Thursday, May 31, 2007

गुज्जर आन्दोलन,रुकी ट्रेनें और तेल पिराई की गन्ध

परसों रात में मेरा केन्द्रीय-कंट्रोल मुझे उठाता रहा. साहब, फलाने स्टेशन पर गुज्जरों की भीड़ तोड फोड कर रही है. साहब, फलने सैक्शन में उन्होने लेवल क्रासिंग गेट तोड दिये हैं. साहब, फलानी ग़ाड़ी अटकी हुयी है आगे भी दंगा है और पीछे के स्टेशन पर भी तोड़ फोड़ है.... मैं हूं उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में पर समस्यायें हैं राजस्थान के बान्दीकुई-भरतपुर-अलवर-गंगापुर सिटी-बयाना के आस-पास की। यहाँ से गुजरने वाली ट्रेनों का कुछ भाग में परिचालन मेरे क्षेत्र में आता है. राजस्थान में गुज्जर अन्दोलन ट्रेन रनिंग को चौपट किये है. रेल यात्रियों की सुरक्षा और उन्हें यथा सम्भव गंतव्य तक ले जाना दायित्व है जिससे मेरा केन्द्रीय-कंट्रोल और मैं जूझ रहे हैं.

पिछली शाम होते-होते तो और भी भयानक हो गयी स्थिति. कोटा-मथुरा रेल खण्ड पर अनेक स्टेशनों पर तोड़-फोड़. अनेक जगहों पर पटरी से छेड़-छाड़. दो घण्टे बैठ कर लगभग 3 दर्जन गाड़ियों के मार्ग परिवर्तन/केंसिलेशन और अनेक खण्डों पर रात में कोई यातायात न चलाने के निर्णय लिये गये. अपेक्षा थी कि आज रात सोने को मिल जायेगा. जब उपद्रव ग्रस्त क्षेत्रों से गाड़ियां चलायेंगे ही नहीं तो व्यवधान क्या होगा?

पर नींद चौपट करने को क्या उपद्रव ही होना जरूरी है? रात के पौने तीन बजे फिर नींद खुल गयी. पड़ोस में झोपड़ीनुमा मकान में कच्ची घानी का तेल पिराई का प्लांट है. उस भाई ने आज रात में ही तेल पिराई शुरू कर दी है. हवा का रुख ऐसा है कि नाक में तेल पिराई की गन्ध नें नींद खोल दी है.

जिसका प्लांट है उसे मैं जानता नहीं. पुराने तेल के चीकट कनस्तरों और हाथ ठेलों के पास खड़े उसे देखा जरूर है. गन्दी सी नाभिदर्शना बनियान और धारीदार कच्छा पहने. मुंह में नीम की दतुअन. कोई सम्पन्न व्यक्ति नहीं लगता. नींद खुलने पर उसपर खीझ हो रही है. मेरे पास और कुछ करने को नहीं है. कम्प्यूटर खोल यह लिख रहा हूं. गुज्जर आन्दोलन और तेल पिराई वाला गड्ड-मड्ड हो रहे हैं विचारों में. हमारे राज नेताओं ने इस तेल पिरई वाले को भी आरक्षण की मलाई दे दी होती तो वह कच्ची घानी का प्लाण्ट घनी आबादी के बीच बने अपने मकान में तो नहीं लगाता. कमसे कम आज की रात तो मैं अपनी नींद का बैकलाग पूरा कर पाता.

आरक्षण की मलाई लेफ्ट-राइट-सेण्टर सब ओर बांट देनी चाहिये. लोग बाबूगिरी/चपरासी/अफसरी की लाइन में लगें और रात में नींद तो भंग न करें.

4 comments:

  1. दादा ये देखिये ये तो अब कांग्रेस की आने वाले व्क्त के लिये दुरगामी सौची समझी नीती है जिसे वे बस दूर से आग लगाकर मजे ले रहे है अभी चार दिन पहले पंजाब मे अब राजस्थान (पीछॆ यही है दोनो जगह)

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  2. विरोधी दलों द्वारा ऐसे आन्दोलनों को उकसाया जाना राजनीति है या जरानीति? कूटनीति या कूटोनीति?भारी राष्ट्रीय नुकसान की किसी को चिन्ता नहीं? "चाहे मेरा पति मरे, किन्तु सौत अवश्य ही विधवा होनी चाहिए" का सोच कहाँ ले जाएगा संसार को?

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  3. Raasta rok lena, Logon ko peet dena, putale jalaana, train rok lena..Aur na jaane kya-kya..Woh bhi nikammepan ko badhaawa dene ke liye..

    Ise aandolan ka naam diya jaata hai..Aandolan ka naam dekar 'janta' kuchh bhi kar sakti hai..

    Suniye Kropaatakin-Gorki!
    Bharat mein faili hai azadi bade zor ki
    Sunta na koi fariyaad hai
    Dekhiye jise hi, wahi zor se azaad hai.

    Dinkar ji ne ye panktiyaan 1962 mein likhi thi..Hum kitna aage badhe hain, dikhai deta hai.

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  4. सब राजनीति है-अभी टीवी पर देख रहा हूँ. बड़ा दुख होता है यह सब देख कर- पूरा राजस्थान जल रहा है, पटरियाँ उखाड़ी जा रही हैं, लोग मर रहे हैं आदि!

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--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय