Friday, November 21, 2008

अण्टशण्टात्मक बनाम सुबुक सुबुकवादी पोस्टें


Antshant हमें नजर आता है आलू-टमाटर-मूंगफली। जब पर्याप्त अण्टशण्टात्मक हो जाता है तो एक आध विक्तोर फ्रेंकल या पीटर ड्रकर ठेल देते रहे हैं। जिससे तीन में भी गिनती रहे और तेरह में भी। लिहाजा पाठक अपने टोज़ पर (on their toes) रहते हैं – कन्फ्यूजनात्मक मोड में कि यह अफसर लण्ठ है या इण्टेलेक्चुअल?! फुरसतिया वादी और लुक्की लेसते हैं कि यह मनई बड़ा घाघ टाइप है।

जब कुछ नार्मल-नार्मल सा होने लगता है तब जोनाथन लिविंग्स्टन बकरी आ जाती है या विशुद्ध भूतकाल की चीज सोंइस। निश्चय ही कई पाठक भिन्ना जाते हैं। बेनामी कमेण्ट मना कर रखा है; सो एक दन्न से ब्लॉगर आई-डी बना कर हमें आस्था चैनल चलाने को प्रेरित करते हैं – सब मिथ्या है। यह ब्लॉगिंग तो सुपर मिथ्या है। वैसे भी पण्डित ज्ञानदत्त तुम्हारी ट्यूब खाली हो गयी है। ब्लॉग करो बन्द। घर जाओ। कुछ काम का काम करो। फुल-स्टॉप।

Sadहम तो ठेलमठेल ब्लॉगर हैं मित्र; पर बड़े ध्यान से देख रहे हैं; एक चीज जो हिन्दी ब्लॉगजगत में सतत बिक रही है। वह है सुबुक सुबुकवादी साहित्त (साहित्य)। गरीबी के सेण्टीमेण्ट पर ठेलो। अगली लाइन में भले मार्लबरो smokingसुलगा लो। अपनी अभिजात्यता बरकरार रखते हुये उच्च-मध्यवर्ग की उच्चता का कैजुअल जिक्र करो और चार्दोनी या बर्गण्डीDrunk– क्या पीते हो; ठसक से बता दो। पर काम करने वाली बाई के कैंसर से पीडित पति का विस्तृत विवरण दे कर पढ़ने वाले के आंसू Crying 8और टिप्पणियांenvelope जरूर झड़वालो! करुणा की गंगा-यमुना-सरस्वती बह रही हैं, पर ये गरीब हैं जो अभावग्रस्त और अभिशप्त ही बने रहना चाहते हैं। उनकी मर्जी!

ज्यादा दिमाग पर जोर न देने का मन हो तो गुलशन नन्दा और कुशवाहा कान्त की आत्मा का आवाहन कर लो! “झील के उस पार” छाप लेखन तो बहुत ही “माई डियर” पोस्टों की वेराइटी में आता है। मसाला ठेलो! सतत ठेलो। और ये गारण्टी है कि इस तरह की ट्यूब कभी खाली न होगी। हर पीढ़ी का हर बन्दा/बन्दी उम्र के एक पड़ाव पर झील के उस पार जाना चाहता है। कौन पंहुचायेगा?!

मन हो रहा है कि “भीगी पलकें” नाम से एक नई आई.ड़ी. से नया ब्लॉग बना लूं। और “देवदास” पेन नेम से नये स्टाइल से ठेलना प्रारम्भ करूं। वैसे इस मन की परमानेंसी पर ज्यादा यकीन न करें। मैं भी नहीं करता!

आलोक पुराणिक जी ने मेरी उम्र जबरी तिरपन से बढ़ा कर अठ्ठावन कर दी है। कहीं सरकारी रिकार्ड में हेर फेर न करवा रहे हों! बड़े रसूख वाले आदमी हैं।
पर किसी महिला की इस तरह उम्र बढ़ा कर देखें! smile_regular 
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ठाकुर विवेक सिंह लिखते हैं कि मेरी पोस्ट पर “आधी बातें समझ से परे होती हैं”। फिक्र न करें। लिखने के बाद हमारी भी समझ में कम आती हैं। बिल्कुल हमारे एक भूतपूर्व अधिकारी की तरह – जो अपनी हैण्डराइटिंग से खुद जूझते थे समझने को!

32 comments:

  1. क्या सर, रात भर जागने के बाद जब सोने जा रहा हूँ तो नींद ही भाग खड़ी हुयी है आपकी पोस्ट को डिकोड करते हुए।

    ठहाका लगाने का मन कर रहा है, पर डर रहा हूँ कि दिन में पड़ोसी, मेरी ओर देखते हुए, अपनी तर्जनी, अपने ही सिर के पास ले जाकर क्लॉकवाइस घुमाना न शुरू कर दें:-)

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  2. आपके इस ब्लॉग पर पहली बार आया हूँ- बड़ी मानसिक हलचल हो गयी .थोडा वक्त बिता लूँगा तो शायद धीरता आए .

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  3. सत्य वचन महाराज,
    थोडा कुछ भूल गये आप;

    संस्कृति की दुहाई, महानगरों की संस्कृति, मेरा बचपन का गाँव और इस निर्दयी शहर की जिन्दगी, युवाओं के भटकते कदम, आदि टाईटल ब्लाग हिट करने की गारन्टी है ।

    लिव इन रिलेशन पर अधिकार लेकिन बिना अनुभव के लिखने वाले भी थोडे हिट पा गये लेकिन उससे भी लोग अब बोर हो गये हैं :-)

    भले ही इसे कोई हमारी निगेटिव मानसिकता कह ले लेकिन ब्लागिंग के Gaussian Distribution की पीक अभी भी सोच रही है कि केवल ब्लाग लिखने से गन्भीर विमर्श होगा अथवा एक क्रान्ति आयेगी । असल में अगर कोई क्रान्ति आयी भी तो वो Gaussian distribution की टेल से आयेगी ।

    मुझे ब्लाग पढने से नये विचार मिलते हैं लेकिन क्रान्ति की संभावना कम है । ३-४ बार जब कुछ मुद्दों ने मन की शान्ति हिलायी तो पोस्ट बनायी, उसके बाद छापने से पहले पढा तो लगा कि इसमें ऐसा कुछ भी नहीं लिखा है जिसे हिन्दी ब्लाग पढने वाले न जानते हों, आपकी भाषा में भक्क से रियलाईजेशन हुआ तो पोस्ट ड्राफ़्ट में ही रखी रहने दी ।

    आपके ब्लाग का भी चर्चा तभी तक है जब आप इन विविधता वाली ३-४ पैराग्राफ़ वाली पोस्ट लिखें । यही आपके ब्लाग की USP (Unique selling proposition) है । जरा लिख कर देखिये संस्कृति विमर्श वाली पोस्ट, स्टैट काउंटर अमेरिका का स्टाक मार्केट जैसा दिख सकता है :-)

    सुबुक सुबुक वाली पोस्ट पढना और टिपियाना एक तरह का गिल्टी प्लेजर है । उसके बारे में फ़िर कभी, वैसे भी जोश जोश में ज्यादा लिख गये हैं, भूल चूक लेनी देनी :-)

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  4. कन्फ्यूजनात्मक मोड की भली कही. अपना तो हाल अक्सर ही ऐसा रहता है.

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  5. जब पर्याप्त अण्टशण्टत्मक हो जाता है तो एक आध विक्तोर फ्रेंकल या पीटर ड्रकर ठेल देते रहे हैं।

    हम भी आपके पद चिह्नों पर चल रहे हैं ! अन्ट्शन्टात्मक लेखन में बड़ा दम लगता है ! क्योंकि कापी पेस्ट करने के लिए मैटर नही मिलता !

    "वह है सुबुक सुबुकवादी साहित्त (साहित्य)। गरीबी के सेण्टीमेण्ट पर ठेलो।

    इस पर कापी पेस्ट मैटर खूब है इसलिए सुविधा है और दाद भी अच्छी बटोरी जा सकने के चांस है !

    आलोक पुराणिक जी ने मेरी उम्र जबरी तिरपन से बढ़ा कर अठ्ठावन कर दी है। कहीं सरकारी रिकार्ड में हेर फेर न करवा रहे हों! बड़े रसूख वाले आदमी हैं !

    ये बताना जरुरी था क्या ? खामखा आप ख़ुद जवान हो गए और हमको बुड्ढा कह दिया ! आपकी बुढ्ढौउ कहने की इच्छा थी तो यूँ ही कह लेते ! हम क्या मना कर रहे थे आपको ? :)

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  6. सुबक सुबक से मुझे भी चिढ है पर क्या करुँ मुख्य धारा तो यही है और भावनात्मक शोषण को लोग उद्यत है और यहाँ मासूम लोग शोषित होने को भी तैयार -यह हमारी दुनिया नही है ज्ञान जी .आप अपने महल में महफूज हैं हमारे सरीखे कद्रदान तो आते ही रहेंगे -भले ही आवाभगत में आप चूक भी जांय !

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  7. यह अच्छा शगल है। आप तो मौज ले लें और पढ़ने वाले कन्फ्यूजियायें। वैसे कभी कभी इस का आंनंद लेते रहना चाहिए।

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  8. 'वह है सुबुक सुबुकवादी साहित्त (साहित्य)। गरीबी के सेण्टीमेण्ट पर ठेलो। अगली लाइन में भले -------'

    Sir, aap ka sense of humour bhi jabardast hai.

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  9. ठीक है ,इसका भी एक दौर है और चलेगा भी . और ताऊ जी ने सही फरमाया है कि - . अन्ट्शन्टात्मक लेखन में बड़ा दम लगता है ! क्योंकि कापी पेस्ट करने के लिए मैटर नही मिलता !

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  10. भीगी पलकें टाईटिल सही लग रहा है, खोल ही लीजिये

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  11. अंट शंट ही सबसे बड़ा सत्य है।
    क्योकि सत्य सारे अंट शंट हो लिये हैं।
    अनूपजी की बात को दिल पे ना लिया कीजिये। उन्हे सीरियसली ना लिया कीजिये, वो खुद भी अपने आप को सीरियसली नहीं लेते।
    आप तिरपन के हैं, ये जानकर बहुत खुश हुई।
    हम तो आपके ज्ञान की उम्र के हिसाब से
    आपको दो सौ सालों का मानने को तैयार हैं।

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  12. वह है सुबुक सुबुकवादी साहित्त (साहित्य)। गरीबी के सेण्टीमेण्ट पर ठेलो।

    "read your artical many times.... kitna sach or bindaas likhtyn hain aap... so true... amezing.."

    Regards

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  13. हाँ तो पांडे जी, क्या कहा? सिंपल लैंगुएज में ट्रांसलेट कर देते तो ठीक भी रहता. पता नहीं लोग बाग़ क्या क्या "बक " देते हैं. सबको अपने जैसा ही समझते हैं.

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  14. आप स्वयम् कौनसी श्रेणी के पाठक है सर जी??? ये बात तो गोल कर गये आप..

    सुबुक सुबुकवादी या अण्टशण्टात्मक ???

    वैसे हिन्दी ब्लॉग जगत में ब्लॉग को नही ब्लॉगर को पढ़ा जाता है.. फिर उसकी पोस्ट चाहे किसी भी विषय में हो.. आप स्वयं देख लीजिए विवेक भाई ने कहा की उन्हे आपकी पोस्ट समझ नही आती और देखिए फिर भी टीपिया रहे है.. मतलब की वो आपको पढ़ रहे है.. ना की आपके ब्लॉग को..

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  15. बात तो समझ ली, मगर आज आपकी भाषा पर पुराणिकजी का असर झलक रहा है, क्या माजरा है? :)

    बाकि अब प्रतिदिन आपकी पोस्ट पढ़ने की लत पड़ गई है.

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  16. अंडबडात्मक भी चलेगा।
    आप पर भी अज़दकी उपमाओं की लपेट में आ गए लगता है...

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  17. "आलोक पुराणिक जी ने मेरी उम्र जबरी तिरपन से बढ़ा कर अठ्ठावन कर दी है। कहीं सरकारी रिकार्ड में हेर फेर न करवा रहे हों!"

    मेरा अनुरोध है कि इसे आलोक की अंटशंटात्मक कार्ये के रूप में लिया जाये. वैसे एक खबर दे दूँ कि अब आपकी उमर 58 ही मानी जा रही है. अब क्या होगा ??

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  18. तिरपन और अट्ठावन में पाँच साल का फरक होता है अब इसे लोकतंत्र से जोड़ लीजिये या पाँच साला प्लानिंग से पर आपको अगली पोस्ट के लिए मसाला दे रहे हैं हम
    जब इतना अगड़म-बगड़म हो गया तो एक और सही.
    और हाँ क्रेडिट्स में हमारा नाम निःसंकोच डाल दीजियेगा पूछने की तकल्लुफ में रह मत जाने दीजियेगा

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  19. kya khoob likhe hain.. man ki baat kah diye hain.. sabse jyada hansi to tab aati hai jab apni likhi huyi subuk-subuk post ko ham khud hi nahi samajh paate aur log vah vah kah chale jaate hain.. :)

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  20. पहली बात पाण्डेय जी की तारीफ में जोकि मैं पहले भी कह चुका हूँ ये मेरी कोई टिप्पणी रोकते नहीं और सबको पब्लिक के सुपुर्द कर देते हैं फिर चाहे इनकी खिंचाई ही क्यों न हो .इसीलिए तो कुशभाई मैं भी सहमत हूँ कि मै ज्ञानदत्त नाम पढता हूँ यहाँ होने वाली बहस की रौनक का मजा लेता हूँ न कि मानसिक हलचल को जोकि मेरी समझ में कम आता है . देख रहा हूँ कि तेल लगाने वालों की संख्या ज्यादा है फिर भी कहूँगा कि बेशक स्टिंग ऑपरेशन करा के देख लो . इनकी रचना को नए ब्लॉग पर डाल दो . दो धेले में नहीं बिकेगी . आज ज्ञानदत्त नाम बिक रहा है . यही बात मैं भाभी जी से कह रहा था . वैसे आलोक पुराणिक का बदला मुझसे क्यों लिया गया . मैनें तो आजतक सबको यही बताया कि मैं जाट हूँ फिर कैसे मुझे ठाकुर लिख दिया . या लिंक गलत लग गया :)

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  21. विवेक ने कहा:

    "देख रहा हूँ कि तेल लगाने वालों की संख्या ज्यादा है फिर भी कहूँगा कि बेशक स्टिंग ऑपरेशन करा के देख लो . इनकी रचना को नए ब्लॉग पर डाल दो . दो धेले में नहीं बिकेगी."

    मेरा मानना है कि;
    'दो धेले' तो आज की पोस्ट में मिल गए....:-)

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  22. आज आपका विषय है अंट शंट बनाम सुबुकवादी पोस्टें
    संयोग से आज शास्त्रीजी का विषय है "शीर्षक और पाठकों की संख्या में संबंध!"
    उनके ब्लॉग पर मैंने निम्नलिखित टिप्पणी की है जो आपके चिट्ठे पर भी लागू होते हैं
    =============
    हम न शीर्षक देखते हैं न सामग्री।
    हम ने कुछ लोगों को चुन लिया।
    उनके ब्लॉग पढ़ता हूँ और कभी कभी टिप्पणी कर लेता हूँ।
    मैं जानता हूँ कि मेरे चुने हुए चिट्ठाकार सर्वश्रेष्ठ नहीं हैं।
    हर समय अच्छा नहीं लिख पाते।
    फ़िर भी उनको पढ़ने निकलता हूँ।

    फ़िल्में देखने के लिए भी यही नीति अपनाता हूँ।
    मेरे कुछ चुने हुए निर्देशक/अभिनेता/अभिनेत्री हैं।
    केवल उनकी फ़िल्में देखता हूँ।
    मैं जानता हूँ कि मेरे चुने हुए सितारे सर्वश्रेष्ठ नहीं हैं और मुझे इसकी पर्वाह नहीं है।
    उनकी फ़िल्में कभी अच्छी लगती हैं, और कभी नहीं।

    टीवी के लिए भी यही नीति है मेरी।
    लिखते रहिए, आपका नाम मैंने चुन लिया।
    शुभकामानाएं
    ==========

    ज्ञानजी, लिखते रहिए, चाहे अंट शंट चाहे सुबुक वादी या किसी गंभीर विषय पर, हमें पर्वाह नहीं।
    आपका नाम भी मैंने चुन लिया है।

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  23. क्या कहना था विवेक सिंह की टिपण्णी देख कर भूल गया... मुझे मेरी माडर्न आर्ट वाली बात याद आ गई !

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  24. हम्म, तो देवदास के छद्मनाम से कब लिखना आरंभ कर रहे हैं? ;)

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  25. नये ब्लोगोँ के लिये हमारी शुभकामना हैऔ र सुबुक सुबुकवादी द्रश्य दीखला कर ही "सत्यजीत रे"
    'पाथेर पाँचाली "बनाकर
    शीर्ष फिल्म निर्माता कहलाये हैँ -
    और पाँचाली का नव अवतार "महाभारत " मेँ भी खूब चला ...
    आप, खाँमखाँ
    परेशान हो रहे हैँ ..
    अभी बहुत कुछ है
    जिसे आप
    हिन्दी साहित्य को
    छुक़ छुक़ गाडी से देँग़ेँ
    - लावण्या

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  26. सारा कुछ बांच के हमारी आंखे भीग रही हैं। ब्लाग का नाम सार्थक रखा है शुरू कर ही दें। और जो हमने आपको घाघ ब्लागर कहा है वह आपने खुद स्वीकार किया। हमने गलत भी नहीं कहा था। सच स्वीकार कर आपने आपनी महानता का परिचय दिया।

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  27. ज्यादा दिमाग पर जोर न देने का मन हो तो गुलशन नन्दा और कुशवाहा कान्त की आत्मा का आवाहन कर लो! ....
    ग्याण जी अब दिमाग की क्या जरुरत बस हम ने तो पोस्ट पढी ओर टिपण्णी फ़ेंक दी... बहुत सुन्दर, क्याबात है; अच्छी लगी...:)
    धन्यवाद

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  28. बहुत खूब लिखा है bhaiiya लेकिन हम किस shreni के हैं ये to बताया ही नहीं....?:))
    नीरज

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  29. गुरुजी बुरा ना माने तो देवदास की जगह मस्तराम नाम ज्यादा सूट करेगा और हिट भी होगा।वैसा आप गुरूजी है,हमे देवदास भी चलेगा। अब विवेक जी चाहे तो तेल लगाने वालो की संख्या मे इजाफ़ा मान लें।

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  30. पूरा नाम रखिये जी:


    ’भीगी पलकें, मुस्कराते लब ’

    तब बात बन पायेगी देवदास इन ब्लॉगिंग मोड की.
    :)

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  31. 'भुस में आग लगाकर बन्‍नो दूर खडी' कहावत का उदाहरण पाने के लिए स्‍कूली बच्‍चों को आपकी यह पोस्‍ट पढवाएंगे ।

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--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय