोड़ी है मानवों ने?

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  18. नदियों के कछार में हर वर्ष बहुत मात्रा में खेती की जाती है । कई जगह नदी से लगे हुये खेतों के मालिक अपने खेतों का विस्तार उतरती नदी की ओर बढ़ा देते हैं इसलिये उन स्थानों में स्वामित्व को लेकर कोई विवाद नहीं होता है । यदि नदी के बगल में खेत न हों और नदी के बीच में टापू निकल आयें तो स्वामित्व का निर्धारण कठिन कार्य है । इस दशा में शक्ति से सीमायें निर्धारित होंगी । स्वामित्व के आभाव में पूरा का पूरा कछार का क्षेत्र ठेके पर उठाया जा सकता है बालू के ठेके की तरह ।

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  19. दिनेश जी की बात मानव सुन नहीं रहे होंगे न!
    गंगा जी का आँचल बड़ा है - सारा विस्तार समा जाता है उसमें ।

    मैंने फिर अनुभव किया कि एक ही प्रविष्टि में दूसरी किसी द्वितीयक प्रविष्टि का समावेश एक विचित्र प्रभाव उत्पन्न करता है ।

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  20. नदियो के कछार मे इस तरह खेती पूरे देश मे आम लोगो के लिये अभिशाप बनी हुयी है। इस खेती मे दूसरी आधुनिक खेती की तरह जमकर रसायनो का प्रयोग होता है। ये रसायन सीधे ही पानी मे पहुँचते है और अगले ही घाट मे नहाने वाले लोगो पर असर डालना शुरु कर देते है। यह प्रदूषण का अन्देखा पर भयानक पहलू है। छत्तीसगढ मे इस तरह की खेती से न केवल आम लोगो बल्कि जलीय जीवो को भी जबरदस्त नुकसान हो रहा है। जैव-विविधता खतरे मे है। नदियो को बचाने के लिये ऐसी खेती पर अंकुश लगे या फिर केवल और केवल जैविक खेती को अनुमति मिले।


    आपने मदार की डंडी का जिक्र किया है। कभी गंगा के किनारे मदार के पौधो की स्थिति के बारे मे भी लिखियेगा।

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  21. कुछ समय बाद जमीन के लिए हफ्ता देना पड़ेगा. आबादी जिस तरह से बढ़ी है...अराजकता लाएगी ही.

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  22. गंगा मैया सबके पाप धो देती है वो तब भी नही पूछती कि तो अनिल है आलम्। वैसे ग्रोवर साब की बात मे दम है।

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  23. अपने मंत्री जी लोग ऐसे ही हैं. मुझे लगता है सिब्बल साहब जब विज्ञानं और तकनीक मंत्रालय में थे तब मानव संसाधन विकास मंत्रालय के बारे में छोड़कर और कुछ सोचते ही नहीं होंगे. शायद यही कारण है कि वर्तमान मंत्रालय में आने के बाद उन्होंने तुंरत यह घोषणा कर डाली कि परीक्षा हटाने के बारे में विचार कर रहे हैं. ऐसा कहने से यह साबित करने में सुभीता रहता है कि मंत्री जी गंभीरता से काम कर रहे हैं.

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  24. १. 'अरविन्द का खेत' पोस्ट मुझे बहुत पसंद आई थी और इस पर एक पोस्ट लिखने का सोचा था जो अब तक ड्राफ्ट में ही है :)

    २. गंगा माई हिन्दू मुसलमान क्या किसी भी बात का भेद भाव नहीं करती इसीलिए तो माई हैं. सूरज की रौशनी तो हर वस्तु पर समान रूप से ही पड़ती है... !

    ३. आप फोटो खिचाने ही बैठे या नौका विहार भी किया :) पोज तो दार्शनिक की है. जो स्वाभाविक ही है.

    ४. सिब्बल साहब वाली बात पर... मुझे तो अब तक लगता था कि पाठ्यक्रम में जो भी बदलाव होते हैं काफी सोच समझ कर किये जाते हैं, और अगर समय के साथ ९०-९५ प्रतिशत अंक आने लगे थे तो मैं ये कभी नहीं कहता था कि पढाई हलकी या खराब होती जा रही है. पर जिस आनन-फानन में ये फैसला इम्प्लीमेंट हुआ. मुझे वो बात नहीं दिखी. और तीन लोगों की कही बातें याद आ रही है. अभी हाल में ही कोर्नेल में पीएचडी कर रही एक छात्रा इन्टर्न करने आई थी हमारे ग्रुप में और उसने बताया कि कोर्नेल में पीएचडी में भारत से आने वाले (मुख्यतः आईआईटी से) छात्रों और बाकीयों के इंटेलिजेंस लेवल में एक बड़ा गैप होता है.

    दुसरे मेरे एक प्रोफेसर साहब कि बात जिन्होंने बताया कि जब बादेन (स्विट्जरलैंड) में एबीबी कंपनी के कारन कई भारतीय परिवार आते हैं और अंग्रेजी माध्यम स्कूलों कि महंगाई और कम सीटों की वजह से उन्हें अपने बच्चों का नाम जर्मन माध्यम में लिखवाना पड़ता है. और बच्चे जो भारत से आते हैं वो गर्मी कि छुट्टियों में जर्मन सीख लेते हैं और फिर क्लास में उनके अंक और वहां के बच्चों के अंक में एक गैप होता है. कई जर्मन परेंट्स इस बात से परेशान हैं !

    और हाल में मेरी मौसी के बेटे जो दसवी पास कर के ऑस्ट्रेलिया चले गए. शुरू में काफी दिनों तक इस बात को लेकर परेशान रहे कि वहां कुछ पढना ही नहीं होता है. अब थोड़े नोर्मल हुए हैं और ऑस्ट्रेलिया कि सबसे बड़ी समझी जाने वाली एक स्कोलरशिप मिली है उन्हें !

    ये बातें कैसे बदलेंगी ये तो समय ही बतायेगा.

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  25. आदरणीय पाण्डेय जी,
    क्या बताऊं इधर इलाहाबाद नहीं आ पा रहा हूं नहीं तो कैमरा लेकर मैं भी आपके साथ कछार में टहलता।कोशिश करूंगा दशहरे में आऊं।
    तब तक आपके ब्लाग एवम लेखों के माध्यम से ही गंगा जी का दर्शन करके सन्तोष कर लेता हूं।
    शुभकामनाओं के साथ।
    हेमन्त कुमार

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  26. जीविका का संधान कहीं भी ले जा सकता है। गंगामाई तो दूर, हिन्द महासागर का तल भी जरा सा गिरे तो गाड़ने वाले वहाँ भी झंडॆ गाड़ आयेंगे।

    बोर्ड परीक्षा को वैकल्पिक करने के निर्णय से तो मैं भी सहमत नहीं हूँ।

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  27. "मुझे इन्तजार है जब यहां सब्जी के खेत तैयार होने शुरू होंगे...."

    ओह! मैं तो समझा आप इन्तज़ार कर रहे हैं उन झड़पों का, ताकि चित्र हम तक पहुंचा सके:)

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  28. ग्रोवर जी की चिन्ता जायज है, हम भी इसी बात से परेशान हैं

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  29. पहले सुना है कि आठवीं का भी बोर्ड होता था बाद में हटा दिया गया। अब दसवीं का बोर्ड भी हटाया जा रहा है। अमेरिकी स्टाईल में Cow Boys school अर्थात चरवाहा विद्यालय की ओर तो नहीं बढ रहे हैं हम लोग :)

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  30. "जैसे निकम्मे बच्चे अमेरिका में बन रहे हैं, वैसे यहां भी पैदा होने लग जायेंगे"
    सहमति का सवाल ही पैदा नहीं होता, यहाँ के बच्चे हमारे देश के छात्रों की तरह किताबी कीडे न भी हों मगर उन्हें किसी भी परिभाषा से निकम्मा नहीं कह सकते हैं.

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--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय