Tuesday, July 3, 2007

विकी पर कोई गया तो फिर लौटा है? - समीर लाल

भैया, समीर जी कौन सी चक्की का खाते हैं जो ऐसी सुपर सशक्त टिप्पणी करते हैं. मदान जी ने एक पोस्ट लिखी नारदजी सुनिये जमाना बदल गया है. अब नारदजी सुनिये से हमें लगता है कह रहे हों - जीतेंद्र चौधरी सुनिये. बेचारे जीतेन्द्र सुनते-सुनते अण्डर ग्राउण्ड हो गये. वे हमें कह रहे थे कि जून के अंत में मिलेंगे. पर अभी तक इंतजार ही कर रहा हूं.

खैर, डिटूर कर जाने की बुरी आदत है. मदान जी नाराज हैं कि महादेवी जी पर उन्होने विकीपेडिया का इतना महत्वपूर्ण हाइपर लिंक दिया था पर किसी टिपेरे ने उनको सुना तक नहीं! वो इतने नाराज थे कि उस पोस्ट पर टिपेरने की सुविधा भी नहीं प्रदान की. इतना महत्वपूर्ण मुद्दा हो और समीर जी टिपेर न पायें? गजब हो जायेगा. लिहाजा समीर जी ने उसके पिछली पोस्ट पर टिपेरा. और क्या मस्त टिपेरा! मैं उनकी टिप्पणी जस की तस रिप्रोड्यूस कर रहा हूं :

भाई, पढ़ते तो जरुर हैं मगर आपने ही तो लिंक से सब को विकि पर भेज दिया तो जो गया सो गया..कौन लौटा है आजतक वो भी टिप्पणी करने!!! आप संवेदनशील हैं..मगर लिखना जारी रखें. कोशिश की जायेगी कि पढ़ने के बाद पावती रख जायें. शुभकामनायें.
महादेवी वर्मा, हिन्दी साहित्य, मदान जी की अच्छी पोस्ट, उनकी खुन्दक - इन सबसे मेरा कोई लेना-देना नहीं है. मैं तो सिर्फ समीर जी के टिपेरने पर पोस्ट लिख रहा हूं. क्या ग्रेट बात की है उन्होनें - विकी न हुआ, ब्लैक होल हो गया. हम भी जब विकी पर गये हैं तो उसी में दारुजोषित की नाईं भटकते रहे हैं. कटिया दर कटिया, हाइपर लिंक दर हाइपर लिंक. उस दिन पत्नी भिन्ना कर बोल ही देती हैं - ये तुम्हारा कम्प्यूटर गंगाजी में फिंकवा दूंगी!

कितना गूढ़ ऑब्जर्वेशन है समीर जी का!

समीर जी ने हमारे ब्लॉग पर टिपेरा :

अच्छा शोध किया है और मैं सहमत हूँ.....बहुत सही. अब सोता हूँ.
अब देखिये; साफ है कि उन्हे हमारी पोस्ट निहायत ऊबाऊ लगी. पढ़ कर नींद आने लगी. फिर भी कितने शरीफ हैं. साफ-साफ नहीं कहा - 'क्या अण्ट-शण्ट लिखते हो. कोई किताब पढ़ ली तो इसका मतलब यह नहीं कि सब को पढ़ा मारो!' बड़ी शराफत से यह बता दिया कि पोस्ट ऊबाऊ है पर वे मॉरल डाउन नहीं करना चाहते!

जब बात समीर जी की कर रहा हूं तो एक ऑब्जर्वेशन मैं और करना चाहता हूं. चिठ्ठे छप रहे हैं - धड़ाधड़. ऐसे में समीर जी सो कैसे सकते हैं? ऐसे कैसे हो सकता है कि चिठ्ठों की प्रोडक्शन लाइन तीनों शिफ्ट में चले और मास्टर टिपेरा एक शिफ्ट बन्द कर दे - यूनीलेटरली. पोस्ट बनने लगेंगी - नारदजी सुनिये हम परेशान हैं, समीरजी सो रहे हैं!

एक काम वो कर सकते हैं. अपने कम्प्यूटर को वे ई-मेल के ऑटो-रिप्लाई मोड की तरह ऑटो-कमेण्ट मोड में डाल दें. और इस तरह की टिप्पणियां अपने सोते में जेनरेट करें :
udan tashtari said...
बहुत शानदार. लिखते रहें. आपके लेखन में बहुत धार है. बहुत प्रेरक लिखा है! (यह ऑटो कमेण्ट है. अभी मैं दौरे पर हूं. वापस आते ही पुन: टिप्पणी करूंगा.)
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पुन:
अभी-अभी देखा है कि अनुनाद सिन्ह जी के ब्लॉग पर भी मदान जी के विषय में समीर जी टिपेर चुके हैं :
हमारी भी टिपियाने की हसरत धरी रह गई!! :(
इतना बढ़िया टिपेरने पर भी समीर जी की हसरतें हैं कि पूरी नहीं होतीं!

खैर, समीर जी, हमारी कोई पोस्ट आपकी टिप्पणी से बचनी नहीं चाहिये वर्ना मुझे लगेगा कि आप नाराज हो गये.

13 comments:

  1. विष विरह चौरा और त्रिया चरित
    Udan Tashtari said...
    बढियां...सुन्दर चित्र है...बधाई...
    समीर को कविता मे चित्र बे नज़र आजाते हे पर तारीफ़ हे की कितना "देखते" हे

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  2. वैधानिक चेतावनी-
    यह टिप्पणी आदरणीया श्रीमती पांडेजी के लिए है-
    आदरणीया श्रीमती पांडेजी उवाच-उस दिन पत्नी भिन्ना कर बोल ही देती हैं - ये तुम्हारा कम्प्यूटर गंगाजी में फिंकवा दूंगी!
    जी काहे को आप गंगाजी में फेंकने जायेंगी, काहे को जहमत। मैं हूं ना, जिस दिन मन करे, घऱ के बाहर फेंक दें। पर मुझे सूचित करके फेंके।
    सादर
    आलोक पुराणिक

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  3. लिखते तो सभी हैं, पढ़ता कौन है? और जितने लोग पढ़ते हैं उनमें से टिप्पड़ी कितने लोग करते हैं.
    समीरलाल जी तीनों काम करते हैं. आपने अच्छा कटाक्ष किया है. वैसे फुरसतिया कानपुरी को भी आप इसी श्रेणी में रख सकते हैं.
    वैसे मुझे लगता है 700 हिन्दी ब्लागर मिलजुलकर इन्हीं दो लोगों के लिए लिख रहे हैं. समीर जी, फुरसतिया जी आपका धन्यभाग जो इतने लोग आपके लिए काम कर रहे हैं. वैसे डिटूर क्या होता है?

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  4. संजय उवाच> ...वैसे डिटूर क्या होता है?

    तिवारीजी, यह मेरी भाषागत अल्पज्ञता है. डिटूर De-tour है, अर्थात विषय से भटकाव. हिन्दी में शब्द नहीं मिलते तो जो मिलते हैं उन्हे देवनागरी में लिख कर काम चलाता हूं. हिन्दीविदों को इससे वेदना होती है, पर क्या करें? सुकुल जी ने समांतर कोष का सुझाव दिया है, पर अभी खरीद नहीं पाया.

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  5. "ये तुम्हारा कम्प्यूटर गंगाजी में फिंकवा दूंगी"
    भाभीजी आप तैयार रहो फ़ेकने के लिये हम उठाने अगली ट्रेन से रिजरवेशन मिलते ही आ रहा हू,
    वैसे ज्ञान भाईसा कौन सा है,और भाभीजी सारा यानी मानीटर और चीपी यू सहित सारा ही फ़ेकेगी ना...?

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  7. वैसे ये प्रोग्राम पक्का है ना फ़ेकने का,बदलने वाला तो नही...?काहे कि एक दिन हम ऐसे ही गुरुजी के यहा (आलोक जी) भी यही सुन कर उठाने पहुच गये थे,पर वहा प्रोग्राम पोस्ट्पोन हो गया था,ये पास मे है इसलिये दिल ज्यादा नही दुखा की फ़िर किसी दिन आ जायेगे पर इत्ती दूर आना जाना,
    जरा मुश्किल वाली बात है ना...?और रिजर्वेशन भी रोज रोज आसानी से नही मिलता..?अत: कन्फ़र्म करे.

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  8. अब क्या कहें!! आप तो हमारी टिप्पणियाँ भी इतने ध्यान से पढ़ते हैं. वाह!! क्या स्नेह है. आँख भर आई देखकर.

    -क्या खूब खोज कर लाये हैं. वैसे, लेख आपका बहुत बढ़िया था, मगर नींद तो पढ़ने के पहले से ही आ रही थी. उबाऊ भी नहीं था-बल्कि लोरी सा मधुर. क्या खूब नींद आई.

    -अरे, आपके लेख न टिपियाये तो यह मत समझियेगा कि नाराज हैं-तबियत खराब मान लिजियेगा वरना ऐसा कैसे हो सकता है भला-आखिर हमें रहना तो इसी चिट्ठाजगत में!! :)

    --सुबह सुबह मजा आ गया यह भजन आरती सुन कर.


    @रचना जी

    मैं शब्द चित्र देखता हूँ..हा हा :)

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  9. सही है। समीरलाल जी पढ़ते हों या न पढ़ते हों टिप्पणी अवश्य करते हैं। उनमें यह बुराई भी है कि वे बुराई कभी नहीं करते ।:)

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  10. समीर जी की यही खासियत है की वो टिप्पणी जरूर करते है बडे स्टाइल से और लिखने वाले का उत्साह बढ़ाते है और इसीलिये वो सभी ब्लागर मे इतने लोकप्रिय है।

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  11. अब क्या कहें!! आप तो हमारी टिप्पणियाँ भी इतने ध्यान से पढ़ते हैं. वाह!! क्या स्नेह है. आँख भर आई देखकर.

    -क्या खूब खोज कर लाये हैं. वैसे, लेख आपका बहुत बढ़िया था, मगर नींद तो पढ़ने के पहले से ही आ रही थी. उबाऊ भी नहीं था-बल्कि लोरी सा मधुर. क्या खूब नींद आई.

    -अरे, आपके लेख न टिपियाये तो यह मत समझियेगा कि नाराज हैं-तबियत खराब मान लिजियेगा वरना ऐसा कैसे हो सकता है भला-आखिर हमें रहना तो इसी चिट्ठाजगत में!! :)

    --सुबह सुबह मजा आ गया यह भजन आरती सुन कर.


    @रचना जी

    मैं शब्द चित्र देखता हूँ..हा हा :)

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  12. वैसे ये प्रोग्राम पक्का है ना फ़ेकने का,बदलने वाला तो नही...?काहे कि एक दिन हम ऐसे ही गुरुजी के यहा (आलोक जी) भी यही सुन कर उठाने पहुच गये थे,पर वहा प्रोग्राम पोस्ट्पोन हो गया था,ये पास मे है इसलिये दिल ज्यादा नही दुखा की फ़िर किसी दिन आ जायेगे पर इत्ती दूर आना जाना,
    जरा मुश्किल वाली बात है ना...?और रिजर्वेशन भी रोज रोज आसानी से नही मिलता..?अत: कन्फ़र्म करे.

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  13. वैधानिक चेतावनी-
    यह टिप्पणी आदरणीया श्रीमती पांडेजी के लिए है-
    आदरणीया श्रीमती पांडेजी उवाच-उस दिन पत्नी भिन्ना कर बोल ही देती हैं - ये तुम्हारा कम्प्यूटर गंगाजी में फिंकवा दूंगी!
    जी काहे को आप गंगाजी में फेंकने जायेंगी, काहे को जहमत। मैं हूं ना, जिस दिन मन करे, घऱ के बाहर फेंक दें। पर मुझे सूचित करके फेंके।
    सादर
    आलोक पुराणिक

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--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय