Tuesday, July 14, 2009

नेट पर फैला साइबरित्य


cyburbia शहर बने। जब गांव शहर की ओर चले तो सबर्ब (Urban>Suburban) बने। अब लोग सबर्ब से साइबर्ब (Suburb>Cyburb) की ओर बढ़ रहे हैं। की-बोर्ड और माउस से सम्प्रेषण हो जा रहा है। नई विधा पुख्ता हो रही है।


 moody gdp बन्धुवर, यह गांव/शहर या सबर्ब का युग नहीं, साइबर्ब (Cyburb) का युग है। आप यहां जो देख रहे हैं – वह साहित्य नहीं है। आप को नया शब्द लेना होगा उसके लिये। क्या है वह? साइबरित्य है?

ब्लॉग पर लिखा ही नहीं, कहा, सुना, देखा और प्रतिक्रिया किया भी उभरता दीखता है। जब मैं अपनी पोस्टें देखता हूं, तो उनका महत्व बिना टिप्पणियों के समझ नहीं आता। बहुधा टिप्पणियां ज्यादा महत्वपूर्ण नजर आती हैं। और हैं भी।

बहस बहुत चल रही है – प्रिण्ट माध्यम का शब्द है साहित्य। उसके मानक के अनुरूप ब्लॉग माध्यम को जांचने का यत्न हो रहा है। यह कुछ वैसा ही है कि द्वै-विम विश्व का प्राणी त्रै-विम जगत का अनुभव करे और उसे द्वै-विम के मानकों में समेटने का प्रयास करे (It is something like a two dimensional creature experiencing three dimensional world and trying to express it in the terminology of two dimensions!)।

बन्धुवर, यह गांव/शहर या सबर्ब का युग नहीं, साइबर्ब (Cyburb) का युग है। आप यहां जो देख रहे हैं – वह साहित्य नहीं है। आप को नया शब्द लेना होगा उसके लिये। क्या है वह? साइबरित्य है?

जो सृजित हो रहा है, उसके पीछे जिस स्तर का साइबरनेटिक्स (सूचना तकनीक का सामरिक रूप), सामाजिक निर्बाधता और व्यक्ति/समाज/मशीन को परस्पर गूंथता जाल (नेटवर्क) है, वह पहले कभी न था। तुलसी/भारतेन्दु/अज्ञेय उससे बेहतर अनुभूति कर गये थे - अगर आप कहते हैं तो अपनी रिस्क पर कहें। हां, साइबर्ब अभी भी अपने चरम पर शायद नहीं है। और यही उसका रोमांच है। सौन्दर्य भी!

खैर कोई बात नहीं अगर आपको "साइबरित्य" शब्द पसन्द नहीं आया। नया शब्द गढ़िये। असल में आपको नया शब्द गढ़ना ही होगा। एक नया फिनॉमिना पुराने शब्द से समझाया नहीं जा सकता!   


43 comments:

  1. है ईजाद ये आपकी नये शब्द कुछ खास।
    कोष धनी हो जायेगा मुझको है विश्वास।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

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  2. मित्रश शब्द और भाषा में समय के हिसाब से बदलाव आते रहते हैं। और आते रहने चाहिए। भाषा में मजा तो तभी है जब उसमें से गरिष्ठ साहित्यिक शब्द गायब होकर आम बोलचाल की भाषा के शब्द शामिल हों। जिसे हम-आप और सभी आसानी से समझ-जान सकें।

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  3. ई का, दुई घंटा में फोटो बदल गवा.

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  4. सुबह इस पोस्ट पर दूसरी फोटो थी, अब दूसरी. साहित्यकार हो गये क्या?


    वैसे जब "साइबरित्य" जैसे नये शब्द की खोज चल निकली है तो मैं भी एक नाम पटक ही देता हूँ:

    ’माणिकचंद’ कैसा रहेगा??

    ”ऊँचे लोग, ऊँची पसंद” के मद्दे नजर यह सोचा गया.

    न पसंद आये तो कोई बात नहीं, हमें ही कौन "साइबरित्य" पसंद आ गया. :)

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  5. नहीं जी, इसमें ऐसी कोई क्रांतिकारी बात नही है। यह ब्लोग आदि माध्यम भर हैं, और इनकी सबसे बड़ी कमी, हमारे संदर्भ में, यह है कि इनकी पहुंच जनता में लगभग नगण्य है।

    रही फेनोमेनोन की बात। जब मनुष्य ने मिट्टी के स्लेटों पर या पेड़ों की छालों पर या कागज पर लिखना शुरू किया तो इनमें से प्रत्येक कदम क्रांतिकारी महत्व का था। प्रिंटिंग प्रेस का आविष्कार उससे भी ज्यादा क्रांतिकारी था। प्रिंटिंग प्रेसों के आने के बाद ही किताबें जन-साधारण की पहुंच में आईं।

    इसलिए कंप्यूटर और ब्लोगों को अभी से क्रांतिकारी आविष्कार कह देना जल्द-बाजी होगी। अभी हमें रुकना होगा तब तक के लिए जब तक दस-बीस रुपए के कंप्यूटर बाजार में न आ जाएं, पूरा देश ब्राडबैंड से कन्क्ट न हो जाए और सड़क का पत्थर तोड़ता मजदूर भी दुपहर का खाना किसी पेड़ के नीचे बैठकर खाते-खाते अपना सस्ता पोर्टेबल कंप्यूटर खोलकर मानसिक हलचल या जयहिंदी का आनंद ले पाएगा!

    तब तक तो यह सीमित पहुंचवाला माध्यम ही रहेगा।

    अभी तो देश में शहरीकरण भी पूरा नहीं हुआ है, साइबरीकरण की बात करना दूर की कौड़ी लगती है।

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  6. दस-बीस रुपये वाले कम्प्यूटर का इंतजार है। :)

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  7. @ श्री प्रवीण शर्मा और श्री उड़न तश्तरी - फोटो बदलने का कारण फोटो का डायमेंशन था। एक ब्राउजर में पुलकोट से बाहर भाग रहा था। बदल कर औकात में रखा गया है! :-)
    उड़न तश्तरी जी नाम माणिक चन्द धरलें या पानपसन्द। हमारे बाप का क्या जाता है! :)

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  8. नई शराब के लिए नई बोतल जरूरी, वरना बिकेगी कैसे? तकनीक ने हमेशा चीजों को बदला है। खास तौर पर सामाजिक संबंधों को बदला है। कंप्यूटर भी जब संख्यात्मक परिवर्तन की सीमा को पार कर लेंगे तो गुणात्मक परिवर्तन भी लाएंगे। वह दूर की कौड़ी है। अभी तो रोटी और काम का संघर्ष मनुष्य के आगे पसरा पड़ा है।

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  9. ब्लॉग जगत में पदार्पण करने के बाद हिंदी के नए शब्द सिखने को मिले है टिपियाना , पोस्ट ठेलना , और यह नया "साइबरित्य"..एक नया ब्लॉग शब्दकोष होना चाहिए ..!!

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  10. साइबरित्य, इ शब्द तो हमको पसंद आ गया भाई .

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  11. साहित्य का नाम सुनते ही जो प्रथम विचार आता है वह एकपक्षीय विचारों के सम्प्रेषण का आता है । हम व्यक्ति विशेष की पुस्तक या विचारों से अवगत होते हैं और यदि विचार अलग और अच्छे हैं तो मन में साहित्यकार के प्रति वह कृतज्ञता के भाव उत्पन्न होते हैं । उनके बारे में चर्चा व समाचार स्तम्भों में लिखने से ख्याति प्राप्त होती है और यदि पाठक माँगकर पुस्तक पढ़ने के अभ्यस्त नहीं हैं तो उत्साह के साथ साथ आर्थिक लाभ भी होता ।
    इण्टरनेट ने इस प्रक्रिया को बदल कर रख दिया है । अब प्रक्रिया या विचार नहीं, संवाद महत्वपूर्ण हो गया है । आपको तुरन्त ही किसी एक विचार (पोस्ट) पर तौल तौल कर प्रतिक्रियायें मिलनी प्रारम्भ हो जाती हैं । कुछ गम्भीर, कुछ हल्की, कुछ आपबीती, कुछ उपदेशात्मक, कुछ रचनात्मक और कुछ रिटर्नात्मक । यह साहित्य, गोष्ठी और गप्प का सम्मिलित क्षेत्र बन गया है । अभी इस क्षेत्र का प्रयोग काल है और अभी से इस प्रायोजन में लिप्तता और इसकी उपयोगिता दूरन्त दिखायी पड़ रही है । स्थायित्व प्राप्त करते करते यह साहित्य का आधार स्तम्भ बन जायेगा पर एक नये कलेवर में ।

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  12. इंटरनेट पर मौजूद कृतियों के लिए नए नाम देने का ख्‍याल बुरा तो नहीं .. देखिए कितने लोग 'साइबरित्‍य' पर मुहर लगाते हैं .. मेरे विचार से तो अच्‍छा है।

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  13. जब नये शब्द गढ़े जायँ तो उनसे पुराने शब्द की बू नहीं आनी चाहिये .

    यह मेरा व्यक्तिगत विचार है ,इस मुद्दे पर पार्टी के विचार अलग हो सकते हैं :)

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  14. "साइबरित्य" शब्द जहांतक साइबेरिया वालो के लिए ही ठीक रहेगा. आप इसे साइवरफीलिया भी कह सकते है .

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  15. चचा शेक्सपियर कभी बोले थे.. नाम में ससुर क्या रखा है? पर बिना नाम के भी तो कुछ नहीं रखा है.. आप लोग नाम वाम डिसाइड कर लीजिये.. हम बाद में मिलते है..

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  16. aadi मानवों के द्वारा अपने शैलाश्रयों में बनाये गए शैल चित्र क्या "साहित्य" नहीं है. वही उनकी अभिव्यक्ति का माध्यम रहा जिसे हम हजारों/लाखों वर्ष बाद भी देख पा रहे हैं और कुछ हद तक समझ भी सकते हैं

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  17. नाम वाम मे क्या रखा है,
    हम तो हैं ब्लाग के गुलाम्।

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  18. मैने पत्थर तोड़ती एक महिला से पूछा,"महादेवी" को जानती हो? उसने कहा नहीं.

    अगर साहित्य आम आदमी के लिए नहीं है तो किसके लिए है. कितनों की पहूँच है, उस तक?


    ब्लॉगरी के लिए नया शब्द घड़ना जरूरी है क्या?

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  19. @ संजय बेंगानी > ब्लॉगरी के लिए नया शब्द घड़ना जरूरी है क्या?
    कदापि नहीं। पर जब कोई साहियिक-ब्राण्डिंग की बात करने लगे तो फर्क बताने के लिये आप या तो लम्बे ऊबाऊ लेख लिखेंगे, जिन्हे कोई पढ़ेगा नहीं। या फिर इस तरह के शब्द निकालेंगे पिटारे से समझाने के लिये! :-)

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  20. साहित्य वाहित्य, किताब सिताब मैं क्या जानु से..
    जानु तो जानु बस इतना कि ब्लोग को अपना मानु रे...:

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  21. सोच रहा हूँ श्रीलाल शुक्ल जी के "राग दरबारी" को किस श्रेणी में रखूं ?

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  22. साइबरित्व कहीं आगे बढ़कर बोरयित्व न हो जाय और वह चतुर्थ-विम न बन जाय:)

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  23. साइबरित्य धांसू च फांसू शब्द है। इसे चलना चाहिए। साइबरित्य का फैलाव साहित्य के मुकाबले बहुत ज्यादा होगा। जमाये रहिये।
    नातू पांडे की खबर बहुत दिनों से नहीं है, कैसे हैं जी वह।

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  24. "साइबरित्यकार" की पदवी देने के लिये आभार। हम धन्य हुये। :)


    आजकल यह देखने मे आ रहा है कि वे लोग जो ब्लागर है पर फिर भी ब्लाग को साहित्य से कम आँक रहे है, दिन का ज्यादातर समय ब्लागिंग मे गुजार रहे है और पोस्ट पर पोस्ट डालकर ब्लागवाणी को जाम कर दे रहे है। है न मजेदार बात?

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  25. कन्हैया लाल नंदन जी को उनके सारिका के संपादकत्व के दौरान किसी ने अनर्गल लिख भेजा तो उन्होंने उसे "कायर" से भी नीच, "टायर" कहा था.

    आज अगर ब्लाग (इंटरनेट सहित)पर लिखे को कुछ महानुभाव साहित्य नहीं मानते तो भई ठीक है... हम इसे कंपात्य (कंप्यूटरजनित), बात्य (बातों से उपजा), साइबरित्य (साइबरजनित), भड़ात्य (भड़ासजनित) निठत्य(निठल्लाजनित)...कुछ भी कह लें, फ़र्क़ क्या पड़ता है.

    एक बात और, काग़ज पर छपने वाला सब साहित्य ही है (?)... क्या इसकी भी कोई गारंटी है !

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  26. बिलकुल ठीक शब्द दिया सर आपने - साइबरित्य.

    और भाई फुरसतिया सुकुल जी

    यक़ीन मानिए दस-बीस रुपये वाला कम्प्यूटर भी आ जाएगा. ज़्यादा नहीं. दस साल लगेंगे. ये अलग बात है कि तब तक आटा-दाल 10-20 हज़ार रुपये किलो हो जाएंगे.

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  27. साइबरित्य! वाह पाण्डेय जी. आपने एक बार फिर साबित कर दिया कि आप में नए शब्द गढ़ने की अद्वितीय प्रतिभा है.

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  28. Naya shabad sahi sandhi hui hai

    jab final ho jaaye to mujhe bhi batayiyega

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  29. सर! शब्दो का अविष्कार आप जैसे ज्ञाता ही कर सकते है। यह हम नोसिखियो के लिए वरदान बने कि आप शब्दो का खजाना छोड जाए हमारे लिए।



    मुम्बई टाइगर

    हे प्रभु तेरापन्थ खान

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  30. बालसुब्रमण्यम जी से सहमति

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  31. साइबरित्य इस शब्द मे कोई बुराई तो नही लगती.और जब लोग मुझे कहेंगे साइबरित्यकार ताऊ रामपुरिया तो यह भी मुझे तो कम से कम साहित्यकार से उंचे दरजे का ही लगेगा.:) हम आपकी बात का पुरजोर समर्थन करते हैं.

    सादर

    साइबरित्यकार ताऊ रामपुरिया

    रामराम.

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  32. आपने अच्‍छा वि‍चार और अच्‍छा नाम दि‍या। बि‍ना नाम के अपनी पहचान कैसे सि‍द्ध की जा सकती है।

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  33. चलिये आप जो भी कहे गे मान लेते है, अब ज्यादा सोचिये मत, हाथ नीचे कर ले भाई थक गये होगे.

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  34. साहित्य की खाने वालो से हमें उचित दूरी रखनी ही चाहिए और अपने लिखे को एक नाम तो देना ही चाहिए . आपको अधिकार है की आप नाम रखे वैसे भी नामकरण का विशेषाधिकार ब्राह्मण देवता को ही है

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  35. ये है जादू, आपने कहा और लोग हो गये मुहर लगाने को तैयार और जब हमने कहा था कि ब्लाग पर लिखा जाना साहित्य नहीं तो बवाल मचा था। वाह रे जमाने...यहीं लगता है कि नाम में भी बहुत कुछ धरा है। कह गये होंगे चचा (जिनके भी हों)

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  36. नए शब्दों का हमेशा स्वागत है मगर उसे पैदा होने दिया जाए, बजाय गढ़ने के। दूसरे, अंग्रेजी या अन्य विदेशी भाषाओं के मूल से उपजनेवाले शब्दों की मातृभाषा में व्यंजना ढूंढने की जगह उसे जस का तस स्वीकार कर लेना चाहिए। शब्द अंग्रेजी का, उपसर्ग या प्रत्यय हिन्दी-संस्कृत के लगाने से सिवाय पैरोडी और कुछ सदा-सुहागन टिप्पणियों के और कुछ हाथ नहीं आता:))))

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  37. भाई ज्ञानदत्त पाण्डेय जी!
    मैं तो आपके ब्लॉग पर पहली बार आया हूँ।
    कुछ समझ में ही नही आ रहा कि क्या टिप्पणी
    दूँ।
    मेरे विचार से तो साइबरित्य के स्थान पर यदि
    भेड़िया-धसान हो तो भी चलेगा।

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  38. आदरणीय पांडेय जी ,
    बहुत पहले भाई रवीश कुमार जी ने अपने
    ब्लॉग पर लिखा था की ब्लागर को ब्लागर नहीं तो क्या फुटबालर कहें ?काफी ब्लागरों ने उस पर अनुकूल प्रतिकूल दोनों प्रतिक्रियाएं दी थी .....लम्बी बहस भी हुयी थी .
    मुझे लगता है आपके द्वारा खोजा गया "साइबरित्य" शब्द ठीक ही है ...अगर इससे बढ़िया शब्द साइबर साहित्य के लिए किसी के दिमाग में आयेगा तो वह सुझाव देगा ही ...
    हेमंत कुमार

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  39. :-)
    आज ही पढ रहे हैँ ये पोस्ट -
    चलो, हम भी शामिल हुए
    आज से,
    साईबिर्त्यकारोँ की कतार मेँ !
    - लावण्या

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--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय