Saturday, September 20, 2008

क्या सच है?



पिछली बार भी वे ईद से पहले आये और इसी तरह का ऑपरेशन किया था। इसकी पूरी - पक्की जांच होनी चाहिये और यह सिद्ध होना चाहिये कि पुलीस ने जिन्हें मारा वे सही में आतंकवादी थे।" - सलीम मुहम्मद, एक स्थानीय निवासी।  
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एस ए आर गीलानी, दिल्ली विश्वविद्यालय के अध्यापक, जिन्हें २००१ के संसद के हमले में छोड़ दिया गया था, ने न्यायिक जांच की मांग करते हुये कहा - "इस इलाके के लोगों को बहुत समय से सताया गया है। यह नयी बात नहीं है। जब भी कुछ होता है, इस इलाके को मुस्लिम बहुल होने के कारण निशाना बनाती है पुलीस।"
एनकाउण्टर के बारे में पुलीस के कथन पर शायद ही कोई यकीन कर रहा है।
--- सिफी न्यूज़

Ridiff Encounter 
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इन्स्पेक्टर मोहन लाल चन्द शर्मा, एनकाउण्टर में घायल पुलीसकर्मी की अस्पताल में मृत्यु हो गयी

42 comments:

  1. इन्स्पेक्टर मोहन लाल शर्मा को नमन एवं मेरी श्रृद्धांजलि!!!

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  2. बिना धर्म और ईमान वाले (स्‍वार्थ में अंधे) चंद गद्दारों को छोड़ दें, तो सच सारी दुनिया जानती है।

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  3. मुझे तो लगता है वोट बैंक सच है.....और ईसी बैंक में सारी सच्चाईयां जमा हैं अलग-अलग रूप लेकर कभी तुष्टिकरण के रूप में...कभी दुष्टता के रूप में।

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  4. देश की आन पर मर मिटनेवाले, बहादुर पुलिस इन्स्पेक्टर मोहन लाल शर्मा को
    क्या सरकार कोई मान सम्मान देगी ?
    उनके परिवार का क्या होगा ?
    :-(
    और जिन हाथोँ ने ऐसे बम बनाये और विस्फोट किया है उपरवाला उनकी,
    काली करतूतोँ को देख रहा है !
    जहाँ कहीँ ऐसे हादसे होते हैँ ,
    निर्दोष इन्सान की जान जाती है -
    :-(((
    मुझे उसका बहुत दुख है !
    - लावण्या

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  5. मोहन लाल शर्मां को श्रद्धांजलि -यह एनकाउटर असली वाला लगता है !बाकी सच और झूंठ का फैसला तो अदालते ही करती हैं !
    यह ब्लॉग के स्कोप के बाहर है शायाद !

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  6. हमारे एक बुजुर्ग शायर कहते हैं-
    साफ़ आइनों में चेहरे भी नजर आते हैं साफ़,
    धुंधला चेहरा हो तो आइना भी धुंधला चाहिये।

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  7. यदि encounter नकली था तो इन्स्पेक्टर मोहन कैसे मरे?

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  8. मोहन लाल शर्मां को श्रद्धांजलि देते हुए यही कहना चाहूँगा की
    एनकाउन्टर क्यूँ होते हैं ? सारा जगत जानता है ! और एस.अ.आर.
    गिलानी की बात पर "नो कमेन्ट" ! आप भी जानते हैं क्यूँ ?

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  9. ताऊ रामपुरिया > और एस.अ.आर.
    गिलानी की बात पर "नो कमेन्ट" ! आप भी जानते हैं क्यूँ ?


    जी, हाँ, जानता हूँ। अन्यथा ऐसी पोस्ट बनाने की क्या जरूरत थी। खूब अंग्रेजी (पढ़ें विद्वता) ठेलता!

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  10. इतना होने पर भी ऐसे बयान । एनकाउंटर तो असली ही था । ईश्वर इनस्पेक्टर शर्माजी के परिवार को धैर्य दे औऱ हमारी सरकार को सदबुध्दी ।

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  11. सतीश पंचम जी की बात में दम है। तुष्टिकरण के सहारे वोट बैंक बटोरने की राजनीति और मीडिया के कैमरे जब तक हर कुत्‍ते-बिल्‍ली पर फोकस होते रहेंगे तब तक ये दुकानें चलती रहेंगी। हमें सिर्फ ये समझना चाहिए कि आतंकी का कोई धर्म नहीं होता और हमेशा एक जीव मरता है।

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  12. आदरणीय , मेरी बात का तुंरत आपने नोटिस लिया , इससे मेरा
    मतलब हासिल हुवा ! मैंने जानबूझकर "नो कमेन्ट" लिखा था !
    क्यूँकी जहाँ तक मैं इस पोस्ट को समझ पाया हूँ यह सवाल इस
    पोस्ट की आत्मा है ! और सभी टिपणिकार इससे बचते चले जा
    रहे थे ! सभी का ध्यान खींचने के लिए ऐसा लिखा गया था !
    और शायद आज दिन भर में इस बात पर अब कोई सार्थक विचार
    जानने में आयेंगे ! अन्यथा ना ले ! अभी शाम को फ़िर आउंगा !

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  13. देश की सेवा में जान न्योछावर करने वाले इंसपेक्टर मोहन चन्द्र शर्मा को मेरा नमन. देश ने एक वीर खोया है. यह इन वीरों का त्याग ही है की हम घर इस तरह में चैन से बैठकर लेख और उन पर टिप्पणिया लिख पा रहे हैं. हमें इनके त्याग के लिए कृतज्ञ होना चाहिए.

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  14. मेरे ख्याल से अशोक जी की बात से आसानी से सहमत हुआ जा सकता है कि "सच सब जानते हैं"

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  15. एनकाउंटर गुजरात में नहीं हुआ है, अतः शक की कोई वजह नहीं :)

    पूलिस जवान शहीद हुआ है...नमन.

    बाकी दो बच गए कैसे इसकी जाँच होनी चाहिए. एनकाउंटर रूका क्यों?

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  16. शहीद मोहन लाल शर्मा अमर रहे,सारे एन्काउन्टर झूटे है तो जो बेगुनाह मर रहे है वो?इस देश का कबाडा कर डाला कुछ नेताओ ने। आतन्क फ़ैलाने वालो के नाम पर बेगुनाहो को ना फ़न्साया जाय वे भले ही कत्लेआम करते रहे,ये है इन्साफ़,वाह,शर्म भी तो नही आती गद्दारो को

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  17. कुछ स्थानीय मुसलमान अभी भी इन आतंकवादियों के छलाबे में आ रहे हैं. एक मकान में कुछ लोग आ कर रहते हैं पर मकान मालिक पुलिस से सत्यापन नहीं कराते. मोहल्ले के लोग उन के बारे में पुलिस को सूचित नहीं करते. क्या यह लोग नहीं जानते कि इस तरह के लोगों के बारे में कानूनन उन्हें पुलिस को सूचना देनी है? जैसे ही पुलिस किसी मुस्लिम बहुल इलाके में कोई कार्यवाही करती है यह लोग चिल्लाने लगते हैं और मीडिया इस आग में घी डालता है. क्या इन मुस्लिम बहुल इलाकों पर देश का कानून लागू नहीं होता? क्या पुलिस को इन इलाकों में घुसने से पहले इन लोगों की इजाजत लेनी होगी? और जब कि कुछ ही दिन पहले शहर में बम धमाकों में कितने निर्दोष नागरिकों की जान गई है. इस देश के मुसलमानों को इन आतंकवादियों से ख़ुद को बचाना चाहिए. यह आतंकवादी मुसलमान नहीं हैं, यह इस्लाम के दुश्मन हैं. यह अल्लाह के बन्दे नहीं हैं. यह शैतान के बन्दे हैं. एक सच्चे मुसलमान को इनसे कोई ताल्लुक नहीं रखना चाहिए. एक सच्चे मुसलमान को खुल कर आतंकवादियों की निंदा करनी चाहिए, उन का विरोध करना चाहिए.

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  18. शोक मनाने के अलावा हम सभी कर भी क्‍या सकते हैं।

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  19. कुछ दिन पहले टी.वी पर उत्तर प्रदेश के पूर्व डी जी पी का इंटरव्यू देख रहा था उन्होंने कहा था की जब हम किसी क्रीम की लीड लेते हुए chain के तहत किसी खास स्थान तक पहुँचते है तो हम पर प्रेशर आना शुरू हो जाता है स्थानीय ओर तमाम दूसरे राजनैतिक किस्म के लोगो का ....तो सारी जांच की chain वही रुक जाती है ......नतीजा फ़िर किसी दिल्ली ब्लास्ट के रूप में सामने आ जाता है......
    शर्मा जैसे देशभक्त लोग जब शहीद होते है तो अमर सिंह १० लाख रुपये देने की तुंरत फुरंत घोषणा करते है ..ये अमर सिंह वही है जो सिमी को प्रतिबंध नही करना चाहते ?इस देश में संसद के हमले का दोषी फांसी की सजा पाने के बाद भी अभी तक जेल में है ?जब अमेरिका ओर दूसरे देशो में कोई आतंकविरोधी कानून बनता है तो उस पर कोई बहस नही होती एकमत ,एक राय से पास हो जाता है....हमारे देश में ?वही घिसा पिटा कानून है ?कानून में तुरन् सुधर उसे ओर सख्त ,एक स्पेशल सेल बनाने की तुंरत आवश्यकता ,ओर न्याय प्रणाली को शीघ्र निर्णय देने की जरुरत है......वरना देश विस्फोट पर खड़ा होगा ओर शर्मा जैसे लोग यूँ ही शहीद होकर तमगे पायेगे ......ओर इस देश के राजनेता के कानो पर चूं भी नही रेंगेगी ....
    उस शहीद को मेरा सलाम .इश्वर उनके परिवार को हिम्मत ओर हौसला दे .....पुरे देश की आँखे आज नम है.

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  20. कुछ नही होना, चुनावी साल है।
    जिनको मारा गया, वो उनकी कर्म थे, और उनकी नियति यही थी।
    जो बच गए, उनको फिलहाल तो जेल मे डाल दिया जाएगा, जब तक कि मामला ठंडा नही हो जाता। बाद मे उनको बेगुनाह साबित करने की मुहिम जोर पकड़ेगी, पुलिस पर पीछे से केस कमजोर करने का दबाव बनेगा। कोई ना कोई राजनीतिक पार्टी (तुष्टीकरण के हितों वाली) इन ’मासूम और बेगुनाहों’ को चुनावी टिकट दे देगी।
    थोड़े दिनो बाद लोग इस मुद्दे को भूल जाएंगे, कम से कम अगले बम धमाकों तक।

    अभी थोड़े दिनो तक शर्मा के परिवार को लाखों रुपए देने का वादा किया जाएगा, तमाम घोषणाए, स्मारक बनाए जाने का वादा किया जाएगा। तेहरवीं निबटते ही, ये घोषणाए करने वाले छंटने लगेंगे और वादे भी भूला दिए जाएंगे। पिछले बम विस्फोटों के वीरों का क्या हाल हुआ है, ये सभी जानते है। यही यथार्थ है, यही कड़वी सच्चाई है।

    इंस्पेक्टर मोहन लाल शर्मा के बलिदान को कोई और याद रखे ना रखे, लेकिन इतिहास जरुर याद रखेगा। सच्चे वीरों को स्मारकों की जरुरत नही होती। उनका स्थान स्कूल की किताबों मे नही, लोगों के दिलों मे होता है।

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  21. जोधपुर में मुस्लिम बहुल इलाक़े में पुलिस पहुँची शाम का वक़्त था.. शुक्रवार था.. मस्जिद के पास नमाज़ पढ़ी जा रही थी.. पुलिस ने वाहा चार लोगो को पकड़ा सभी लोगो ने पुलिस का विरोध किया.. आरोप लगा की मुस्लिम इलाक़ा है तो क्या इसका मतलब यहा आतंकवादी होंगे?

    तमाम संगर्श लाठिया चले पत्थर फेंके गये.. लोगो को खदेड़ा गया. पुलिस वालो को भी छोटे आई.. अंतत पुलिस उन चारो को ले गयी.. दूसरे दिन उन्होने अपराध कबूल किया आतंकवादियो को वहा ठहराने की बात कबूल की..

    पुलिस की कार्यवाही रोकने की क्या वजह रही होगी? अगर मुस्लिम इलाक़ो में आतंकवादी नही रहते तो फिर कहा से मिलते है.. हर बार विरोध होता है की मुस्लिम इलाक़ो को ही निशाना क्यो बनाया जाता है.. और हर बार आतंकवादी मिलते भी वही से है..

    और हर बार कुछ सवाल अनुतरित रह जाते है..

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  22. मेरे देश के दुश्मन
    मेरे देश मे रहते है।

    मेरे देश के दुश्मन अपने दुश्मन को
    देश का दुश्मन कहते है॥

    इतने सहनशील है हम
    जो सब सहते है

    इसीलिये पल-पल मे
    खून के दरिया बहते है॥
    मेरे देश के दुश्मन
    मेरे देश मे रहते है।

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  23. fake encounters bhi bahut hote hain...bahut dekhe hain aur unme galentry bhi lete dekha hai lekin shaheed hote nahi dekha....ye to asli hi tha.

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  24. .


    डा. अनुराग के परिपक्व कथन से सहमत...
    पर, एक बात गौर की जाये कि..
    'अधिकतम एनकाउंटर जैसे भी होता है, अब लुका-छिपा न रहा, किन्तु
    शहीद होने वाले पुलिसकर्मी बहुधा विभागीय वैमनस्य के निस्तारण के तहत या
    फिर मीडिया और जनता में अपने पिछले निकम्मे अतीत को झुठलाने के शिकार
    के रूप में अंज़ाम दिया जाता है ’

    मैं जानता हूँ, कि मैं क्या लिख रहा हूँ, किन्तु मैंने आज तक एक भी शब्द कहीं
    भी
    तथ्यहीन नहीं लिखा, यह भी एक सच है ! इस तरह के कृत्यों का अपना
    एक कोडवर्ड ’ एलिमिनेट ’ हुआ करता है । गर्व से कहें कि ... सबतो लिख नहीं सकता !

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  25. ये तो ज्यादती है. एक एनकाउंटर में एक पुलिस वाला मर जाए और कुछ लोग उसे फेक एनकाउंटर कहें तो और क्या कहा जा सकता है?

    किसी ख़ास धर्म के लोगों को कॉलोनियों में बसाए जाने के परिणाम स्वरुप स्वीकार किया जाय इस तरह के विरोध को. जिन लोगों ने ऐसा किया, वही आज इस बात की शिकायत करते फ़िर रहे हैं कि मुसलमानों को मुख्यधारा में आने का मौका नहीं मिला. यह बात मैं यहाँ इस लिए उठा रहा हूँ कि इतिहास पढने पर जोर दिया जाता रहा है.

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  26. इस पूरे वाक़ये में एक ही बात संतोष की है कि इंस्पेक्टर शर्मा को सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ही ने श्रद्धांजलि दी है. क्या ही अच्छा हो जो उनमें आतंकवाद के ख़िलाफ़ कड़े क़ानूनी प्रावधानों पर भी सहमति हो जाए, जैसा अमरीका, ब्रिटेन और अन्य आतंकवादपीड़ित राष्ट्रों ने किया है. कहने की ज़रूरत नहीं कि किसी विशेष क़ानून के साथ उसके दुरुपयोग को असंभव बनाने वाले उपाय भी लगाए जाएँ. ख़ुशी की बात है कि चुनावी साल होने के बावजूद सरकार के भीतर एक कोने से ही सही, आतंकवादरोधी विशेष क़ानूनी प्रावधानों के पक्ष में कुछ आवाज़ें सुनाई देने लगी हैं!

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  27. शर्माजी की जान चली गयी, फिर भी इसे नकली मुठभेड़ मानने वाले या तो अंधे या बेवकूफ। पुलिस हमेशा सही नहीं होती पर हमेशा गलत भी नहीं होती। कबीर कौशिक की फिल्म सहर में फर्जी एनकाऊंटर में कुछ पुलिस वाले एक गैंगस्टर को मार गिराते हैं। एक वकील साहब उन्हे डिफेंड तो करते हैं, पर उनसे कहते हैं कि आईडियली यह सब नहीं होना चाहिए। इसके जवाब में पुलिस चीफ कहते हैं कि आईडियली यह नहीं होना चाहिए, पर हमें आइडियल कंडीशंड तो दीजिये।

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  28. विषय अति गंभीर है. सुबह से एक से अधिक बार टिप्पणी लिखने की सोची पर आक्रोश की अधिकता से स्वर ज्यादा कड़वा होता देख रुक गए.

    स्वर्गीय श्री शर्मा जी को हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं, उनका बलिदान स्वर्ण अक्षरों में अंकित रहेगा. पर एक प्रश्न साथ-साथ उभरता है, ऐसे खतरनाक ऑपरेशन में शामिल होने से पहले बुलेट प्रूफ़ जेकेट क्यों नहीं धारण की गयी? चार गोलियां उनके पेट में लगीं. देशभक्तों को अपनी जान के साथ ऐसा खिलवाड़ करने की क्या जरूरत है? आतंकवाद के खिलाफ लडाई जीती जायेगी आतंकवादियों को ख़त्म करके ना की स्वयं शहीद होकर.

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  29. शर्माजी की जान चली गयी, फिर भी इसे नकली मुठभेड़ मानने वाले या तो अंधे या बेवकूफ।(आलोक पुराणिक)
    वे न अन्धे हैं न बेवकूफ़, बल्कि वे हमें ऐसा समझ रहे हैं। क्योंकि हम अफ़जल को फाँसी नहीं दे पा रहे। वोट की खातिर देश का बेड़ा गर्क करने को तैयार हैं,भले ही यह वोट भी एक छलावा हो। सेकुलरवाद के ढोंग में जिए जा रहे हैं, आतताइयों की मर्जी पर।

    देश के दुश्मनों को पहचानना जब इतना सरल हो गया है तब भी कहने से डरते हैं, आँखें मूँद कर अन्धेरा होने का भ्रम पालते हैं।। पोलिटिकली करेक्ट बनने के चक्कर में। हाय रे राजनीति, और हाय रे देश के नेता...। डूब मरें ये।

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  30. .


    @ शिव भाई
    क्या स्वाधीनता संग्राम ( ? ) का हमारा इतिहास यह सनद नहीं देता, कि इक़बाल व ज़िन्ना किन वज़हों से भटक गये ? नेता जी बोस क्यों कांग्रेस से बिछड़ गये ? मृत्योपरांत उनके अवशेष किस पैंतरे के तहत नेपथ्य में रखे गये । डेढ़ दो वर्ष में ही ज़िन्ना की आसन्न मृत्यु की पक्की सूचना के बावज़ूद भी बंदरबाँट स्वीकार क्यों किया गया ?
    यह तो सुदूर अतीत की बातें हैं, 1984 में 5000 सिक्खों के संहार में अहिंसक हिंदू सक्रिय थे, या कोई और ? बाकायदा वोटर लिस्ट से उनकी शिनाख्त करवाने वाले कौन और कैसे लोग थे ? बोया बीज बबूल का... आम कहाँ से होय ?
    दुर्भाग्य से इस अप्रिय सच में कबीर का कोई स्थान नहीं है, फिर भी यह सच तो है ही !

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  31. .

    यार, यह ब्लाग-ओनर के एप्रूवल वाला झमेला बड़ा इरिटेटिंग है !
    बिल्कुल आब्जेक्शन सस्टेन्ड... व आब्जेक्शन ओवररूल्ड सरीखा !

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  32. जो भी सत्‍ता में आता है, सबसे पहले कानून को रखैल बनाता है । हम सब, इस प्रक्रिया के चश्‍मदीद गवाह बनते हैं और कभी-कभी तो सहायक भी ।
    कानून का शासन स्‍थापित किए बिना कोई बात बनने वाली नहीं । लेकिन वह 'आकाश-कुसुम' जैसी ही लगती है ।

    श्रीविजय वाते का एक शेर सब कुछ कह देता है -

    चाहते हैं सब कि बदले ये अंधेरों का नजाम
    पर हमारे घर किसी बागी की पैदाइश न हो

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  33. शर्मा जी व उनके जैसे देश के सपूतों को सलाम व श्रद्धांजलि।
    रहा सवाल सच का तो साहेब सच क्या है और इसे कौन खोज पाया है?

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  34. "इन्स्पेक्टर मोहन लाल चन्द शर्मा, एनकाउण्टर में घायल पुलीसकर्मी की अस्पताल में मृत्यु हो गयी"

    क्या इसके सच होने पर भी सवालिया निशान है? और अगर सामने वाला गोली चला कर ये काम कर रहा है... तो उसे तो निर्दोष ही कहेंगे शायद ! भारत देश है.

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  35. अब समय कौन साम्प्रदायिक है और कौन सेक्युलर,यह बहस चलानें का नहीं है। इस प्रकार की बहस चलानें वाले न तो समय की नज़ाकत समझ पा रहे हैं और नही स्थिति की गंभीरता का अंदाज। मामला वोट बैंक की राजनीति करनें वालों के हाथों से भी फिसलता जा रहा है यह आनें वाले कुछ महिनों में और गंभीरता से सामनें आयेगा। अपनीं बौद्धिक वाचालता को हमनें लगाम नहीं लगायी तो एक दिन ठगे से खड़े रह कर शायद हाथ भी न मसल पाएँ। मोहन चन्द्र शर्मा की माँ नें रोते-रोते आज तक से कहा कि जो लोग आज अमर रहे के नारे लगा रहे है वह जनता और यह हार चढ़ानें वाले नेता कल के बाद दिखाई भी न देंगे, पाँच अनब्याही बहनों,पत्नी ,और दो बच्चों के साथ बूढे माँ बाप का इकलॊता घर चलानें वाला बेटा था वह। क्या हम उस परिवार की कुछ भी मदद अपनी व्यस्त दिनचर्या से समय निकाल कर उन के दुख को कम करनें और हारी बीमारी में सांत्वना देने के लिये कर पाँयेंगे? कल मेरे विमतीय मित्र नें कहा कि शर्मा की मृत्यु पर इतना विलाप क्यों? उन्हें सरकार तनखाह किस बात की देती थी? कल ही देर रात एन डी टी वी पर एक मानवाधिकार संस्था के गौतम नवलखा बता रहे थे कि शर्मा के कुछ एनकाउन्टर्स की उन्होंने जाँच की थी और उन्हें अधिकाँश संदिग्ध लगे थे और ज़ामियाँ नगर वाला आज का एनकाउन्टर भी सन्देहों से परे नहीं है? मॄत शरीर के पास खड़ी मोहन चद्र की आत्मा नवलखा की बात सुन कर तो रो ही पड़ी होगी, इस विचार से कि क्या ऎसे कॄतघ्न भी हो सकतें हैं अपनें देश में? क्या भविष्य में कोई माँ अपनें मोहन को हमारी आपकी या फिर देश की रक्षा के लिए जान न्योछावर करनें की प्रेरणा देगी?

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  36. इन्स्पेक्टर मोहन लाल शर्मा को नमन एवं मेरी श्रृद्धांजलि!!!
    बहुत धन्यवाद

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  37. ise encounter shabad dena theek nahi shaad muthbedh zayada achha shabd hai

    jab dono taraf se goli chali ho to encounter kaisa ho sakta hai
    aur agar police wale ki death hui to goli duari taraf se bhi chali hai
    aur jo log hathiyaar rakhe ho kya unke bare main bhi check karne ki zarurat hai
    ajab baat hai

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  38. ऐसे बुद्धि के दरिद्रों पर कोई टिप्पणी करना अपना समय नष्ट करना है!

    @आलोक पुराणिक:
    कबीर कौशिक की फिल्म सहर में फर्जी एनकाऊंटर में कुछ पुलिस वाले एक गैंगस्टर को मार गिराते हैं। एक वकील साहब उन्हे डिफेंड तो करते हैं, पर उनसे कहते हैं कि आईडियली यह सब नहीं होना चाहिए। इसके जवाब में पुलिस चीफ कहते हैं कि आईडियली यह नहीं होना चाहिए, पर हमें आइडियल कंडीशंड तो दीजिये।

    वाकई! वह एक बढ़िया और मर्मस्पर्शी फिल्म थी।

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  39. ऐसे बुद्धि के दरिद्रों पर कोई टिप्पणी करना अपना समय नष्ट करना है!

    @आलोक पुराणिक:
    कबीर कौशिक की फिल्म सहर में फर्जी एनकाऊंटर में कुछ पुलिस वाले एक गैंगस्टर को मार गिराते हैं। एक वकील साहब उन्हे डिफेंड तो करते हैं, पर उनसे कहते हैं कि आईडियली यह सब नहीं होना चाहिए। इसके जवाब में पुलिस चीफ कहते हैं कि आईडियली यह नहीं होना चाहिए, पर हमें आइडियल कंडीशंड तो दीजिये।

    वाकई! वह एक बढ़िया और मर्मस्पर्शी फिल्म थी।

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  40. जो भी सत्‍ता में आता है, सबसे पहले कानून को रखैल बनाता है । हम सब, इस प्रक्रिया के चश्‍मदीद गवाह बनते हैं और कभी-कभी तो सहायक भी ।
    कानून का शासन स्‍थापित किए बिना कोई बात बनने वाली नहीं । लेकिन वह 'आकाश-कुसुम' जैसी ही लगती है ।

    श्रीविजय वाते का एक शेर सब कुछ कह देता है -

    चाहते हैं सब कि बदले ये अंधेरों का नजाम
    पर हमारे घर किसी बागी की पैदाइश न हो

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  41. शर्माजी की जान चली गयी, फिर भी इसे नकली मुठभेड़ मानने वाले या तो अंधे या बेवकूफ।(आलोक पुराणिक)
    वे न अन्धे हैं न बेवकूफ़, बल्कि वे हमें ऐसा समझ रहे हैं। क्योंकि हम अफ़जल को फाँसी नहीं दे पा रहे। वोट की खातिर देश का बेड़ा गर्क करने को तैयार हैं,भले ही यह वोट भी एक छलावा हो। सेकुलरवाद के ढोंग में जिए जा रहे हैं, आतताइयों की मर्जी पर।

    देश के दुश्मनों को पहचानना जब इतना सरल हो गया है तब भी कहने से डरते हैं, आँखें मूँद कर अन्धेरा होने का भ्रम पालते हैं।। पोलिटिकली करेक्ट बनने के चक्कर में। हाय रे राजनीति, और हाय रे देश के नेता...। डूब मरें ये।

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  42. विषय अति गंभीर है. सुबह से एक से अधिक बार टिप्पणी लिखने की सोची पर आक्रोश की अधिकता से स्वर ज्यादा कड़वा होता देख रुक गए.

    स्वर्गीय श्री शर्मा जी को हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं, उनका बलिदान स्वर्ण अक्षरों में अंकित रहेगा. पर एक प्रश्न साथ-साथ उभरता है, ऐसे खतरनाक ऑपरेशन में शामिल होने से पहले बुलेट प्रूफ़ जेकेट क्यों नहीं धारण की गयी? चार गोलियां उनके पेट में लगीं. देशभक्तों को अपनी जान के साथ ऐसा खिलवाड़ करने की क्या जरूरत है? आतंकवाद के खिलाफ लडाई जीती जायेगी आतंकवादियों को ख़त्म करके ना की स्वयं शहीद होकर.

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--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय