Sunday, July 8, 2007

गंगा का कछार, नीलगाय और जट्रोफा

हरिकेश प्रसाद सिन्ह मेरे साथ जुड़े इंस्पेक्टर हैं. जो काम मुझे नहीं आता वह मैं एच पी सिन्ह से कराता हूं. बहुत सरल जीव हैं. पत्नी नहीं हैं. अभी कुछ समय पहले आजी गुजरी हैं. घर की समस्याओं से भी परेशान रहते हैं. पर अपनी समस्यायें मुझसे कहते भी नहीं. मैं अंतर्मुखी और वे मुझसे सौ गुणा अंतर्मुखी. राम मिलाये जोड़ी...

एक दिन मैने पूछ ही लिया – जमीन है, कौन देखता है?
बोले – यहां से करीब 20-25 किलोमीटर दूर गंगा के कछार में उनकी जमीन है. करीब 40 बीघा. कहने को तो बहुत है पर है किसी काम की नहीं. खेती होती नहीं. सरपत के जंगल बढ़ते जा रहे हैं.
पूरे चालीस बीघा बेकार है?
नहीं. लगभग 10 बीघा ठीक है पर उसमें भी खेती करना फायदेमन्द नहीं रहा.
क्यों?
मर खप के खेती करें पर जंगली जानवर – अधिकतर नीलगाय खा जाते हैं. नीलगाय को कोई मारता नहीं. पूरी फसल चौपट कर देते हैं.
नीलगाय तो हमेशा से रही होगी?
नहीं साहब, पहले आतंक बहुत कम था. पहले बाढ़ आती थी गंगा में. ये जंगली जानवर उसमें मर बिला जाते थे. अब तो दो दशक हो गये बाढ़ आये. इनके झुण्ड बहुत बढ़ गये हैं. पहले खेती करते थे. रखवाली करना आसान था. अब तो वही कर पा रहा है जो बाड़ लगा कर दिन-रात पहरेदारी कर रहा है. फिर भी थोड़ा चूका तो फसल गयी.

मुझे लगा कि बाढ़ तो विनाशक मानी जाती है, पर यहां बाढ़ का न होना विनाशक है. फिर भी प्रश्न करने की मेरी आदत के चलते मैं प्रश्न कर ही गया – वैसा कुछ क्यों नहीं बोते जो नीलगाय न खाती हो?
एच पी सिन्ह चुप रहे. उनके पास जवाब नहीं था.
मैने फिर पूछा – जट्रोफा क्यों नहीं लगाते? रेलवे तो लाइन के किनारे जट्रोफा लगा रही है. इसे बकरी भी नहीं चरती. अंतत: बायो डीजल तो विकल्प बनेगा ही.

हरिकेश की आंखों में समाधान की एक चमक कौन्धी. बोले – दुर्वासा आश्रम के पास एक सभा हुई थी. जट्रोफा की बात हुई थी. पर कुछ हुआ तो नहीं. लगा कि उन्हे इस बारे में कुछ खास मालुम नहीं है.

लेकिन मुझे समाधान दिख गया. सब कड़ियां जुड़ रही हैं. गंगा में पानी उत्तरोत्तर कम हो रहा है. कछार जंगल बन रहा है सरपत का. नील गाय बढ़ रहे हैं. जट्रोफा की खेती से जमीन का सदुपयोग होगा. खेती में काम मिलेगा. जट्रोफा के बीजों का ट्रांसस्ट्रेटीफिकेशन ट्रांसएस्टेरीफिकेशन के लिये छोटे-छोटे प्लाण्ट लगेंगे. उनमें भी रोजगार होगा. बायोडीजल के लाभ होंगे सो अलग. हरिकेश की पूरे 40 बीघा जमीन उन्हे समृद्ध बनायेगी. वह जमीन जहां आज उन्हे कुछ भी नजर नहीं आ रहा.

गंगा में पानी कम हो रहा है तो कोसना और हताशा क्यों? उपाय ढ़ूंढ़े. फिर मुझे लगा कि मैं ही तो सयाना नहीं हूं. लोग देख-सोच-कर रहे होंगे....भविष्य में व्यापक परिवर्तन होंगे. एच पी सिन्ह की जमीन काम आयेगी.

देखें, आगे क्या होता है.

आप जरा जट्रोफा पर जानकारी के लिये यह साइट देखें.

12 comments:

  1. ज्ञान भाइ साहेब जरा यू के लिपटस पर भी नजर डालिये सूखे का प्रेमी और जुम्मेदार यही है भारत मे..?

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  2. सर जी, परती भूमि पर रतनजोत (Jatropha)का लगाया जाना तो फिर भी एक हद तक ठीक है, लेकिन कृषि योग्य भूमि पर इसकी खेती का प्रचलन अच्छा संकेत नही है....कुछ गौर करने लायक बिंदु

    १)जैसा कि आपने भी कहा, जानवर इसे नही खाते । किसान जब खाद्यान्न की फसल लेता है तो साथ में उसे बाय प्रोड्क्ट्स (भुस, रजका आदि) मिलने से ये भरोसा रहता है कि वो अपने पशुधन को कुछ न कुछ खिला सकेगा । और वो एक निश्चित आजीविका होगी।
    २) एक समस्या Food Security की । ये शायद आपके मित्र पर लागू ना हो, लेकिन खाद्यान्न की फसल लेते समय इतना भरोसा तो होता ही है कि किसान के अपने खाने भर का अनाज हो जायेगा । जट्रोफा उगायेंगे...उसे बाजार में बेचेंगे, जहाँ दाम निर्धारण अत्यंत संदेहास्पद है आज की तारीख में...और फिर अन्न खरीदेंगे..छोटी जोत वाले किसान के लिये तो पक्का मुश्किल हो जायेगी।
    ३) थोडा सा इससे हट कर- बायोडीजल, आम डीजल की तुलना में आर्थिक रूप से तभी फायदेमंद होता है जब जट्रोफा बीज ५-६ रुपये किलो हो..(फिलहाल तो सरकार ही शायद २५ रुपये लीटर पे बायोडीजल खरीद रही है...जो गलत है...इससे ज्यादा दाम मिलना चाहिये)। ५-६ रुपये किलो की पैदावार किसान को मंहगी पड सकती है..बीच में सिर्फ बीज की मांग की वजह से हवा हवा में रतनजोत बीज के दाम २०० रु. किलो तक पहुँच गये थे..पर वो ज्यादा दिन नही चल सकता

    वैसे National Biofuel Mission ने सन २०११ तक देश में ११.२ लाख हेक्टेयर में रतनजोत पौधारोपण का लक्ष्य रखा है..

    अतः रेल पटरियों के बीच की फालतू पडी जमीन पर तो रतनजोत उगाना ठीक है...पर अंधाधुंध खेती...कृषियोग्य भूमि पर..ना जी ना ।

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  3. ट्रांसस्ट्रेटीफिकेशन

    वास्तव मे बीजों के तेल का ट्रान्स एस्टेरीफ़िकेशन (Esterification).

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  4. अच्छा लिखा है। आप बायो डीजल की खेती के बारे में काफ़ी लिख रहे हैं। इसके नकारात्मक प्रभाव क्या हो सकते हैं। :)

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  5. क्या रेलवे लाईन के किनारे जेट्रोफा रेलवे खुद लगा रही है? मैने सुना था कि वो लैंड लीज पर दे रही है और प्राईवेट लोग उस पर जेट्रोफा लगायेंगे, जिसे रेलवे वापस उनसे खरीदेगा फिक्स रेट कान्ट्रेक्ट पर बायो डिजल बनाने के लिये.

    -थोड़ा शंका निवारण करें. जेट्रोफा के बीज की स्पलाई सीमित होने की वजह से भी लोग अभी आगे आने में दिक्कत उठा रहे हैं.

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  6. @ आर सी मिश्र: धन्यवाद. शब्द सही कर दिया है.

    @ पंगेबाज, नितिन, अनूप : अच्छा लगा, इस विषय पर इण्टेंस रियेक्शंस देख कर. जितनी गहन प्रतिक्रियायें, उतना हम समाधान के समीप होंगे. पर्यावरण बिगाड़ कर कुछ नहीं होना चाहिये. पर पर्यावरण संरक्षा की तरह भी नहीं होना चाहिये कि कुछ किया न जाये तो सर्वाधिक पर्यावरण सुरक्षा हो.
    @ समीर लाल: रेलवे के अपने भी लक्ष्य होते हैं वृक्षारोपण के. उसमें लगाया जा रहा है. लैण्ड लीज वाला कंसेप्ट तो है ही. प्रगति निश्चय ही धीमी है. तेजी तो पेटोलियम के दामों में उछाल पर निर्भर है.

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  7. विदेशी पौधे रतनजोत के नकारात्मक पहलुओ पर लिखे कुछ अंग्रेजी और हिन्दी लेखो के लिंक प्रेषित कर रहा हूँ http://ecoport.org/ep?SearchType=reference&Title=ratanjot&TitleWild=CO&MaxList=0

    http://ecoport.org/ep?SearchType=earticleView&earticleId=877&page=-2


    आशा है इन्हे पढ्ने के बाद आप इसे लगाने की बात फिर नही करेंगे।

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  8. @ दर्द हिन्दुस्तानी (पंकज जी): आपके पास विशेषज्ञ (क़ृषि वैज्ञानिक) के रूप में जानकारी है. आपके लिकं पहले खुल नहीं रहे थे. पर अब स्पष्ट हैं. तस्वीर का दूसरा पहलू काफी विस्तार से है इनमें. पढ़ने/पचाने में समय लगेगा, पर लिंक देने के लिये अतिशय धन्यवाद.

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  9. बहस अच्छी है. नकदी खेती को व्यक्तिगत स्तर पर नहीं रोका सकता. लोगों को नकद पैसा चाहिए वर्यावरण नहीं. इसे रोकने का प्रयास नीति-निर्माताओं के स्तर पर होना चाहिए कि ऐसी कोई नीति नीचे तक न जाए जिसके लंबे समय में दुष्परिणाम निकलनेवाले हों.

    फर्टिलाईजर और कीटनाशकों के बारे में भी तो यही कहा गया था कि पैदावार बढ़ेगी. पैदावार बढ़ी और रोग भी. अब टाईम मैगजीन कवर स्टोरी छाप रहा है कि आप वैसा ही सोचते हैं जैसा आप खाते हैं.

    सबसे बड़ा सवाल यह है कि हम मोटर-गाड़ी का पेट भरेंगे तो हमारा पेट कौन भरेगा? अमेरिका और आष्ट्रेलिया?

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  10. थोड़ा देर से आया आज आपके द्वारे पर बहस अच्छी हो गयी.ज्यादा जानकारी तो नहीं है इस पर .. पर कहीं पढ़ा था कि इस पौधे को लगाना लॉंग रन में ठीक नहीं...आशा है आगे जानकारी देते रहेंगे.

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  11. कुछ और उपयोगी लिंक

    http://paryavaran-digest.blogspot.com/2007/05/blog-post_5198.html

    http://dardhindustani.blogspot.com/2007/05/blog-post.html

    http://www.cgnet.in/Members/shu/Members/shu/ufanarticles/baasi040507/document_view

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--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय