Saturday, November 8, 2008

सनराइज की सेलरी का सदमा


मेरे निरीक्षक श्री सिंह को कल सेलरी नहीं मिली थी। कैशियर के पास एक करोड़ तेरह लाख का कैश पंहुचना था कल की सेलरी बांटने को; पर बैंक से कुछ गूफ-अप (goof-up – बेवकूफियाना कृत्य) हो गया। कुल सत्तर लाख का कैश पंहुचा। लिहाजा सौ डेढ़ सौ लोगों को सेलरी न मिल पाई। पहले तनातनी हुई। फिर जिन्दाबाद-मुर्दाबाद। फॉलोड बाई यूनियन की चौधराहट की गोल्डन अपार्चुनिटी!

सिंह साहेब से यह आख्यान सुन कर मैं सेलरी मिलने में कुछ देरी के कारण उत्पन्न होने वाली प्रचण्ड तड़फ पर अपने विचार बना ही रहा था कि एक प्रॉबेबिलिटी के आधार पर छपास पर पंहुच गया। और सनराइज जी ने क्या दमदार पोस्ट लिखी है – मेरी सेलरी कम कर दो

Chhapas
एक तारीख को सैलरी नहीं मिलने के कारण मैं सैलरी विभाग में इतनी बार मत्था टेकने जाता हूं कि वहां के अधिकारी भी मुझे पहचानने लगे हैं...कई कर्मचारी तो मेरे दोस्त भी बन गए हैं....कौन कहता है कि समय पर सैलरी नहीं मिलना काफी दुखद होता है ?
...सनराइज जी, छपास पर
सनराइज जी कौन हैं; पता नहीं चलता ब्लॉग से। यह जरूर पता चलता है कि उनकी सेलरी पच्चीस हजार से ज्यादा है। इससे कम होती तो उन्हें एक तारीख को तनख्वाह मिल गयी होती। और वे  क्रेडिट कार्ड, होम लोन, घर का बजट, बिजली का बिल, फोन का बिल और ना जाने कौन कौन से बिल चुका चुके होते। अब तो (बकौल उनके) “बच्चे का डायपर खरीदते वक्त भी ऐसा लगता है जैसे उसका पॉटी डायपर पर ना गिरकर मेरे अरमानों पर गिर रहा हो...”

money_bag_brown साहेब, यह नियामत है कि (मेरी सेलरी पच्चीस हजार से ज्यादा होने पर भी) मेरे पास क्रेडिट कार्ड नहीं है। किसी अठान-पठान-बैंक से लोन नहीं ले रखा। दाल-चावल के लिये मेरी अम्माजी ने जुगाड़ कर रखा है अगले १००-१२० दिनों के लिये। दिवाली की खरीददारी पत्नी जी निपटा चुकी हैं पिछले महीने। कोई छोटा बच्चा नहीं है जिसका डायपर खरीदना हो। लाख लाख धन्यवाद है वाहे गुरू और बजरंगबली का (वाहे गुरू का सिंह साहब के चक्कर में और बजरंगबली अपने लिये)!

खैर, मेरा यही कहना है कि सनराइज जी ने बड़ा चहुचक लिखा है। आप वह पोस्ट पढ़ें और अपने क्रेडिट-कार्ड को अग्निदेव को समर्पित कर दें। न रहेगा लोन, न बजेगा बाजा! 

ॐ अग्नये नमः॥

24 comments:

  1. सही हैं सनराइज़ महाराज | मोह माया से इतनी विरक्ति |

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  2. जो लोग "क्रेडिट कार्ड" में से क्रेडिट हटा उसको मात्र एक भुगतान कार्ड के रूप में प्रयोग करते हैं वे सुखी रहते हैं। और जो लोग क्रेडिट का प्रयोग करने लगते हैं वे बाद में दुखिया जाते हैं क्योंकि वे एक ऐसे दलदल में जा फंसते हैं जिसमें से निकला हैसियत के बाहर होता जाता है।

    बाकी हम तो अपने क्रेडिट कार्ड न फूंकेगे जी, काफ़ी प्वायंट जमा हो गए हैं, बस अब तो उनको रिडीम कर कोई गिफ़्ट वाउचर लेना है!! :)

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  3. मैंने अक्षरशः पढ़ लिया है ! पर टिप्पणी नही दे पा हूँ -यही टिप्पणी मान ली जाय !

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  4. बहुत अच्छा लिखा है आपने.

    वैसे भी मेरी मान्यता है कि क्रेडिट कार्ड मात्र सुविधा के लिए है..न कि अपनी औकात के बाहर एय्याशी करने या पैर फेलाने के लिए.

    क्रेडिट कार्ड को अगर डेबिअ कार्ड की तर्ज पर इस्तेमाल करें तो ही बेहतर.

    मगर न जाने क्यूँ लोग उसे अपनी का एक्टेशन मान बैठते हैं.

    पढ़ते जा कर सनराईज जी को..आजकल भारत आने की तैय्यारी में जरा आवाजाही कम सी हो गई है जो कचोटती तो है मगर भारत जाने का ख्याल उस कचोटन को गुदगुदी टाईप में अहसास करता है. :)

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  5. क्या कहा क्रेडिट कार्ड को अग्निदेव के हवाले कर दें, इतनी मेहनत से क्रेडिट कार्ड मिला और उसको यूँ ही....अब आप हमारी कहानी सुनें :-)

    यहाँ (ह्यूस्टन) में आये आये तो पिताजी के दिये संस्कारों के चलते सब कुछ तुरंत नकद चुका देते थे । फ़िर जब सेलफ़ोन लेना हुआ तो बोले कि तुमने कभी जिन्दगी में उधार नहीं लिया, तुम्हारा कोई उधारखाता नहीं, कैसे भरोसा कर लें । पहले ५०० डालर जमा कराओ तब सेलफ़ोन का कनेक्शन देंगे । हमने कहा क्या मजाक है, हम नकद पैसा रखते हैं किसी का उधार नहीं और वो हम पर हंसने लगे । फ़िर अमेरिकन एक्सप्रेस वालो नें विद्यार्थियों पर तरस खाने वाले अंदाज में एक उधारखाता बनाया, और उस दिन की कसम राशन पानी, बिजली, फ़ोन, दूध, जूते सब उधार आता है ।

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  6. अच्छी जानकारी दी आपने इस पोस्ट के बारे में। सचमुच काफी नाटकीय हालात हो जाते हैं जब समय पर सैलरी न मिल पाये। कभी उनके बारे में भी यदि सोचा जाय जो बेरोजगारी से जूझ रहे हैं तो काफी कुछ झिंझोड कर रख देने वाले हालात सामने आते हैं।

    कुछ इन्ही हालात से गुजरे एक शख्स की कहानी Bill Liversidge नाम के लेखक ने अपनी किताब A Half Life Of One मे लिखी है, फिलहाल यह Online है। इसमे एक आम इंसान के रोजगार न मिल पाने पर अपने पत्नी और बच्चों से बिछडने का खतरा आन पडता है और पत्नी है कि वो अपने पति से बेहद प्यार करती है...लेकिन हालात एसे बन जाते हैं कि आगे चलना मुश्किल हो जाता है....घर पर आने वाले नौकरी के कॉल लेटर तक को वह शख्स इसलिये छुने से डरता है, क्योंकि उसे लगता है इसमे मेरी गिरफ्तारी का वारंट न हो...और इसी बीच वह बेहद खतरनाक कदम उठा लेता है,....बेहद रोमांचकारी इस नॉवेल को जरूर पढें

    बकौल लेखक A Half Life Of One - A novel about an ordinary man under extraordinary pressure.सचमुच ही एक सामान्य इंसान की दबावों मे आकर की गई घटनाओं की कहानी है।
    http://halflifeone.blogspot.com/

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  7. F9inancial insecurity is rampant , all across the globe. To each their own
    to be or not to be

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  8. क्‍या रोचक विसंगति है । माथे पर कर्ज न हो तो 'पश्चिम' में चैन से सो नहीं सकते और मा‍थे पर कर्ज हो तो 'पूरब' में नींद आंखों से दूर हो जाती है ।

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  9. नहीं जी हम उनकी पोस्ट नहीं पढेंगे, हम पहले से ही दुखी हैं. आपकी पोस्ट पढ़ ली इतना ही काफी है आज के लिए. आप सनराइज़ जी वाली सारी जिम्मेदारियों से मुक्त हैं, यही एक बड़ी खुशी की बात है हमारे लिए, बधाई!

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  10. आप बहुत भाग्यशाली हैं। इधर तो जलाने को कोई क्रेडिट/डेबिट कार्ड नहीं है। न ही कोई खाने पीने का इंतजामकर्ता रोज कमाने के अलावा कोई चारा नहीं वह भी केवल वकालत से।

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  11. हम भी कभी ना पड़ता हूं क्रेडिट कार्ड के चक्कर में। अशोक चक्रधरजी की एक कविता है , उसका आशय यह है कि शब्द अपनी बात खुद बोलता है, भेद खुद खोलता है, लोन कहता है लो ना, पर तुम ध्यान दो ना।
    क्रेडिट का जाल विकट जाल है। पर इसमें फंसने के चांस बहुत ज्यादा है। क्रेडिट बालाएं जब कार्ड देती हैं, तो इस अंदाज में मानो फ्री का बंट रहा हो।
    मैं परेशान होकर एक तरकीब निकाली है। हर बैंक से फोन आता है कि जी लोन ले लो, क्रेडिट कार्ड ले लो। अब तो मैं पलट जवाब में कहता हूं कि मैं खुद क्रेडिट देता हूं, मेरी गाड़ी में सौ करोड़ रुपये हमेशा पड़े रहते हैं। मैं स्मगलर हूं, आप पता बताइए, मैं आपके पास पहुंचकर क्रेडिट देता हूं।
    मसले टेंशनात्मक है। क्रेडिट से दूर रहने में ही भलाई है।

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  12. ना जी.. हम अपना क्रेडिट कार्ड नहीं फूंकने वाले हैं.. उससे बहुत फायदा हुआ है.. हमेशा डेबिट कार्ड जैसे प्रयोग में जो लाते हैं.. :)

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  13. " कोई छोटा बच्चा नहीं है जिसका डायपर खरीदना हो। "
    हमारा हाल ज्यादातर आपके जैसा ही है ! पर आजकल रेलवे/ हवाई जहाज की टिकट घर बैठे क्रेडिट कार्ड के बिना नही आती ! क्योंकि आन-लाइन भुगतान करना होता है ! सो जलाना तो सम्भव नही है ! क्रेडिट कार्ड वो बंदूक है जिससे चाहे तो ख़ुद को गोली मार कर आत्महत्या कर लीजिये या आत्मरक्षा में दूसरे पर चला लीजिये ! मर्जी है आपकी !

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  14. क्रेडिटकार्ड एक सुविधा है. यह आप पर है की विवेक से उपयोग करते हैं या....

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  15. हम तो उनकों भी जानते हैं जो कथरी..[ गरीबों का कई कपड़ों के टुकड़ों से बना गरम लबादा.. सर्दी में उपयोग आने वाला ] ओढ़कर घी पीते हैं. और उधार लेने-देने वालों को भी देखा है भई....! रही बात डेबिट-क्रेडिट कार्ड कि तो यह जगह और आदमी के हिसाब से स्टेटस सिम्बोल है...कहीं रखना जरुरी तो कही मजबूरी. क्योंकि ईमानदारी भी तो मजबूरी....और शौकिया होती है..ज्ञानजी.

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  16. समीर जी से अक्षर अक्षर सहमत .....

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  17. shukr hai...abhi tak creditcard ka nato shauk hai aur na koi majboori aayi hai. isliye is bala se door hi hain.

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  18. क्रेडिटकार्ड एक सुविधा है. यह आप पर है की विवेक से उपयोग करते हैं या....sanjay ji ki baat se sahmat

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  19. दादा
    एकदम सत्य बोला आपने

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  20. सही है गुरूजी, पैसे से विरक्ति ठीक ही है. सिकंदर भी खाली हाथ ही गया था.

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  21. भाई समीर यादव जी के विचारो से एकदम सहमत हूँ . धन्यवाद.

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  22. 'ऋणं कृत्वा घृतं पिवेत'तो कहीं भी सही नहीं हो सकता. क्रेडिट कार्ड जरूर ज्यादा खर्च को प्रेरित करता है पर थोड़ा कंट्रोल में रहा जाय तो बुरा भी नहीं. अभी हाल ही में बोनस पॉइंट से १००० रुपये के किताब खरीदने के कूपन आए हैं तो बुराई नहीं कर सकता :-)

    हाँ ये जरूर है की कई बार घुमने/फ़िल्म देखने आदि के मकसद से जाना चाही-अनचाही शॉपिंग करने में परिवर्तित हो जाता है !

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  23. आप क्रेडिट कार्ड की बिमारी से मुक्त है और घर में धन धान्य प्रचुर मात्रा में है क्युं कि आप( और हम भी) जिस पीढ़ी के हैं वो बचत में और अल्प साधनों के संग रहने को( कोई मजबूरी न होते हुए भी) फ़क्र की बात मानती थी। Recycling and maximum utilisation of avilable resources are the values dear to us. Our generation looks down upon consumerism and that is why we are comfortable. But today's generation believes that live in present and not in future becuase future is totally uncertain. I don't blame them for having such an attitude. In our younger days uncertainties were not so high, we could dream of a time after retirement, there was hope that future will be better than present. But today's generation does not have any such hope...even in government jobs, there is no gaurantee that government will not change rules to avoid giving retirement benefits to the present employees. So what is important for them is present.
    Sorry could not write the full comment in hindi...:)

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--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय