Sunday, July 8, 2007

विक्तोर फ्रेंकल का आशावाद और जीवन के अर्थ की खोज

जब भी नैराश्य मुझे घेरता है, विक्तोर फ्रेंकल (1905-1997) की याद हो आती है. नात्सी यातना शिविरों में, जहां भविष्य तो क्या, अगले एक घण्टे के बारे में कैदी को पता नहीं होता था कि वह जीवित रहेगा या नहीं, विक्तोर फ्रेंकल ने प्रचण्ड आशावाद दिखाया. अपने साथी कैदियों को भी उन्होने जीवन की प्रेरणा दी. उनकी पुस्तक मैंस सर्च फॉर मीनिंग”* उनके जीवन काल में ही 90 लाख से अधिक प्रतियों में विश्व भर में प्रसार पा चुकी थी. यह पुस्तक उन्होने मात्र 9 दिनों में लिखी थी.

पुस्तक में एक प्रसंग है. नात्सी यातना शिविर में 2500 कैदी एक दिन का भोजन छोड़ने को तैयार हैं क्योंकि वे भूख के कारण स्टोर से कुछ आलू चुराने वाले कैदी को चिन्हित कर मृत्युदण्ड नहीं दिलाना चाहते. दिन भर के भूखे कैदियों में ठण्ड की गलन, कुपोषण, चिड़चिड़ाहट, निराशा और हताशा व्याप्त है. बहुत से आत्महत्या के कगार पर हैं. बिजली भी चली गयी है. ऐसे में एक सीनियर विक्तोर को कैदियों को सम्बोधित कर आशा का संचार करने को कहता है. विक्तोर छोटा सा पर सशक्त सम्बोधन देते हैं और उससे कैदियों पर आशातीत प्रभाव पड़ता है. मैं इस अंश को बार-बार पढ़ता हूं. उससे मुझे बहुत प्रेरणा मिलती है.उस ढ़ाई पृष्ठों का अनुवाद मैं फिर कभी करने का यत्न करूंगा.

अभी मैं पुस्तक के कुछ उद्धरणों का अनुवाद प्रस्तुत करता हूं, जो यह स्पष्ट करे कि विक्तोर फ्रेंकल की सोच किस प्रकार की थी. विभिन्न विषयों पर फ्रेंकल इस प्रकार कहते हैं:

अपने नजरिये को चुनने की स्वतंत्रता पर:
मानव से सब कुछ छीना जा सकता है. सिवाय मानव की मूलभूत स्वतंत्रता के. यह स्वतंत्रता है
किसी भी स्थिति में अपना रास्ता चुनने हेतु अपने नजरिये का निर्धारण करने की.

वह, जो मुझे मारता नहीं, मुझे और दृढ़ता प्रदान करता है. - नीत्से.

जीवन मूल्यों और लक्ष्यों के प्रति प्रतिबद्ध होने पर:
मानव को तनाव रहित अवस्था नहीं चाहिये. उसे चाहिये एक उपयुक्त लक्ष्य की दिशा में सतत आगे बढ़ती और जद्दोजहद करती अवस्था.

तनावों को किसी भी कीमत पर ढ़ीला करना जरूरी नहीं है, जरूरी है अपने अन्दर के सोये अर्थ को उद्धाटित करने को उत्प्रेरित होना.

जीवन के अर्थ की खोज पर:
हमें अपने अस्तित्व के अर्थ की संरचना नहीं करनी है, वरन उस अर्थ को खोजना है.

और हम यह खोज तीन प्रकार से कर सकते हैं
(1) काम कर के, (2) जीवन मूल्य पर प्रयोग कर के और (3) विपत्तियां झेल कर.

अपने कार्य को पूरा करने पर:
एक व्यक्ति जो जानता है कि उसकी किसी व्यक्ति के प्रति कुछ जिम्मेदारी है जो उसके लिये प्रेम भाव से इंतजार कर रहा होगा; अथवा उस अधूरे काम के प्रति जो उसे पूरा करना है, तो वह कभी अपने जीवन को यूंही फैंक नहीं देगा. अगर उसे जीवन के
क्यों की जानकारी है तो वह “कैसी भी परिस्थिति को झेल जायेगा.

महत्वपूर्ण यह नहीं कि हम जिन्दगी से क्या चाहते हैं, वरन यह है जिंदगी हमसे क्या चाहती है. हम जीवन के अर्थ के बारे में प्रश्न करना छोड़; प्रति दिन, प्रति घण्टे अपने आप को यह समझने का यत्न करें कि जिन्दगी हमसे प्रश्न कर रही है. हमारा उत्तर ध्यान और वार्ता में नहीं वरन सही काम और सही आचरण में होना चाहिये. जिन्दगी का अर्थ उसकी समस्याओं के सही उत्तर पाने तथा वह जिन कार्यों की अपेक्षा मानव से करती है, उनके पूर्ण सम्पादन की जिम्मेदारी मानने में है.


* - पुस्तक पर विकी लिंक यहां है. आप टिप्पणी कर दें और फिर (यदि लिंक पर जाते हों तो) जायें. :)

10 comments:

  1. काफी अच्छी जानकारी है.अब इस पुस्तक को खोज के पढ़ेंगे.आपने टिप्पणी के बारे में बता दिया अच्छा किया नहीं तो लोग बिना टिप्पणी दिये ही भाग जाते :-)

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  2. अच्छा है। आपका ब्लाग अब एग्रिगेटर से नहीं पढ़ा जाता। सीधे देखा जाता है कि पांडे जी ने आज क्या ज्ञान दिया। किताब के उन ढाई-तीन पन्नों के अनुवाद का इंतजार है!

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  3. टिप्पणी कर दे रहे है पर अभी लिंक पर नहीम गये. बाद में जायेंगे. बातें सारी पसंद आईं.

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  4. थोड़ा विस्तार से बतायें। बहुत गहरी बातें हैं। संक्षेपियेगा, तो बहुत कुछ छूट जायेगा।

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  5. आपके पास इत्ती धांसू किताबें हैं, आपके यहां चोरी-वोरी का हिसाब बिठाना पड़ेगा। या यूं भी संभव है कि सब किताबों की फोटू कापी करवा लें, यह खाकसार इलाहाबाद आकर ले जायेगा। कसम किताबों की आने-जाने का रिजर्वेशन करवाकर आऊंगा, आपसे रिजर्वेशन करवाने के लिए नहीं कहूंगा। जल्दी जवाब दें।
    आलोक पुराणिक

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  6. कुछ ज्ञान-दान इस मसले पर करें कि फायरफाक्स मोजिल्ला ब्राउजर के जरिये जब मेरा ब्लाग खुलता है, तो हैडर के आइटम फटे-फटे से दिखते हैं। कतिपय टिप्पणियां भी उखड़ी सी दिखती हैं, जैसे आज मेरे ब्लाग पर अभय तिवारीजी की टिप्पणी। आपके यहां फायर फाक्स ब्राउजर पर हैडर-कमेंट सब सैट-साफ दिखते हैं। ये क्या जुगाड़मेंट है।

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  7. सही में बहुत गहरी बातें ....!

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  8. कुछ ज्ञान-दान इस मसले पर करें कि फायरफाक्स मोजिल्ला ब्राउजर के जरिये जब मेरा ब्लाग खुलता है, तो हैडर के आइटम फटे-फटे से दिखते हैं। कतिपय टिप्पणियां भी उखड़ी सी दिखती हैं, जैसे आज मेरे ब्लाग पर अभय तिवारीजी की टिप्पणी। आपके यहां फायर फाक्स ब्राउजर पर हैडर-कमेंट सब सैट-साफ दिखते हैं। ये क्या जुगाड़मेंट है।

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  9. आपके पास इत्ती धांसू किताबें हैं, आपके यहां चोरी-वोरी का हिसाब बिठाना पड़ेगा। या यूं भी संभव है कि सब किताबों की फोटू कापी करवा लें, यह खाकसार इलाहाबाद आकर ले जायेगा। कसम किताबों की आने-जाने का रिजर्वेशन करवाकर आऊंगा, आपसे रिजर्वेशन करवाने के लिए नहीं कहूंगा। जल्दी जवाब दें।
    आलोक पुराणिक

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--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय