Saturday, March 8, 2008

होली का घोड़ा


कपड़े का घोड़ा। लाल चूनर की कलगी। काला रंग। भूसा, लुगदी या कपड़े का भरा हुआ। मेला से ले कर आया होगा कोई बच्चा। काफी समय तक उसका मनोरंजन किया होगा घोड़े ने। अन्तत: बदरंग होता हुआ जगह जगह से फटा होगा। बच्चे का उसके प्रति आकर्षण समाप्त हो गया होगा। घर में कोने पर काफी समय पड़ा रहा होगा। लोग कोई भी वस्तु यूं ही त्याग नहीं करते। वस्तुयें आदत की तरह होती हैं। मुश्किल से छूटती हैं। पर अन्तत: वह घर के बाहर फेंका गया होगा।

मुझे शाम को शिवकुटी मन्दिर के पास चहल कदमी करते दीखा। फोन पर श्री अनूप शुक्ल से बात हो रही थी - वे कह रहे थे कि हमने लिखना क्यों बन्द कर दिया है। हम दफ्तर में बढ़े काम का हवाला दे रहे थे। उनका कहना था कि ब्लॉग पर जब हमने श्री समीर लाल जी से मुलाकात की चर्चा की तो जरूर रेलवे वालों को लगा होगा कि यह व्यक्ति वजनी चीजों को टेकल कर सकता है। लिहाजा सवारी से माल यातायात का काम थमा दिया गया! हम सफाई दे रहे थे कि इसमें श्री समीर लाल जी का कोई योगदान नहीं है। हमारा भाग्य ही ऐसा है। खैर; बात लम्बी चली। घर पर होता तो एक आध फोन कॉल से व्यवधान आ गया होता। पर सड़क पर घूमते हुये बात चलती रही।

बात गंगा किनारे तक घूम आने पर चली। वापसी में तिराहे की सोडियम वेपर लेम्प की रोशनी में फिर दिखा वह घोड़ा। तिराहे पर बीच में आगामी होलिका दहन के लिये लोगों ने लकड़ियां इकठ्ठी कर रखी थीं। उन्हीं के बीच में रखा था वह घोड़ा। अभी उसके दहन में दस दिन का समय और है। होली के लिये इकठ्ठा की गयी लकड़ियों/सामग्री को कोई उठाता नहीं है। अत: सम्भावना नहीं है कि घोड़ा वहां से कहीं जाये।

भला हो घोड़े का - उसके फोटो ने एक छोटी सी पोस्ट की सोच मुझे दे दी। काले-बदरंग-फटे घोड़े ने मेरी कल्पना को मालगाड़ियों की फिक्र से कुछ बाहर निकाला। अनूप शुक्ल जी के कहने का असर यह हुआ कि यह लिख कर पब्लिश बटन दबा रहा हूं। आप तो कम रोशनी में लिया उसका फोटो देखें। यह अनूप शुक्ल जी से बातचीत के पौने दो घण्टे बाद पोस्ट कर रहा हूं।

18 comments:

  1. अनूप शुक्ल जी का धन्यवाद करना होगा, वो इसी प्रकार हर ढीले पड़ते ब्लोगर को प्रोत्साहित करते हुए प्रेरणा के स्रोत बने हुए हैं। उन्हीं के हड़काने पर हमने भी आज एक पोस्ट यूँ ही ठेल दी है…:)

    ReplyDelete
  2. अपन तो शुकुल जी को थैंकू बोलता है, जिनके कारण आप लिखते दिखे तो :-"

    ReplyDelete
  3. सही मे खाली-खाली लगता है। आपको रोज भले ही दो शब्द पर लिखना चाहिये।

    ReplyDelete
  4. शानदार पोस्ट है। आप ऐसे ही लिखते रहें। आपको शायद पता नहीं है कि आलोक पुराणिक आपके खिलाफ़ याचिका दायर करने जा रहे थे कि आपके ब्लाग न लिखने से उनकी प्रतिभा का विकास रुक गया जो आपके ब्लाग पर टिप्पणी करने से होता था। समीरलाल वाली बात ,आप जितना भी मना करें, सच है। जब से रेलवे वालों ने देखा कि आप सवारियों की जगह समीरलालजी जैसे 'डेलीकेट' सामान को भी रेलवे से ढो सकते हैं तबसे उन्होंने आपके लिये ये सेवा तय कर दी। :)

    ReplyDelete
  5. आप कल देखिएगा. आप को वह घोडा शर्तिया नहीं मिलेगा. अब तक किसी-न-किसी नेता ने उसे देख ही लिया होगा. और आप होली की बात करते हैं, जी ऊ तो होलिका तक को उठा ले जाना चाहते है.

    ReplyDelete
  6. लुगदी हुए न भूस के बेमतलब घोड़े की अंतिम विदाई की तस्‍वीर तो बहुत साफ नहीं है.. लेकिन आपकी भावनाओं के उदासी की है.. बहुत अच्‍छा!

    ReplyDelete
  7. अच्‍छा लगा । सूक्ष्‍म चीजों पर आपकी नज़र का एक और साक्ष्‍य । अरे भई इतने भी बिज़ी मत रहिए कि हम आपको मिस करते हुए इलाहाबाद आ धमकें । हफ्ते में दो तीन दिन तो आईये मानसिक हलचल में

    ReplyDelete
  8. श्री समीर लाल जी से मुलाकात की चर्चा की तो जरूर रेलवे वालों को लगा होगा कि यह व्यक्ति वजनी चीजों को टेकल कर सकता है।

    ---हा हा!!!! क्या निष्कर्ष निकाला है..अनूप भाई की सोच बेमिसाल...वाह वाह///

    ReplyDelete
  9. सच में आपकी अनुपस्थिति अखर रही थी, आज सुबह सुबह एक टक्कर फिर मारा कि शायद आप दिख जायें, चलो कुछ मिला तो !
    हो न हो, समीर जी ने आपको कुछ मंत्र तो अवश्य ही दिया होगा, उनके अनजाने ही आपने उगलवा भी लिया होगा ।
    वह सब हम जजमानन के भी सुनबे की इचछा है, एक श्रृंखला उसी पर चला दें तो बड़ा पुण्य होगा ।
    अभिवादन !

    ReplyDelete
  10. लेखन में योगदान दो तरह से किया जाता है।
    एक तो लिखकर, जैसे मैं कर रहा हूं। हालांकि लोग कहते हैं कि तुम न लिखकर जो योगदान करो, वह ज्यादा सार्थक होगा।
    पर मैं नहीं मानूंगा।
    दूसरे तरीका का योगदान होता है ना लिखकर, जो आप इस समय कर रहे हैं, ये आपको नहीं करना चाहिए। यानी आप लिखकर ही योगदान दें।
    अनूपजी सही कह रहे हैं आपके खिलाफ याचिका भी दायर हो सकती है।
    रोज लिखना संभव न हो, तो फोटू ही रोज चपेक दें। रेल में तो पूरी दुनिया होती है। फोटू ही फोटू मिल तो लें, टाइप।

    ReplyDelete
  11. ब्लॉगिंग से दूरी आप कैसे बरदाश्त कर पाते हैं। हम से तो आप के ब्लॉग की दूरी ही बरदाश्त नहीं होती। मुझे भी बीच में भोपाल भी जाना पड़ा वहाँ भी आप का ब्लॉग ढूंढता रहा। यह सही है कि आप दो शब्द भले ही वे "आज छुट्टी" ही क्यों न हों लिखते रहें। आप के ब्लॉग की गैरहाजरी बहुत खलती है।
    कल भी आप का ब्लॉग नजर आया तो ब्लॉगर ने उसे खोलने से मना कर दिया। आज सुबह खोला तो पढ़ना शुरु करते ही बिजली गुल हो गई। आई तो मुवक्किलों से उलझा रहा। अब जा कर पढ़ पाया हूँ।
    व्यस्तता ही तो जीवन है। वह रहना चाहिए। लेकिन दो शब्द वाली पोस्ट से काम चल जाएगा।
    आप कविता लिखने की बात कर रहे थे। वह जापनी हाइकू, मीनाक्षी जी वाला त्रिपदम् अच्छी फॉरमेट है, सीखने में भी आसान है। आप शाम को घूमते घूमते भी अभ्यास कर सकते हैं और आकर सीधे पोस्ट तैयार कर सकते हैं। एक हाइकू से काम चल जाएगा।
    कर के जरुर देखें।

    ReplyDelete
  12. चलिए इस बहाने आपकी पोस्‍ट तो आई.
    वर्ना सुबह तो अब हम कंप्‍यूटर खोलते ही नहीं क्‍योंकि आप कुछ लिखते ही नहीं....

    ReplyDelete
  13. भाई आप तो लगातार लिखें....नहीं तो फुरसत से लिखनेवाले लोगों को ताना मारने का मौका मिल ही जाएगा....

    ReplyDelete
  14. ज्ञान भाई साहब , आपकी पोस्ट देखकर खुशी हुई ..वहाँ के त्यौहार तथा समाज की बारीकियां आप के लिखे से हम इत्ती दूर भी जान पाते हैं उसका धन्यवाद -- लिखियेगा --

    ReplyDelete
  15. ब्लॉगिंग से दूरी आप कैसे बरदाश्त कर पाते हैं। हम से तो आप के ब्लॉग की दूरी ही बरदाश्त नहीं होती। मुझे भी बीच में भोपाल भी जाना पड़ा वहाँ भी आप का ब्लॉग ढूंढता रहा। यह सही है कि आप दो शब्द भले ही वे "आज छुट्टी" ही क्यों न हों लिखते रहें। आप के ब्लॉग की गैरहाजरी बहुत खलती है।
    कल भी आप का ब्लॉग नजर आया तो ब्लॉगर ने उसे खोलने से मना कर दिया। आज सुबह खोला तो पढ़ना शुरु करते ही बिजली गुल हो गई। आई तो मुवक्किलों से उलझा रहा। अब जा कर पढ़ पाया हूँ।
    व्यस्तता ही तो जीवन है। वह रहना चाहिए। लेकिन दो शब्द वाली पोस्ट से काम चल जाएगा।
    आप कविता लिखने की बात कर रहे थे। वह जापनी हाइकू, मीनाक्षी जी वाला त्रिपदम् अच्छी फॉरमेट है, सीखने में भी आसान है। आप शाम को घूमते घूमते भी अभ्यास कर सकते हैं और आकर सीधे पोस्ट तैयार कर सकते हैं। एक हाइकू से काम चल जाएगा।
    कर के जरुर देखें।

    ReplyDelete
  16. लेखन में योगदान दो तरह से किया जाता है।
    एक तो लिखकर, जैसे मैं कर रहा हूं। हालांकि लोग कहते हैं कि तुम न लिखकर जो योगदान करो, वह ज्यादा सार्थक होगा।
    पर मैं नहीं मानूंगा।
    दूसरे तरीका का योगदान होता है ना लिखकर, जो आप इस समय कर रहे हैं, ये आपको नहीं करना चाहिए। यानी आप लिखकर ही योगदान दें।
    अनूपजी सही कह रहे हैं आपके खिलाफ याचिका भी दायर हो सकती है।
    रोज लिखना संभव न हो, तो फोटू ही रोज चपेक दें। रेल में तो पूरी दुनिया होती है। फोटू ही फोटू मिल तो लें, टाइप।

    ReplyDelete
  17. सच में आपकी अनुपस्थिति अखर रही थी, आज सुबह सुबह एक टक्कर फिर मारा कि शायद आप दिख जायें, चलो कुछ मिला तो !
    हो न हो, समीर जी ने आपको कुछ मंत्र तो अवश्य ही दिया होगा, उनके अनजाने ही आपने उगलवा भी लिया होगा ।
    वह सब हम जजमानन के भी सुनबे की इचछा है, एक श्रृंखला उसी पर चला दें तो बड़ा पुण्य होगा ।
    अभिवादन !

    ReplyDelete
  18. शानदार पोस्ट है। आप ऐसे ही लिखते रहें। आपको शायद पता नहीं है कि आलोक पुराणिक आपके खिलाफ़ याचिका दायर करने जा रहे थे कि आपके ब्लाग न लिखने से उनकी प्रतिभा का विकास रुक गया जो आपके ब्लाग पर टिप्पणी करने से होता था। समीरलाल वाली बात ,आप जितना भी मना करें, सच है। जब से रेलवे वालों ने देखा कि आप सवारियों की जगह समीरलालजी जैसे 'डेलीकेट' सामान को भी रेलवे से ढो सकते हैं तबसे उन्होंने आपके लिये ये सेवा तय कर दी। :)

    ReplyDelete

आपको टिप्पणी करने के लिये अग्रिम धन्यवाद|

हिन्दी या अंग्रेजी में टिप्पणियों का स्वागत है|
--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय