Thursday, January 1, 2009

भय और अज्ञान की उत्पादकता


पिछली पोस्ट पर कई टिप्पणियां भय के पक्ष में थीं। बालक को भय दिखा कर साधा जाता है। यह भी विचार व्यक्त किया गया कि विफलता का भय सफलता की ओर अग्रसर करता है - अर्थात वह पॉजिटिव मोटीवेटर है।

पता नहीं। लगता तो है कि टिप्पणियों में दम है। भय से जड़ता दूर होती है। भय कर्म में प्रवृत्त करता है लोगों को। पर भय चिंता भी उपजाता है। चिंता व्यक्ति को किंकर्तव्यविमूढ़ करती है।

scared भय के कुछ शॉर्टटर्म फायदे होंगे। पर वह डी-जनरेट करता है व्यक्तित्व को। भय कम्पाउण्ड (compound - संवर्धित) होता जाता है। यह बहुत कम होता है कि भय आपको काम में प्रवृत्त करे और उससे उत्पन्न सफलता से आप भय को सरमाउण्ट (surmount - पार पाना) कर जायें। अंतत वह मानव को संज्ञाशून्य करता है। भय की लम्बे समय में उत्पादकता ऋणात्मक है।

हम एक प्रबुद्ध आदमी का उदाहरण लें। भगवान महावीर की बात नहीं करूंगा - उन्हे तो ईश्वरत्व मिल गया था। बापू की बात करें। वह हाफ नेकेड फकीर (भले ही हम उनसे सहमत न भी हों कई बातों में) कभी भय में तो निवास नहीं किया। और बापू की प्रोडक्टिविटी की अल्प मात्रा भी हम पा सकें तो महान बन जायें। हम अपने परिवेश में कुछ उपलब्ध करने वालों को देखें तो अधिकांश अपने भय पर विजय पा कर ही आगे बढ़े हैं।

अज्ञानी को, कर्म में प्रवृत्त करने को भय काम आता है। पर वह बच्चे से काम कराने या रेवड़ हांकने जैसी चीज है। अंतत: अज्ञान मिटाने और भय को नष्ट करने से ही सफलता मिलनी है।

ऐसा नहीं है कि अभय और संतोष से आदमी अकर्मण्य़ता को प्राप्त होता है। राजसिक वीरत्व अभय से ही आता है और सात्विक "हाइपर एक्टिविटी" अभय का ही परिणाम है।

मेरे कार्यकुशल कर्मचारी वे हैं, जिनके लिये मुझे दण्ड या भय का सहारा नहीं लेना पड़ता। और मेरे सर्वोत्तम उपलब्धता के क्षण वे रहे हैं, जब मैने सेल्फमोटीवेटेड और निर्भय दशा में कार्य किया।

खैर; पिछली पोस्ट पर आलोक पुराणिक जी की बड़ी अच्छी टिप्पणी है -

alok-puranik डरना जरुरी है
क्योंकि कसब है
डरना जरुरी है क्योंकि मौत का एक से बढ़कर एक सबब है
डरना जरुरी है कि बमों की फुल तैयारी है
डरिये इसलिए कि पडोस में जरदारी है
डरिये कि उम्मीद अगर है तो दिखाई नहीं देती
डरिये कि अब तो झूठे को भी सच की आवाज सुनाई नहीं देती
डर जाइये इतना इतना कि फिर डर की सीमा के पार हो जायें
फिर उठें और कहें अब डर तुझसे आंखें चार हो जायें
पर वहां तक पहुंचने के लिए कई पहाडों से गुजरना है
कई बमों की गीदड़ों की दहाड़ों से गुजरना है
डर के मुकाम से पार जाने की तैयारी शुरु करता हूं
2009 की शुरुआत में इसलिए सिर्फ डरता हूं सिर्फ डरता हूं

scared_cat


नये साल पर भय की बात मैने शुरू नहीं की। आभा जी ने दुष्यंत कुमार की गजल न ठेली होती तो मैं भी फूल-पत्ती-मोमबत्ती की फोटो लगा नया साल मुबारक कह रहा होता।

इस भय छाप पोस्ट से मैं आपको छूंछा "नव वर्ष की शुभकामनायेँ" कह सटक लेने का मौका तो नहीं दे रहा। बाकी आपकी मर्जी! smile_regular


33 comments:

  1. "नव वर्ष की शुभकामनायेँ"

    "मेरे कार्यकुशल कर्मचारी वे हैं, जिनके लिये मुझे दण्ड या भय का सहारा नहीं लेना पड़ता। और मेरे सर्वोत्तम उपलब्धता के क्षण वे रहे हैं, जब मैने सेल्फमोटीवेटेड और निर्भय दशा में कार्य किया। "
    आपके इस विचार से पूरी तरह से सहमत हूँ।


    अब की बार ये शेर या जो भी है उसको दिखा कर भयभीत करने का प्रयास है क्या? :)

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  2. नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं ||

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  3. स्वागत नव वर्ष, है अपार हर्ष , है अपार हर्ष !

    बीते दुख भरी निशा , प्रात : हो प्रतीत,
    जन जन के भग्न ह्र्दय, होँ पुनः पुनीत "

    हम तो यही कहेँगे इस डरी हुई बिल्ली को देखते हुए और इँतज़ाररत हैँ २००९ के नये साल का!
    आपको नया सा लग रहा होगा सब कुछ :)

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  4. सत् प्रतिसत सहमत, भय मानसिक रूप से बीमार करता है. दूसरो से धन या ताकत में पिछड़ जाने का भय भ्रस्ट आचरण को जन्म देता है.

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  5. पाण्डेय जी, आपको, परिजनों और मित्रों को नव वर्ष की अनंत मंगल-कामनाएं!
    ----
    विवाद में पड़े बिना इतना कहना चाहूंगा कि भय और ज्ञान का सम्बन्ध व्युत्क्रम है. विभिन्न क्षेत्रों में से दुनिया के सफलतम लोगों को चुनेंगे तो शायद उनमें सबसे ज़्यादा कॉमन फैक्टर ज्ञान, निर्भयता और साहस ही मिलेंगे. पशुओं को शायद भय से साधा जाता हो मगर भय दिखाकर मानव का शरीर नियंत्रण में लाया जा सकता है मगर उसे समझाकर, प्यार देकर कुछ भी कराया जा सकता है. बालकों के साथ भी भय दिखाने वाले अपनी इच्छा पूरी करा सकते होंगे मगर उस बालक को शायद अपना कभी भी न बना सकें. बुद्धि बढ़ने के साथ-साथ वह बालक भी उन बातों से भय करना छोड़ देता है. दूसरे, भय से कराया हुआ परिवर्तन अस्थाई होता है, यह बस उतनी देर तक ही रहता है जब तक भय (और भयानक शक्ति) बना रहे. भय के हटते ही पास पलट जाते हैं. तानाशाहों के साथ अक्सर यह होते देखा जाता है.

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  6. अब यह भय तो भौं भौं बन गया .....नए वर्ष की शुभकामनाएं !

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  7. नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाये

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  8. भय की लम्बे समय में उत्पादकता ऋणात्मक है। यही तो गब्बर सिंह उस्ताद कह गये हैं- जो डर गया, समझो मर गया!

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  9. अरे ! ड़र होत कइसे नाहीं है-वो उई दिना अपनें नाना पटेकर बताइन रहे कि एक मच्छर आदमी का हिजड़ा बना देत है,तबहिनें से गरमिनौ मा कम्बल उवाढ़ के सोवुतौ हन।अब उई नारी सस्स्स्कतीकरन वाली चाहे जै लग मरदन के म्वाँछा न्वाँचै मुला चुहियन,छपकलिन अउर काकरोचन कहियाँ दयाखु के कइसन मुसरियन नाँई उछरन लगती हैं सो?

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  10. भईया डरते हम सिर्फ़ अपने आप से हैं लेकिन नव वर्ष का डरावना चित्र दिखा कर आप ने डरा दिया है.
    छोडिये डरना वरना और नव वर्ष की ढेरों शुभकामनाएं स्वीकार कीजिये...पिछले वर्ष तो आप किसी तरह गच्चा देने में सफल हुए और खोपोली नहीं आए लेकिन ये क्रिया इस वर्ष ना दोहरा पाएंगे...अबकी बार भाभी जी के सम्मुख गुहार लगाने की तैय्यारी है...संभल जाईये...( क्यूँ डर गए ना?)
    नीरज

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  11. मेरे कार्यकुशल कर्मचारी वे हैं, जिनके लिये मुझे दण्ड या भय का सहारा नहीं लेना पड़ता। और मेरे सर्वोत्तम उपलब्धता के क्षण वे रहे हैं, जब मैने सेल्फमोटीवेटेड और निर्भय दशा में कार्य किया। "
    आपके इन शब्दों और विचारों से हम पूरी तरह से सहमत हैं ।नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं
    Regards

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  12. नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाये ज्ञान जी.यह साल आपके और आपके परिवार के लिए मंगलमय हो

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  13. पांडे जी, नमस्कार.
    "जो डर गया, समझो मर गया."
    इसलिए मैंने निडर होकर ये टिप्पणी भेजी है.

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  14. सबसे पहले तो आपको परिजनों सहित नये साल की घणी रामराम!

    "यह बहुत कम होता है कि भय आपको काम में प्रवृत्त करे और उससे उत्पन्न सफलता से आप भय को सरमाउण्ट (surmount - पार पाना) कर जायें। अंतत वह मानव को संज्ञाशून्य करता है। भय की लम्बे समय में उत्पादकता ऋणात्मक है।"

    यह बिल्कुल सही कहा आपने! स्व-उत्साह के बजाये भय से किये गये या कराये किसी भी कार्य
    मे मजबूरी ही हो सकती है !

    रामराम!

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  15. बचपन में बहुत चीजों से डर लगता था। फिर डर बदलते गए। समाप्त होते रहे। अंत में एक डर रह गया कहीं कोई मुकदमा हार न जाएँ। अब वह भी नहीं रहा।

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  16. आपकी बातों से असहमत होने की तो कोई गुंजाइश नहीं दिखती. लगता है की "डर" के भी कयी स्वरूप हैं. एक डर जो माता पिता से होता है जिसमे आदर निहित है, एक दूसरा जो क़ानून का होता है , ऐसे ही कुछ और जिनकी व्याख्या करने की मेरी क्षमता नहीं है. यह "डर" ही तो है जो हमें अनुशासित रखता है. आभार. नववर्ष आपके और आपके परिवार के लिए मंगलमय हो.

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  17. एक निडर टिप्पणी देने की गुंज़ाइश तलाश रहा हूँ !

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  18. भय, क्रोध, लालसा व काम के लाभ और हानि है. उनके मात्रा का संतुलन सार्थक जीवन के लिए जरूरी है.

    नववर्ष की शुभकामनाएं.

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  19. हम अपने परिवेश में कुछ उपलब्ध करने वालों को देखें तो अधिकांश अपने भय पर विजय पा कर ही आगे बढ़े हैं।

    हम्म। मैं तो महाभारत में अर्जुन की नकुल को दी हिदायत को बेहतर मानता हूँ जिसमें कर्ण से युद्ध करने से पहले अर्जुन ने नकुल से कहा था कि डरना बुरी बात नहीं है लेकिन अपने भय को अपनी ताकत बना लेना चाहिए, जो व्यक्ति डरता है वही चौकन्ना भी रहता है और यही चौकन्ना रहना काम आता है। भय एक प्राकृतिक एहसास है जो हर जीवित प्राणी को होता है। कदाचित्‌ उन आगे बढ़ मुकाम हासिल करने वालों को भी डर लगता होगा किसी न किसी बात से लेकिन वे अपने भय को अपनी कमज़ोरी नहीं बनने देते यही उनके सफ़ल मार्ग की एक कुन्जी होती है! :)

    नव वर्ष की आपको भी ढेरों शुभकामनाएँ। :)

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  20. एक ही मंत्र - निर्भय रहें। खुद से डरें।
    नया साल शुभ हो, मंगलमय हो।

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  21. हैप्पी न्यू ईयर है जी।

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  22. ज्ञान जी मै तो दिनेश जी की बात ही दोहराऊगां, जब छोटे थे, स्कुल कालेज गये उस समय डर, मिथ्या,भगवान का डर बिठा रखा था मन मै सो डरते थे, ओर फ़िर जेसे जेसे बडे होते गये, यह सब डर दुर होते गये, ओर पता चला कि भगवान से तभी डरो जब कोई गलत काम करो, अगर कोई गलत काम नही किया तो डर केसा, वो ही बात ओफ़िस मै भी है इस लिये, अब यह डर नाम की वस्तु हम से दुर भाग गई.
    लेकिन डर जरुर होना चाहिये,

    नव वर्ष की आप और आपके परिवार को हार्दिक शुभकामनाएं !!!नया साल आप सब के जीवन मै खुब खुशियां ले कर आये,ओर पुरे विश्चव मै शातिं ले कर आये.
    धन्यवाद

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  23. नये वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें.

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  24. Let me also join the bandwagon.
    नव वर्ष की आप और आपके परिवार को हार्दिक शुभकामनाएं

    कुछ समय पहले आपको चुक जाने का डर था, याद है?
    डरिए मत, लिखते रहिए|

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  25. भय की मात्रा, देश(स्थान), काल और वातावरण के हिसाब से इसका प्रभाव बदलता रहता है। व्यक्तित्व का अन्तर तो है ही।

    कोई फेल होने के डर से पढ़ाई छोड़ देता है तो कोई इसी डर के कारण अधिक मेहनत से पढ़ाई करता है।

    वर्ष २००९ में कोई ट्रेन अपनी पटरी से न उतरे, सभी यात्री व सामान अपने गन्तव्य तक सकुशल व समय से पहुँचते रहें, इसकी शुभकामनाएं।

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  26. आपको नए साल की बधाई हो |

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  27. वैसे तो तुलसी दास जे ने भी कहा है कि भय बिना प्रीत नहीं होती.लेकिन सचाई यही है कि निर्भय बन कर ही जीवन सुख पूर्वक जिया जा सकता है.

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  28. २५ दिसम्बर को आपसे व भाभी से भेंट कर अत्यन्त प्रसन्नता हुई, अविस्मरणीय है। आप दोनों वहाँ आए और जिस आत्मीयता से हम लोग सब मिले, वह इतनी रोमांचकारी है कि चित्रलिखित-सी हो गई है। आगमन के लिए आभारी हूँ.रीता भाभी को भी नमस्ते व मंगलकामनाएँ।

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  29. गांधी का 'अभय' तो 'निर्भय' का आसवन है । 'निर्भय' अर्थात् किसी से भयभीत न होना । 'अभय' अर्थात् न तो किसी से भयभीत होना और न ही किसी को भयभीत करना ।
    भय तो मनुष्‍य को अकर्मण्‍य और निष्क्रिय बनाता है ।

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  30. तमाम भारी भरकम शब्दों का इस्तेमाल कर आपने भयभीत कर दिया। अभी तक तो केवल मंदी का भय था कि कब नौकरी चली जाए। हालांकि अब वह भी नहीं रही। वैसे लगता है कि अब लोग हिंदी समझने लगे हैं, तभी तो इतनी टिप्पणियां आई हैं।
    नए साल की ढेरों शुभकामनाएं।

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  31. आपको नए साल की बधाई हो.....

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  32. मुझे तो लगता है की चाहे-अनचाहे भय से सामना तो सबका होता ही रहता है, पर उस भय के निवारण के लिए सार्थक काम किए जाएँ तो फिर भय में बुराई नहीं. परीक्षा में फेल होने के भय से कोई विद्यार्थी पढता है तो उत्तम... आत्महत्या करता है तो... !

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  33. बहुत बहुत आभार इस सुंदर पोस्ट के लिए.अक्षरशः सहमत हूँ आपसे. नकारात्मक अंततः नकारात्मक ही होता है.तत्क्षण के लिए लगे कि भय से सकारात्मक परिणाम मिल गया पर यह पूर्णतः अस्थायी होता है.

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आपको टिप्पणी करने के लिये अग्रिम धन्यवाद|

हिन्दी या अंग्रेजी में टिप्पणियों का स्वागत है|
--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय