Tuesday, September 16, 2008

आलू कहां गया?



भाई लोग गुटबाजी को ले कर परेशान हैं और मैं आलू को ले कर।

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इस साल कानपुर-फर्रुखाबाद-आगरा पट्टी में बम्पर फसल हुई थी आलू की। सामान्यत: १०० लाख टन से बढ़ कर १४० लाख टन की। सारे उत्तर प्रदेश के कोल्ड-स्टोरेज फुल थे। आस पास के राज्यों से भी कोल्ड-स्टोरेज क्षमता की दरकार थी इस आलू स्टोरेज के लिये।

मेरे जिम्मे उत्तर-मध्य रेलवे का माल यातायात प्रबन्धन आता है। उत्तर-मध्य रेलवे पर यह कानपुर-फर्रुखाबाद-मैनपुरी-आगरा पट्टी भी आती है, जिससे पहले भी आलू का रेक लदान होता रहा है - बम्बई और नेपाल को निर्यात के लिये और पूर्वोत्तर राज्यों के अन्तर-राज्यीय उपभोक्ताओं के लिये भी। इस साल भी मैं इस लदान की अपेक्षा कर रहा था। पर पता नहीं क्या हुआ है - आलू का प्रान्त से थोक बहिर्गमन ही नहीं हो रहा।

ब्लॉग पर आलू-भाव विशेषज्ञ आलोक पुराणिक, खेती-बाड़ी वाले अशोक पाण्डेय या नये आये ब्लॉगर मित्रगण (जो अभी गुटबाजी के चक्कर में नहीं पड़े हैं! और निस्वार्थ भाव से इस प्रकार के विषय पर भी कह सकते हैं।) क्या बता सकते हैं कि मेरे हिस्से का आलू माल परिवहन कहां गायब हो गया? क्या और जगह भी बम्पर फसल हुई है और उससे रेट इतने चौपट हो गये हैं कि आलू निर्यात फायदे का सौदा नहीं रहा?

क्या उत्तर प्रदेश में अब लोग आलू ज्यादा खाने लगे हैं? या आज आलू बेचने की बजाय सड़ाना ज्यादा कॉस्ट इफेक्टिव है?

(यह पोस्ट लिखने का ध्येय यह प्रोब करना भी है कि सामान्य से इतर विषय भी स्वीकार्य हैं ब्लॉग पर!)    


sarasvati कल हमारे दफ्तर में हिन्दी दिवस मनाया गया। हिन्दी पर बहुत अंग्रेजी (पढ़ें प्रशस्ति) ठिली। हिन्दी पखवाड़े का समापन भी सितम्बर अन्त में होना है। नवरात्र उसके बाद ही प्रारम्भ होगा। प्रज्ञा, वाणी, ज्ञान और बुद्धि की अधिष्ठात्री मां सरस्वती का आवाहन हमने अभी कर लिया। 

31 comments:

  1. राज्यों के अन्तरआयात, निर्यात की स्थितियों और आंकड़ों का पता नही< मगर इतना जानता हूँ कि अर्थशास्त्र में प्राइजिंग की डिमांड सप्लाई थ्योरी अपना मायने खो चुकी है और डिमांड और सप्लाई की जगह प्राइज़ निर्धारण में सट्टे बजारी ने ले ली है.

    बाकी तो तथाकथित लोकल विशेषज्ञ प्रकाश डालेंगे ही, भले ही लालटेन से या जुगनु का अपना पालतु बता कर. यही जमाना आया है. :)

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    (यह पोस्ट लिखने का ध्येय यह प्रोब करना भी है कि सामान्य से इतर विषय भी स्वीकार्य हैं ब्लॉग पर!)
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    ज्ञानजी,
    हम सुबह सुबह कॉफ़ी के साथ आपका ब्लॉग बस इसी कारण पढ़ते हैं
    कभी मच्छर, कभी आलू, कभी कुछ।
    विविधता हमें आकर्षित करती है।
    News in the papers is predictable, but not the subject of your blog.

    यहाँ बेंगळूरु में आलू की कमी के बारे में कोई समाचार नहीं।
    जमाए रहिए
    विश्वनाथ

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  3. हमें तो अभी भी १० रु किलो मिल रहा है... शायद up आकर खरीदना पड़े

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  4. आपने बहुत सटीक और ज्वलंत समस्या को उठाया है !
    कल ही हमने रिलाइंस फ्रेश से १ किलो आलू खरीदा
    था और ताई ने हमको बस लट्ठ ही नही दिए बाक़ी कोई
    कसर नही छोडी ! और आज आपने ये प्रूव कर दिया की
    मेरे jaise नए ब्लागरो के असली तारनहार आप ही हो ! जैसे
    ही ब्लॉग खोला , आपका आलू पुराण सबसे ऊपर था! तुंरत
    पढा ! और आपको शत शत प्रणाम ! आपको पता नही आपने
    आलू महाराज की पोस्ट पर आलूदेव की फोटो लगा कर मेरे
    जैसे कई निरीह जीवों को आपदा प्रबंधन का संबल दिया है !
    आलू आजकल इतनी गंदी शक्ल के आ रहे हैं की ताई ने हमारी
    खाट जो पहले ही खडी रहती है , को दुबारा खडा कर दिया !
    आलू जो हम कल खरीद कर लाये वो हुबहू उसी शक्ल के हैं
    जिसकी फोटो आपने छापी है ! हमने ताई को दिखा दी है की
    देख जो आलू हम तक पहुंचाते हैं , उनको भी ऐसा ही आलू खाना
    पड़ रहा है ! प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता ही क्या ? ताई ने
    हमको सुबह पहले सारी कह दिया है ! और ये सब आपकी वजह
    से जिन्दगी में पहली बार हुआ है ! आप नही जानते सर , आपने
    मेरे जैसे दुनिया के दुखी जीवों पर कितना बड़ा उपकार किया है ?
    आशा है आगे भी आप मानवता के हित में ऐसे गूढ़ विषय उठाते
    रहेंगे और लोगो को रास्ता दिखाते रहेंगे ! आज हमको ऐसे ही
    विषयों की नितांत आवश्यकता है ! आपको जितना भी धन्यवाद
    दिया जाए कम है ! मेरी पसंदीदा रचना में , मेरे ब्लॉग पर इस
    पोस्ट का लिंक देकर मैं कृतार्थ महसूस कर रहा हूँ ! और आशा है
    भविष्य में भी आप इसी तरह के विषय उठाकर मानवता को कृतार्थ
    करते रहेंगे ! इस पोस्ट के लिए आपको धन्यवाद और शुभकामनाएं !

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  5. यूँ तो अपने आकार के कारण बचपन में यह संबोधन हमें अनेक बार मिला। इस से अधिक की जानकारी तो श्रीमती शोभा ही दे सकती हैं। सब्जी खरीद और बाजार भाव से ले कर भोजन परसने तक की निकट विशेषज्ञ वे ही हैं। हम केवल भोजन प्रेमी। और अक्सर हमारे भोजन में आलू नदारद रहता है।
    कहते हैं आलू को आलू न खाना चाहिए।

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  6. ताऊ ने एक अच्छा कमेंट्स देकर इस पोस्ट लेखन को सार्थक कर दिया ! आपके इस पोस्ट लेखन से मैं भी बैंगन आदि पर लिखने की चेष्टा करूँगा !
    विविधिता का संदेश अच्छा है, उम्मीद है भाई लोग इसे अपने ब्लाग पर भी प्रयुक्त करेंगे !

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  7. यहाँ आलू १५ रुपये में ढाई किलो मिल रहा है। यह सस्ता है कि महंगा, मुझे पता नहीं। लेकिन हरी सब्जियाँ ३० रुपये से ५० रुपये प्रति किलो मिल रही हैं। इससे तो यही लगता है कि आलू का दाम नीचे रहे तो गरीबों-मजदूरों के लिए ठीक होगा।

    यदि ज्ञान जी की रेल पर आलू लदकर बाहर जाने लगेगा तो इसके दाम भी आसमान पर चढ़ने लगेंगे।

    भई, मुझे तो अर्थशास्त्र इससे ज्यादा नहीं आता।

    हाँ, सामान्य से इतर विषय ‘भी’ के बजाय ‘ही’ के लिए हम यहाँ आते हैं। स्वीकार्य तो यही है।

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  8. आलू कहां गया यह खोज का विषय़ है।
    गुटबाजी के मामले में बंदे को आलू की तरह होना चाहिए, हर तरफ।
    जिस तरह से आलू बैंगन से लेकर टमाटर तक हरेक साथ मिलकर मिलीजुली सरकार बना सकता है।
    परम गुटबाज आलू की तरह होता है। यह अलग बात है कि परम गुटबाज तो इधर बहुत दिखायी दे रहे हैं, पर आलुओँ के मामले में यह बात नहीं कही जा सकती।

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  9. आलू के दाम चाहे आसमान पर पहुँच जाएँ, पर गरीब किसानों को उसका एक क्षुद्रांश भी नसीब नहीं होता. हमारे कई रिश्तेदार जो कृषि से जुड़े हैं, अपने अनुभव बताते हैं. जिस आलू को आप आठ-दस रुपए किलो खरीदते हैं, उसके लिए जी तोड़ मेहनत करके उगाने वाले किसान को पचास पैसे से एक रुपए प्रति किलो का दाम मिलता है. इसके अलावा कोल्ड-स्टोरेज का किराया अलग से निकल जाता है तो वास्तविक दाम और भी कम हो जाते हैं. कई बार ज्यादा फसल होने पर आलू के दाम इतने नीचे गिर जाते हैं कि किराया निकालने के बाद कुछ भी नहीं बचता. ऐसे में कई किसान कोल्ड स्टोरेज से अपना आलू उठाते ही नहीं और वो स्टोर मालिक की संपत्ति हो जाता है.

    फ़िर भी बाजार में आ रही अन्य सब्जियों की तुलना में आलू के दाम कम ही हैं. कमरतोड़ मंहगाई के चलते आलू की खबाई में वृद्धि की सम्भावना को नकारा नहीं जा सकता. हो सकता है इसी से निर्यात पर असर पड़ा हो.

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  10. यदि कुछ आलू दक्षिण की तरफ भेज दें तो काफी लोगों को राहत मिल जायगी. असमय पानी कारण यहां तो सारी खेती बर्बाद हो गई है इस साल!!!



    -- शास्त्री जे सी फिलिप

    -- समय पर प्रोत्साहन मिले तो मिट्टी का घरोंदा भी आसमान छू सकता है. कृपया रोज कम से कम 10 हिन्दी चिट्ठों पर टिप्पणी कर उनको प्रोत्साहित करें!! (सारथी: http://www.Sarathi.info)

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  11. भाइ साब आपने तो आन्खे खोल दी।यहा भी जत्रोपा,अदरख,लह्सून के नाम पर किसान धोका खा चुके है।उधर भी नज़र डालना पडेगा।

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  12. अच्छा आइडियआ दिया सर जी

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  13. कुछ तत्व है जो आपका ब्लॉग पढ़ने पर मजबूर कर रहा है.

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  14. जैसे बिहार में राहत सामग्री लोगों तक नहीं पहुँच रही है उसे चूहे खा रहे है वही हाल लगता है यू पी में आलू का है और हम यहाँ मुम्बई में दस से लेकर पद्रह रू . तक खरीद रहे हैं ।

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  15. जहां तक मैं समझता हूं, किसानों के पास अब आलू नहीं है। खुद मेरे घर भी सड़ने के बाद बचा आलू कल समाप्‍त हो गया। घर की रसोई के लिए आज मुझे बाजार से आलू खरीदना पड़ा। हमारे कैमूर के बाजारों में इन दिनों आलू 25-26 रुपये पसेरी (पांच किलो) की दर से बिक रहा है। जिन किसानों के पास आलू होगा भी वह कोल्‍ड स्‍टोर में होगा और उसे निकाल कर वे खा रहे होंगे अथवा बीज के रूप में इस्‍तेमाल कर रहे होंगे/करेंगे।

    मेरे विचार में, आपकी अपेक्षा के अनुरूप आलू का अभी लदान नहीं होने के निम्‍न कारण हैं –
    1.जिन व्‍यापारियों ने कोल्‍ड स्‍टोर में माल दबा कर रखा है, अभी उनके लिए उपयुक्‍त समय नहीं आया है। वे कीमतों में और अधिक तेजी का इंतजार कर रहे होंगे।
    2.आलू अभी भी हरी सब्जियों की तुलना में सस्‍ता है, इसलिए खाने में उसका इस्‍तेमाल अधिक हो रहा है।

    इसलिए ज्ञान दा, आप दशहरा तक इंतजार कीजिए, मुझे पूर्ण विश्‍वास है कि आपकी अपेक्षा जरूर पूरी होगी :)

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  16. "क्या और जगह भी बम्पर फसल हुई है और उससे रेट इतने चौपट हो गये हैं कि आलू निर्यात फायदे का सौदा नहीं रहा?"

    जहाँ तक मेरी समझ है... आलू में ये फैक्टर सबसे ज्यादा काम करता है... ऐसा सुना था की कोई ४-५ साल पहले पूर्वी उत्तर प्रदेश में अच्छी फसल हुई और लोग सडको के किनारे गड्ढों में आलू फ़ेंक कर बोरे लिए जाते थे. क्योंकि बोरों की कीमत ८० किलो आलू से ज्यादा मिलती थी. (एक बोरे में ८० किलो आलू रखा जाता है).
    शायद अशोक जी सही कह रहे हों... या फिर ट्रक से ढुलाई सस्ती पड़ रही हो.

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  17. इसका जवाब तो आलू भाव विशेषज्ञ ही बेहतर ढंग से दे सकते हैं। वैसे आपने इसी बहाने एक गम्भीर सवाल उठाया है।

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  18. आलू हमारी प्रिय सब्जी में से एक है ..फोटो भी झकास है....ऐसे आलू तो आजकल रिलायंस फ्रेश में भी नही मिलते

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  19. alu to nahi, par aapke Hindi Pakhwade par zaroor kuch kahoonga. Bharat Sarkar ke upkramo me kaam karte huye hame bhi ye rasm nibhani hoti thi. Bilkul pitripaksh ke saath aane wala ye Hindi ka pitripaksh hai jisme ham poori shraddha bhakti ke saath Hindi ko tilanjali dete hain.

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  20. आलू और टिप्पणियों में एक समानता और हो सकती है -दोनों की अनुचित जमाखोरी हो रही है ! और अब यह सब गुट या निर्गुट अभियान का रूप ले रहा है !

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  21. अच्छा संयोग है. चाय के प्याले के साथ आलू का परांठा और आपकी आलूभारी यह पोस्ट. अगर आप एक पोस्ट आलू को समर्पित कर सकते हैं तो लगता है आलू जी मेरी कविता भी स्वीकार कर लेंगे. बहुत खूब!

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  22. bhai chinta n karen aapke aalu ka french fry ban gaya hoga

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  23. चुनाव के साल में प्रवेश करने की तैयारी है. आलू, प्याज वगैरह की गिनती वैसे भी चुनावी सब्जियों में होती है. ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूँ कि खाने वालों को अच्छे आलुओं का चुनाव करना पड़ता है और नेता-व्यापारी-जमाखोर नेक्शस को यह चुनाव करना पड़ता है कि आलू की कमी बनाई जाए या नहीं.

    वैसे अशोक जी ने लिखा है कि दशहरे का इंतजार करना चाहिए लेकिन मुझे लगता है कि जमाखोरी चालू है. जमाखोरी वाली बात को कमोडिटी फ्यूचर्स में लगे पैसे और बिहार में आई भयंकर बाढ़ से भी जोड़कर देखा जाना चाहिए. आलू उत्तर प्रदेश के उन क्षेत्रों से अगर नहीं निकला है, जिनकी बात आपने कही है तो निश्चिंत रहें, समय देखकर इसे निकालने का स्क्रीनप्ले लिखा जा रहा होगा. अगर आलू का निर्यात होना ही था तो रेल से ही होता. इसलिए भी क्योंकि पिछले कई महीनों में डीजल और पेट्रोल की कीमतों में बढोतरी हुई है, और ऐसे में आलू को सड़क के रास्ते बाहर ले जाना घाटे का सौदा साबित होता.

    मेरा मानना है कि आलू अभी भी उत्तर प्रदेश में ही है. त्यौहार, बाढ़ और कमोडिटी में लगाये गए पैसे कहाँ से आए हैं, उसपर निर्भर करेगा.

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  24. ज्ञानजी जरा ध्यान दीजिएगा - आप ने जो आलूओं की तस्वीरे खींची हैं...उनमे तीन आलू एसे है जिसमें मानव चेहरे दिख रहे हैं - सबसे बायें वाला बडा आलू उस बौध्द् मूर्ति की याद दिला रहा है जो आंखें बंद कर ध्यान मग्न है (सर नीचे झुकाकर- जनता की तरह), बीच वाला बडा आलू कुछ सामान्य सा लग रहा है , ठुड्डी उपर और खोपडी नीचे की तरफ दिख रही है (सुरक्षा एजेंसियों की तरहः.... और एकदम दायें वाला उपर की तरफ का बडा आलू हँस रहा है - अपने शिवराज पाटिल की तरह
    :)
    बस ऐसे ही Time pass कर रहा था....आलू देखकर सो सोचा टिपिया भी लूँ.. .टिप्पणियों की आवक चालू देखकर :)

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  25. "ब्लॉग पर आलू-भाव विशेषज्ञ आलोक पुराणिक, खेती-बाड़ी वाले अशोक पाण्डेय या नये आये ब्लॉगर मित्रगण (जो अभी गुटबाजी के चक्कर में नहीं पड़े हैं! और निस्वार्थ भाव से इस प्रकार के विषय पर भी कह सकते हैं।)"


    क्या कहने का तात्पर्य यह है कि नए आने वाले ब्लॉगर्स को छोड़कर बाकी ब्लॉगर्स गुटबाजी के चक्कर में पड़ चुके हैं?

    यदि वाकई ऐसा है तो कृपया खुलासा करें कि आपकी नज़र में कौन-कौन से ब्लॉगर्स गुटबाजी में पड़े हैं?
    और साथ ही
    ऐसे कौन-कौन से गुट हैं जिनकी गुटबाजी में बाकी ब्लॉगर्स पड़े हुए हैं?

    प्रतीक्षा में इक आवारा बंजारा पत्रकार ;)

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  26. आलू कहीं नहीं जाने वाला....हम उत्तर भारतीयों का काम कैसे चलेगा इसके बिना.

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  27. ज्ञानजी हमारा कोड वर्ड हे आलू, हम जब भी किसी नये चेहरे को देखते हे, जो हमारे जेसा लगता हे, यानि भारतीया तो हम आपस मे यही कहते हे, अरे यह तो आलू लगता हे :)
    धन्यवाद

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  28. अच्छी आलू चर्चा रही !
    और हिन्दी दिवस पर
    सभीको हमारी शुभकामनाएँ !
    - लावण्या

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  29. आलू हमारी प्रिय सब्जी है और हर सब्जी में डाला जाता है। आभा जी ने बता ही दिया कि बम्बई में इसका क्या दाम चल रहा है। संजीत के सवालों का जवाब जानने के हम भी इच्छुक हैं।
    ऐसे विषय भी होने ही चाहिएं

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  30. आलू भी कमाल की चीज लगता है बंपर हो तो भी तकलीफ ना हो तो भी तकलीफ

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  31. आलू भी कमाल की चीज लगता है बंपर हो तो भी तकलीफ ना हो तो भी तकलीफ

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आपको टिप्पणी करने के लिये अग्रिम धन्यवाद|

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--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय