Sunday, September 14, 2008

हिन्दी का मेरा डेढ़ साल का बहीखाता


मेरा डेढ़ साल के ब्लॉग पर हिन्दी लेखन और हिन्दी में सोचने-पढ़ने-समझने का बहीखाता यह है:

धनात्मक

ॠणात्मक

हिन्दी में लिखना चुनौतीपूर्ण और अच्छा लगता है। हिन्दी में लोग बहुत जूतमपैजार करते हैं।
हिन्दी और देशज/हिंगलिश के शब्द बनाना भले ही ब्लॉगीय हिन्दी हो, मजेदार प्रयोग है। उपयुक्त शब्द नहीं मिलते। समय खोटा होता है और कभी कभी विचार गायब हो जाते हैं।
आस-पास में कुछ लोग बतौर हिन्दी ब्लॉगर पहचानने लगे हैं।
पर वे लोग ब्लॉग पढ़ते नहीं।
ब्लॉगजगत में नियमित लेखन के कारण कुछ अलग प्रकार के लोग जानने लगे हैं। अलग प्रकार के लोगों में अलग-अलग प्रकार के लोग हैं।
नये आयाम मिले हैं व्यक्तित्व को। चुक जाने का भय यदा कदा जोर मारता है - जिसे मौजियत में सुधीजन टंकी पर चढ़ना कहते हैं!
इसी बहाने कुछ साहित्य जबरी पढ़ा है; पर पढ़ने पर अच्छा लगा। साहित्यवादियों की ब्लॉगजगत में नाकघुसेड़ जरा भी नहीं सुहाती!
ब्लॉगजगत में लोगों से मैत्री बड़ी कैलिडोस्कोपिक है। यह कैलिडोस्कोप बहुधा ब्लैक-एण्ड-ह्वाइट हो जाता है। उत्तरोत्तर लोग टाइप्ड होते जाते दीखते हैं। जैसे कि ब्लॉगिंग की मौज कम, एक विचारधारा को डिफेण्ड करना मूल ध्येय हो।
हिन्दी से कुछ लोग जेनुइन प्रेम करते हैं। कल तक भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में कार्यरत लोग हिन्दी में इण्टरनेट पर लिख कर बहुत एनरिच कर रहे हैं इस भाषा को। और लोगों की ऊर्जा देख आश्चर्य भी होता है, हर्ष भी। कुछ लोग महन्त बनने का प्रयास करते हैं।
मन की खुराफात पोस्ट में उतार देना तनाव हल्का करता है। ब्लॉगिंग में रेगुलर रहने का तनाव हो गया है!
पोस्टों में विविधता बढ़ रही है। विशेषज्ञता वाले लेखन को अब भी पाठक नहीं मिलते।

30 comments:

  1. आपके इस लेख से काफी हद तक सहमत हूँ .

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  2. मुझे आपका विश्लेषण और उसका तरीका पसन्द आया.

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  3. पड़ला किसका भारी है + का या - का।

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  4. कृपा कर बताइए हम
    अलग प्रकार के लोगों में
    किस प्रकार के अंतर्गत
    आते हैं ?........हिन्दी पर
    आपकी यह प्रस्तुति
    हिन्दी में अच्छी लगी !
    आपकी शैली हर विषय को
    अनुकूल बना देती है.
    ==================
    सादर
    डॉ.चन्द्रकुमार जैन

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  5. sir..
    bahut dino bad main comment kar raha hun..
    pichale kuchh dino se blog se bahar chal raha tha..
    magar aapko apne google reader se lagatar padh raha tha..
    shubhakamanayen..:)

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  6. हिन्दी से कुछ लोग जेनुइन प्रेम करते हैं. कल तक भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में कार्यरत लोग हिन्दी में इण्टरनेट पर लिख कर बहुत एनरिच कर रहे हैं इस भाषा को. और लोगों की ऊर्जा देख आश्चर्य भी होता है, हर्ष भी.
    बिल्कुल सही कहा आपने, इन्हें यदि थोड़ा सा प्रोत्साहन दीजिये, फ़िर आप उनकी ऊर्जा देखिये.
    एक टिपण्णी और एक विज्ञापन क्लिक संवार सकती है कई जिंदगियां.

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  7. काफी प्रेरक और अच्‍छा आकलन कि‍या आपने। प्‍लस और माइनस तो क्रमश: भौति‍क और मानसि‍क जगत के तार हैं जो अलग-अलग रहते हैं, तभी स्‍पार्क नहीं करता। अच्‍छी बात लगी कि‍-
    'हिन्दी और देशज/हिंगलिश के शब्द बनाना भले ही ब्लॉगीय हिन्दी हो, मजेदार प्रयोग है।' वाकई ब्‍लॉग की भाषा में होने वाले प्रयोग से हि‍न्‍दी को एक व्‍यवहारि‍क और नया आयाम मि‍लेगा।

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  8. प्रथम दृश्टया आपकी बैलेंसशीट में निम्न झोल पाये गये:
    १.बैलेंस शीट में मद्दे क्रमानुसार नहीं हैं।
    २. ॠणात्मक और धनात्मक बिन्दुऒं का जबरियन मेल कराया गया है।
    ३.हिंदी में लोग बहुत जूतम-पैजार करते हैं नितान्त भ्रामक और सच्चाई से परे बयान है। इससे ऐसा लगता है कि किसी जूता कम्पनी कोई मुलाजिम डेढ़ साल तक कोई हिंदी क्षेत्र की जासूसी करता रहा और अपनी खुपिया रिपोर्ट में जूतम पैजार करने की खबर दे ताकि वे हिंदी पट्टी में जूते का कारखाना खोल सके। आपसी प्रेम भाव को देखकर अगर कोई जूतम-पैजार कहेगा तो जब असल में जूतम पैजार होगी तब का हाल होगा जी?
    ४. शब्द खोजेंगे तो विचार गायब हो ही जायेंगे। शब्द आपके पास मौजूद होने चाहिये। अपनी कमी को ब्लाग के मत्थे मढ़ने की समीचीन नहीं है।
    ५. हिंदी ब्लागर के तौर पर जानने वाले लोग आपका ब्लाग पढ़ेंगे यह अपेक्षा क्यों की जाये? अपेक्षा दुख का मूल है। आसपास के लोगों के पास और काम भी हैं। सब फ़ुरसतिये थोड़ी न हैं।
    ६.साहित्यवादियों की ब्लागिंग में नाक घुसेड़ क्यों पसंद नहीं है। क्या उनके द्वारा आपका चिंतन सूंघ लिये जाने का खतरा है?
    ७. चुक जाने पर टंकी पर चढ़ जाने वाले लोगों को आप सुधी जन कह कर लोगों को टंकी पर चढ़ने के लिये उकसा रहे हैं।
    ८.मैत्री के साथ कलिडोस्कोपिक जोड़ना ऐसे ही है जैसे विपाशा, मल्लिका का नाम ज्ञान जी के साथ जोड़ा जाये।
    ९.विचारधारा की अवधारणा ही अपने आप में टाइप्ड चीज है। उसको मानने वाले उसको डिफ़ेन्ड करने बोले तो बचाव करने का काम नहीं करेंगे तो कौन करेगा।
    १०.महन्त हमेशा पैदाइशी होता है। कोई महन्त बनने का प्रयास नहीं करता। जो प्रयास होता है वो महन्तॊ का अपने लिये गद्दी जुगाड़ने का होता है।
    ११.ब्लागिंग में रेगुलर रहने का तनाव बताता है कि अभी तक आपने ब्लागिंग के गुण आत्मसात नहीं किये हैं। लिखने के तनाव को कम करने के लिये टिपिया कर कम किया जा सकता है।
    १२.विशेषज्ञता वाले लेखक को पाठक कैसे मिलें? आप उसको पढ़ने का काम छोड़कर अपना लेखा-जोखा देने में लगे हैं। वो भी आपके यहां तमाशबीन बनके खड़ा हो जायेगा- ज्ञानजी आपने ये टेबल कैसे बनायी।

    ये कुछ आपत्तियां हैं। आप इन पर विचार करें। अगर सलाह मानें तो कहना चाहेंगे कि ये मुफ़्तिया बैलेन्स सीट न बनवाया करिये। आपने शिवकुमार मिसिर से बनवायी होगी। उन्होंने दुर्योधन की डायरी से टीप दी होगी। हम ऊ सब आपत्ति दर्ज नहीं कर रहे कि आपको जेनुइन की जगह वास्तविक और एनरिच की जगह समृद्ध का प्रयोग करना चाहिये। आपने ऊर्जा की जगह एनर्जी नहीं प्रयोग किया यही क्या कम है हिंदी दिवस के अवसर पर।

    बाकी आपकी बैलेंस सीट बड़ी खूबसूरत लग रही है। इत्ता खूबसूरत कि कह नहीं पा रहे हैं। :)

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  9. आपका पोस्ट पढ़कर काफी तसल्ली मिली। सचमुच हिंदी से कुछ लोग जेन्यून प्रेम करते हैं। हिंदी के समस्त पुजारियों, शुभचिंतकों को हिंदी दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं।

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  10. बहुत ईमानदारी के साथ लिखा है आपने ! आपसे और ब्लाग लेखन की कमजोरियों जानने की अपेक्षाएं हैं ! साथ ही अच्छा कार्य कर रहे ब्लागर्स का संक्षिप्त परिचय, नए ब्लागर के लिए बेहद आवश्यक एवं सुविधाजनक रहेगा !
    प्रणाम !

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  11. बहुत उम्दा तरीका है विश्लेषण का ! आत्म चिंतन के लिए
    आपने एक तरीका सुझा दिया ! बहुत धन्यवाद !

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  12. रोचक comparison!
    हमारा experience:

    हिन्दी में लिखने की चाह अधिक पर सक्षमता कम है।
    I can put together a short post in English much faster with practically no effort, but the satisfaction of having written a piece in Hindi is much more.

    हिन्दी में लिखना शौक है। आनन्ददायक है। फ़ुर्सत के समय हिन्दी में लिखता हूँ।
    Writing in English is a routine chore. 99 percent of my typing is in English. My profession demands it.

    हिन्दी में जब लिखता हूँ तो ऐसा लगता है कि अपना बाँया हाथ का प्रयोग कर रहा हूँ। हाथ आसानी से नहीं चलते।
    Writing in English is like a right hander using his right hand to do a job. When I write in Hindi I feel handicap
    ped.

    हिन्दी में लिखते समय कभी कभी सही शब्द चुनने के लिए सोचना पढ़ता है। शब्दकोष समीप रखना पढ़ता है। आवश्यक शब्दों का ज्ञान अधूरा है।
    The words flow automatically when I write in English. No dictionaries are needed. I simply don't use words I don't know.

    हिन्दी में लिखते समय गलतियाँ अज्ञान के कारण होते हैं।
    I can write flawlessly in English. Mistakes are not due to ignorance but carelessness or due to tensions caused by deadlines.

    मेरी अशुद्ध हिन्दी में लिखे हुए चिट्ठे ज्यादा पढ़े जाते हैं।
    My English posts go abegging. Hardly any one reads them and practically no one comments on my English blog posts.

    हिन्दी में लिखकर मैं अपने देशवासियों से संपर्क बढाने में और उनके दिल के ज्यादा क़रीब आने में सफ़ल हुआ हूँ।
    My English writing skills have enabled me to reach out to hundreds of foreigners and this has been of great benefit professionally.

    अंग्रेज़ी से बिना नफ़रत किये, हिन्दी से प्रेम कर सकने मे सफ़ल हुआ हूँ।
    I have been able to strike a balance between love for one's own national language and the need to be proficient in English for material and professional success. Hindi fulfils an emotional need. English fulfils a professional and material need.

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  13. अब तो अनूप जी आडिट भी कर गये. क्वालिफाईड रिपोर्ट भी दे गये तो हमारा कोई काम ही नहीं बचा अतः हिंदी दिवस पर हार्दिक शुभकामनाऐं....

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  14. फुरसतिया जी ने यहाँ पंगेवाज की भुमका क्यों अपना ली समझ नही आया ! ज्ञान दत्त जैसे शरीफ आदमी से लगता है कि कोई पुराना हिसाब चुकता करना होगा ! बहरहाल अनूपजी के कमेंट्स के बाद इस लेख की खूबसूरती और बढ़ गयी ! ज्ञान दत्त जी बधाई !

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  15. @''विशेषज्ञता वाले लेखन को अब भी पाठक नहीं मिलते।''
    ई-गुरू राजीव ने अपनी एक पोस्ट में बताया कि अपने ब्लॉग के लिए एक निश्चित श्रेणी चुन लें, और उसी प्रकार की पोस्टें लिखा करें। कदाचित् विविधता के प्रति वे सावधान करते हुए ऐसे ब्लॉगों का अन्त हो जाने की बात करते हैं। ...ये दोनो बातें पढ़कर मैं उहापोह में हूँ। कोई विशेषज्ञ अपने निष्कर्ष सुझाए।

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  16. और भी बहुत कुछ जोड़ा जा सकता है इस लिस्ट में, कुछ से सहमत है कुछ से नहीं

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  17. अच्‍छा विश्‍लेषण है । विचारधाराओं की जंग भी जारी रहेगी और महंती भी । पर सच कहें तो आपकी तरह हमें भी ब्‍लॉगिंग से प्‍यार है ।
    तमाम बातों के बावजूद ब्‍लॉगिंग पर विश्‍वास किया जा सकता है ।

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  18. धनात्मक बिन्दुओं का वजन कहीं ज्यादा है. ॠणात्मक बिन्दु तो महज मेल बैठाने के लिए डाले हुए मालूम होते हैं :P

    (Always look at the bright side of life!)

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  19. शब्द खोजेंगे तो विचार गायब हो ही जायेंगे। शब्द आपके पास मौजूद होने चाहिये। अपनी कमी को ब्लाग के मत्थे मढ़ने की समीचीन नहीं है।

    मैं अनूप जी से सहमत हूँ। आपका ऐसा कहना से निम्न दो बातों में से कोई एक लागू हो सकती है:

    1) आप अंग्रेज़ी या किसी अन्य भाषा में सोचते हैं और फिर उसको हिन्दी में रुप देते हैं। अब ऐसा कीजिएगा तो समय लगेगा ही, एकदम से शब्द भी न कौन्धेगा दिमाग में और इतने में विचार उड़नछू हो लेगा।

    2) आप सोच हिन्दी में ही रहे हैं लेकिन किसी बात/विचार के लिए फैन्सी सा शब्द खोज रहे हैं तो भी ऐसा होने की संभावना है।

    दूसरे नंबर वाला मसला तो कभी-२ मेरे साथ भी हो जाता है तो उसके इलाज के तौर पर मैं यह करता हूँ कि जब मन में विचार कबड्डी खेल रहे होते हैं तो पोस्ट को लिख लेता हूँ और सेव कर लेता हूँ। जब एक बार विचारों को शब्दों का रुप दे दिया तो फिर उनके फुर्र होने का डर नहीं होता तो तब मैं फैन्सी शब्द यदि कोई डालना हो कहीं और जो सूझा न हो तो उस पर विचार करता हूँ और लिखी गई पोस्ट में संशोधन कर पाठ में उस फैन्सी शब्द को फिट कर देता हूँ। उसके बाद एक बार प्रूफ़ रीडिंग (यदि किसी विषय पर लेख लिखा है तो प्रूफ़ रीडिंग अवश्य करता हूँ, चलते फिरती ब्लॉगपोस्ट में प्रायः नहीं करता) और उसके बाद पोस्ट छाप दी जाती है! :)

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  20. सुकुल जी की टिप्पणी के बाद कोई गुंजाइश रही ही नहीं।

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  21. अब इत्ते इत्ते विद्वान आपके बैलेंस पर अपनी शीट लिख गये, हमरे लिए कुछ बचा ही नहीं ना है कहने के लिए।
    सच्चा लेखन बैलेंस उलेंस से नहीं मन की मौज से होता है, सो किये जाइये।

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  22. हिन्दी में लोग बहुत जूतमपैजार करते हैं।
    उपयुक्त शब्द नहीं मिलते। समय खोटा होता है और कभी कभी विचार गायब हो जाते हैं। यह कैलिडोस्कोप बहुधा ब्लैक-एण्ड-ह्वाइट हो जाता है। उत्तरोत्तर लोग टाइप्ड होते जाते दीखते हैं। जैसे कि ब्लॉगिंग की मौज कम, एक विचारधारा को डिफेण्ड करना मूल ध्येय हो।
    uprokt baton se sahmat nahi baki to thik hai

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  23. अब तक तो कोई गुन्जाईस सच में नहीं बची है... बस यह कहने के अलावा 'अच्छा अवलोकन है'

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  24. आप भी कहाँ-कहाँ घोड़े दौड़ाते हैं? रेलवे की बजाय साहित्य की गाड़ी चलाते तो बहुत्ते उत्तम माल निकलकर आता।
    अनूप जी की आडिट पर 3,5,6,8वें प्वांइंट्स से सहमति है। "अलग प्रकार के लोगों में अलग-अलग प्रकार के लोग हैं" ये तो ब्रह्मसत्य लगता है।

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  25. बही-खाता सचमुच बड़ा सुंदर है। मुनाफा बहुत अधिक नहीं है, लेकिन मामला घाटे का भी नहीं लग रहा है :)

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  26. इस पोस्ट और आयी टिप्पणियों का बहीखाता, अब तक यह है:

    सहमत-
    * हिन्दी में लिखना चुनौतीपूर्ण और अच्छा लगता है।
    * नये आयाम मिले हैं व्यक्तित्व को।
    * लोगों की ऊर्जा देख आश्चर्य भी होता है, हर्ष भी।
    * पोस्टों में विविधता बढ़ रही है।
    * ब्लॉगिंग में रेगुलर रहने का तनाव हो गया है!
    * विशेषज्ञता वाले लेखन को अब भी पाठक नहीं मिलते।
    * एक टिप्पणी और एक विज्ञापन क्लिक संवार सकती है कई जिंदगियां।
    * शब्द आपके पास मौजूद होने चाहिये। अपनी कमी को ब्लाग के मत्थे मढ़ने की समीचीन नहीं है।
    * विचारधारा को मानने वाले उसको डिफ़ेन्ड करने का काम नहीं करेंगे तो कौन करेगा।
    * आपको जेनुइन की जगह वास्तविक और एनरिच की जगह समृद्ध का प्रयोग करना चाहिये।
    * Satisfaction of having written a piece in Hindi is much more.
    * हिन्दी में लिखते समय गलतियाँ अज्ञान के कारण होते हैं।
    * Hindi fulfils an emotional need.
    * अनूपजी के कमेंट्स के बाद इस लेख की खूबसूरती और बढ़ गयी !
    * अपने ब्लॉग के लिए एक निश्चित श्रेणी चुन लें, और उसी प्रकार की पोस्टें लिखा करें।
    * आपकी तरह हमें भी ब्‍लॉगिंग से प्‍यार है ।
    * तमाम बातों के बावजूद ब्‍लॉगिंग पर विश्‍वास किया जा सकता है ।
    * एक बार प्रूफ़ रीडिंग … अवश्य

    असहमत-
    * हिन्दी में लोग बहुत जूतमपैजार करते हैं।
    * उपयुक्त शब्द नहीं मिलते।
    * चुक जाने का भय यदा कदा जोर मारता है।
    * ब्‍लॉग की भाषा में होने वाले प्रयोग से हि‍न्‍दी को एक व्‍यवहारि‍क और नया आयाम मि‍लेगा।
    * ज्ञान दत्त जैसे शरीफ आदमी से लगता है कि कोई पुराना हिसाब चुकता करना होगा !

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  27. पसंद आया हजूर अपन को आपका ये विश्लेषण

    ई सुकुल जी आजकल डंडा ले के आपके पीछे पड़े हैं का?

    ;)

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  28. "ब्लॉगजगत में नियमित लेखन के कारण कुछ अलग प्रकार के लोग जानने लगे हैं। --- अलग प्रकार के लोगों में अलग-अलग प्रकार के लोग हैं।"

    और उन अलग-अलग प्रकार के लोगों में और भी अलग-अलग-अलग-अलग प्रकार के लोग हैं।

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  29. क़पया ऐसा विमर्श बनाएं रखें । मुझ जैसे नौसिखियाओं को ब्‍लाग विधा, ब्‍लाग शैली और भाषा के मामले में काफी कुछ मिल जाता है ।

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आपको टिप्पणी करने के लिये अग्रिम धन्यवाद|

हिन्दी या अंग्रेजी में टिप्पणियों का स्वागत है|
--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय