Wednesday, September 2, 2009

देसी शराब


boat upside down उस शाम सीधे घाट पर जाने की बजाय हम तिरछे दूर तक चले गये। किनारे पर एक नाव रेत में औंधी पड़ी थी। मैने उसका फोटो लिया। अचानक शराब की तेज गंध आई। समझ में आ गया कि उस नाव के नीचे रखी है देसी शराब। लगा कि वहां हमारे लिये कुछ खास नहीं है। वापस आने लगे। तभी किनारे अपना जवाहिरलाल (उर्फ मंगल उर्फ सनिचरा) दिखा। उसी लुंगी में और उतना ही शैगी।

Sanichara उलटी नाव, शराब और सनिचरा – मैं इनमें समीकरण तलाशने लगा। आस-पास महुआ के पेड़ नहीं हैं – बाहर देहात से ही लाना होता होगा! इनसे निर्लिप्त गंगा शान्त भाव से बह रही थीं। पंण्डित नरेन्द्र शर्मा/भूपेन हजारिका के गंगा वाले गीत में इस पक्ष का जिक्र है जी?!

गंगा के कछार की अर्थव्यवस्था मानस पटल पर आ गई। इलाहाबाद से आगे – जिगिना-गैपुरा-बिरोही-बिंध्याचल के इलाके के कछार में एक ही फसल होती है। गंगाजी की कृपा से बहुत ज्यादा मेहनत नहीं मांगती वह फसल। पर उसके अलावा रोजगार हैं नहीं। समय की इफरात। गरीबी। लोगों में दिमाग की कमी नहीं – लिहाजा खुराफाती और अपराधी दिमाग। आप यह न कहें कि मैं एक क्षेत्र की अनाधिकार आलोचना कर रहा हूं। मैं उस क्षेत्र का हूं – लिहाजा आलोचना का कुछ हक भी है।

जब श्री धीरू सिंह अपनी टिप्पणी मे कहते हैं -

हमारे यहाँ तो गंगा जी के किनारे रात में जाना बहुत वीरता का काम है।

तब समझ आता है! गंगा शठ और सज्जन –  सब को सम भाव से लेती हैं।


  • कल अपनी इसी लुंगी में और उघार बदन टुन्न सनिचरा उन्मत्त नाच रहा था। उसका कमर मटकाना उतना ही मस्त और उतना ही श्लील था, जितना फलानी सावन्त और ढिमाकी शकीरादेवी करती होंगी! और आपने सही अन्दाज लगाया, मुझे टिकट के पैसे नहीं खर्चने पड़े यह लाइव देखने के लिये!
  • घोस्ट बस्टर जी ने कहा कि मैं फोटो कंजूस रिजॉल्यूशन की लगाता हूं। अब वह गोधूलि वाली फोटो डाक्यूमेण्ट साइज में देख लें। आइकॉन पर क्लिक कर फोटो डाउनलोड कर सकते हैं:
Ganga Dusk

41 comments:

  1. ये तो खोज-खबर हो गई ज्ञानदा !!!
    अगर कहूं कि स्टिंग आपरेशन किया आपने एक आम आदमी का तो बुरा तो नहीं मानेंगे ?

    ReplyDelete
  2. नर्मदा तीरे भी ऐसे टुनक देवों की महफिल सजती है और नर्मदा हर हर बहती रहती है.

    आप के माध्यम से हर रोज गंगा माई के दर्शन हुए जा रहे हैं और हरिद्वार में, तीन बेडरुम, हॉल और बेसमेन्ट वाला आश्रम खोलने की इच्छा प्रगाड...बेसमेन्ट की क्या उपयोगिता, उस पर प्रकाश डालने को न कहियेगा.. :)

    गंगा आरती, हर की पौड़ी का स्वप्न रोज ही हो आता है कि मैं गंगा जी में पैर डुबाये, पत्तल में दीपक बहा रहा हूँ.

    वैसे आप इसमें शेयर की हामी भर चुके हैं, लिखित में रखे हूँ.

    ReplyDelete
  3. मंगल उर्फ जवाहिरलाल उर्फ सनीचरा सोच रहा होगा - एक ठू मनई न जाने कहां से आ जाता है और लगेगा हमरा फोटू घींचने, हम समझ नहीं पाता था कि काहे ले रहा है हमरा फोटू....तबहीं एक दिन धनीराम 'गुल्ल' बताईन की तोहरा फोटू इंटरनेट-उंटरनेट पर आवा है, हमहूं कहा...ज्जे बात....अब आवे उ मनई...हमहूँ बता देंगे कि कौनो ढिमाकी सावंता और फलानी शकीरवा से कम नहीं हैं.......एतने में का देखता हूँ.....उ फोटूहार मनई फिर आ गया और हम लगे ठुमकने.....लई बदरवा से कजरवा तू लगाईले गोरिया.....हो लगाईले गोरिया हो लगाईले गोरिया....लई बदरवा से कजरवा तू.....

    ........और फोटू खीच गया :)


    पोस्ट देखने से पता चलता है कि साहित्य का पक्का माल यहीं गंगा किनारे पसरा है, हम तो लहालोट हो रहे हैं आपके इस कैरेक्टर को देखकर :)

    ReplyDelete
  4. @ धनीराम 'गुल्ल' - जिज्ञासा होगी कि ये धनीराम 'गुल्ल' कौन है ? तो बता दूँ कि, जहरीली शराब पीने से इनकी एक आँख गुल्ल हो गई थी, तब से लोग इन्हें कहने लगे कि शुक्र मनाओ सिर्फ आँख गई और जान बच गई....तुम तो किस्मत के धनी हो.....तब से इन महाशय का नाम धनीराम 'गुल्ल' पड गया है :)

    ReplyDelete
  5. जी हां देशी शराब भी गंगा जी के किनारे तोडी जाती है . मेरे खेतो के पास रेती में गड्डा करके पानी और गुड को सडाया जाता है . जिसे लाहन कहते है फिर यूरिया और अन्य कैमिकल डाल कर उबाला जाता है भाप के साथ बूंदों के रूप में निकलती है शराब . एक किलो गुड में ३ बोतल शराब ,
    यानी २५ रु का खर्चा और २०० रु कमाई - जै जै गंगा माई

    ReplyDelete
  6. इनसे निर्लिप्त गंगा शान्त भाव से बह रही थीं। पंण्डित नरेन्द्र शर्मा/भूपेन हजारिका के गंगा वाले गीत में इस पक्ष का जिक्र है जी?!

    हो भी नहीं सकता महोदय। ऐसी स्थिति को देखने के लिए ज्ञानदत्त जी के साथ हमलोग तो हैं ही।

    ReplyDelete
  7. आपके अन्दर तो एक अच्छा खोजी पत्रकार छिपा हुआ था,

    चलिए बाहर तो आया !

    ReplyDelete
  8. प्रातःकाल मुंबई में बैठ कर आपकी गोधूलीबेला का चित्र देख हम भी टुन्न हो गए. आभार

    ReplyDelete
  9. Ab dono (ganga jal aur daaru) ek saath uplabdh hain to ismein aapko kya issue? Tecnhial jaman hai "Under-One-Roof" ki neev main kai multiplaxes paisa chaan rahe hain.

    "ganga ji ka kya hai........

    ....गंगा शठ और सज्जन – सब को सम भाव से लेती हैं"

    par kya ab bhi shad ko sajjan banae ki kuwaat hai, thodi shod aur dher saari mansik hulchul chahiye...

    ...kaise aayegi?
    ...ganga jal ya angoor jal?

    ReplyDelete
  10. समझ में आ गया कि उस नाव के नीचे रखी है देसी शराब।

    अब इसे देशी शराब नहीं "हेरिटेज शराब " कहिये |

    ReplyDelete
  11. क्या कहूं- ज्ञान की गंगा या गंगा का ज्ञान

    ReplyDelete
  12. सतीश जी की टिप्पणी के बाद लगता ही नहीं कि कुछ शेष रह गया । सच में हम आपके इस चरित्र को देख लहालोट हो रहे हैं ।

    आभार ।

    ReplyDelete
  13. गंगा की निर्लिप्तता का कारण आपकी संवेदित दृष्टि भी तो हो सकती है ...गंगा किनारे वाली ही तो करेंगे कुछ गंगा का भला भी ..यही सोच उसे निश्चिंत कर जाती होगी ..!!

    ReplyDelete
  14. दिवस का अवसान ,हर हर गंगे ,अमृत कलश -यह संकेत है किस दुनिया के ! गंगे तव दर्शनात मुक्तिः !

    ReplyDelete
  15. ऊ लाइव से ज़्यादा मस्त तो ना होगी देसी

    वैसे आप अभी भी कंजूसी 'दिखा' रहे :-)
    640 के बदले कम से कम 1000 तो होना ही चाही

    ReplyDelete
  16. आपका गंगा प्रेम देखकर बहुत अच्छा लगता है, जब भी हम उज्जैन में होते हैं तो क्षिप्रा किनारे जरुर जाते हैं और सन्ध्या आरती में भी शामिल होते हैं।

    ReplyDelete
  17. ये तो सब गंगा माई का असर है. शुभकामनाएं.

    रामराम.

    ReplyDelete
  18. गंगा और दारू दोनों तारनहार!

    ReplyDelete
  19. आप मुझे लालच दे रहे है.. गंगा को इस नज़र से देखने का..

    ReplyDelete
  20. यह टिप्पणी बस इस पंक्ति पर objection के लिए:
    "उसका कमर मटकाना उतना ही मस्त और उतना ही अश्लील था, जितना फलानी सावन्त और ढिमाकी शकीरादेवी .."

    शकीरा के हम मुरीद हैं। उनकी शान में गुस्ताखी होने पर हम objection करेंगे।

    ReplyDelete
  21. लगता है अब मुझे आपके घर सुबह-शाम उसी समय पहुँचना चाहिए जब आप गंगातट के लिए निकलने वाले हों। बड़ा अच्छा साथ गुजरेगा। खाँटी ब्लॉगरी के गुण सीखने को मिलेंगे सो अलग।

    ReplyDelete
  22. @ श्री गिरिजेश राव -
    आपकी भावनाओँ को ध्यान मेँ रख कर शब्द परिवर्तन कर श्लील कर दिया है। आशा है काम चल जायेगा।
    आप मुझे अनुभव की कमी का बेनिफिट ऑफ डाउट दे सकते हैं।

    ReplyDelete
  23. शीरीमान पतरकार होते जा रहे है :)

    ReplyDelete
  24. बड़े आकार के चित्र के लिये धन्यवाद. इस आकार में देखने पर कुछ मानव आकृतियाँ गंगा तट पर नजर आ रही हैं. ढलती हुई शाम के मधुर क्षणों का नज़ारा करते लोग, कुछ अन्य नदी में बंसी डाले बैठे हुए मछली पकड़ने हेतु.

    प्राकृतिक दृश्यावली में मानव जीवन भी स्पन्दित होता दिखे तो चित्र का सौंदर्य कई गुना बढ़ जाता है.

    "राग दरबारी" आजकल पढ़ रहा हूं. आपके द्वारा वर्णित चरित्रों में इन्हें ढूंढने का प्रयास कर रहा हूं. मुन्नाभाई से प्रसिद्ध हुआ "गांधीगीरी" शब्द यहीं से लिया गया है, देखकर अचरज हुआ.

    ReplyDelete
  25. "भूपेन हजारिका के गंगा वाले गीत में इस पक्ष का जिक्र है जी.."

    दर असल दूसरी गंगा को देख कर ही तो भूपेन जी ने पूछा है- ओ गंगा तू बहती है क्यूं?

    एक गंगा तो केवल स्वर्ग का आश्वासन देती है पर दूसरी तो सीधे धरती पर स्वर्ग दिखाती है:)

    ReplyDelete
  26. शायद भूपेन हज़रिका ने इसीलिए गंगा से प्रश्न किया हो की मदिरा वहन किये निर्लज्ज भाव से बहती हो क्यूँ !!

    ReplyDelete
  27. अजित जी की बात में दम है सर जी.....

    ReplyDelete
  28. देशी दारु भी मिल गयी... तभी तो गंगा 'मैया' कहते हैं. बाकी नृत्य पर क्या कहें, श्लील हो या अश्लील हमें क्या. फोकट में कहीं चलते-फिरते दिखा तो देख लेंगे :)

    ReplyDelete
  29. बहूत अच्छी रचना. कृपया मेरे ब्लॉग पर पधारे.

    ReplyDelete
  30. आपकी कृपा से घर बैठे गंगा मैया के दर्शन मिल जा रहे हैं...और क्या चाहिए...आपके आभारी हैं हम...

    बिहार उत्तर प्रदेश इत्यादि में लोगों के पास जितना दिमाग है,क्योंकि उनके पास सकारात्मक व्यस्तता नहीं है,इसलिए अन्य नकारात्मक क्रियाओं में इतनी बड़ी संख्या में लोग लिप्त रहा करते हैं...
    इन प्रदेशों में भी जिन इलाकों में सिंचाई कि सुविधा है या रोजगार के सुलभ साधन हैं ,वहां की प्रगति देखने लायक है..

    ReplyDelete
  31. आदरणीय पांडेय सर जी ,
    गंगा के किनारे केवल सनीचरा मदिरा पान करके आनंदित नहीं होता ....
    मैंने कालेज के दिनों में कुम्भ मेले में एन सी सी की कैम्पिंग के दौरान कुछ माननीय मठाधीशों को भी देखा है.......
    हेमंत कुमार

    ReplyDelete
  32. माँ गंगा के बारे में आपसे काफी जानकारी मिल जाती है . माता गंगा के प्रति आपका भावनात्मक लगाव है जिसकी झलक आपकी पोस्टो में देखने को मिलती है . रहा दारू ठर्रे का चलन हर धार्मिक स्थलों में भी देखा जा सकता है चाहे वह ही कितना पवित्र स्थान हो . बहुत बढ़िया जानकारी पूर्ण पोस्ट प्रस्तुति के लिए आभारी हूँ .

    ReplyDelete
  33. जय गंगा माई की, आज कल आप भी गंगा किनारे बहुत जाने लगे है !! उपर से देशी शराब ओर फलानी सावन्त और ढिमाकी शकीरादेवी के ढुमक्के ..

    ReplyDelete
  34. Beautiful Picture of sunset....Alas! could not download...where is the icon to download

    ReplyDelete
  35. सागर किनारे उगते डूबते सूरज का नजारा रोज देखते हैं, पर गंगा किनारे डूबते सूरज की अपनी अलग ही सुंदरता है…आभार

    ReplyDelete
  36. अब काका गंगा किनारे जासूसी भी शरू कर दिये हैं आप । सनीचर का नृत्य भी देख लिये । अगर कल ये सनीचर सच का सामना में अवतरित हो जाये तो मुझे दोष मत दीजियेगा ।

    ReplyDelete
  37. उल्टी नाव का फोटू बढ़िया आया है, काफ़ी पसंद आया।

    वैसे मौजी और अनुभवी लोगों का मत है कि सांयकाल नदी किनारे सुरापान करने का अलग ही मज़ा होता है। :)

    ReplyDelete
  38. माँ गंगा के बारे में आपसे काफी जानकारी मिल जाती है . माता गंगा के प्रति आपका भावनात्मक लगाव है जिसकी झलक आपकी पोस्टो में देखने को मिलती है . रहा दारू ठर्रे का चलन हर धार्मिक स्थलों में भी देखा जा सकता है चाहे वह ही कितना पवित्र स्थान हो . बहुत बढ़िया जानकारी पूर्ण पोस्ट प्रस्तुति के लिए आभारी हूँ .

    ReplyDelete
  39. आपकी कृपा से घर बैठे गंगा मैया के दर्शन मिल जा रहे हैं...और क्या चाहिए...आपके आभारी हैं हम...

    बिहार उत्तर प्रदेश इत्यादि में लोगों के पास जितना दिमाग है,क्योंकि उनके पास सकारात्मक व्यस्तता नहीं है,इसलिए अन्य नकारात्मक क्रियाओं में इतनी बड़ी संख्या में लोग लिप्त रहा करते हैं...
    इन प्रदेशों में भी जिन इलाकों में सिंचाई कि सुविधा है या रोजगार के सुलभ साधन हैं ,वहां की प्रगति देखने लायक है..

    ReplyDelete

आपको टिप्पणी करने के लिये अग्रिम धन्यवाद|

हिन्दी या अंग्रेजी में टिप्पणियों का स्वागत है|
--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय