Monday, August 31, 2009

नाव


Ganga4 July 09 मछली पकड़ने वाले रहे होंगे। एक नाव पर बैठा था। दूसरा जमीन पर चलता नायलोन की डोरी से नाव खींच रहा था। बहुत महीन सी डोरी से बंधी नाव गंगा की धारा के विपरीत चलती चली आ रही थी। मैं अपनी चेतना के मूल में सम्मोहित महसूस कर रहा था।

एक महीन सी डोर! कभी कभी तो यूं लगे, मानो है नहीं। वह नाव को नेह्वीगेट कर रही थी। हममें भी नाव है जो न जाने कौन सी नायलोन की डोरी से बंधी बढ़ती जा रही है।

एक बार और जाल फैंक रे मछेरे, जाने किस मछली में बंधन की चाह  हो!

गंगा किनारे के १०-१५ मिनट आपको ठोस दार्शनिक/आध्यात्मिक अनुभव देते हैं। अभेद्य!Gyan near Ganges

आसमान में उड़ते पंक्तिबद्ध पक्षियों का झुण्ड एक लहरदार लकीर बनाता है और आपके मन में भी पैदा करता है लहरें। एक लगभग नब्बे अंश के कोण पर कमर झुका कर गंगा के घाट पर आती वृद्धा; मृत्यु, जीवन और जरा के शाश्वत प्रश्न ऐसे खड़बड़ाती है मन में; कि बरबस बुद्ध याद हो आयें!

गंगा किनारे एक मड़ई हो। एक छोटी सी नाव और यह लिखने-फोटो खींचने का ताम-झाम। अपनी बाकी जरूरतें समेट हम बन जायें आत्मन्येवात्मनातुष्ट:! जब यह वातावरण हो तो न बनने का क्वैश्चनवइ नहीं उठता।


यह पोस्ट ड्राफ्ट में जमाने से रखी थी। पत्नीजी कहने लगीं थीं – क्या गंगा-गंगा रटते पोस्ट लिखते हो|

अब यह ७००वीं पोस्ट के रूप में पब्लिश कर रहा हूं। देखता हूं, आप गंगाजी विषयक टिप्पणी करते हैं या ७००वीं पोस्ट की बधाई ठेल अगले ब्लॉग पर चलते हैं!

और यह है गंगा किनारे गोधूलि वेला - कल की!

Ganga Twilight  


"हेलो नजीबाबाद" फोन-इन कार्यक्रम : हाय गजब!
इस फोन इन रेडियो कार्यक्रमवाले दक्षिणी सज्जन कोई प्रेम कुमार हैं। मुरादाबाद-सुल्तानपुर-एटा वाले यूपोरियन लोगों को फिल्मी गाने सुनवा रहे थे। गानो में मेरी खास दिलचस्पी नहीं थी। पर इस सज्जन का महमूद स्टाइल में हिन्दी बोलना और बात बात पर "हाय गजब" "ओय गजब" बोल कर श्रोताओं को बांधना बहुत पसन्द आया।

और एक हम हैं कि "आत्मन्येवात्मनातुष्ट:" छाप प्रस्थानत्रयी से श्लोकांश ठेल रहे हैं, इम्प्रेस करने को! लगता नहीं कि हमें भी हाय गजब छाप जुमला पकड़ना चाहिये अपना ब्लॉग हिट करने को! क्या ख्याल है!


43 comments:

  1. ७०० पोस्ट हो गयीं हाय गजब! ओय गजब!

    ReplyDelete
  2. भाई जी

    आप सात शतक ऐसे लगा गये जैसे गंगा में मछली पकड़ रहे हों..झउउआ भर भर...

    इर्ष्या का विषय होते हुए भी सदभावनावश इर्ष्या जाहिर नहीं कर रहा हूँ बल्कि हें हें करते बधाई देने को तत्पर हुआ जा रहा हूँ.

    ये ७०० कब हजारा होकर मूँह चिढ़ायेगी..वो दिन बड़े नजदीक मुहाने पर खड़े नजर आ रहे हैं.

    बढ़ती पोस्टों के साथ, मानिंद उम्र, दार्शनिकता स्वभाविक है तो कतई आश्चर्य नहीं होता आपकी आजकल की पोस्टे देख...चाहे वो नाविक की तस्वीर हो या आप बनियान में ट्रेन में बैठे भरसक मल्लिकानुमा पोज देने के प्रयास में हों.

    आज का शेर, जी हाँ, अगर हम यह पंक्ति लिखते तो इसे शेर कहते और ऐसे लिखते:


    इक बार और जरा जाल तो फैंक रे मछेरे,
    जाने किस मछली को बंधन की तलाश हो!

    -ज्ञानदत्त पाण्डेय ’ज्ञान’




    -खैर, बाकी हिसाब किताब ७०० से १००० के बीच करेंगे मगर अभी:


    ’सातवें सैकड़े के लिए बहुत बधाई और हार्दिक शुभकामनाऐं.’

    ReplyDelete
  3. गंगा किनारे गोधूलि वेला का चित्र सुन्दर है।

    ReplyDelete
  4. सात सौ?
    यह तो ज्ञान गंगा हुई गई है।
    बधाई!
    शोध के लायक हो गयी है। अभी से किसी छात्र को सात सौ में नए शब्दों की संख्या गिननी आरंभ कर देनी चाहिए।

    ReplyDelete
  5. सबसे पहले गंगा तट का चित्र और शब्द-चित्र पसन्द आया।

    ७००वीं पोस्ट की बधाई। कल आपने कहा था "तबियत नासाज चल रही है" यह पोस्ट देखकर आश्वस्त हुआ कि अब जरूर सुधार है।

    क्या ७०० पोस्ट होने के बाद इसे "ज्ञान-सप्तशती" कह सकते हैं?

    ReplyDelete
  6. बहुत बहुत बधायी ! मगर वैराग्य के वार्धक्य पर मुझे बड़ी चिंता है !

    ReplyDelete
  7. टी शर्ट में चचा यंग लग रहे हैं।

    @ "गंगा किनारे एक मड़ई हो। एक छोटी सी नाव और यह लिखने-फोटो खींचने का ताम-झाम। अपनी बाकी जरूरतें समेट हम बन जायें आत्मन्येवात्मनातुष्ट:! जब यह वातावरण हो तो न बनने का क्वैश्चनवइ नहीं उठता।"

    इतना रूमानी होने की जरूरत नहीं है, प्लेटफॉर्म पर अभी बहुत गाड़ियाँ आनी जानी हैं।

    सतसई पर नहीं हजारा पर बधाई देंगे। काहे ? हमरी मर्जी ;)

    गंगा के साथ आप का गहन जुड़ाव बहुत भावुक कर देता है। वाराणसी में रहते हुए इस क़ाफिर ने गंगा के सम्मोहन को बखूबी समझा था। हजारों वर्षों के संस्कार रक्त में घुल कर दौड़ रहे हैं, हमारे लिए यह नदी बस 'पानी' नहीं है।

    जाने क्यों 'नजीबाबाद' की एंटी थिसिस चुभ सी गई। लगा इसे यहाँ नहीं होना चाहिए था।

    ReplyDelete
  8. 700 !
    ओह मुंह खुला का खुला रह गया...
    बहुत बहुत बधाई .

    ReplyDelete
  9. सच है ..जाने कौन अदृश्य डोर है जो उस पार से कठपुतली बना कर नचाती रही है ..गहरा अध्यात्मिक भाव...गंगा के सूर्यास्त की तस्वीर मनमोहक ...और अब आपको 700 वीं पोस्ट के लिए बहुत बधाई...और शुभकामनायें आने वाली कई हजार पोस्ट के लिए ..!!

    ReplyDelete
  10. एक महीन डोर से बंधी नाव को खींचते मछुआरे को आर्किमिडीज़ प्रिंसिपल की पूरी जानकारी लगती है. गंगा तट के चित्र हमेशा की तरह मनमोहक हैं पर आप हमेशा कम रिज़ोल्यूशन में ही लगाते हैं. कभी बड़ा चित्र भी लगाइये.

    गंगा तट पर कुटी/मढ़ैया का आपका विचार फ़िर से अरविंद मिश्र जी को डरा देगा. :-)

    सात सौ का आंकड़ा छूने पर बधाई. अब बस शेन वार्न के ७०८ और फ़िर मुथैया मुरलीधरन के ७३५ का रिकॉर्ड आगे है तोड़ने के लिये. :-)

    ReplyDelete
  11. बाप रे बाप, इतनी खाँटी दार्शनिकता...?
    टिप्पणी झमेलोत्पादक हो सकती है। इसलिए ७०० सौ की बधाई के साथ कट ले रहा हूँ।

    ReplyDelete
  12. ये श्मशान वैराग्य तो सुना था मगर गंगा वैराग्य्……?बहुत बहुत बधाई हो आपको सात सौवीं पोस्ट की।ज्ञान की ये गंगा भी बहती रही निरंतर और हम जैसो को भी सीखने के लिये कुछ-कुछ मिलता रहे,मुझे तो आज आप नाव पर सवार मछेरे से नज़र आ रहे जो जाल रूपी पोस्ट डाल रहा है और हम सब बंधन की चाह रखने वाली मछलियां है जो चली आती है बिना डोर आपकी ओर्।

    ReplyDelete
  13. गंगा के तट पर दार्शनिक भाव पैदा होना स्वाभाविक है इसीलिये वो गंगा है. सात शतक दार्शनिकता में नही लगे हैं बल्कि आपकी मेहनत और रचनाधर्मिता है. बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं.

    रामराम.

    ReplyDelete
  14. "हममें भी नाव है जो न जाने कौन सी नायलोन की डोरी से बंधी बढ़ती जा रही है।"

    नायलोन की डोरी नहीं जी, प्रेम की डोरी से बंधी बढ़ती जा रही है।

    700वीं पोस्ट की हार्दिक बधाई!

    ReplyDelete
  15. 700 वीं पोस्‍ट की बधाई !!

    ReplyDelete
  16. सोचता हूँ.. क्या कभी इतना समय मिल पायेगा कि इस तरह गंगाजी के किनारे बैठकर वो सब देख सकूँगा जिसके बारे में आप लिखते है.. तस्वीरो ने तो यहाँ आने की इच्छा जगह दी है.. पता नहीं कभी आ पाऊ या नहीं वहां.. ७०० वी पोस्ट क्या बहुत बड़ी उपलब्धि है.. ? अगर है तो बधाई ले लीजिये.. और अगर नहीं तो यही पड़ी रहने दीजिये.. फिर कभी काम आजायेगी..

    ReplyDelete
  17. गंगामय 700वीं पोस्ट की बधाई.

    ReplyDelete
  18. मन्त्र-मुग्ध तो हम हुए. कहाँ दिनभर ४ टर्मिनल पर आँखे गडाए नंबर ताकते रहते हैं. और कहाँ गंगा किनारे का ये आनंद.
    ७०० तो बस एक अंक है बाकी अनंत अंको के सामान तो क्या बधाई दी जाय. एक बात है गंगा मैया ने इतना भावुक कभी ना किया होगा जितना आपकी इस सीरिज ऑफ़ पोस्ट्स ने. शायद ऐसी ही भावुकता से मानव सभ्यता के मनीषीयों ने देखा होगा जो आजतक गंगा मैया बाकी नदियों से इतनी अलग है.

    ReplyDelete
  19. 700 vin post!!!!
    waah kirtimaan sthapit kiya hai!

    badhaayee,

    naiyya ko dekh aap bhi kavi ho gaye...sher bahut khoob kahaa hai..

    ReplyDelete
  20. हे बिलागर श्रेष्ठ यूँ ही ठेलते रहिये सदा,
    हम सभी को भा रही है आपकी ठेलन अदा,
    आजकल तो बोझ सब पर व्यस्तताओं का लदा,
    मिल रही है शान्ति आकर ब्लॉग पर यदा-कदा,
    आप ऐसे ब्लॉग पर ज्यों जबलपुर में नर्मदा,
    काश मेरे भाग्य में हो आपसे मिलना बदा,
    सप्त सेंच्युरियाँ मुबारक ब्लॉग लिखिए सर्वदा,
    सेंच्युरी की सेंच्युरी होंगी करें यह वायदा !

    ReplyDelete
  21. गंगा पर आपकी इतनी पोस्ट पढ़ने के बाद कौन पाठक गंगामय न हो जाएगा। लेकिन इसके बाद भी उत्सुकता की कुलबुलाहट और और की भूख लगाए ही रहेगी, सो गंगा और उसके आसपास के वातावरण की कथाएं जारी रहे।

    इलाहाबाद में तो नहीं लेकिन बनारस में सन 99 में नवंबर की कुहरे से लिपटी सुबह में पैदल जाकर पहले घाट पहुंचना फिर नाव के माध्यम से उस पार जाकर दूर तक फैली रेत में दोस्तों के साथ धमाचौकड़ी मचाने के बाद वहां गंगास्नान अविस्मरणीय है।

    700 पोस्ट! गजब! आप और मैं करीब करीब साथ ही ब्लॉग जगत पर प्रकट हुए हैं या यूं कहूं कि अवतरित हुए हैं ;) शायद मैं दो महीने पहले ही आया हूं आपसे, लेकिन आपने यह साबित कर दिया कि भारतीय रेल की गति नि:संदेह शानदार है।

    जारी रहे यह ज्ञान-गंगा।

    शुभकामनाएं

    ReplyDelete
  22. आदरणीय ज्ञानदत्त जी,

    ७०० वीं पोस्ट पर बधाई।

    गंगा मईया कि जय बोलते हुये आगे यही कहना चाहता हूँ कि आप गज़ब ढाते रहें।

    सादर,

    मुकेश कुमार तिवारी

    ReplyDelete
  23. सात सौवीं पोस्ट...बापरे...आपतो ब्लॉग जगत के सचिन तेंदुलकर हैं...जय हो...सात सौ...हमारे लिए तो ये एक सपना ही है...गंगा किनारे वाली आपकी सारी पोस्ट्स अद्भुत हैं...ये श्रृंखला संग्रहणीय है...
    नीरज

    ReplyDelete
  24. ७०० वी सराहनीय पोस्ट की हार्दिक बधाई ऐसी कई ७०० पोस्टो का इंतज़ार है . कोई एक शब्द जो आपको परिभाषित करे उसे खोज रहा हूँ औरो से मदद की गुहार है

    ReplyDelete
  25. "और एक हम हैं कि "आत्मन्येवात्मनातुष्ट:" छाप प्रस्थानत्रयी से श्लोकांश ठेल रहे हैं, इम्प्रेस करने को! लगता नहीं कि हमें भी हाय गजब छाप जुमला पकड़ना चाहिये अपना ब्लॉग हिट करने को! क्या ख्याल है! "

    काका ये सब लंठई तो आप हमारे जैसों के लिये छोड़ दो । आप तो लगे रहो गंगा पुराण रचने में और हम लोगों को रोज रोज पतित पावनी मां गांगा के ब्लाग पर दर्शन कराने में । गंगा दर्शन और आपका ब्लाग पढ़ना दोनो ही पुण्य अर्जन के दो रास्ते हैं ।

    फिलहाल तो 700 वीं पोस्ट के साथ एक नया भतीजा भी मुबारक हो । गिरिजेश राव भी अब आपको चचा कहने लगे हैं ।

    ReplyDelete
  26. "आत्मन्येवात्मनातुष्ट:" ....ये क्या बला है जी? क्या इसका भी नाता उस बारीक डोर से है जो इस जीवन को बांधे है:(

    ReplyDelete
  27. ७०० वीं पोस्ट पर बधाई। ओर गंगा माई के दर्शन करवा दिये उस के लिये धन्यवाद

    ReplyDelete
  28. 1996 में वाराणसी गया था । सुबह सुबह ममेरे भाई के साथ गंगा तट पर गया । हमने एक नाव की जैसे ही नाव में बैठे नाव वाले ने एक कुत्ते की लाश नाव से बान्ध दी मैने कहा कि यह क्या कर रहे हो तो उसने जवाब दिया इसे बीच धारा मे ले जाकर छोड़ देंगे । मन वितृष्णा से भर गया । यह दृश्य भूले नहीं भूलता । शायद आपकी पोस्ट पढ़कर यह जुगुप्सा का भाव कम हो ।

    ReplyDelete
  29. आत्मन्येवात्मनातुष्ट.....
    700 post ke liye badhai
    .....
    .....
    ...na dete hue...
    (देखता हूं, आप गंगाजी विषयक टिप्पणी करते हैं या ७००वीं पोस्ट की बधाई ठेल अगले ब्लॉग पर चलते हैं!)
    seedhe ganga ji ke liye kiye jaa rahe (with avaliable resources or rathe with the resources wich you r famalier with) prayasson ki badhai zarror doonga....


    Waiting for 701st post:
    "एक बार और जाल फैंक रे मछेरे, जाने किस मछली में बंधन की चाह हो!"

    ReplyDelete
  30. 007 or 700 ? :-)
    बधाई हो जी और गंगा मैया और संध्या का आकाश दर्शनीय और पोस्ट दार्शनिकता लिए उत्तम लगी --
    आप लिखते रहें और हम गंगा जी के दर्शन , आपके ब्लॉग पर करते रहें ...

    - लावण्या

    ReplyDelete
  31. पाण्डेय जी हमारी भी बधाई स्वीकारें. आपको नियमित पढ़ते हैं. आपने सात सौ लिखीं तो इसका मतलब है कि हमने भी सात सौ पढीं.

    ReplyDelete
  32. Ek bar aur jal fenk re machere jane kis machali men bandhane kee chah ho .
    kya darshan hai ! 700 post kee bahut badhaee.
    Aise hee gyan badhate rahiye.

    ReplyDelete
  33. ७००वीं पोस्ट की बहुत बधाई...गंगा किनारे की शाम बड़ी खूबसूरत है...बरसातों में गंगा तट पर बैठ कर वाकई कई सारे भाव आते हैं, पटना में गोलघर के पास से हमने भी कई बार देखा है. मुझे तो आवाज बड़ी अच्छी लगती है...

    ज्ञानजी, मछली बंधन की तलाश में थोड़े जाल में आएगी...गर आई तो सीधे सब बंधनों से मुक्त हो तर जायेगी :)

    ReplyDelete
  34. सात सेंचुरी की बधाई।
    मेरा सुझाव यह है कि आप गंगा पर जमकर लिखें। आप गंगा पर जब लिखते हैं, तो दिल से लिखते हैं। दिल का लिखा सीधा दिल पर उतरता है। बधाई, च शुभकामनाएं।

    ReplyDelete
  35. ज्ञान जी आपकी गंगा किनारे की पोस्ट सदा भाती है.. "कुत्ते की लाश से मन वितृष्णा से भर गया"... शरद जी...हमने तो कानपुर गंगा पुल पे कितनी ही लावारिस इंसानों की लाशें आधे ठेले और आधे ज़मीन में गिसटते हुए देखी हैं ...गंगा में सबको जगह है ...चाहे हम गंगा की कोई भी गत कर लें :(

    ReplyDelete
  36. गंगा जी के आश्रय से लिखी गयी पोस्ट के मिस सारी दार्शनिकता, सारी भावुकता उड़ेल देते हैं आप । बहुत दिनों बाद आया हूँ इण्टरनेट पर । मिस कर रहा था आपकी ऐसी ही प्रविष्टियों को । आभार ।

    सात सौ की बधाई ।

    ReplyDelete
  37. एक बार और जाल फैंक रे मछेरे, जाने किस मछली में बंधन की चाह हो!


    ओह ...क्या बात कही दी आपने भैया....वाह !!! सीधे मन में उतर गयी...

    सात सौ........वाह !!!

    खैर ,आप जैसे गुनीजनों के लिए इसपर एक और शून्य भी लग जाएँ तो वह अधिक या विस्मयकारी नहीं...

    बधाईयाँ और शुभकामनायें..

    ReplyDelete
  38. "पत्नीजी कहने लगीं थीं – क्या गंगा-गंगा रटते पोस्ट लिखते हो|

    अब यह ७००वीं पोस्ट के रूप में पब्लिश कर रहा हूं। देखता हूं, आप गंगाजी विषयक टिप्पणी करते हैं या ७००वीं पोस्ट की बधाई ठेल अगले ब्लॉग पर चलते हैं!

    और यह है गंगा किनारे गोधूलि वेला - कल की!"

    kaafi dino se ganga ji ko nahi dekha hai lekin aapki posts se ab darshan bhi kerna mushkil nahi raha....

    ek din ganga ji ki aarti bhi dikhwa dijiye... :P

    ReplyDelete
  39. एक बार और जाल फैंक रे मछेरे, जाने किस मछली में बंधन की चाह हो!

    हमारी टाउनशिप में 26 अगस्त को अखिल भारतीय कवि सम्मेलन था,

    यह पूरी कविता वहाँ श्री बुद्धिनाथ मिश्र जी ने सुनायी थी, बहुत अच्छी लगी !

    ReplyDelete
  40. 700वीं पोस्ट वह भी पुण्य सलिला मां गंगा पर । विशेष समय में अपनी संस्कृति का ध्यान रखने के लिए आभार । दीर्घायु हों और निरन्तर लिखते रहें ।

    ReplyDelete
  41. सात सौ पोस्ट?!! मुबारक हो जी, आपकी हज़ारवी पोस्ट की प्रतीक्षा है, मौजूदा रफ़्तार के चलते अगले वर्ष के मध्य तक हो जाएगी। :) अपनी तो अभी 500 भी न हुईं, हा हा हा!! ;)

    गोधूलि की फोटू बढ़िया आई है, आकाश में सूर्य की किरणों के रंग बहुत मस्त लग रहे हैं, इस फोटू को तो आप बड़े रूप में लगाईये पोस्ट में। :)

    ReplyDelete

आपको टिप्पणी करने के लिये अग्रिम धन्यवाद|

हिन्दी या अंग्रेजी में टिप्पणियों का स्वागत है|
--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय