Tuesday, November 25, 2008

धर्मान्तरण के प्रति बदले नजरिया


मेरे सामने खबर है कि अमेरिकी सिनेमा और मनोरंजन जगत के एक सितारे ने धर्मपरिवर्तन कर लिया है। यह मुझे प्रलोभन से प्रेरित लगता है। यह बन्दा कल तक पीडोफीलिया (बच्चों के साथ वासनात्मक कृत्य) का मुकदमा झेल रहा था। अत: अचानक इसके मन में ट्रांसफार्मेशन हुआ हो – विश्वास कर पाना कठिन है।

भारत में जबरन धर्मान्तरण हुआ रहा होगा इस्लामिक, अंग्रेजी, पोर्चुगीज या फ्रांसीसी शासन में। अब वह केवल प्रलोभन से होता है। उसका सही प्रतिकार होना चाहिये, पर वह विचारधारा के स्तर पर अन्य धर्मों से हिन्दू धर्म में धर्मान्तरण की सम्भावनायें तलाशने के सार्थक यत्न से किया जाना चाहिये।

Aashish_Khan
उस्ताद आशीष खान देबशर्मा, उस्ताद अल्लाउद्दीन खान, सरोदवादक के पौत्र। जिन्होंने सन २००६ में अपने को पूर्व बंगाल की ब्राह्मण परंपरा से जोड़ा।
मुक्ति उनके धर्म से ही सम्म्भव है; ऐसा अब्राहमिक धर्मों (Abrahamic religions - यहूदी, ईसाई और इस्लाम धर्म) में इन-बिल्ट है। यहूदी धर्मान्तरण करते हों, ऐसा मुझे ज्ञात नहीं। सोची समझी नीति के तहद करते होते तो उनकी संख्या भी बढ़ती होती। अभी तो कोच्चि में अपने मृत के संस्कार करने के लिये निर्धारित दस लोगों के जुटने की भी मशक्कत कर रहे हैं यहूदी!  

क्रिश्चियानिटी और इस्लाम में यह धर्मान्तरण सक्रिय तरीके से होता है। भारत में वह बिना बल प्रयोग और बिना प्रलोभन के हो तो कोई समस्या ही न हो। पर तब वह "संख्या बढ़ाऊ कार्यक्रम" का हिस्सा नहीं बन सकता।

मैं सोचता था कि हिन्दू धर्म में धर्मान्तरण भूली-भटकी चीज होगी। पर विकीपेडिया का यह पेज तो बहुत से जाने पहचाने नाम गिनाता है जो अब्राहमिक या अन्य धर्मों/नास्तिकता से हिन्दू बने या हिन्दू धर्म में लौटे! इन मामलों में नहीं लगता कि हिन्दू धर्म ने धर्मान्तरण के लिये प्रलोभन या हिंसा का सहारा लिया होगा। उल्टे, हिन्दू धर्म में वापस आने के प्रति निष्क्रिय उपेक्षा भाव के बावजूद यह हुआ है। यह प्रक्रिया सक्रिय और तेज की जाने की आवश्यकता है।  


मेरा मानना है कि किसी का धर्मान्तरण नहीं किया जाना चाहिये। और वह कैथोलिक चर्च, जिसका मैं अंग हूं, ने यह माना है कि एक अच्छा व्यक्ति, चाहे किसी भी धार्मिक विचारधारा का हो, मोक्ष पा सकता है।...

... जूलियो रिबैरो, रिटायर्ड आई.पी.एस.

आदिवासियों, गरीबों के बीच निस्वार्थ काम करना और उनके शिक्षण, उनके उत्थान और उनको हाइजीन-स्वास्थ्य सिखाना जागृत हिन्दू समाज ने व्यवस्थित ढ़ंग से बहुत कम किया है। ईसाई मिशनरियों ने किया है। उसके साथ अपना धर्म को भी जोड़ा है – उसमें बुराई नहीं। पर जहां प्रलोभन दे कर धर्मान्तरण किया, कर रहे हैं, उसका सार्थक विरोध होना चाहिये।

और वह सही रूप में तो अन्य धर्म वालों को हिन्दू धर्म के प्रति आकर्षित करने से हो सकता है।

28 comments:

  1. धर्म हम समझते हैँ कि बहुत अहम्` नहीँ है जब २१ वीँ सदी मेँ
    भारत चँद्र तक यान भेज चुका है - और विश्व के अन्य देशोँ मेँ
    लोग आधुनिक हो चुके हैँ - फिर भी, धार्मिक भावनाएँ आज भी
    कई युध्ध व विद्रोह की जड मेँ बसा एक मूलभूत कारण है --
    आदिवासीयोँ , पिछडी जातियोँ के उत्थान के लिये काम होना
    बहुत जरुरी है - मानवता की द्रष्टि से -
    यहूदी धर्म अमरीका मेँ बहुत द्रढ है परँतु, उनकी कौम तक
    सीमित है - ईसाई धर्म की शाखा कई चर्चो मेँ बँटी हुई है -
    बेप्टीस्ट चर्च विदेशोँ मेँ जाकर धर्माँतरण करने मेँ प्रमुख हैँ
    और मोर्मोन चर्चवाले भी प्रचार - प्रसार खूब करते हैँ -
    जेहोवा के अनुयायी यहाँ भी घर घर जाकर अपने चर्च मेँ शामिल
    होने के लिये उकसाते हैँ -
    बात लँबी हो गई फिर भी बहुत कुछ कहना शेष है :)

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  2. मुझे तो बस यही कहना है कि अगर यह माना जाता है कि सभी धर्म अच्छे हैं ( जोकि घोषित रूप में लगभग सभी मानते होंगे, और सरकार तो मानती ही है )तो किसी एक धर्म को छोडकर दूसरे को अपनाने का उद्देश्य सिर्फ संख्या बढाने घटाने के उद्देश्य से हो रहा है .

    धर्मान्तरण कराने वाले मानते भी हों कि मोक्ष केवल उन्ही के धर्म द्वारा संभव है तो भी औरों का धर्मान्तरण कराकर वे अपनी मोक्ष की सीट की उपलब्धता की ही संभावनाएं कम कर रहे हैं . स्वर्ग में मोक्ष के असीमित पद तो होंगे नहीं .ऐसे में एक धर्मान्तरित व्यक्ति मोक्ष प्राप्त कर लेता है तो खामखाँ एक ओरिजिनल धार्मिक मोक्ष से वंचित हो जाएगा .

    हालाँकि इस पर एक पोस्ट लिखी जा सकती है पर ज्ञान जी के ब्लॉग पर टिप्पणी करने का मजा ही अलग है .

    हमें पता चल गया है कि टिप्पणी मॉडरेशन का कार्यक्षेत्र भाभी जी का है . इसलिए उन्हें भी सुप्रभात कहे देते हैं .

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  3. जहां प्रलोभन दे कर धर्मान्तरण किया, कर रहे हैं, उसका सार्थक विरोध होना चाहिये।


    -पूर्णतः सहमत. अन्यथा तो सभी धर्म बेहतर हैं.

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  4. अच्छा लिखा है आपने - सहमत !

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  5. धर्म का संबंध समझ के साथ है। वह हो तो धर्म परिवर्तन की आवश्यकता नहीं, सभी धर्म और धर्म का अभाव सब एक जैसे लगने लगते हैं।

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  6. सनातन धर्मी लोग युगों से मानते आए हैं कि उनका धर्म प्राचीनतम है और श्रेष्ठ भी। ऐसा सभी धर्म वाले मानते आए हैं मगर हिन्दुओं में यह आत्मरति की हद तक है। शास्त्रों में किसी को हिन्दु धर्म में परिवर्तित करने का विधान नहीं है क्योंकि एक समय में उस उपमहाद्वीप में जो भी आदमी था हिंदु ही था और सुदूर जो थे उन्हें मलेच्छ माना जाता था माने जंगली जिन्हे अपने धर्म में लेना अपने धर्म को हेय करना था। यह मानसिकता आज भी ज़्यादा बदली नहीं है। कोई इस्लामी अगर हिंदु बन भी जाए तो उसे स्वीकारेगा कौन? फिर उसे किस वर्ग में रखेंगे? पंडित, क्षत्रिय, वैश्य या शूद्र? जहां तक मुझे मालूम है अठारहवीं शताब्दी से पहले हिंदु वही हो सकता था जोकि पैदा ही हिंदु हुआ हो। यह नियम किसने बदला याद नहीं।
    इस्लाम और इसाई धर्म क्रमश: जबर्दस्ती और लालच का सहारा लेते रहे हैं और दोनों ही ग़लत तरीके हैं। अफ़सोस कि धर्म की राजनीति इस सब को बढ़ावा ही देती है।

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  7. अमेरिका में कभी भी कुछ भी संभव है।
    ये हजरत जिस धर्म में जायेंगे, उसे
    अपमानित ही करायेंगे। धर्मांतरण अब कारोबार है। प्रलोभन इसका हथियार है।

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  8. धरमांतरण, धरमांतरण कराने वालों की मूर्खता है और करने वालों का लालच / मजबूरी. धर्म और कुछ भी करता हो, पर जोड़ता तो कतई नहीं है ... वरना समानधर्मी ईसाई, मुस्लिम या ऐसे ही दूसरे देश आपसी युद्ध कभी नहीं करते.

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  9. सही कहा इच्छा हो तो धर्म बदल दो... लेकिन एसा करने के लिये भौतिक प्रलोभन न दो.. ये तो आध्यात्मिक मामला है..

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  10. ज्ञानदत्त जी, आजकल जो धर्मांतरण चल रहा है, वो केवल अपने धर्म की संख्या बढाने के लिए ही हो रहा है. रही बात मोक्ष की, सभी धर्मो में चाहे वो मूर्ति पूजा को मानता हो या नहीं, इसको प्राप्त करना जरूरी माना गया है.

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  11. महाभारत में धारनात धर्मित्याहू धर्मो धारयते प्रजा की बात अब पुरानी हो चली .अब सबकी इस पर अपनी -अपनी अलग -अलग ब्याख्यायें हैं,अच्छा लिखा है .आपसे सहमत हूँ .अच्छी जानकारी के लिए धन्यवाद .

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  12. सब धर्मो की अपनी महता है ! पर जबरिया धर्म परिवर्तन बहुत ग़लत बात है ! इसका विरोध होना चाहिए ! शुभकामनाएं !

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  13. माइकल भाई तो अपने स्वार्थ के लिए मुसलमान बने है. करोड़ों का फायदा हो भी गया.

    भारत में चल रहे धर्मांतरण के अनैतिक कारोबार का विरोध करता हूँ.

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  14. @ महेन>...जहां तक मुझे मालूम है अठारहवीं शताब्दी से पहले हिंदु वही हो सकता था जोकि पैदा ही हिंदु हुआ हो। यह नियम किसने बदला याद नहीं।
    -----
    निश्चय ही, मुझे भी नहीं मालुम कि यह नियम किसी ने बदला या नहीं। असल में हिन्दू नियम फतवे या लिखित कानून से नहीं, परम्परा में सूक्ष्म परिवर्तन से बदले जाते हैं। और समाज में परिवर्तन हो रहे हैं। वर्ण व्यवस्था नये अर्थ ग्रहण कर रही है। ब्राह्मणिक सुपीरियॉरिटी का कोई खास मायने नहीं है; अगर वह बौद्धिक तेज और त्याग से सज्जित नहीं है तो। इसी लिये मैं धर्मान्तरण के नियम पर पुनर्विचार की बात कर रहा हूं।
    और यह पोस्ट तो बहाना है, लोगों के विचार जानने का। अभी तक तो अधिकांश लोग कतराते निकल जा रहे हैं! :-)

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  15. यह समाचार पढ़कर मुझे भी हैरानी हुई।
    क्या माइक्यल जॅक्स्न का नाच और गाना मुल्लों को स्वीकार होगा?
    यदि कोई मुल्ला फ़तवा जारी करके माइक्यल को नाचने और गाने से रोकता है तो वह क्या करेगा? यदि वह माना नहीं और अपना नाच-गाना जारी रखा तो क्या उसकी जान को खतरा नहीं? एक बार मुसलमान बन जाने के बाद क्या इस्लाम उसे अपने धर्म को लौटने की या किसी अन्य धर्म अपनाने की अनुमति देगी?

    मुझे संदेह है कि संभवत: परिस्थिति / परेशानियों से बचने के लिए कोई गुप्त समझौता हुआ है परंतु विवरण सार्वजनिक अभी तक नहीं हुए हैं।

    भारत में धर्म परिवर्तन के बारे में जब सोचता हूँ तो मेरे मन में निम्नलिखित विचार आते हैं।

    १) जब हिन्दू बौद्ध धर्म अपनाता है तो उतना हल्ला नहीं मचता। क्यों?

    २)क्यों कोई हिन्दू सिख या जैन धर्म नहीं अपनाता?

    ३)मेरे पूछने पर मेरे एक मित्र ने एक बार कहा था "बनने दो, इनको इसाई, कम से कम मुसलमान तो नहीं हो रहे हैं"! क्या मुसलमान नहीं बनने से हम हिन्दू सांत्वना पा सकते हैं?

    ४)इतने सारे हिन्दू (केरळ में और बंगाल में) कम्यूनिस्ट बन गए हैं। किसी ने ध्यान भी नहीं दिया। क्या केवल इसाई या मुसलमान बनना हम हिन्दुओं के लिए घातक है?

    ५) यह धर्म परिवर्तन एकतरफ़ा क्यों बन गया है? क्यों हमारे गैर हिन्दू, हिन्दू धर्म अपनाने के लिए सामने नहीं आते? क्या हिन्दुओं में जाति प्रथा ही इसका कारण है? क्या हमारे धर्म गुरु एक अन्य जाति स्वीकार करेंगे? यदि जातिवाद को ही मिटाने में समय लगेगा तो इस अंतर्काल में, क्यों न हम एक पाँचवी जाती को मान्यता दें? इस जाति को "तटस्थ" जाती (या अन्य नाम) कह सकते हैं, और कोई भी हिन्दु (सवर्ण हिन्दू भी) इसमे स्वेच्छा से सम्मिलित हो सकता है। क्या यह एक व्यावहारिक नीति होगी? (क्या यह तटस्थ जाति के लोग भी आरक्षण की माँग करेंगे?)

    मेरी राय में हम और आप सब इस तटस्थ जाति के सदस्य ही कहलाएंगे।
    किसी को भी शूद्र नहीं मानना चाहिए। इस शब्द को ही "Politically incorrect" शब्द माना जाना चाहिए (USA में Negro/Nigger वर्जित शब्द है और सही शब्द African American है)

    असली ब्राह्मण बनने के लिए केवल योग्य हिन्दुओं को चुनना होगा और इन लोगों को अपनी योग्यता का प्रमाण देना होगा और किसी को इस पर जन्म सिद्द अधिकार नहीं होनी चाहिए। एक बार ब्राह्मण बन जाता है तो उसे पूरा सम्मान देना होगा और उसकी आर्थिक सुरक्षा हम सब हिन्दुओं का उत्तरदायित्व होना चाहिए।

    प्राचीन काल में संभवत: वर्ण सुसंगत या उपयोगी था पर
    आजकल वर्ण दंभ और घमंड को प्रोत्साहन देता है। जिन संपन्न लोगों के लिए वंशक्रम की शुद्धता प्रिय है उन्हें जातिवाद से लाभ हो रहा है। निम्नवर्गीय लोगों को वर्ण से आरक्षण का लाभ हो रहा है।
    क्या इस देश में यह जाति की सम्स्या का समाधान कभी होगा?

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  16. धर्मांतरण देखना है गुरूजी तो छत्तीसगढ आईये।यहां आपको एलिजाबेथ गोबर बीनती नज़र आयेगी और जार्ज बकरी चराते। छत्तीसगढ के दक्षिणी हिस्से बस्तर को तो धर्मांतरण से बचा लिया गया मगर ठीक वैसा ही उत्तरी हिस्सा सरगुजा वनांचल धर्मांतरण के कारण अपना मूल स्वरुप खो चुका है।वो भी बस्तर से कम आदिवासी क्षेत्र नही है मगर वहां के आदिवासी आदिवासी होकर भी आदिवासी नही रहे।

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  17. विश्‍वनाथ जी की बातों में दम है।

    वैसे मेरी राय में धर्म व्‍यक्तिगत आस्‍था का विषय है, जिसकी जो मर्जी वह धर्म अपनाए।

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  18. ज्ञान जी कुछ मुद्दे सरलता से देखें जाय तो कभी कोई परेशानी नही हो सकती.
    हमारा मानना है कि मजहब बड़ी ही निजी चीज होती है किसी को किसकी पूजा करनी है और कैसे करनी है ये उसका अपना अधिकार होना चाहिए. इस मामले में दूसरों की दखलंदाजी ग़लत है.
    हमने देखा है आदिवासी इलाकों के धर्म परिवर्तन को और वहां ये नजर आता है कि अधिकतर धर्म परिवर्तन आस्था बदलने की बात न होकर बेहद मामूली चीजों के चलते होते हैं. हम यहाँ गलती कर रहे हैं हमारे लिए जो मामूली चीजें हो सकती हैं हो सकता है जो धर्म परिवर्तन कर रहे हैं उनके लिए वो सबसे अहम् हों.
    इसलिए हम उनके धर्म परिवर्तन पर टिप्पणी करें इससे पहले हमें ये देखना जरूरी है कि क्या हम उनकी प्राथमिकताओं को समझ पा रहे हैं? क्या हम उस मनोस्थिति को जानते हैं जो उन्हें एक धर्म से दुसरे धर्म में जाने को प्रेरित करती हैं.
    हम अगर अपनी बात करें तो हमें कोई फर्क नही पड़ता कि अमुक इंसान आज हिंदू कल मुस्लिम और परसों इसाई क्यों हुआ.
    जिन्हें फर्क पड़ता है वो जाएँ उन जगहों पर और सकारात्मक सोच के साथ अपने धर्म के लोगों को बचाने और बढ़ाने की कोशिश करें किसी को क्या आपत्ति हो सकती है. बस ग़लत तरीकों का सहारा न लें.
    और जहाँ तक हिंदू धर्म की बात है हमें याद आता है कि आर्यीकरण जैसी चीजें तो इतिहास में दर्ज हैं, बिना धर्म वाले शासकों को राजपूत बताने की चर्चा तो है पर आम आदमी एक धर्म छोड़ कर हिंदू बने ऐसा तो नही पता चलता. शायद हिंदू धर्म एक संगठित रूप वाला धर्म ही न हो

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  19. सही है. धर्म बदल-बदल कर मौज लेना चाहिए. माइकल जैकसन ने मौज लेने के लिए धर्म बदला है.

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  20. विश्वनाथजी के सवाल बड़े माकूल हैं.

    मैं ढेरों चर्च, गुरुद्वारा, बुद्ध और जैन मन्दिर सबमें गया हूँ... हर बार चर्च थोड़ा हट के लगा. शायद हमारी संस्कृति... या फिर ऐसे ही पले बढे... फिर मन्दिर (हिंदू, जैन, बुद्ध मठ), गुरुद्वारे में समान शान्ति का अनुभव होता है. इन सबमें स्थित मान्यताओं और मूर्तियों को सहज ही मन भगवान् या अवतार मान लेता है.

    चर्च में ये अनुभूति नहीं हुई... शायद मांस और वाइन ! या चर्च से जुड़ी कहानियाँ सोच से ज्यादा मैच नहीं करती और उनसे जुड़ी बातें अध्यात्मिक कम या नहीं लगती हैं.

    मस्जिद कभी नहीं गया पता नहीं जाना अलाउड है या नहीं. एक बार दिल्ली में जामा मस्जिद में ऊपर तक जाके आ गया...

    कई मुसलमान दोस्त भी हैं और इसाई स्कूल में तो पढ़ा ही. लगता तो यही है की सारे धर्म अच्छे हैं. पता नहीं क्यों लोगों को परिवर्तन कराने की जरुरत होती है... परोपकार करना है तो अपने धर्म वाला होने की क्या जरुरत है? अगर कोई धर्म ये कहता है की अपने धर्म वालों पर ही परोपकार करो तो फिर वो धर्म ही क्या? और जो धर्म परोपकार ही ना सिखाये तो फिर वो धर्म काहे का?

    महेनजी की बात भी सही है. धर्मान्तरण से हिंदू बनने की बात मुझे भी नहीं मालूम. वैसे कृष्ण को मानने वाले [उनके फैन :-)] कई इसाई/मुसलमान को मैं जानता हूँ.

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  21. जहां प्रलोभन दे कर धर्मान्तरण किया, कर रहे हैं, उसका सार्थक विरोध होना चाहिये।
    जिस धर्म में जायेंगे, उसे अपमानित ही करायेंगे। धर्मांतरण अब कारोबार है।
    आजकल जो धर्मांतरण चल रहा है, वो केवल अपने धर्म की संख्या बढाने के लिए ही हो रहा है
    मजहब बड़ी ही निजी चीज होती है किसी को किसकी पूजा करनी है और कैसे करनी है ये उसका अपना अधिकार होना चाहिए. इस मामले में दूसरों की दखलंदाजी ग़लत है.
    ... परोपकार करना है तो अपने धर्म वाला होने की क्या जरुरत है?

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  22. अपने धर्म में आने को प्रेरित करने के लिए, अल्पसंख्यक समुदायों का ही प्रयास देखा जा सकता हैं।

    अपने धर्म पर गर्व करने का उद्घोष लगाने वाले तो इन मामलों में या तो आक्रमकता दिखाते हैं या घर वापिसी करने वालों के चरण धोते दिखते हैं। कभी आपने धर्म परिवर्तन के लिये बहुसंख्यकों में स्थायी एजेंडा देखा है?

    इस जीव जगत में लुप्त होती प्रजातियों के बारे में उनके लिए विशेष प्रयास तो सरकारें भी करती हैं। उन्हें विशेष सुविधाएं, सुरक्षा, प्रजनन प्रयास आदि भी एजेंडे में रखे जाते हैं। कभी बहुसंख्यक मानव जाति के लिए ऐसे प्रयास देखें हैं?

    फिर ये तो ब्रह्मांड के सबसे बुद्धिमान प्राणी, मानव के ही कुछ अल्पसंख्यक हैं जो अपनी संख्या खुद ही बढ़ाने के नाना प्रकार के प्रयास कर रहे हैं!

    वैसे माइकल ने जो कुछ किया, वह एक भटकती आत्मा का एक और प्रयास था किसी अज्ञात मंज़िल की ओर

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  23. नमस्ते, वेब-यायावर हूँ, और घूमते हुए आपके ब्लॉग पे पहुँचा. प्रसन्नता हुई देख के कि हिन्दी का ब्लॉग जो की कई वर्षों से चल रहा है | इस प्रशंसनीय प्रयत्न पर आपको अभिनन्दन | आप का आज का चिटठा अच्छा विषय उठाता है | हम हिन्दुओं की परिभाषाएं इतनी बदल चुकी हैं (या कहें - बदली जा चुकी हैं) कि हम पूर्णतया दिग्भ्रमित हो गए हैं | धर्मं और पंथ में भेद भूल गए, जाति और वर्ण में अन्तर भूल गए | और इस आंध्र्ता का परिणाम यह है कि बहुत सी टिप्पणियां (शायद क्षुब्ध हो कर) धर्मं (सही मायने में पंथ) के ना होने के पक्ष में हैं. और ये तो समाज की मात्र एक झलक है |
    भाषण यहीं समाप्त करते हुए, आपको पुनः धन्यवाद |

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  24. धर्म बदलने से इंसान कहाँ बदलता है...ये कौन कब समझेगा...???
    नीरज

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  25. जो भी अपना धर्म परिवर्तन करता है, यह उस की अपनी सोच है लेकिन उचित नही है, क्योकि अगर हम निक्कमे है , बेकार है तो दुनिया का कोई भी धर्म अपना लो , रोटी तो मेहनत से ही मिलेगी, कोई कब तक हमारा धर्म बदल कर रोटी के टुकडे हमारे आगे फ़ेकता रहै गा, इसाई मन की शान्ति के लिये हरे रामा हरे कृष्णा का राग जपते है, लेकिन उन्हे असल मे पता ही नही, नाच गा कर भगवान को अपने मतलब के लिये नही पाया जा सकता, कोछ गरीबी से अपना धर्म बदल लेते है, तो क्या वो सच मै अमीर बन गये? कुछ डर कर अपना जोर जवर्दस्ती से धर्म बदल लेते है, तो क्या वो सच्ची उपासना कर सकते है???

    हम जिस धर्म मै पेदा हुये है उसी धर्म मै हमे रहना चाहिये,

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  26. जिस 'नायक' को लेकर यह पोस्‍ट शुरु की गई थी, उसने तो 2005 में ही इस्‍लाम स्‍वीकार कर लिया था । बस, जाहिर अब किया गया हे - तीन साल बाद । मुक्‍केबाज केसियस क्‍ले ऊर्फ मोहम्‍मद अली की प्रेरणा से इस्‍लाम स्‍वीकार कर माइकल जेक्‍स अब मिकाइल बन गया है । मिकाइल का अर्थ है - फरिश्‍ते के बराबर ।
    काले अमरीकियों में इस्‍लाम स्‍वीकार करना बहुत ही सामान्‍य परम्‍परा है । ओबामा भी 'बराक हुसैन ओबामा' हैं - अफ्रीकन अमेरीकी । ओबामा के राष्‍ट्र्पति बनने के बाद तो अमेरीका के काले, इस्‍लाम की ओर दौड्ते नजर आ रहे हैं ।

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  27. धर्मांतरण धर्म दोनो से ज्यादा जरुरी चीज है धार्मिकता !!

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  28. धर्म एक अच्छी चीज है, लेकिन बलात या लालच द्वारा धर्मपरिवर्तन एक अपराध है !!

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--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय