Saturday, August 15, 2009

बिल्ला, जोला और कल्लू


सिद्धार्थ और हम गये थे गंगा तट पर। साथ में उनका बेटा। वहां पंहुचते रात घिर आई थी। आज वर्षा का दिन था, पर शाम को केवल बादल क्षितिज पर थे। बिजली जरूर चमक रही थी।

बिल्ला, जोला और कल्लूBilla Jola Kallu

मछेरा समेटे जाल के साथFisherman Net

गंगा माई बढ़ी नहीं हैं पहले से। अंधेरे में मछेरे जाल डाले थे। उनके तीन बच्चे फोटो खिंचाने बढ़ आये। नाम थे बिल्ला, जोला और कल्लू। बड़े प्रसन्न थे कि उनकी फोटो आ गयी है कैमरे में। कल्लू फोटो स्क्रीन पर देख कर बता रहा था – “ई बिल्ला है, बीच में जोला और हम”।

हम का नाम?

हम कल्लू!


Siddarth Satyarthसिद्धार्थ अपने पुत्र सत्यार्थ के साथ
तुम लोग मछलियों पर दया नहीं करते? मेरी पत्नीजी ने पूछा।

“दया काहे, दया करें तो बेचेंगे क्या।” – कल्लू ने जवाब दिया। इतने में मछेरा जाल समेट वापस आ गया था।

मेरी पत्नी छटपटाती मछलियों की कल्पना कर दूर हट गई थीं। 

सिद्धार्थ अपने पुत्र सत्यार्थ को गोद में उठा कर तट पर पंहुचे थे। पर वापसी में सत्यार्थ को जोश आ गया। वह पैदल वापस आया और शिवकुटी के पास सीढ़ियां भी अपने पैरों चढ़ा!

गंगा किनारे की छोटी सी बात और उसे लिखने का मन करता है! यह घटना शाम सवा सात बजे की है। पोस्ट हो रही है रात आठ बजे।

जय गंगा माई!


26 comments:

  1. घर वापस आकर अभी बैठा भी नहीं था कि ये पोस्ट मुझसे पहले यहाँ आ चुकी थी। सच में समय की गति से चलना कोई आपसे सीखे। वाह..!

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  2. 'गंगई' के इस एपीसोड के परिणाम की प्रतीक्षा है।

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  3. अब आप लोग मिल जुल कर कौनो खेल जरूर खेल रहे हैं का बनर्सौ का गंगा मैया क उहीं लई जाई का कौनो प्लानिंग बनत बा का आखिर ? यी माजरा का है ? सब उहीं गंगा तट पर पहुँचत जात बाटें !
    मछलिया देखे होतेन तईं तो कुछ पहचानते ! बस टिलैपिया होए और का ! इस पर क्लिक कीजिए

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  4. सुबह की पोस्टें शाम को ठिल रही हैं गंगाजी के बहाने! जय हो!

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  5. अच्छी पोस्ट!
    वास्तविक जीवन सामने आ रहा है।

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  6. वाह बहुत बढ़िया लिखा है आपने! स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें!

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  7. @
    तुम लोग मछलियों पर दया नहीं करते? मेरी पत्नीजी ने पूछा।
    “दया काहे, दया करें तो बेचेंगे क्या।”


    इस तरह का 'हार्ड कोर डिसिजन मेकिंग' तो बडे बडे Managerial गुरूओं को धराशाई कर दे।

    आज ही '12 Angry Men' फिल्म देखी । डिसिजन मेकिंग का उदाहरण देने के लिये अब 12 Angry Men को कई जगह MBA की वर्कशॉप में पढाया जाने लगा है।

    मेरे हिसाब से एक और कन्टेंट जोडा जा सकता है इन Managerial कोर्सों में - गंगा किनारे भ्रमण, जहां पर एक से एक कोर कन्टेंट मिल रहे हैं सीखने के लिये, जानने के लिये।


    बहुत रोचक और सारगर्भित पोस्ट।

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  8. आप की पोस्टो को पढ कर अपना मन भी ऐसी जगहों पर जाने का कर रहा है....
    वैसे तो कुछ सुखानुभूति तो आप की पोस्ट पढ कर महसूस होती ही है..आभार।

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  9. तुम लोग मछलियों पर दया नहीं करते? मेरी पत्नीजी ने पूछा।
    “दया काहे, दया करें तो बेचेंगे क्या।” – कल्लू ने जवाब दिया।

    हमतो आगे की वार्ता के इंतज़ार में कब से गंगा किनारे बैठे हैं.

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  10. सच है...वर्ना खाएंगे क्या?
    ज्ञानदा, आपकी तत्परता, उससे बढ़कर ब्लागरी का अनूठा एप्रोच पसंद आता है।

    आपकी जै बोलता हूं।

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  11. ye choti si baat nahi hai...
    bahut kuch samjha jaati hai ye choti si ghatna....

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  12. बात तो उस मछुआरे के लड़के की सही है, घोड़ा घास से यारी करेगा तो खाएगा क्या!! यह तो प्राकृतिक फूड चेन है, कमज़ोर को शक्तिशाली अपना आहार बनाता है, ऐसे ही दुनिया चलती है। इसी कारण प्रकृति ने यह व्यवस्था की हुई है कि फूड चेन में निचले स्तर वाले एक बार में कई बच्चे पैदा करते हैं और जैसे-२ फूड चेन का स्तर बढ़ता जाता है उस पर मौजूद जीवों की प्रजनन की संख्या घटती जाती है, ताकि सब मामला बैलेन्स में रहे! :)

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  13. साधारण सी दिख्नने वाली पोस्ट......पर बिल्कुल अन्दर तक पहुँच जाती है....एकदम गहराई में.....पता नहीं क्यों ....?


    "12 Angry Men" बहुत दिनों से pc में पड़ी हुई है.....अब यह फ़िल्म देखनी पड़ेगी...बहुत कुछ सीख रहा हूँ.

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  14. गंगा जी का बहुत फायदा उठा रहे हैं आप !

    अगली पोस्ट में इसी पोस्ट का मटेरियल यूज करके सिद्ध किया जाय कि यह सुबह की नहीं बल्कि शाम की ही पोस्ट है ताकि कुछ शक्की लोगों की बोलती बन्द हो सके :)

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  15. जीवन कोई बहुत बडी बडी घटनाओं का जोड नही है. इन्ही नन्ही घटनाओं के जोड से जीवन बनता है. और सभी के साथ ऐसा होता है पर बिरले ही उसको महसूस कर पाते हैं. आप महसूस कर पाते हैं यह उपलब्धि है. छोटी घटनाओं को देख पाना बडी बात है.

    रामराम.

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  16. "तुम लोग मछलियों पर दया नहीं करते?"


    बसंती ने कहा था..." यूं के, अगर घोडा़ घास से दोस्ती करेगा तो खाएगा क्या?"

    रंगा और बिल्ला की जोडी तो फ़ेमस थी । अब आप बिल्ला, जोला और कल्ला..हां वही कल्लू को फ़ेमस कर रहे हैं- बधाई:)

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  17. "तुम्हें देश पर दया नहीं आती है" एक भ्रष्टाचारी से पूछा गया ।
    “दया काहे, दया करें तो बेचेंगे क्या।” उसका भी उत्तर यही था । देश नहीं तो देश की मछलियाँ ही बेच लेने दीजिये कल्लू को । एक बात का श्रेय तो कल्लू को दिया जा सकता है कि गंगा ही नहीं बेचे दे रहे हैं ।

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  18. कोई शक नहीं गंगा के प्रति जबरदस्त मोह है आपको.

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  19. आप सोच रहे होंगे यह फिर क्यों आ गया ?

    प्रवीण पाण्डेय जी की टिप्पणी पर ताली बजाने आया था , यह पोस्ट पर भारी हो गयी !

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  20. तुस्सी कमाल कीता जी। गंगा किनारे एक झोंपड़िया हमरी भी डलवा देते जी।

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  21. मछलियों के नाम भी बतलाते
    तो ज्ञान और बढ़ जाता हमारा।

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  22. हमारे यहाँ तो गंगा जी के किनारे रात में जाना बहुत वीरता का काम है .

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  23. चिकन,मटन,फ़िश animal right activists की myopic नज़र की रेंज में नहीं आते...

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  24. @ धीरू सिंह - हमारे यहाँ तो गंगा जी के किनारे रात में जाना बहुत वीरता का काम है।

    क्या बात है जी। एकदम अमरकान्त जी की रचना सूखा पत्ता को सामने ला दिया।

    इस उपन्यास के युवा नायक कृष्ण को आजादी की लडाई में अपना शरीर और मन मजबूत करने की जरूरत पडती है। लडकपन में उपाय के तौर पर कोई मित्र उसे बताता है कि यदि गंगा जी के किनारे एक रात वह ठहर जाय तो उसे विजय मिल जायेगी और भूत प्रेत डरने लगेंगे। लेकिन रात में गंगा जी के किनारे जाना बहुत बहादुरी का काम है सो सोच समझ कर जईय़ो।

    और कृष्ण अपने एक मित्र के साथ रात में गंगाजी के किनारे जा पहुँचता है। भय दूर करने के लिये आजादी के तराने जोर जोर से दोनों गाते हैं। जब थक जाते हैं वीर रस की कवितायें जो पाठ्यपुस्तकों में होती हैं वो एक के बाद एक जोर जोर से गाने लगते हैं। कवितायें भी जब खत्म हो जाती हैं तो रामायण और चौपाईयां एक दूसरे को जोर जोर से बोल बोल कर सुनाते हैं। लेकिन भय नहीं जाता।

    सुबह के चार बजने को होते हैं तो अचानक उन्हें कुछ दिखाई देता है, उन्हें लगता है कि कोई है जो उनके पीछे खडा है। कविता और जोर जोर से बोलने लगते हैं। सशंकित नजरों से पीछे को मुडकर देखते हैं और कुछ रेत में दबा देख भाग खडे होते हैं। थोडी दूर रूक कर फिर साहस बटोरते हैं और उस चीज सेसे कुछ दूरी पर जा बैठते हैं कि आ.....अब तूझे देखता हूँ।

    तभी सीताराम हरे हरे की ध्वनि सुनाई पडती है। ये पास के ही मंदिर का पुजारी था जो सुबह सुबह गंगा नहाकर वापस जा रहा था।

    दोनों ही मित्र हर्ष से गले मिले। रात भर रूकने का प्रण जो पूरा हो गया था। तभी उनके मन में आया कि अब तो सुबह हो ही गई है । देखें तो वह क्या चीज थी जिससे हम लोग डर कर भागे थे।

    दोनों मित्र वापस उस जगह जाकर देखते हैं तो वह एक बैल का कंकाल था जोकि रेत में आधा दबा था।

    और अगले पल दोनों मित्र उस कंकाल को लात मारते खेल रहे थे।


    टिप्पणी लगता है कुछ ज्यादा ही लंबी हो गई :)

    कभी कभी तो लगता है सब कुछ छोड छाड कर गंगाजी के किनारे धुनी रमाई जाये और एक लैपटॉप ले ब्लॉगिंग की जाय :)

    ज्ञानजी, काफी किस्मत वाले हैं जो कि गंगा जी का सानिध्य भी पा लेते हैं और सांसारिक जीवन को जी भी लेते हैं :)

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  25. सत्यार्थ खालिस छोरा गंगा किनारे वाला

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--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय