Thursday, July 30, 2009

रेत के शिवलिंग


Shiv Puja1 दारागंज के पण्डा के दुसमन फिर दिखे। सद्यस्नात। गंगा के जल से गीली बालू निकाल कर अण्डाकार पिण्ड बना ऊर्ध्व खड़े कर रहे थे तट पर बनाये एक घेरे में। मैने पूछा क्या है तो बोले पांच शिवलिंग बना रहे हैं। फोटो लेने लगा तो कहने लगे अभी पांच बना लूं तब लीजियेगा।

बनाने में खैर देर नहीं लगी। उसके बाद उनके परिवार की एक सदस्या और उनके एक साथी सहायता करने लगे शिवजी के ऊपर पत्र-पुष्प-अक्षत सजाने में। एक छोटी सी प्लास्टिक की डोलची में वे यह सामान लाये थे। छोटी छोटी शीशियों, डिबियों और पुड़ियों में कई चीजें थीं। फूल और बिल्वपत्र भी था। बड़ी दक्षता से शृंगार सम्पन्न हुआ। Shivling

असली दिक्कत हुई माचिस से दीपक जलाने में। अनेक तीलियां बरबाद हुईं। बाती में घृत की मात्रा बढ़ाई गई। यह संवाद भी हुआ कि मजेकी मात्रा में कपूर रखकर लाना चाहिये था। खैर अन्तत: जल ही गयी बाती। लगभग तीस सेकेण्ड में पूरी हो गयी पूजा और एक मिनट में शंकर जी विसर्जित हो गये गंगा जी में।

गंगाजी की जलराशि में उनकी रेत वापस चली गयी। साथ में ले गयीं वे तीन व्यक्तियों की श्रद्धा का भाव और एक फोटो खैंचक का कौतूहल! जय गंगा माई।

अनुष्ठान के बाद मैने उनका परिचय पूछा। वे हैं श्री रामकृष्ण ओझा। यहीं शिवकुटी में रहते हैं। मैडीकल कालेज में नौकरी करते हैं। इसी साल रिटायर होने जा रहे हैं। उन्होने मुझे नमस्कार किया और मैने उनसे हाथ मिलाया। गंगा तट पर हमारा यह देसी-विलायती मिक्स अभिवादन हुआ। … रामकृष्ण ओझा जी को मालुम न होगा कि वे हिन्दी ब्लॉगजगत के जीव हो गये हैं। गंगा किनारे के इण्टरनेटीय चेहरे!     

और उन्होंने यह नया नारा ठेला -
जो करे शंकर का ध्यान। खाये मलाई चाभै पान। बोल गौरी-शंकर भगवान की जै!

ओझा जी अगले दिन भी दिखे। कछार में मदार के फूल तलाशते। उनसे कहा कि घाट के चारों ओर तो पानी आ गया है – कैसे जायेंगे। बोले ऐसे ही जायेंगे। “बोल घड़ाधड़ राधे राधे” बोलते उन्होंने अपनी गमछा नुमा लुंगी की कछाड़ मारी। नीचे नेकर दीखने लगा, और वे पानी में हिल कर घाट पर पंहुच गये! 

31 comments:

  1. हमारी आस्था के स्तंभो पर वो भगवान खड़े हैं, जिन्होंने हमें खड़े होना सिखाया..कितनी बड़ी विडंबना है.

    इसी आधार पर हम समाज की संरचना भी करना सीख गये हैं और सब बुजुर्गों को पूजनीय बना कर इसी भगवान के समकक्ष ला नास्तिक हुए जा रहे हैं कि पीछा छूटे. अब भगवान जानें, उनके भक्त जानें, और हम हाथ मिलाय किनारे हो लें. :)

    नास्तिक्ता और आस्तिक्ता सहूलियत के आधार पर मानिंद रजाई ओढ कर बैठ जाने जैसा हो लिया है.

    बकिया सब तो गंगा जी मा समाई गईल तो अब हम का कहीं!!

    फिर ससुरी, टिप्पणी लम्बी हो गई..

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  2. बोलिये शंकर भगवान की जय!

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  3. किसी भी बात को देखने का नजरिया और बात से बात निकालने की आपकी कला मुझे बहुत पसन्द है ज्ञानदत्त भाई। बहुत खूब।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

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  4. मैं फिर चेता रहा हूँ -कोई तो सुने ज्ञान जी अब विरक्ति के क्रांतिक स्टार पर पहुचने ही वाले है ! बस यही गुहार है की लैपटाप मत छोडियेगा !

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  5. वहीं दारागंज के ही निवासी रहे महाकवि निराला जी ने यह सब देख सुन बहुत पहिले ही लिख दिया था- ""रेत ज्यों तन रह गया है""-अब बाकी हम का लिखे ,रेत के शिव को तो आपने देखा ही.

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  6. यह सब लच्छन उसी ओर ले जाने वाले हैं जिस ओर अरविन्द जी इशारा कर रहे हैं। लेकिन पोस्ट अच्छी बनी है।

    गंगा म‍इया के किनारे रहकर उनके प्रति श्रद्धा भक्ति रखना और रिपोर्ट करना बहुत स्वाभाविक है; और जरूरी भी। जय हो!।

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  7. छोटी छोटी दैनन्दिन बातों की महत्ता को सहेजना कोई आप से सीखे। कितनी दफा 'सेंटी' कर देते हैं आप तो।
    जाने क्यों आज की पोस्ट पढ़ कर सनातन पम्परा में नास्तिक भी कैसे अपने लिए जगह ढूढ़ लेते हैं, यह और अधिक समझ में आने लगा है।
    संस्कृति क्या इसी को कहते हैं?
    'चाभना' प्रयाग में भी प्रचलित है, जान कर 'संतोख' हुआ।

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  8. दिनों बाद ....ननिहाल में होने वाला पार्थिव पूजन याद आ गया मुझे aaj आपकी पोस्ट से ...

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  9. ईश्वर चराचर में है ..हम उसकी क्या प्रतिकृती बनायें ..जब हमें बनानेवाला वो है ..!
    "किसने देखी तेरी सूरत ,किसने बनाई तेरी मूरत ,तेरे पूजन को भगवान ,बना मन मन्दिर आलिशान ..!"

    नदियों को माँ का रूप देते हैं, तो उन्हें साफ़ रखना हमारा कर्तव्य बन जाता है..मै इसीको एक नदी का पूजन कहूँगी, ईश्वर का पूजन कहूँगी...!

    Lekin ek wyakti rekha, ek saral anubhav ke roopme aapka lekhan behtareen hai,isme do raay to ho nahee saktee...mere pahle comment karnewale ye baat kah chuke hain..!

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  10. आपने गहन इशारा किया है सरजी। वास्तव में विचारणीय। ओझा पंडित को ब्लाग सामग्री होने के लिए बधाई। प्रणाम।

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  11. नमस्ते !
    आज मैंने आप के नये पोस्ट को पढा और वही गंगा माँ के स्वच्छ पानी को महसूस किया। क्योकि २ साल पहले मै भी इलाहाबाद के उप टेक में पढ़ता था। और उक्सर अपने फ्रेंड के साथ वही जाया करता था। लेकिन एपी के पोस्ट का नायक तो एक नये अजनबी है जो अपने भक्ति से आप सभी लोंगो को प्रभावित किए। आज के भागम-२ जिन्दगी में हम लोग जैसे आईटी के लोग तो नास्तिक बन कर रह गये है। फिर भी आप के पोस्ट को पढ़ कर एक नई उत्त्साह का संचार हो गया है शायद यह आप हमेशा बना रहेगा.

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  12. बोल धडाधड राधे राधे.

    जय गंगा मैय्या की!!!

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  13. इसे कहते है नेचर-फ्रेंडली पूजा. बधाई के पात्र है. जय हो गंगा मैया.

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  14. देसी-विलायती मिक्स अभिवादन अच्छा लगा..ऐसे कितने जीव दिए है आपने ब्लॉग जगत को.....

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  15. "जो करे शंकर का ध्यान। खाये मलाई चाभै पान"
    और पान में डालो गुठका भांग:)

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  16. मैं आपकी पोस्टों को काफी समय से चोरी चोरी पढ़ता रहा हूं लेकिन टिप्पणी करने की हिम्मत आज जुटा पाया।
    मानो तो देव नहीं तो पत्थर हो हैं ही। हमारी कुछ ऐसी ही विशेषता है कि जो पूरी दुनिया को आलोकित करता है हम उसे भी दिया दिखाने से नहीं चूकते। यह सब आस्था का चमत्कार है। जय गंगा मैया की
    हिमांशु पाण्डेय इलाहाबाद

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  17. बहुत बढ़िया रोचक धार्मिक आस्था से लबरेज जानकारी वीडियो फोटो बहुत बढ़िया लगे. आभार

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  18. गंगा मैय्या की जय . आप भी पुण्य के भागी है हमें गंगा और भक्तो के दर्शन करा कर

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  19. आस्था का मोल आस्थावान ही लगा सकता है...रोचक पोस्ट।

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  20. Wah!! achha lagta hai jab aap aam aadmi mein hero dhoondhte hain aur unhe samne laaate hain :)

    ye bhaisaheb pasand aaye..kabhi apne baare mein likhen ya likha ho to mujhe link deven...

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  21. पूजा अर्चना करते पंडित जी तो दिखाई दे रहे हैं पर उनके द्वारा बनाए गए शिवलिंग नहीं दिख रहे। थोड़ा पास से फोटू लेते तो बढ़िया था, खैर कोई नहीं।

    तो आज क्या कोई खास दिन था या वे नियमित ही ऐसे शिवलिंग बना अर्चना करते हैं और तत्पश्चात विसर्जन?

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  22. @अमितजी - १. मैने रेत के बनते शिवलिंग का क्लोज-अप जोड़ दिया है पोस्ट में। २. यह स्नान/पूजा श्रावण शुक्ल-अष्टमी की है। उस दिन शिवकुटी में मेला लगता है कोटेश्वर महादेव के मंदिर पर। अन्य दिन ओझाजी को यह पूजा करते नहीं देखा। स्नान अवश्य करते हैं रोज।

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  23. @ज्ञान जी
    शिवलिंग का फोटू पोस्ट में लगा देने के लिए धन्यवाद। छोटे से स्लाईडशो में ये वाकई नहीं दिखे थे। :)

    श्रावण शुक्ल-अष्टमी की पूजा। अब एक पोस्ट इसके महत्व आदि पर भी ठेल दें, कभी सुना नहीं इसके बारे में तो इसके विषय में जानना भी रूचिकर रहेगा। :)

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  24. लगता है आस्था में आनंद है !

    पर क्या आस्था पैदा की जा सकती है ?

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  25. हम भी यही कहेंगे 'बोलिए शंकर भगवान् की जय' ! आजकल गंगा मैया में तो बहुत पानी हो गया होगा? ओझाजी एक बार बता तो दीजियेगा वो प्रसिद्द हो गए ब्लॉगजगत में :) उस मकोय वाले आदमी का अपडेट नहीं आया कुछ !

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  26. @ अभिषेक ओझा - मकोय वाले प्रच्छन्न दार्शनिक तो बीमार रहते थे। बारिश के मौसम में दीखते नहीं।

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  27. चलो हमहूँ बोल दें, “बोल घड़ाधड़ राधे राधे”

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  28. निर्मल सुख और शांति जहाँ भी मिले उसके आगे सर झुका देना चाहिए.....जय माँ गंगे,जय शिवशम्भू....

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  29. "झा जी अगले दिन भी दिखे। कछार में मदार के फूल तलाशते। उनसे कहा कि घाट के चारों ओर तो पानी आ गया है – कैसे जायेंगे। बोले ऐसे ही जायेंगे। “बोल घड़ाधड़ राधे राधे” बोलते उन्होंने अपनी गमछा नुमा लुंगी की कछाड़ मारी। नीचे नेकर दीखने लगा, और वे पानी में हिल कर घाट पर पंहुच गये! "

    यही तो सच्ची आस्था, श्रद्धा, विश्वास है, जिसे विपरीत परिस्थितिया भी डिगा नहीं सकती. ऐसे ही समय मनसा, वचना कर्मणा के एक रूप के दर्शन होते हैं, भयभीत के मन में कुछ और, वचन में कुछ और, तथा कर्म तो कुछ और ही होता है....

    “बोल घड़ाधड़ राधे राधे”

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  30. काका अबकी गंगा स्नान को जाउंगा तो यह रेत के शिवजी की पूजा भी करके आउंगा । यह आसान सी पूजा विधि बताकर आपने हम पर उपकार ही किया है ।
    और काका अपने ब्लाग से पसंदीदा ब्लाग की लिस्ट क्यों हटा दिये हैं । मुझ गरीब के ब्लाग पर दो चार पढने वाले वहां से भी आ जाते थे ।

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  31. @ श्री कृष्ण मोहन मिश्र जी - मैं समझा नहीं। मेरा ब्लॉग-रोल तो पहले की तरह साइडबार में लगा है। इसमें सारे हिन्दी के ब्लॉग जो फीड रीडर से पढ़ता हूं, अपने लिंक के साथ उपस्थित हैं।

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--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय