मैं, याद नहीं पड़ता कि कभी अभय तिवारी से सहमत हुआ होऊं. पर अभय की पोस्ट - जहालत के अन्धेरे से काफी सहमति है. कुछ दिन पहले आस्ट्रेलिया में भारत के एक डॉक्टर के गिरफ्तार किये जाने पर देश के एक बड़े नेता की नींद असहज हो गयी थी. वह डॉक्टर शायद निरीह है या शायद किसी आतंकवादी से जुड़ा भी हो. अभी उसपर अंतिम शब्द नहीं लिखे हैं मीडिया/अदालत ने. पर यहां तो एक लेखिका, स्त्री और भारत की मेहमान शरणार्थी (तसलीमा नसरीन) का मामला है, जिनके साथ बदसलूकी हुई है. इस विषय पर किस-किस की नींद असहज हुई है?
ऐसा काम किसी हिन्दू फण्डामेण्टलिस्ट संगठन ने किया होता तो कितने लोग विलाप कर रहे होते. कितने प्रदर्शन हो रहे होते. कहां हैं वे सारे विलापक और प्रदर्शन करने वाले? और कहीं यह गुजरात में होता तो कितना मजा आता कितने सारे लोगों को!
(नोट: 1. मैने तसलीमा नसरीन को पढ़ा नहीं है. और पढ़ने की उदग्र इच्छा भी नहीं है. मेरी "लज्जा" की प्रति भी कोरी है और कहीं खो भी गयी हो तो पता नहीं.
2. मैं अभय के इस कथन से सहमत नहीं हूं - "....बाबा मार्क्स की उस बात का महत्व बार बार समझ आता है कि साम्यवाद सबसे पहले सबसे विकसित समाज में ही आएगा...")
चलते-चलते - एक बिल्कुल ही दूसरे विषय पर कह रहा हूं. कल टाइम्स ऑफ इण्डिया रविवासरीय में गुरुचरण दास ने अपने पाक्षिक कॉलम में लिखा है कि स्कूल खोलने के लिये केवल 11 लाइसेंस चाहिये होते हैं और सभी लाइसेंस भ्रष्टाचार के पैकेज में बंधे आते हैं. उद्योग के क्षेत्र में सुधार हुये हैं पर शिक्षा का क्षेत्र अछूता है. अभी अनुगूंज - 22 में कई लोग भारत को अमेरिका बनायेंगे. क्या वह इसी लचर शिक्षा व्यवस्था की बुनियाद पर होगा?
खैर, मैने लज्जा पढ़ी है, कुछ कहूँगा नहीं.
ReplyDeleteआपकी यह पोस्ट मुन्नी साईज में ठीक नही टिप्पणी करने के लिये, जरा विस्तार माँगती है, वरना फंसने में आ जायेगा. आप भी जानते हो इस बात को.
अभय भाई की इस पोस्ट पर तो हम भी सहमत हो गये मगर हम उनकी कई और पर भी सहमत हुये हैं. वो परिपक्व लेखन देते है और हम कायल है उनके अधिकतर . :) लेखन के.
अच्छा, अब अपने विचार को जरा विस्तार दे दें तो हम टिपियाने की इच्छा पूर्ण करें.
यह स्टार पठन चयन में आने के कैसे लिखना पड़ता ऐ, जरा प्रकाश डाले तो हम भी लिखें. इच्छा है एकाध बार यहाँ भी दिखें. :)
ReplyDeleteसत्य वचन महाराज
ReplyDelete@ उड़न तश्तरी - तसलीमा जी को मैं सलमान रुश्दी की तरह का मानता हूं - जिनका पाठक वर्ग उनकी विवादप्रियता का मुरीद होता है. अत: उस लेखन को पढ़ने की विशेष चाह नहीं है. पर समाज में विभिन्न वर्गों को लेकर जो असमान प्रतिक्रिया होती है - वह इस मुन्नी पोस्ट का विषय है.
ReplyDeleteआप तो मुन्नी पोस्ट पर टिपेरने से कतरा रहे हैं - मै तो आलोक (9,2,11) छाप माइक्रो पोस्ट लिखने की सोच रहा था.
स्टार लेखन चयन को मारें गोली. आप तो हमारे ध्रुव तारे हैं - परमानेण्ट स्टार!
आपकी साफगोई पसन्द आयी. विवाद से बचने के लिए बहुत से लोग अब ऐसा लिखना छोड़ चुके है, क्या पता कब साम्प्रदायिक और स्त्री विरोधी होने का तोहमतनामा थमा दिया जाये.
ReplyDeleteअच्छा लिखा.
कैप्सूल रूपी पोस्ट में विस्फोटक विचार हैं. लेकिन सेकुलरों का सेकुलरिज्म अपनी परिभाषा से चलता है. अगर गुजरात में ऐसा होता तो लाईन चल पड़ती भगवा ब्रिगेड, भारतीय तालिबनी आदि. क्योंकि यह एक मुसलमान संगठन के मुसलमान प्रतिनिधियों ने किया है इसलिए बात ज्यादा नहीं बढ़ानी है. मामला बिगड़ सकता है.
ReplyDeleteआपकी साफ़गोई क़ाबिलेतारीफ़ है। समस्या यह है कि 'धर्मनिरपेक्षता' के तथाकथित पैरोकारों से ज़्यादा 'सापेक्ष' शायद ही कोई हो। ये लोग एक पक्ष के तिल को भी ताड़ कर देते हैं, लेकिन दूसरे के पहाड़ को भी राई समझते हैं। किमधिकम्।
ReplyDeleteमार्क्स को ‘बाबा’ मान लेना भी बदलाव का परिचायक है....
ReplyDeleteमैं आप से अक्सर सहमत हो जाता हूँ.. कभी कभी असहमत.. आप मेरे लिखे से सहमत हैं इसके लिए आप का शुक्रिया.. और समीर भाई का भी..
ReplyDeleteपर टिप्पीकारों की तरह मुझे भी आपकी साफगोई पसन्द आई, सच है यहाँ अगर कोई हिन्दू संगठनों ने तस्लीमाजी पर हमला किया होता तो कई धरने प्रदर्शन हो चुके होते और चिठ्ठा जगत में भी विवाद के खूब बिट्स लिखे जा चुके होते।
ReplyDeleteयही पोस्ट किसी बैंगानी ब्रदर्स ने लिखी होती तो यकीनन फसाद हो चुका होता।
nahar.wordpress.com
सही!!!
ReplyDeleteसंजय तिवारी जी की टिप्पणी से सहमत!!
ज्ञान दद्दा, गुरु को तो नई बताए स्टार सलेक्शन मे आने का गुर, शिष्य को तो बता दें!!
आपका कहना सही है।
ReplyDeleteयह हमारे देश की ही रीत है कि सब कुछ हो सकता है? केवल हिन्दु के नाम पर.....
वैसे आपने अपने एक लेख में मेरे एक लेख का लिंक दिया है। वह मुझे खूब पाठक दे रहा है।
आपसे निवेदन है कि ऐसे ही मेरा लिंक दिये रखा करें।
धन्यवाद
अच्छा है। शिक्षा पर एक अनुगूंज हुई थी। देखिये अनुगूंज वाला लिंक!
ReplyDeleteअनुरोध है कि लज्जा जरूर पढ़ें.
ReplyDeleteपर टिप्पीकारों की तरह मुझे भी आपकी साफगोई पसन्द आई, सच है यहाँ अगर कोई हिन्दू संगठनों ने तस्लीमाजी पर हमला किया होता तो कई धरने प्रदर्शन हो चुके होते और चिठ्ठा जगत में भी विवाद के खूब बिट्स लिखे जा चुके होते।
ReplyDeleteयही पोस्ट किसी बैंगानी ब्रदर्स ने लिखी होती तो यकीनन फसाद हो चुका होता।
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