यह रचना सिंह जी द्वारा चलाये जा रहे हिन्दी-अंग्रेजी सामंजस्य धर्म-युद्ध के पक्ष में अंग्रेजी में शरारतन लिखा हेडिंग नहीं है. अंग्रेजी के बारेमें इतनी मारपीट चल रही है कि मैने कल फुरसतिया सुकुल की सलाह पर अरविन्द कुमार का सहज समांतर कोश भी खरीद लिया है. यह अलग बात है कि समांतर कोश में अनेक अंग्रेजी के शब्द देवनागरी लिपि में अरविन्द कुमार जी ने भी डाल रखे हैं! पर, मैं किसी प्रकार से उकसावे के लिये अंग्रेजी नहीं ठेल सकता - क्यों फुरसतिया जी?! :)
खैर, यह हेडिंग गूगल सर्च के दौरान पायी गयी गूगल की चेतावनी है जो वह कपटपूर्ण सॉफ्टवेयर प्रयोग करने वाली वेब साइट्स के बारे में जारी करता है. मुझे नहीं मालूम कि आपमें से कितने इसे देख चुके हैं. मैने इसे कल देखा तो सोचा आप सब को भी जबरन बता दिया जाये.
गूगल सर्च का परिणाम:
The Tribune, Chandigarh, India - Opinions
This site may harm your computer.
Organisations, like the Indian Railways, that touch the great unwashed are more .... has the potential of earning carbon credits worth more than Rs 10000 in ...
www.tribuneindia.com/2006/20060920/edit.htm
सही है। समान्तर कोश खरीदने की बधाई! रचनासिंह की आपत्ति हिंदी-अंग्रेजी से नहीं बल्कि मसिजीवी से है। आप पोस्ट ठेलने के लिये गूगल की शरण में -आश्चर्य! उल्टी गंगा बह रही है। :)
ReplyDeleteयह सुविधा गूगल पर लगभग साल से है।
ReplyDeleteअनूप शुक्ल> ... आप पोस्ट ठेलने के लिये गूगल की शरण में -आश्चर्य! उल्टी गंगा बह रही है। :)
ReplyDeleteअरे कहां सुकुल जी, जब "ज्ञानदत्तों" जैसा उपेक्षित सम्बोधन का मैडल मिल जाये तो ऐसे चुटुर-पुटुर विषय ले कर ही पोस्ट बनायेंगे न!
सही है, पोस्ट तो किसी भी बात पर लिखी जा सकती है। यही तो ब्लॉगिंग में आजादी है।
ReplyDeleteगूगल के अनुसार ट्रिब्यून की साइट हार्मफुल काहे है, आम तौर पर ये संदेश क्रैकिंग तथा पाइरेसी वाली साइटों के साथ आता है।
यह सुविधा गूगल में काफ़ी दिनों से है। यदि किसी स्थल पर उसे कपटी तन्त्रांश मिलता है तो यह सन्देश आता है।
ReplyDeleteचूँकि आपने जबरन इस ओर ध्यान आकर्षित किया है - शब्दानुवाद के बारे में - अगर आपको हेडिंग, सर्च, पोस्ट, रिस्क, प्रॉजेक्ट, डिरेल, ब्राइडग्रूम जैसे शब्दों को भी हिन्दी समझ में नहीं रही है तो यह शुद्ध आलस्य ही है, और यदि आप यह मान के चल रहे हैं कि हिन्दी के सभी पाठकों को इन शब्दों के अर्थ मालूम होंगे तो वह भी एक काल्पनिक पूर्वानुमान है! इस प्रकार के विषयों पर अंग्रेज़ी में - शुद्ध अंग्रेज़ी में - कम से कम सौ लेख मिल जाएँगे। फिर मैं अंग्रेज़ी में ही क्यों न लेख पढ़ लें? यह मैं सिर्फ़ इसलिए लिख रहा हूँ क्योंकि आपने इस ओर ध्यान आकर्षित किया है। यह बात समझना ज़रूरी है कि जाल पर आपका लेख ऐसे लोगों द्वारा भी पढ़ा जाएगा जिन्हें शायद आप असली दुनिया में मिलने की भी न सोचें। हाँ, यदि आप उन लोगों को लक्ष्यित नहीं कर रहे हैं तो बात अलग है। सारांश यह कि यदि कोई अरबी का चिट्ठा पढ़ रहा हो और उसे बीचोबीच रूसी के शब्द मिलें - जब कि चर्चा रूस से बिल्कुल इतर है - तो सम्भवतः प्रयोक्ता का अनुभव उतना रसीला नहीं रहेगा जितना हो सकता था।
ज्ञान दद्दा कहें या ज्ञान गुरु, अगर आपको पोस्ट लेखन के लिए विषय तलाशने के लिए ग़ूगल देव की शरण में जाना पड़े इ तो गलत बात है ना भई!!
ReplyDeleteहां, यह समझ में नही आता कि गूगल कई बार जानकारियों वाली साईट्स या अखबारों की साईट्स पर भी यह टैग लाईन क्यों लगा देता है!!
सरजी समांतर कोश की हर एंट्री अपने में विषय है। काहे गूगल -ऊगल पर जाते हैं। विषय वासना के शमनार्थ-समांतर कोश का रोज एक पन्ना देखें, विषय ही विषय, लिख तो लें, टाइप सिचुएशन हो जायेगी।
ReplyDeleteमैं ये तो नहीं कहता कि गूगल गलत नहीं हो सकता, परंतु बहुत सी साइटें कम्प्रोमाइज्ड होती हैं. यानी उन सर्वरों पर क्रैकर्स अपने हथियार गुपचुप डाल कर चलाते रहते हैं और मालिक को पता ही नहीं चलता.
ReplyDeleteएक दफा मैंने किसी सुरक्षित साइट पर चल रहे चिट्ठे पर कोई कमेंट डालने की कोशिश की तो वहां से जवाब आया कि आपका सर्वर (बीएसएनएल!)संक्रमित है और इस वजह से आपकी टिप्पणी नहीं ली जा सकती!
@ आलोक - आपके कहे में सशक्त तर्क है. आपने सरल हिंदी के शब्दों को भी न जानने को मेरा आलस्य बताया है - मैं शायद उसे अभ्यास की कमी मानता हूं. भाषा के विषय में आलसी तो मैं निश्चय ही नहीं हूं. पर भाषा की अनिवार्यता मेरे लिये उपयुक्त सम्प्रेषण कराने की है. अगर वह पूरी नहीं होती तो मेरा कहना, लिखना व्यर्थ है. और शायद इतना व्यर्थ होता तो आप टिप्पणी करने की जहमत भी न करते!
ReplyDeleteभाषागत अभ्यास के लिये ही मैं समांतर कोश की बात कर रहा हूं. ऐसा नहीं है कि मैं अपनी भाषा को लेकर लापरवाह या दम्भी हूं. लेकिन जब लापरवाह या दम्भी होने का आरोप लोग लगाते हैं तो क्षोभ होता है.
खैर, आप बतौर व्यक्ति मुझे बहुत जमे. हम लोग - मेरी भाषागत कमजोरियों के बावजूद मित्र हो सकते हैं?
मेरा लापरवाही की ओर ही इशारा था, क्योंकि आप पहले हज़ार लेखकों में से है अतः आपके एक ज़िम्मेदारी है। यदि आप इसे अपनी ज़िम्मेदारी न मानें तो भी अन्य लोग आपका अनुसरण करेंगे ही। दम्भी, लोग मान सकते हैं, खास तौर पर वे लोग जो आपका लेख पढ़ रहे हों पर उन्हें उन शब्दों का अर्थ न मालूम हो - जिस प्रकार रूसी न जानने वाला रूसी से भरी अरबी पढ़ने पर शायद माने, मैं नहीं मानता, यह आदत की बात है।
ReplyDeleteमेरे लिए - कामकाज और सभी जगह अंग्रेज़ी का इस्तेमाल होने की वजह से वापस हिन्दी में बातचीत करना आसान नहीं था, पहले तो बहुत मुश्किल होती थी लेकिन अभ्यास के साथ ठीक हो गया।
जब अच्छी व सरल अरबी का प्रयास किए बगैर रूसी को अरबी मानना शुरू कर दिया जाए तो मुझे दुःख होगा। इसीलिए लिखा। खुशी है कि ऐसा नहीं है।
मैं नहीं मानता कि यहाँ कोई स्थायी भाषागत कमज़ोरी है, अतः आपका मैत्री का 'बावजूद' वाला प्रश्न अनावश्यक है।
सविनय,
आलोक
:)मजेदार. समानन्तर कोष तो हम इंडी ब्लॉगीज में पा चुके हैं बस, भारत में है. अगली यात्रा में कलेक्ट की जायेगी.
ReplyDeletelink check kartae kartae apane ko yahan bhi paya kya bat hae lagta
ReplyDeletekabhie mera english blog bhi dekhtae . http://myownspacemyfreedom.blogspot.com/
but most of were there to boost u the morale thank you
for me english is mind and hindi is heart