Saturday, December 22, 2007

टॉवर, व्यक्तिगत जमीन और स्थानीय शासन


कल मेरे एक पुराने मित्र मुझसे मिलने आये। उनका विभाग ग्रामीण इलाके में खम्भे और तार लगा रहा है। उनकी समस्या यह है कि गांव के लोग अपने खेत में टॉवर खड़ा नहीं करने दे रहे।1

Electrical_Line_Tower_3 टॉवर खड़ा करना जमीन अधिग्रहण जैसा मामला नहीं है। इण्डियन टेलीग्राफ एक्ट की धाराओं के अनुसार किसी भी जमीन से तार ले जाने खम्भे उसमें गाड़ने से कोई मना नहीं कर सकता। यह अवश्य है कि टॉवर या तार ले जाने के अलावा और किसी कार्य के लिये इस प्रकार किसी की जमीन का प्रयोग नहीं किया जा सकता।

यह इण्डियन टेलीग्राफ एक्ट १८८५ का बना है और ये धारायें उसमें आज भी यथावत हैं। आप यह एक्ट हाइपर लिंक के माध्यम से देख सकते हैं। हम यहां उसकी धारा १० का सन्दर्भ ले रहे हैं। इस विषय में स्थानीय शासन तार बिछाने वालों की सहायता करेगा - इस प्रकार का प्रावधान है।

पर मेरे मित्र का कथन था कि जब उन्होने लोगों के प्रतिरोध करने पर स्थानीय शासन से सहायता के लिये सम्पर्क किया तब उन्हे देश की स्थिति और किसानों की दशा पर एक प्रवचन सुनने को मिला। एक्ट की धाराओं पर संकेत करने पर यह कहा गया कि सवा सौ साल पुराना यह एक्ट लोगों की वर्तमान अवस्था और आवश्यकताओं से मेल नहीं खाता। उसके बाद मेरे मित्र की फाइल अधीनस्थ के पास पंहुचा दी गयी। अधीनस्थ महोदय और भी उन्मुक्त और मुखर भाव से अपनी अनिच्छा व्यक्त करने लगे।

मुझे मित्र की लाइन से सीधा कोई लगाव नहीं है। पर मैं स्थानीय शासन की उन कार्यों के प्रति, जो उनके नित्य कार्यों से जुड़े नहीं हैं, प्रतिबद्धता के प्रति उदसीनता का उल्लेख करना चाहता हूं। जिस उत्साह से सवा सौ साल पहले अंग्रेजों ने इस देश में रेल या टेलीग्राफ/संचार का विस्तार किया होगा - और उस समय स्थानीय प्रशासन जिस उत्साह से उसमें सहायक रहा होगा; वह अब देखने में कम ही आता है। हर स्तर पर राजनीति, व्यक्तिगत स्वार्थ और विकास के प्रति उदासीनता व्याप्त दीखते हैं। ऐसा नहीं कि यह दशा स्थानीय/राज्य स्तरीय शासन और सँचार/रेलवे को लेकर ही हो। रेलवे और अन्य विभाग भी आपस में एक दूसरे के कार्यों पर उदासीनता दिखाते हैं।

फिर भी इन्फ्रास्ट्रक्चर का विकास हो रहा है। देश प्रगति कर रहा है - यह देख कर मुझे ईश्वर के अस्तित्व में और भी आस्था होती है!


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1. खेत में से तार या खम्भे जाने से किसान को निश्चय ही घाटा है। उसकी खेत पर मशीन/ट्रेक्टर चलाने की सुविधा में कमी आती है। जमीन का कोई मुआवजा नहीं मिलता। केवल एक फसल के खराब होने का मुआवजा मिलता है - स्थानीय शासन की मार्फत। और शासन से पैसा निकालने में जो हील-हुज्जत होती होगी, उसकी आप कल्पना कर सकते हैं। खेत में तार गुजरने से जमीन की उत्पादकता में तो शायद बहुत असर न पड़े, पर जमीन की कीमत अवश्य कम हो जाती है। उसके प्रति यह टेलीग्राफ एक्ट उदार नहीं है। कुल मिला कर यह मुद्दा विवाद या चर्चा का हो सकता है। पर देश की प्रगति के लिये तार ले जाने की सुविधा मिलनी चाहिये। बदली स्थिति में अगर एक्ट किसान के प्रति कुछ उदार बनाना हो तो वह किया जाये; पर विकास को अवरुद्ध न किया जाये।


12 comments:

  1. विदेशी भारत यात्रा कर जब अपने देश लौटा तो उसके साथियों ने उससे पूछा- भारत की वशिेषता क्‍या दखिलाई दी। उसने कहा- उस देश में ऐसा केछ भी नहीं है कि वह देश तरक्‍की करे, मगर कर रहा है। इससे मुझे में भगवान के प्रति आस्‍था दृढ़ हुई, क्‍योंकि मुझे नहीं लगता कि भगवान के अलावा उस देश को कोई और चला सकता है।

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  2. टेलिग्राफ़ ऐक्ट में बदलाव पर चर्चा होनी तो ज़रूरी है। अब तो फ़ोन कंपनियाँ अच्छे खासे नोट भी छाप रही हैं, टॉवरों पर विज्ञापन के जरिए भी पैसे कमा रही हैं, उसमें से हिस्सा किसानों को दिया जा सकता है, उन्हें मुफ़्त के फ़ोन भी एवज में दिये जा सकते हैं।
    मुझे लगता है कि निजी कंपनियाँ ऐक्ट पर आश्रित रहने के बजाय नायाब तोड़ निकालने में अधिक सक्षम होंगी, क्योंकि कानून के निर्माता और लागूकर्ताओं की गति तो काफ़ी धीमी है।

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  3. सभी पुराने कानूनों को वर्तमान परिस्थितियों के अनुसार परिवर्तन की आवश्यकता है। दो टावरों के बीच झूलते तार भी संकट खड़ा करते हैं। मेण्टीनेन्स के लिए भी प्रावधान होना चाहिए।
    हम सब का भगवान हमारी अपनी ईजाद है और हम उदारता के साथ परम्परागत रूप से उस का इस्तेमाल भी करते हैं। अनुदार हिन्दूवाद का विस्तार उस पर कब पाबंदी लगा दे इस का कोई भरोसा नहीं। जितना करना हो तब तक कर लिया जाए।

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  4. स्कूल दिनों का मेरा एक सहपाठी पिछले दो वर्षों से गाँव-गाँव में मोबाइल टॉवर लगवा रहा है. मैंने ख़ुद देखा है कि उसे पैरवीकार किस तरह परेशान किए रहते हैं कि हमारी ज़मीन पर, हमारे मकान पर टॉवर लगवा दो. पूछा तो पता चला कि टॉवर लगाने देने के बदले ज़मीन या मकान वाले को 3,200 रुपये प्रति महीने का किराया मिलता है. वो भी अगले 30 वर्षों के लिए सुनिश्चित.

    मेरा सहपाठी टॉवर एलॉट कराने के बदले संबंधित व्यक्ति से तीस में से एक साल का किराया(यानि क़रीब 38,000 रुपये) सुविधा शुल्क के रूप में अग्रिम रखवा लेता है.

    ज़ाहिर है, बिजली के टॉवर और मोबाइल नेटवर्क के टॉवर में बहुत भारी अंतर होता है, लेकिन ढंग का दाम दिया जाए तो क्या किसान ख़ुशी-ख़ुशी बिजली के टॉवर लगाने की अनुमति नहीं देंगे? मैं तो कहता हूँ, हाँ, ज़रूर देंगे. लोग अच्छा दाम मिलने पर अपने खेतों के नीचे से तेल-गैस की पाइपलाइन भी जाने देते हैं, भले ही इसके बाद उन्हें ज़मीन के उस हिस्से पर घर बनाने या बगीचे लगाने का अधिकार खोना पड़ता हो.

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  5. ये उपर हिंदी ब्लॉगर आई डी वाले महोदय की बात से मै भी सहमत हूं। मेरे अपने शहर में बहुत से लोगों को मैने देखा है कि वो इस जुगाड़ में रहते हैं कि उनके मकान पर कोई मोबाईल कंपनी अपना टॉवर खड़ा कर दे, हर महीने एक बंधी बंधाई रकम तो आती रहेगी। ऐसा ही कुछ बिज़ली के टॉवर के साथ भी होना चाहिए कि जिसकी जमीन में लगे उसे किराया मिले तो क्यों एतराज करेंगे लोग।

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  6. ये हिंदी ब्लागरजी ने एकदम सही बात ही कही है। पैसा फेंको तमाशा देखो। देश के विकास की बात किसान काहे मानें जी, जब तक उनका विकास नहीं ना हो रहा है। खंभा गाड़ने के लिए पैसे देने चाहिए पावर ग्रिड कारपोरेशन को। पावर ग्रिड यूं करे, एक हजार शेयर ही प्रति किसान दे दे। मुफ्त का चंदन घिसने के दिन गये जी।

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  7. "मैं स्थानीय शासन की उन कार्यों के प्रति, जो उनके नित्य कार्यों से जुड़े नहीं हैं, प्रतिबद्धता के प्रति उदसीनता का उल्लेख करना चाहता हूं। "
    ये उदासीनता सिर्फ़ शाशन में हो ऐसा नहीं है बल्कि हम सब उन कार्यों के प्रति उदासीन हैं जो हमारे नित्य कार्यों से जुड़ी नहीं है. उदासीनता है इसीलिए बड़े से बड़े मुद्दे भी कुछ समय बाद अपने आप दम तोड़ देते हैं. अच्छा हुआ की हमको स्वतंत्र भारत मिला है वरना हमारी जैसी मनोदशा अब है उसके चलते स्वतंत्रता पाना असंभव था.
    नीरज

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  8. कभी गौर करियेगा। जिन लोगो के घर पर मोबाइल टावर लगा होता है या जिनके आस-पास यह होता है क्या वहाँ कुछ विशेष प्रकार के रोग उत्पन्न हो जाते है? कुछ वर्षो पहले आस्ट्रेलिया से आये मेरे एक प्रशंसक ने ऊपर टावर और नीचे सघन बस्ती देखकर घोर आशचर्य प्रकट किया था। बाद मे मैने कई लोगो से पूछा तो मिली-जुली प्रतिक्रिया मिली।

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  9. अंग्रेजी जमाने के कई सारे कानूनों को जो हमने यथावत स्वीकार कर लिया है, वह जन विरोधी तो है ही, देश की प्रगति में भी बाधक है. ऊपर की सभी टिप्पणियों पर गौर करने लायक है. बेहतर होगा की आप इन सभी सुझावों को पढ़कर इन पर सोचें और नई बहस की शुरुआत की जाए.

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  10. अंग्रेजों के जमाने के अधिकतर नियम/कानून गुलामों को गुलाम रखने के लिये बनाये गये थे. उनका बदलना जरूरी है.

    टावर लगाने पर किसान के खेतों का एक बडा हिस्सा खेती के लिये बेकार हो जाता है. लेकिन यदि सरकार सही मुआवजा देने लगे तो विरोध न के बराबर रह जायगा. केरल में यह हो रहा है. पढेलिखे सरकारी कर्मचारी बिना मांगे ही जमीन की सही कीमत आंक कर, बिना कागजों में अटकाये, एकदम मुआवजा देने लगे हैं. अत: दोनों पक्ष खुश हैं. ऐसा अन्य प्रदेशों में होने लगे तो अधिग्रहण को कौन मना करेगा!!

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  11. जैसे लोग अपने ब्लाग पर विज्ञापन के टावर लगाते हैं सहर्ष वैसे ही खेत पर भी लगवा लेंगे अगर कुछ मिले । :)

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  12. हमें भी लगता है कि अगर सही दाम मिले तो किसान सहर्ष सहयोग देगें।

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--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय