Thursday, August 2, 2007

ब्लॉग सेग्रीगेटर – पेरेटो सिद्धांत लागू करने का जंतर चाहिये


पेरेटो 80/20 का सिद्धांत सांख्यिकीय सत्य है. हमारे 20% यत्न हमारे 80% सफलता के जन्मदाता हैं. वह 20% ही है जो महत्वपूर्ण है. उसपर ध्यान दिया जाना चाहिये. उसी प्रकार इस सिद्धांत के आधार पर यह कहा जा सकता है कि समग्र ब्लॉग-पोस्ट्स में से हमारे काम की सामग्री 20% पोस्टों में है. यह सामग्री अलग-अलग व्यक्ति के लिये अलग-अलग हो सकती है. पर इस सामग्री को किस प्रकार से कम से कम प्रयत्न से ढूंढ़ा जा सकता है? इस का जंतर चाहिये.

ब्लॉग लेखन में क्या लिखना चाहिये कि उसे अधिकाधिक लोग पढ़ें यह आत्म विश्लेषण और टिप्पणियों/स्टैटकाउण्टर के आंकड़ों के ऊपर ध्यान देने से ज्ञात हो सकता है. उसके आधार पर हम अपने लेखन को अपने टार्गेट(या अधिकाधिक) पाठकों के 20% महत्वपूर्ण पठनीय अंश योग्य बनाने का सांचा दे सकते हैं. पर पूरे ब्लॉग लेखन में अपने काम का 20% छांटना कैसे सम्भव हो, यह अभी तक सुपुष्ट स्ट्रेटेजीबद्ध नहीं हो पाया है. समीर लाल जी की तरह समग्र हिन्दी ब्लॉगस्फीयर को पढ़ पाना सम्भव नहीं. वे भी अगर समग्र पढ़ते हैं तो किसी नीति के तहद ही करते हैं. उनका हिन्दी ब्लॉग जगत में लगाव एक प्रकार का अनूठा है. उनकी अभीप्सा का सफल अनुकरण करना कठिन है.

गूगल रीडर के प्रयोग से समस्या का आंशिक समाधान हो जाता है. पर रोज 4-5 नये ब्लॉग/फीड हिन्दी या अंग्रेजी में और जुड़ते हैं; जिनमें काम की सामग्री मिलती है. असल में लेखन का विस्फोट इतना है कि समेटना कठिन लगता है. जरूरत एक इण्टेलिजेण्ट ब्लॉग सेग्रीगेटर की है – ब्लॉग एग्रीगेटर की उतनी नहीं. चिठ्ठाचर्चा इस फंक्शन को नहीं कर पाती. उसमें एक व्यक्ति, अपनी च्वाइस के अनुसार, बहुधा हबड़-धबड़ में, बहुत से नाम घुसेड़ने के चक्कर में कई बार न चाहते हुये भी गुड़ कम गोबर ज्यादा कर देता है. चिठ्ठाचर्चा अपने वर्तमान स्वरूप में 20% सामग्री के चयन का तरीका नहीं बन सकती. दूसरे वह दिन में एक बार होती है - तब तक तो बहुत पठनीय सामग्री की बौछार हो चुकी होती है.

ब्लॉग सेग्रीगेटर तो एक टीमवर्क होगा. मेरे विचार से उसमें ब्लॉग एग्रीगेटर की तकनीक और ब्लॉग सेग्रीगेटर्स की टीम अगर सिनर्जी से काम करे तो बड़ी अद्भुत चीज बन सकती है. उससे जो ब्लॉग सामग्री की झांकी का प्रस्तुतिकरण होगा वह प्रत्येक पाठक को उसकी रुचि का 20% महत्वपूर्ण तत्व चुनने में सहायक होगा. खैर, मैं तो क्लीन स्लेट से सोच रहा हूं. जिन लोगों को तकनीक और लेखन दोनों की पर्याप्त जानकारी है; उन्हें आगे आकर त्वरित सोच और कार्रवाई करनी चाहिये.

मैं हिन्दी ब्लॉग जगत के टीम-वर्क की ताकत और वर्तमान की लिमिटेशन भी देख रहा हूं. ब्लॉगवाणी अगर एक जवान का क्रियेशन है तो वह जुनून अनुकरणीय है. टीम छोटी, डेडीकेटेड और कमिटेड होनी ही चाहिये.

हिन्दी ब्लॉग जगत में लोगों ने भूत काल में बड़े और महत्वपूर्ण कार्य किये हैं – क्या उन्हे मेरे कहे में कुछ सारतत्व लगता है? या फिर वह अनर्गल प्रलाप लगता है?

13 comments:

  1. ब्लागवाणी में हम इस तरह का कुछ जोड़ने जारहे हैं. दरअसल पसंद का चुनाव हमने इसी बात को ध्यान में रखकर किया था. पर हमारे पाठकों ने इस पर ध्यान ही नहीं दिया. आप देखेंगे कि पसंद में जो ब्लाग आये हैं वो क्वालिटी पर एकदम खरे उतरते हैं. यह समस्त पाठको की टीम का काम ही है.

    हां ब्लागवाणी जवानों का क्रियेशन ही है. अभी तो हम अपने आपको एकदम जवान अनुभव कर रहा हैं क्योंकि कल हमारा सर्वर बैक अप हार्ड डिस्क समेत उड़ गया जिसमें हमारे पिछले पांच सालों का सारा काम था. सारी अव्यावसायिक एवं व्यावसायिक वेबासाईट ढेर सारे सोर्स कोड, जो अब दुबारा लिखने पढ़ेंगे.शुक्र है कि ब्लागवाणी बच गई क्योंकि ये asp.net पर थी. जिस आदमी के पास इतना सारा काम करने को हो क्या वह जवान नहीं कहलायेगा?

    ReplyDelete
  2. सत्य वचन महाराज।
    अभी 800-900 चिट्ठों में यह समस्या आ रही है, जरा सोचिये दस साल बाद पांच-दस लाख चिठ्ठे होंगे तो क्या होगा।
    अभी कैलिफोर्निया जर्नल आफ टेक्नोलोजी में ब्लागिंग पर एक लेख छपा है। उसमें बताया गया है कि वैज्ञानिक एक खास तरह की तकनीक के विकास पर काम कर रहे हैं। इसके तहत रोज एक वर्चुएल कैप्सूल ब्लाग एग्रीगेटर पर एवेलेबल होगा। इसे डाऊनलोड करके गटक लो, सारे चिट्ठे एकदम से दिमाग में सैट हो जायेंगे। इसमें चुनाव की सुविधा रहेगी। आप चुने हुए चिट्ठों के कैप्सूल को ही डाउनलोड कर सकते हैं। कैप्सूल तरह तरह के, कविताओँ का कैप्सूल, व्यंग्य का कैप्सूल, मिला-जुला कैप्सूल। कैप्सूल ही कैप्सूल। बस आफत यह होगी कि कैप्सूल तो अंदर हो लेगा, पर चिट्ठे पर कमेंट करने के लिए चिट्ठे पर जाना होगा। मैंने एक प्रोग्राम विकसित कर लिया है, जिसमें एक साथ आठ सौ चिट्ठों पर साधुवाद, वाह वाह, क्या ही सुंदर रचना बन पड़ी है, पुन पुन प्रस्तुत करें, इरशाद टाइप कमेंट ठेले जा सकते हैं। पर अभी प्रयोग में एक समस्या हो गयी। एक चिट्ठे पर एक कवि को श्रद्धांजलि दी गयी थी, उस पर इस प्रोग्राम ने लिख दिया-वाह वाह क्या सुंदर रचना बन पड़ी है,पुन पुन लिखें। कवि के घर वाले नाराज हो गये कि एक बार मर गये कवि को दोबारा जिंदा करें क्या ,दोबारा श्रद्धांजलि लिखने के लिए। कई श्रोता बोले, ये रिस्क नहीं ली जा सकती, एक बार जिंदा हो गया, तो दो-चार बोरी भर कविताएं सुनाकर ही मरेग। कुछेक इस टाइप की समस्या निपट जायें, तो इस प्रोग्राम को बिक्री के लिए रखूंगा।

    ReplyDelete
  3. विचार उत्तम है। वैसे सेग्रीगेटर बिना पाठकों के सहयोग के नहीं बन पायेगा। शायद सबसे ज्यादा पढ़े गये ब्लागों का एक संग्रह किया जा सके। या फ़िर कोई वीर-बालक इस काम को पूरी श्रद्दा से करे।केवल इसी को करे। :)

    ReplyDelete
  4. मैथिली जी के दुबारा जवान होने पर बधाई तो नही दे सकता,पर प्रणाम जरूर करना चाहूगा इस हिम्मत को ,अपने उपर आई मुसीबत झेलने के इस अंदाज को ,जो बहुत कम लोगो मे होती है..

    ReplyDelete
  5. आपको पढ़ा. अपनी प्रशंसा सुनी, अच्छा लगा. आपके विचार पढ़े, अच्छा लगा. मैथली जी के जवान किस्से सुने, अच्छा लगा. आलोक जी का विश्लेष्ण पढ़ा, अच्छा लगा. मैथली जी का ASP.Net के प्रति लगाव देखा, जो मेरा फिल्ड है प्रोफेशनली, और भी अच्छा लगा.

    सब अच्छा लगा. सेग्रीगेटर का ख्याल तो यथार्थ होना ही है..सब कदम उसी दिशा में उठ रहे हैं.

    ऐसा नहीं है कि मेरे पास २४ से ज्यादा घंटे हैं या मैं बेरोजगार हूं इसलिये टिपियाता रहने की सिवा और कोई काम नहीं. बस एक नजरिया है बैलेन्सिंग का.

    गाँधी जी के पास भी वो ही २४ घंटॆ थे जो आम नागरिक के पास थे. :) वो ही निक्सन के साथ था और हिटलर के साथ भी. वाह, क्या खूब क्म्पेयर किया गाँधी जी के साथ. हा हा...

    मगर सच जानिये सब कुछ मेनेजेबल है अगर इच्छा है. बात आगे बढ़ेगी..हम बट बट कर बराबरी से सिद्ध करेंगे कि हम तुम्हें चाहते हैं. मगर फिर भी, एक सेग्रीगेटर की जरुरत जरुर है.हम इस २४ घंटों मे महसूस कर रहे हैं. :)

    ReplyDelete
  6. बात तो सही कही जी आपने पर अभी तो हम जोड़ने (एग्रीगेट) की जुगत में थे और आप तोड़ने (सैग्रीगेट) की जुगत भिड़ा रहे है. :-)

    ReplyDelete
  7. सर्वप्रथम, आपका लेखन अच्छा लगा, काफ़ी समय से पढ़ रहा हूँ।

    यह विभाजक दो चीज़ों पर निर्भर हो सकता है - प्रविष्टि के लेखक के आधार पर और प्रविष्टि की सामग्री में मौजूद कुछ खास शब्दों पर। इसी तर्ज़ पर बनाया जा सकता है।

    ReplyDelete
  8. 80/20 का सिद्धांत बहुत महत्वपूर्ण है. इसे चिट्ठाजगत से जोड कर आपने हम सब को जो नई समझ दी है उस के लिये आभार -- शास्त्री जे सी फिलिप

    हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
    http://www.Sarathi.info

    ReplyDelete
  9. दूसरे, यदि आपको किसी का लेख पसन्द आया, तो उसका सन्दर्भ अपने लेख में दें। कई लोग आपके लिख पढ़ते हैं क्योंकि उन्हें आपका लेखन पसन्द आता है। तो आपके द्वारा सिफ़ारिश किए गए लेखों को भी सम्भवतः वे पसन्द करेंगे। यही बात तब लागू होती है जब आप अपने पसन्द के लेखक के लेख पढ़ रहे हों।
    संकलक के जरिए चिट्ठों को पढ़ना एक तरह से अखबार बाँचने की तरह है, पन्ना दर पन्ना। और सन्दर्भों के जरिए लेख पढ़ना, दोस्तों से गपशप करने के समान है। दोनो के इस्तेमाल करने की ज़रूरत है। इसीलिए, बातों ही बातों में, आपको जो लेख पसन्द आएँ, उनके सन्दर्भ देना सबके हित में है।

    ReplyDelete
  10. बिना सभी के सहयोग के इस पर काम नही हो सकता। मेरे विचार से इस मुद्दे को स्टेप बाइ स्टेप देखना चाहिए:

    पहले स्टेप मे, सभी चिट्ठाकार, अपने अपने पसंदीदा ब्लॉग पोस्ट (ध्यान रखिए, ब्लॉग पोस्ट बोल रहा हूँ, ब्लॉग नही) की लिस्ट बनाए, ये बहुत आसान है, आप http://del.icio.us/ का सहारा ले सकते है। सभी लोग अलग अलग विषय पर एक यूनिक टैग का इस्तेमाल करें। इस तरह से आप विभिन्न विषयों के कई लोगो के टैग किए हुए लेख देख सकेंगे।

    उसके बाद जिस लेख को सबसे ज्यादा लोगों ने पसन्द किया, उसको अपने ब्लॉग के साइड बार मे चिपकाएं, या जहाँ चाहे ले जाएं।

    इससे कम से कम लोगों के लेखन मे गुणवत्ता आएगी और पाठक को कुछ अच्छा पढने को मिलेगा।

    ReplyDelete
  11. कभी कभी केस विचित्र हो जाता है.

    जैसे कि पोस्ट से ज्यादा दिलचस्प और काम की हो जाती हैं टिप्पणियाँ (आलोक पुराणिक जी की टिप्पणी के संदर्भ में - उन्हें ऐसी कायापलट खोज के लिए साधुवाद!).

    ReplyDelete
  12. सब धान बाईस पसेरी न हों इसलिए सेग्रीगेटर की निहायत ज़रूरत बनती है . आपने सही समस्या की ओर इशारा किया है . आज नहीं तो कल ऐसा करना ही होगा ताकि गुड़ को गोबर के साथ न लीपा जाए और सार-सार को फूस-फल्लर से छान-फटक कर अलग किया जा सके . पर यह है बेहद समझदारी और चौकन्नेपन का काम .

    'सिनर्ज़ी' आज भी प्रबंधन का बीज शब्द -- की वर्ड -- है . इसके बिना उत्कृष्टता और उपलब्धि असंभव है .

    सकारात्मक चिंतन के ऐसे सूत्र और जीवन को बेहतर बनाने वाली अंतर्दृष्टि से भरी सूक्तियों की तलाश में ही तो आता हूं आपके विचारों की छत्र-छाया में और हमेशा झोली में कुछ न कुछ डाल कर ही लौटता हूं . आभार!

    ReplyDelete
  13. बिना सभी के सहयोग के इस पर काम नही हो सकता। मेरे विचार से इस मुद्दे को स्टेप बाइ स्टेप देखना चाहिए:

    पहले स्टेप मे, सभी चिट्ठाकार, अपने अपने पसंदीदा ब्लॉग पोस्ट (ध्यान रखिए, ब्लॉग पोस्ट बोल रहा हूँ, ब्लॉग नही) की लिस्ट बनाए, ये बहुत आसान है, आप http://del.icio.us/ का सहारा ले सकते है। सभी लोग अलग अलग विषय पर एक यूनिक टैग का इस्तेमाल करें। इस तरह से आप विभिन्न विषयों के कई लोगो के टैग किए हुए लेख देख सकेंगे।

    उसके बाद जिस लेख को सबसे ज्यादा लोगों ने पसन्द किया, उसको अपने ब्लॉग के साइड बार मे चिपकाएं, या जहाँ चाहे ले जाएं।

    इससे कम से कम लोगों के लेखन मे गुणवत्ता आएगी और पाठक को कुछ अच्छा पढने को मिलेगा।

    ReplyDelete

आपको टिप्पणी करने के लिये अग्रिम धन्यवाद|

हिन्दी या अंग्रेजी में टिप्पणियों का स्वागत है|
--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय