Monday, May 14, 2007

माया मेमसाहब की सोशल इंजीनियरिंग का जवाब नही!

अपन तो सत्तर के दशक में इंजीनियरिंग पढ़े थे. तब प्रागैतिहासिक काल की टेक्नॉलॉजी हुआ करती थी. फोर्ट्रान फोर में आखें फोड़ कर प्रोग्रामिंग करते थे और कम्प्यूटर दन्न से सिंटेक्स एरर बताते हुये एक पन्ने का प्रिंट-आउट हमारे मुंह पर फैंक देता था. अब तो नये-नये फील्ड आ गये हैं. बायोटेक्नॉलाजी में पडोस की लड़की ऐरे-गैरे कॉलेज से इंजीनियरिंग पढ़ हमारी वर्तमान सेलेरी से ज्यादा कमाने जा रही है.

पर वह सब माया मेमसाहब की सोशल इंजीनियरिंग के सामने फेल है...

छिपकली कल तक काक्रोच को खाने को लपकती थी. अब माया मेम साहब ने काक्रोच का सिर ही छिपकली पर फिट कर दिया है.

छिपकली डायनासोरों के विलुप्त हो जाने के बाद भी जीवंत है. और काक्रोच तो हार्डेण्ड एनीमेट ऑब्जेक्ट है. तरह-तरह के जल-थल-वायु-प्रदूषण के बावजूद भी जिन्दा प्राणी. आप समझ सकते हैं कि इन दोनो का फ्यूज़न कर क्या गदर सोशल इंजीनियरिंग की है माया मेम साहब ने.

सोशल इंजीनियरिंग है क्या बला?

कम्प्यूटर के जमाने में सोशल इंजीनियरिंग के मोटे तौर पर मायने है कि कोई भेदिया सीना तान के आपका मित्र/अन्दरी/जेन्युइन पोज करे और आपके सारे भेद ले कर चलता बने. माया मेमसाहब इस मायने में सोशल इंजीनियर नहीं हैं. वे ब्राह्मणों के भेद (वोट) ले कर सरकने वाली नही हैं. तय हो गया है कि दिल्ली की कुर्सी उनका लक्ष्य है. पर ब्राह्मण सोशल रिमिक्सिंग/फ्यूज़न को तैयार होंगे? शायद नहीं. इसी कारण से मैं सोशल इंजीनियरिंग का ही प्रयोग कर रहा हूं. अंतत: यह क्या निकलेगा सामाजिक परिवर्तन/सोशल रीमिक्सिंग/पोलिटिकल इंजीनियरिंग/मॉयोटिक्स (माया-पॉलिटिक्स) या कुछ और यह समय ही बतायेगा. नया शब्द समय ही गढ़ेगा.

बायो या सोशल फील्ड में इंजीनियरिंग का एक ही भय होता है. पार्ट अगर एक दूसरे के साथ एक्लेमेटाइज कर पाये तो प्रयोग फेल हो जाता है और जीव का राम नाम सत्त. अब वही देखना है क्या होता है आगे.

पर माया मेम साहब ने सोशल इंजीनियरिंग का एक फण्डा दे कर जितने भी रजनीति मे घुसे चुगद हैं, उनकी ट्यूब लाइटें जला दी हैं. आगे देखते जाइये एक से एक फेण्टाबुलस प्रयोग होंगे सोशल इंजीनियरिंग में. बस, आपमें अगर बिजनेस सेंस है तो बिना देर किये संस्था पंजीकृत करा लें संत कूड़ादास मेमोरियल इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल टेक्नॉलाजी एण्ड साइंस.

बहुत चलेगी यह संस्था!

13 comments:

  1. अच्छा है दद्दा.माया की माया ही निराली है.

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  2. सही कहे काकेश, माया की माया वाकई निराली है. :)

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  3. आगे-आगे देखिए माया क्या-क्या पढ़ाती है।
    सुनीता(शानू)

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  4. द्ददा मेरा भी शेयर डाल लेना कालेज मे,और अगर माया जी ने आरक्षण कही आर्थिक आधार पर कर दिया ( वैसे मेरे खयाल मे इस कार्य मे वो सबसे सक्षम नेता है)तो देख लेना जल्द ही वो प्रधानमंत्री आवास मे बैठ कर फ़ाईले देख रही होगी (भाई काग्रेस नेत्री से तो बहुत बहुत सही होगी)

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  5. जो भी किया हो, काम तो हो गया । अतः मैं तो उनकी कायल हो गई । बहुत समय के बाद एक टिकाऊ सरकार आ रही है । रही बात जातियों की तो सभी लोग जातिवाद को भुना रहे हैं फिर इनके प्रयोग से तो दो जातियाँ साथ साथ मिल बैठ कर काम करेंगी । आशा है अगली बार वे बाँकी बची जातियों को भी निमंत्रण दे देंगी ।
    बस एक प्रश्न मन में उठता है, उठना तो नहीं चाहिये, पर उठता है, कहीं उनके हिस्से इतने कटाक्ष उनकी जाति के कारण तो नहीं आ रहे । मैं आरोप नहीं लगा रही, केवल पूछ रही हूँ ।
    घुघूती बासूती

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  6. माया महाठगिनी इ सब जानी
    फिर इत्ते फंसेंगे कौन जानी?

    माया की महिमा अपरम्पार है। राजनीति मे पासे सही पढने के लिए किस्मत, हिम्मत, बिसात बिछने का वक्त, चोट का तरीका और पैकेजिंग बहुत महत्वपूर्ण होती है।

    माया किस्मत की बहुत धनी है, गजब की हिम्मत है, वक्त सपा का खराब था, बीजेपी पर सीडी की चोट बहुत घातक थी, दलित-ब्राह्मण पैकेजिंग शानदार थी। सभी को साथ लेकर चलने की बात महत्वपूर्ण थी। सबसे बड़ी बात, दूसरों की असफ़लता (नाकामी) माया के लिए सफ़लता की सीढी बनी। लेकिन अब माया की जिम्मेदारी बहुत बड़ी है, प्रबन्धन और प्रशासन की। देखते है...

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  7. Bhaiya hamne engineering nahi padhi hai aur jo padhi hai usko samjh kar kahoo to yahi kahunga ki jis raftaar aur samjh se chaal chal rahi hain use project karne par yahi pata chalta hai ki Maya ke jaal se bach pana mushkil hai.

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  8. ...बस एक प्रश्न मन में उठता है, उठना तो नहीं चाहिये, पर उठता है, कहीं उनके हिस्से इतने कटाक्ष उनकी जाति के कारण तो नहीं आ रहे । मैं आरोप नहीं लगा रही, केवल पूछ रही हूँ ।
    ...घुघूती बासूती

    धन्यवाद घुघूती बासूती जी. राजनाथ सिन्ह ने जो सड़ल्ली राजनीति करी इस चुनाव में, उसको तो कोई पूछ ही नहीं रहा. अच्छी भली बीजेपी का कांग्रेस बना दिया. पर मरे को कौन मारे - सो उनपर कटाक्ष को लिया नहीं. हां, भविष्य में लिखा जा सकता है.

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  9. Bahut se ati utsaahit aam aur khaas logon ne ise chunaav ke nateeje ko janta ki jeet aur gunda shaktiyon ki haar bataaya hai...Kisi bhi rajya mein satta parivartan karke 'janta' 6 maheene seena taan kar chalti hai..6 maheene baad pata chalta hai ki jise woh apni jeet samjhe baithee thi, wakaee mein uski haar saabit hui..

    Phir kya.Phir 4 saal 6 maheene aur intezaar kare apni agli 'jeet' ke liye...Jay aur parajay ka ye 'rolling plan' anwarat chalta rahega..

    Rahee baat 'samajik kranti' ki (jee haan.bahut se log ise samajik kranti bata rahe hain)..To main ye kahuunga ki thoda intezaar keejiye..Kuchh waqt jaane deejiye..Satish Chandra Mishra hain hee..Kab brahmanon ke khilaaf morchabandi ka aarop laga kar kab asantusht ho jaayenge, iska andaaza laga paana mushkil hai...Aur jis din aisa hua, samajik kranti ki billi baasi roti khakar so jaayegi.

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  10. Iska andaaza laga paana mushkil nahin hai....

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  11. यही तो माया जाल है।

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  12. दद्दा, माया का वाकई जवाब नहीं. हालांकि उन्‍होंने जो किया, उसके अलावा कोई विकल्‍प भी नहीं था. मायावती ने बेहतरीन प्रयोग जरूर किया है, मगर यह याद रखना चाहिए कि इसका उद़देश्‍य जातिवाद दूर करना नहीं. जातियों को एक करना भी नहीं. सत्‍ता हासिल कर ताकत हथियाकर सभी वर्गों की भागीदारी का प्रदर्शन मात्र है.
    सोशल इंजीनियरिंग शब्‍द का दुरुपयोग हो रहा है. अनुरोध है कि कृपया इसे सही तरीके से प्रयोग किया जाय. यह सोशल इंजीनियरिंग केवल परिभाषा के तहत है. इसका स्‍वभाव वास्‍तविक नहीं है.
    सोशल इंजीनियरिंग के बारे में अलग से कुछ लिखता हूं. फिर बताइयेगा.

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  13. दद्दा, माया का वाकई जवाब नहीं. हालांकि उन्‍होंने जो किया, उसके अलावा कोई विकल्‍प भी नहीं था. मायावती ने बेहतरीन प्रयोग जरूर किया है, मगर यह याद रखना चाहिए कि इसका उद़देश्‍य जातिवाद दूर करना नहीं. जातियों को एक करना भी नहीं. सत्‍ता हासिल कर ताकत हथियाकर सभी वर्गों की भागीदारी का प्रदर्शन मात्र है.
    सोशल इंजीनियरिंग शब्‍द का दुरुपयोग हो रहा है. अनुरोध है कि कृपया इसे सही तरीके से प्रयोग किया जाय. यह सोशल इंजीनियरिंग केवल परिभाषा के तहत है. इसका स्‍वभाव वास्‍तविक नहीं है.
    सोशल इंजीनियरिंग के बारे में अलग से कुछ लिखता हूं. फिर बताइयेगा.

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--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय