Tuesday, July 24, 2007

कछुआ और खरगोश की कथा – नये प्रसंग


कछुआ और खरगोश की दौड़ की कथा (शायद ईसप की लिखी) हर व्यक्ति के बचपन की कथाओं का महत्वपूर्ण अंग है. यह कथा ये सन्दर्भ में नीचे संलग्न पावरप्वाइण्ट शो की फाइल में उपलब्ध है. इसमें थोड़े-थोड़े फेर बदल के साथ कछुआ और खरगोश 4 बार दौड़ लगाते हैं और चारों बार के सबक अलग-अलग हैं.

कुछ वर्षों पहले किसी ने -मेल से यह फाइल अंग्रेजी में प्रेषित की थी. इसके अंतिम स्लाइड पर है कि इसे आगे प्रसारित किया जाये. पर यह संतोषीमाता की कथा की तरह नहीं है कि औरों को भेजने से आपको फलां लाभ होगा अन्यथा हानि. यह प्रबन्धन और आत्म विकास से सम्बन्धित पीपीएस फाइल है. इसमें व्यक्तिगत और सामुहिक उत्कष्टता के अनेक तत्व हैं.

बहुत सम्भव है कि यह आपके पास पहले से उपलब्ध हो. मैने सिर्फ यह किया है कि पावरप्वाइण्ट का हिन्दी अनुवाद कर दिया है, जिससे हिन्दी भाषी इसे पढ़ सकें.

आप नीचे के चिन्ह पर क्लिक कर फाइल डाउनलोड कर सकते हैं. हां; अगर डाउनलोड कर पढ़ने लगे, तो फिर टिप्पणी करने आने से रहे! :)

खैर, आप डाउन लोड करें और पढ़ें यही अनुरोध है.


13 comments:

  1. क्षानजी सारा ज्ञान पुराना दिया है आपने। पुरानी तरकीबें बतायी हैं आपने, नयी कुछ यूं हैं-
    कछुआ यूं जीता कि उसने अंपायर को सैट कर लिया था।
    कछुए ने अगली बार सैटिंग कर ली और वह अंपायर का दामाद हो लिया। खरगोश ने बहुत उछल-कूद की, पर अंपायर ने कहा कि इसने ड्रग्स का सेवन किया है, सो यह दौड़ से बाहर।
    कछुए ने देखा कि खरगोश बहूत दौड़ता है, सो उसने चरस की स्मगलिंग का काम शुरु कर दिया और खरगोश को बगैर बताये कहा कि इसमें बहुत धांसू आइटम है, जाओ इन इन इलाकों में दे आओ। खऱगोश चूंकि पहले रेस जीत चुका था, इसलिए उसकी रेपुटेशन थी, उसे पुलिस वाले रोकते नहीं थे। इस तरह से चरस की स्मगलिंग से कछुए ने बहुत कमाया और खरगोश नौकरी ही करता रह गया।
    बाद में खरगोश और कछुए ने आपस में कहा-गुरु एक ही सीरिज में ना तुम जीतो, न हम , सस्पेंस रहे, तो ही टीवी चैनल आयेंगे कवर करने के लिए। टीआरपी बढ़ेगी, नोट छापेंगे। फिर दोनों बारी-बारी से रेस जीतने लगे, और हारने लगे।
    एक बार खरगोश आगे दौड़ा और कछुआ पीछे, भूतप्रेत चैनल के रिपोर्टर ने क्लेम कर दिया कि खरगोश पिछले जन्म में कछुए का पति था। इस बार यह बहुत तेज भागने के चक्कर में खरगोश बन गया है, पर पत्नी फिर भी नहीं छोड़ रही है। तेरा पीछा नहीं छोड़ूंगी, तू मेरा है, तेरे पीछे मैं, बच नहीं पायेगा-कुछ इस तरह के नाम इस कार्यक्रम के हो सकते हैं।

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  2. वैसे सच्ची में नयी कहानियां अच्छी हैं।

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  3. बढिया कहानियाँ और उस पर आलोक जी की मौजू टिप्पणी...अब कम से कम साधुवाद तो देते ही चलें :-)

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  4. हां कछुवा, खरगोश और ओपेन सोर्स का संबन्ध अब समझ में आ रहा है :-)

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  5. ज्ञान जी इस साल मुंबई में चल रही कछुए खरगोश की नई कथा सुनिए-- कछुए और खरगोश की पुरानी रेस की वजह से इन दोनों को सभी जानते पहचानते थे, ये दोनों इस साल दसवीं पास हुए और कॉलेज में एडमीशन के लिए पहुंचे । फॉर्म वार्म भरे अपने अपने सर्टिफिकेट जमा कर दिये और कट ऑफ लिस्‍ट का इंतज़ार करने लगे ।
    बताईये किसका ए‍डमिशन हुआ होगा—कछुए का या खरगोश का । मुझे पला है आप कहेंगे कछुए का—पर क्‍यों । कारण बताईये । मैं बताता हूं । रेस जीतने की वजह से उसके पास सर्टिफिकेट था । इसलिए स्‍पोर्ट्स कोटे में उसे जगह दे दी गयी । आजकल खरगोश मुंबई के कॉलेजों के चक्‍कर काटकर थक गया है और इलाहाबाद के किसी कॉलेज में एडमिशन लेने का सोच रहा है ।

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  6. हम पहले टिपिया रहे है,बाद मे डाउन लोड करेगे ताकी शिकवा शिकायत ना रहे..वैसे भी यहा एक टिकट मे कई शो देखने को मिल गये है.
    हा आपसे गुजारिश है कि आप यूनूस भाइ वाले खरगोश का ऎड्मिशन मे सहायता करादे ,तब तक हम पढ कर आते है

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  7. @ यूनुस - खरगोश से कह दें काहे को एडमीशन के चक्कर में पड़ता है. वहीं बम्बई में नौकरी ढ़ूढे. यहां के कॉलेज की डिग्री तो चने के ठोंगे से ज्यादा कीमत नहीं रखती. :)

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  8. Yunus jee ka khargosh smart nahin hai...Kya zaroorat hai admission lekar padhne kee?..Mumbai mein rah kar padhega kyon,filmon mein hero banega na...Khatra kewal Salman Khan se hai..

    Lekin agar bach gaya to filmon mein hero bankar nachega aur gaane gaayega....

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  9. पहले टिपिया देते है, फिर डाऊनलोड करेंगे, फिर पढ़ेंगे और मौका लगा तो फिर आते हैं, मिलियेगा.

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  10. भाई साहब, ४० वीं स्लाईड में जाकर दिखा कि निचोड़ यह है....तब तक हमारा ही निचोड़ निकल गया.

    -वैसे है बेहतरीन ज्ञान और उस पर आलोक जी ज्ञान भी ध्यान देने योग्य है. :)


    --वो तो समझो हमारे जैसा जुझारु टिप्पणीकार है जो ४१ स्लाईड देखने के बाद बैठा टिपिया रहा है.

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  11. बढ़िया कहानी है। कोर कम्पीटेंस और टीम भावना वाली बात सही है। लेकिन आम तौर पर रात गयी, बात गयी की तरह हो जाती है। पूरा देखने के बाद टिपिया रहे हैं। लौटकर। यह हमारी कोर कम्पीटेंसी है!:)

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  12. प्रभु, कल हमने पुन: टिपियाया नही उसके लिए क्षमा!
    स्लाईड शो बहुत ही शानदार है!!
    आज हमने अपने चारों भतीजों को लाईन से खड़ा कर के यह स्लाईड शो दिखाया और अपने सभी मित्रों को ई-मेल में भेज भी रहे हैं!!

    शुक्रिया!!

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--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय