Wednesday, July 22, 2009

दारागंज का पण्डा


गंगा के शिवकुटी के तट पर बहती धारा में वह अधेड़ जलकुम्भी उखाड़-उखाड़ कर बहा रहा था। घुटनो के ऊपर तक पानी में था और नेकर भर पहने था। जलकुम्भी बहा कर कहता था – जा, दारागंज जा!Daraganj

बीच बीच में नारा लगाता था – बोल धड़ाधड़ राधे राधे! बोल मथुरा बृन्दाबन बिहारी धाम की जै!

भांग शाम को चढ़ाई होगी, अभी सवेरे छ बजे भी तरंग पर्याप्त बची थी।

एक सज्जन ने चुहुल की तो वह बोला – जेके बहावा ह, ऊ दारागंज क पण्डा अहई, हमार दुसमन; और तू ओकर भाइ! (जिस जलकुम्भी को बहा रहा हूं, वह दारागंज का पण्डा है, मेरा दुश्मन। और तुम हो उसके भाई!)

वह होगा यहां शिवकुटी का बाभन-पुजारी-पण्डा। दारागंज वाले पण्डा से लागडांट होगी (दारागंज गंगा में आगे दो कोस पर पड़ता है)। उसकी सारी खुन्नस जलकुम्भी उन्मूलन के माध्यम से जाहिर कर रहा था वह। बहुत प्रिय लगा यह तरीका खुन्नस निकालने का। पर्यावरण के ध्यान रखने के साथ साथ!

उसने जल में एक डुबकी लगाई तो चुहुल करने वाले ने कहा – “अभी क्यों नहा रहे हो – अभी तो ग्रहण है”। पलट कर जवाब मिला – “हम जा कहां रहे हैं, यह तो डुबकी लगा शीतल कर रहे हैं शरीर। नहायेंगे ग्रहण के बाद”।

उसकी समय की किल्लत न होने की बात पर मुझे लगा कि जल्दी घर लौटूं। काम पर लगना है। यह पोस्ट मैं पोस्टपोन कर सकता था। पर लगा कि ग्रहण खत्म होने के पहले ठेल दूं – तभी ब्लॉगिंग की सार्थकता है। इंस्टेण्ट साइबरित्य!

आप भी बोलें -

   बोल धड़ाधड़ राधे राधे! बोल मथुरा बृन्दाबन बिहारी धाम की जै!

मैं ग्रहण समाप्ति के पहले पोस्ट कर पाया – घटना और पोस्ट करने में समय अंतर एक घण्टा!

36 comments:

  1. आदरणीय पांडेय जी ,
    मुझे अफ़सोस हो रहा था की मैं ग्रहण के समय दारागंज ,संगम या रसूलाबाद क्यों नहीं गया ?लेकिन आपकी पोस्ट पढ़ा कर तो मुझे यहाँ इंदिरानगर में बैठे बैठे तीनों जगह नहाने का पुण्य मिल गया ....गंगा मैया का दर्शन अIपने सुबह ही करा दिया .
    शुभकामनाओं के साथ .
    हेमंत कुमार

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  2. बोल धड़ाधड़ राधे राधे! बोल मथुरा बृन्दाबन बिहारी धाम की जै!
    ..-आप डुबकी लगाये कि नहीं शीतल होने..हम तो शावर ले लिए..अब सोवेंगे. :)

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  3. “हम जा कहां रहे हैं, यह तो डुबकी लगा शीतल कर रहे हैं शरीर। नहायेंगे ग्रहण के बाद”।

    जवाब पसंद आया.
    सिद्ध यह होता है की आदमी अपने कर्मों को तर्क द्वारा तत्काल उचित ठहरा ही देता है. समय ही उसकी सच्ची कसौटी तय करता है.
    खुन्नस निकालने का पंडित जी का यह इस्टाइल भी शायद सत्यागृह की श्रेणी में तर्क की आवश्यकता आने पर डाला जा सकता है... जय हो गाँधी बाबा की.
    "बोल धड़ाधड़ राधे राधे! बोल मथुरा बृन्दाबन बिहारी धाम की जै!"
    तत्काल प्रस्तुति से यह आभास मिला की शायद आप शिवकुटी क्षेत्र में निवास करते हैं?

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  4. चल जा मेरी टीप! इलाहाबाद जा! हलचल मचा!

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  5. हां, मेरी माताजी ने भी बताया कि ग्रहण से पहले बाद दोनों नहाना चाहिए।

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  6. ई आफ़िस वाले भी ग्रहण के महत्त्व को नहीं समझते- भई, छुट्टी दे देते--बम-बम भोले के नाम....तो गिरन के बाद गंगा में डुबकी लगा लेते लगे हाथों:)

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  7. "हम जा कहां रहे हैं, यह तो डुबकी लगा शीतल कर रहे हैं शरीर। नहायेंगे ग्रहण के बाद”

    मस्त

    बोल धड़ाधड़ राधे राधे! बोल मथुरा बृन्दाबन बिहारी धाम की जै!

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  8. namaskar,
    net par ganga snan karwane ke liye
    dhanyawad.
    बहुत प्रिय लगा यह तरीका खुन्नस निकालने का। पर्यावरण के ध्यान रखने के साथ साथ!
    acha laga...

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  9. जलकुंभी जहाँ जाएगी वहीं अपने पैर पसार लेगी।

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  10. बोल धड़ाधड़ राधे राधे! बोल मथुरा बृन्दाबन बिहारी धाम की जै!

    शिवकुटी में गंगा जी के तटपर राधे-राधे। इसे कहते हैं नारी सशक्तिकरण। सभी लोग भगवान सूर्य की अराधना कर रहे हैं और पण्डा महराज दुश्मन पर खुन्नस निकालने के लिए जलकुम्भी उखाड़ रहे हैं।:) बीच-बीच में राधे-राधे.. जय हो!

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  11. बोल धड़ाधड़ राधे राधे! बोल मथुरा बृन्दाबन बिहारी धाम की जै!

    हा हा हा अब ई-डूबकी भी लगा लेता हूँ....जै गंगा मैया...

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  12. आपनें तो स्नान करके एक हजार यज्ञों का फल पा लिया ,जय हो ..........

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  13. @ डा. मनोज मिश्र - नहीं जी, मैने गंगा स्नान नहीं किया। मैने तो केवल फोटो खींचने और पोस्ट ठेलने का पुण्य़ अर्जित किया है। :)

    बोल धड़ाधड़ राधे राधे! बोल मथुरा बृन्दाबन बिहारी धाम की जै!

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  14. बोल धड़ाधड़ राधे राधे! बोल मथुरा बृन्दाबन बिहारी धाम की जै!

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  15. ग्रहण पर पोस्ट ग्रहण की (या गृहण?).

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  16. बड़ा ही तेज चैनल है, ये मानसिक हलचल !

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  17. व्यक्ति- विशेष का कुशाग्र होना उसके क्रियाकलाप और उस से संलग्न वार्तालाप से पता चल जाता है. आपकी पोस्ट और नायक का चरित्र इस बात का परिचायक है. पोस्ट के माध्यम से गंगा स्नान करवाने के लिए धन्यवाद

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  18. भांग की पिनक थी, बाकी पण्डाजी पर्यावरण के फायदे के साथ नुकसान भी कर रहे थे, क्यों कि जलकुंभी तो जहां भी अटकेगी वहीं फैल जायेगी।
    अच्छा लगा पण्डा जी की मनोदशा का चित्रण।
    :)

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  19. दारागंज के पण्डे की दुश्मनी जलकुम्भी पर ?? किसी और का गुस्सा किसी और पे ? चलिए ये तो जलकुम्भी मिल गयी नहीं तो कहाँ उतरता इनका गुस्सा !! खली यही रहता फिर तो "बोल धडाधड राधे राधे|

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  20. हम तो सोते रहे ग्रहण के समय!
    उठकर कुछ देर ग्रहण को टीवी पर देखकर अपने आप को संतुष्ट करना पडा।
    बादल छाये हुए थे। सूरज निकलते निकलते ग्रहण समाप्त भी हो गया।
    हमारे लिए तो यह एक non-event ही रह गया।
    पत्नी की आदेश थी कि जब तक नहा नहीं लूँ चाय - नाश्ता नहीं मिलेगी।
    सो बिना विलंब आज गंगा स्नान तो नही बल्कि "कावेरी" स्नान किया।
    (घर में नल का पानी कावेरी नदी का है)

    एक किस्सा याद कर रहा हूँ।
    किसी रिश्तेदार के यहाँ बाथरूम में एक शीशे की बोतल देखी थी।
    पूछा क्या है? बताया गया कि यह शुद्ध गेंगा जल है, हरिद्वार से।
    पूछा इसका आप क्या करते हैं? क्यों बाथरूम में रखा है?
    उसने बताया कि नहाने से पहले एक बूंद गंगा जल बालटी में डालकर नल के पाने से नहाता है।

    गंगा से प्रेम करने वाले यहाँ भी मिलते हैं।
    जी विश्वनाथ

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  21. यह पोस्ट मैं पोस्टपोन कर सकता था। पर लगा कि ग्रहण खत्म होने के पहले ठेल दूं – तभी ब्लॉगिंग की सार्थकता है। इंस्टेण्ट साइबरित्य!

    इंस्टेन्ट साइबरित्य है और इंस्टेन्ट साइबर तृप्ति भी हो जाती है! :D

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  22. जय हो ! हम तो सोते रह गए :)

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  23. सच कहा, खुन्नस निकालने का यह तरीका तो लाजवाब है........
    गंगा मैया के दर्शन कराने के लिए आभार...

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  24. आप को एक घंटे ही लगे मुझे तो कई घंटे लग गए instant रिपोर्टिंग में !

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  25. राधे राधे! मथुरा बृन्दाबन बिहारी धाम की जै .

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  26. भांग की तुरस में पंडा ने टेम्परेरी नहाया होगा फिर ग्रहण के बाद जलकुम्भी लगाकर तरंग में नहाया होगा..... वो पंडा महाराज तो गजब के है बहुत खूब रही . एक बार इलाहाबाद जरुर घूमना है और अवलोकन कर भगेडी पंडो की तरंग पर पोस्ट लिखना चाहता हूँ ...

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  27. खुन्नस निकालने का इलाहाबादी तरीका पसंद आया. जलकुम्भी तो अपने घर से उखाड़ दिया दुसरे के यहाँ ठेल दिया.

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  28. चिट्ठाजगत में पोस्ट देखते सी समझ गया की तीर किस कमान से निकला है
    आये तो पुष्टि हो गई
    सुबह सुबह गंगा स्नान का पुन्य आपकी दिनचर्या में शामिल है ये तो हम पहले से जनते हैं

    वीनस केसरी

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  29. manna padega, khatarnaak insaan hain aap..hum to bahut aalsee hain..sikhaiye itni chusti furtee ki kuch tips..maan gaye aapke josh ko..

    itni fast to humare paas palmtop hota tab bhi hum nahin hote..salute sir jee :)

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  30. खुन्नस निकलने का ये तरीका अच्छा है ...इस बहाने बगीचे की देखभाल भी हो जायेगी ..!!

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  31. बोल धड़ाधड़ राधे राधे!

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  32. खुन्नस निकालने और लाग-डांट निभाने का बेहद रचनात्मक तरीका . दोनों हाथों में लड्डू .

    अरे सुबह-सुबह जब गंगा तीरे गए थे तो नैक डुबकियै लगा लिए होते .

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  33. अब तो मानना पडेगा , कुंभ हो या जलकुंभ....पंडे इन्हीं स्थानों पर अधिक मिलते हैं। और ये हाफ पहने पंडा जी तो गजबै स्लोगन दे रहे हैं..बोल धडा धड....। Mobile कंपनीयां सुन लें तो इसे अपने विज्ञापन का पंचलाईन बना लें :)

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--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय