Saturday, July 7, 2007

एक जंक पोस्ट - फीड एग्रीगेटर को क्या-क्या बताओगे?

पहले लोग खुले में डर्टी लिनेन धोते थे, अब भी धोते हैं. पहले शायद साबुन लगाते हों, अब डिटर्जेण्ट के रूप में फीड एग्रीगेटर का प्रयोग करते हैं. मेल बनाते हैं – हमें हटा दो. पर भेजने से पहले पोस्ट पब्लिश कर फीड एग्रीगेटर को देते हैं (उसी मेल का कण्टेण्ट प्रयोग करते हुये).

फलाने जी कहते हैं मुझे तुम्हारे मुहल्ले में नहीं रहना. टू-वे डॉयलॉग नहीं; बाकायदा पोस्ट लिख कर फीड एग्रीगेटर को थमाते हैं उस बारेमें. कुछ उस अन्दाज में जैसे पुराने जमाने में गंगापरसाद पूरे गांव में घूम-घूम कह रहे हों – कौलेसरा तोरे दुआरे पिसाब करन भी न जाब. यह अलग बात है कि कुछ दिन बाद गंगापरसाद और कौलेसर पांत में एक साथ बैठे तेरही की पूडी तोडते पाये जाते थे.

बन्धु, फीड एग्रीगेटर पूरी गांव की चौपाल का मजा दे रहा है बिल्कुल हाई-टेक अन्दाज में. जितने भी रागदरबारी छाप लेखन के जितने भी करेक्टर हैं, सारे मिलेंगे अपनी-अपनी पोस्ट की खरताल बजाते फीड एग्रीगेटर के पन्ने पर. जो जितना बढ़िया सनसनीखेज नौटंकी रिमिक्स कर लेता है खरताल की आवाज के साथ वह लोकप्रियता वाले पन्ने पर उतना ऊपर चलता चला जाता है!

भाव लेना हो तो एक ठो नया फीड एग्रीगेटर बना लो. एक नया फंक्शन ईजाद करो सक्रियता का. दस वैरियेबल का ताजा फंक्शन. उसे रखो गोपनीय. यानि दस वैरियेबल का वैरियेबल/कानफीडेंशियल फंक्शन. उसमें मदारी की तरह नचाते रहो ब्लॉगरों को.
सक्रियता का जंक फार्मूला
Factive = fconfidential(X1,---X10)
उक्त फार्मूला के सभी वेरियेबल गोपनीय हैं. फार्मूला भी गोपनीय है.
मैने पाया है कि जो जितना ज्यादा बुद्धिमान छाप ब्लॉगर है वो उतना ही नाच रहा है फीड एग्रीगेटर की मदारीगिरी से. वो उतना ही दिमाग लगा रहा है फीड एग्रीगेटर के वैरियेबल/कानफीडेंशियल फंक्शन के कोड को डीकोड करने में!

अरुण अरोड़ा कट लिये. बड़े गलत मौके पर कटे. जब पंगेबाजी का पीक आया तो पंगेबाज सटक लिया. शायद ठोस पंगेबाज नहीं थे वो. सेण्टीमेण्टालिटी की मिलावट थी. पर बन्धु, राजा गये राजा तैयार होता है. पंगेबाज का वैक्यूम भरने को बहुत दावेदार हैं.

ई-पण्डित* कहां हैं? कहते हैं बड़ा प्रेम-प्यार है चिठेरों में. हाईपावर की 4 सेल वाली जीप टार्च से भी नहीं दिख रहा इस समय.

बस, यह पोस्ट अगेंस्ट इनेट (नैसर्गिक) नेचर लिखी है और ज्यादा लम्बी करने पर विवादास्पद बनने की बहुत सम्भावना है. जै हिन्द!


* ई-पण्डित इसे इग्नोर कर सकते हैं आप. यह तो बस यूंही लिखा है!

17 comments:

  1. Post likhna aur usi post ko haatane ke liye e-mail, dono ek complete 'Entertainment Package' ka kaam karte hain.Ek 'achchha blooger' inhee do baaton se 'hit' hai.

    Hindi bloggers ek parivaar ki tarah rahte hain; ye baat tv ke commercial break ka kaam kartee hai.

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  2. शब्दो की धार बड़ी मारक है.

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  3. एकदम सही फ़रमाया है आपने, केवल आपके फ़ंक्शन पर आपत्ति है ।

    जिस प्रकार से आपने फ़ंक्शन डिफ़ाइन किया है उसका आशय है कि सभी वैरियेबिल इंडिपेंडेन्ट हैं । वास्तव में ब्लागजगत में ऐसा नही होता है । अब समीर अंकिल फ़ुरसतियाजी से एकदम इंडिपेंडेन्ट तो नहीं हैं । भाईचारा है, मित्रता है । अब अविनाशजी और बाकी लोग भी इंडिपेंडेन्ट नहीं है न, सम्बन्ध क्या है ये सभी जानते हैं :-) ।

    तो आपका फ़ंक्शन इस जटिल स्थिति को हेंडल नहीं कर पायेगा । इसका हल है फ़ंक्शनल (Functional) जिसके arguments फ़ंक्शन होते हैं । थोडा लम्बा हो रहा है इसलिये फ़ंक्शनल पर एक पोस्ट अलग से लिखेंगे लेकिन बडी अच्छी चीज है । एक उदाहरण देखिये ।

    एक पहिया अगर एक सतह(सपाट होना जरूरी नहीं) पर घूमता हुआ आगे बढ रहा है तो उसके केन्द्र का लोकस एक फ़ंक्शनल से डिफ़ाइन किया जा सकता है ।
    ओफ़!!! अब लिखने के बाद लग रहा है कि काहे इतनी बक बक कर दी आपकी पोस्ट पर, बाकी लोग गरियाने न लगें :-)

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  4. अच्छा लिखा है। हल्के-फुल्के ढंग से 'गंभीर लोगों'की आपने अच्छी ख़बर ली है

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  5. ज्ञानी दद्दा पा लागी.ये ससुरे मदारी हमारे शहर में भी थे कविता को बन्दरिया समझ के नचाइबे करें.हमें का पता था कि ई खेल सब जगह होवत है.हम तो सौ सौ जूते खायें तमाशा घुस के देंखें.लुगाइयों की तरह रूठना और मैके चले जाना फिर एक ही खटिया सोना.आप ने ठीक पकड़ा ये नौटंकी बाज हमारा भी दिमाग खराब कर दिये.कहते हैं तटस्थ रहनेवालों का समय हिसाब रक्खेगा.और खुद हम जात हैं कहके विदा हो लिए सोचते हैं इनके बाद दुनियां चलेगी नहीं.हम तो एक ही बात जानते हैं जंग में मरो या मारो भागो मत.
    डॉ.सुभाष भदौरिया अहमदाबाद.

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  6. दद्दा। अपनी कलम को कहां से धार करवाय रहे हो आजकल , एकदमे धारे-धार लिखे जा रहे हो!

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  7. जै हिन्‍द सर जै हिन्‍द हम तो भईया इतर्नच टिपियांगें ज्‍यादा लिखेंगे तो कान तो उमेडाई करेगा ना

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  8. डा. भदौरिया उवाच > ...कहते हैं तटस्थ रहनेवालों का समय हिसाब रक्खेगा.
    डा. साहब तटस्थत या युयुत्सु या रणछोड़ - ये सब महाभारत और कुरुक्षेत्र के शब्द हैं. ये चिरकुट हिन्दी ब्लॉगरी पर लागू नहीं होते. यहां तो गंगापरसाद और कौलेसर की चोंच लड़ाई या भड़भड़ाहट ही है. महाभारत में तो अद्वितीय संग्राम हुआ था.

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  9. बोत मज्जा आ रियै।

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  11. जी दादा हम हाजिर है आपकी महफ़िल मे(बहुत लोग आये हुये है इसलिये महफ़िल लिख डाला.गंभीरता से मत ले)अरुण अरोड़ा कट लिये. बड़े गलत मौके पर कटे. जब पंगेबाजी का पीक आया तो पंगेबाज सटक लिया. शायद ठोस पंगेबाज नहीं थे वो. सेण्टीमेण्टालिटी की मिलावट थी. पर बन्धु, राजा गये राजा तैयार होता है. पंगेबाज का वैक्यूम भरने को बहुत दावेदार हैं.
    तो आप इस गलत फ़ैमली मे ना रहे कि हम लिखना बंद कर रहे है,हम एग्रीगेटर बदल डाले है बस,आपको राजकुमार जी का एक शेर सुनाते है.
    "हम को बदल सके ये इन मे दम नही
    हम से है ये लोग इनसे हम नही"
    आपने हमारे चिट्ठे पर टिपियाया भी जल्दी मे बिना पढे था.????????
    जरा ध्यान दे हमने लिखा था"अलविदा नारद की दुनिया के दोस्तो"
    अब रही दूसरी बात
    कुछ उस अन्दाज में जैसे पुराने जमाने में गंगापरसाद पूरे गांव में घूम-घूम कह रहे हों – कौलेसरा तोरे दुआरे पिसाब करन भी न जाब. यह अलग बात है कि कुछ दिन बाद गंगापरसाद और कौलेसर पांत में एक साथ बैठे तेरही की पूडी तोडते पाये जाते थे.
    तो भाइ जी हम,हम है कह दिया तो कह दिया,हम पंगेबाज पर ही है और चिट्ठा जगत,ब्लोगवाणी तथा हिंदी ब्लोग पर भी होगे पर नारद पर नही परसो सुबह शायद ..अगर आप मिलना चाहे तो आ जाईयेगा,पर आपके जोश दिलाने पर भी हम ये मूतने वाला काम नही कर सकते ,लैफ्टोप हमारा है स्क्रीन पर आपका नारद है तो क्या हुआ...:)
    तीसरी बात
    ये भदौरिया जी आपको कभी कभी क्या होता है जी..?जरा ध्यान दे हम आपकी कविताओ के प्रेमी है,पर आपकी ऐसी भा्षा से बगल से गुजरना शुरु करदेगे,ये आप आज दूसरी बार ऐसा कर रहे है याद है ना आपको समीर जी...?उम्म्मीद है आप जैसे बुजुर्ग जरुर ध्यान देगे

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  12. पंगेबाज उवाच> .... अगर आप मिलना चाहे तो आ जाईयेगा,पर आपके जोश दिलाने पर भी हम ये &*$$ वाला काम नही कर सकते ,

    मालूम है पंगेबाज. हम आपसे वह करने को कह भी कैसे सकते हैं. रही बात जोश दिलाने की, उसकी भी क्या जरूरत है. पंगेबाज तो हमेशा जोश में ही होना चाहिये. वह तो (आपने जब नाम पंगेबाज रखा है) तो नाम का हिस्सा है.

    ये भदौरिया जी से पंगा इस पोस्ट के नाम पर मत लेना. हम बेकार में बीच में पिसेंगे. :)

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  13. ई-पण्डित* कहां हैं? कहते हैं बड़ा प्रेम-प्यार है चिठेरों में. हाईपावर की 4 सेल वाली जीप टार्च से भी नहीं दिख रहा इस समय.

    अब क्या बताएँ जी वो भी कोई दिन थे। विश्वास न हो तो अक्षरग्राम की पुरानी पोस्टें पढ़िए। साथ ही पुराने ब्लॉगों की आर्काइव्स भी।

    "* ई-पण्डित इसे इग्नोर कर सकते हैं आप. यह तो बस यूंही लिखा है!"

    जी कोई टेंशन नहीं, आप बर्बरीक की दृष्टि से लिखते हैं इसलिए आप आलोचना भी करें तो अच्छा लगता है। और वैसे भी अब शायद इग्नोर करने की तो आदत डालनी पड़ेगी।

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  14. चलो, बाकिया तो सब ठीक है. पंगेबाज कहीं नहीं गये यह जानकर बड़ी तस्ल्ली लग गई. इस हेतु आपका भी आभार और मित्र काकेश का तो है ही. :)

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  15. ॒भदौरिया

    यह भदौरिया पागल है. अगर अच्छी टिप्पणी भी करे तो मत छापो. आपका स्तर ही गिरेगा. इसे कई जगह से, जैसे की ई कविता से लात मार मार कर भगाया गया है. इसकी टिप्पणी आते ही बिना लालच के डिलिट करो. यह पागल है और समाज में रहने योग्य नहीं.

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  16. ये मेल की फ़ोटो इस्लिये छापी थी कि कही नारद और आप सब लोग यह ना कहने लगो मेल तो की नही खामखा बात बना रहे है

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--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय