Tuesday, August 21, 2007

लोग मनमोहन सिंहजी के पक्ष में क्यों नहीं बोलते?


हमारे प्रधानमंत्री देश के गौरव हैं. जैसे कलाम साहब के प्रति मन में इज्जत है, वैसे ही मनमोहन सिंह जी के प्रति भी है. जॉर्ज जी कह रहे हैं कि प्रधान मंत्री किसी और देश में होते तो उनका वध कर दिया जाता. जॉर्ज जी के प्रति भी मन में आदर है, पर वे मेवरिक राजनेता हैं और उनसे हमेशा सहमत नहीं हुआ जाता. मनमोहन जी स्वयम कह रहे हैं कि कुछ लोगों ने उनके लिये पंसेरी लुढ़काई है (अवधी में पंसेरी लुढ़काना का अर्थ मरने की इच्छा करना है) और अनुष्ठान कराया है. मनमोहन सिन्ह जी जैसे के लिये कोई यह कर सकता है ठीक नहीं लगता. शायद उनकी सूचना सही न हो. पर शिखर पर बैठा व्यक्ति एकाकी होता है और अगर वह सूक्ष्म सम्वेदना का व्यक्ति हुआ तो उसके कष्ट का अन्दाजा बहुधा दूसरे नहीं लगा सकते. यह लोगों का कर्तव्य है कि सरकार के प्रति चाहे जो सोचें, मनमोहन सिन्ह जी के साथ व्यक्तिगत सॉलिडारिटी प्रकट करें.

ऐसा नहीं है कि मनमोहन सिन्ह जी की आलोचना पहली बार हो रही हो. बतौर वित्तमंत्री जब नरसिम्हाराव सरकार में उन्होने बजट पेश किये थे तो यह शोर मचा था कि वे देश को चौपट कर देंगे. पर अब देखिये कि अगर वे उस समय देश को नयी आर्थिक दिशा न देते तो शायद देश चौपट होता. सम्भव है कि इस समय नाभिकीय ऊर्जा के विषय में जो कहा जा रहा है, उस बारे में भी भविष्य में वैसा ही निकले.

जीतेन्द्र ने अपनी इस पोस्ट में नाभिकीय समझौते के दस्तावेज का लिंक दिया है. उसे आप डाउनलोड कर सकते हैं और चल रही बहस में अगर कुछ तथ्यपरक कहा जाये तो वैलिडेट कर सकते हैं. पर दुर्भाग्यवश मात्र राजनैतिक बयान हो रहे हैं. और समझौते में तो लेन-देन होता ही है, उसे मानते हुये व्यापक हित की बात खोजनी चाहिये.

खैर, नाभिकीय समझौता एक तरफ, मैं तो मनमोहन सिन्ह जी की बतौर एक सज्जन पुरुष बात कर रहा हूं. उनके समर्थन में खड़ा हुआ और कहा जाना चाहिये.


6 comments:

  1. ज्यादातर लोग मज़बूत इंसान के लिए बोलते हैं.अब समय आ गया है की हमारे प्रधानमंत्री ख़ुद को एक मज़बूत इंसान के रूप में आगे आयें.

    जहाँ तक वामपंथियों की बात है तो मुझे नहीं लगता की ये लोग अपनी भाषा बोल रहे हैं. कभी कभी तो लगता है की ये लोग चीन सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. ऐसे विचार इस लिए आते हैं की चीन में भारत और अमेरिका के संबंधों की बड़ी खिलाफत हो रही है. दो दिन पहले मैंने चो रामास्वामी को बोलते हुए सुना. उन्होंने कहा "इफ लेफ्ट हैज एनी फ्यूचर लेफ्ट इन इंडिया, इंडिया हैज नो फ्यूचर लेफ्ट"....समय बतायेगा की ये बात कहाँ तक सच है.

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  2. आपके सादरभाव का निरादर न करते हुए और अपनी मातृभाषा अवधी का पूरा सम्मान करते हुए कुछ बातें कहने की इजाजत चाहता हूं मी लार्ड.

    मनमोहन सिंह का समर्थन क्यों करना चाहिए? क्योंकि उन्होंने देश की परमाणु क्षमता को अमरीका के हाथों गिरवी रख दिया. क्योंकि उन्होंने देश में उदारीकरण के नाम पर देश में बहुराष्ट्रीय निगमों के दरवाजे खोल दिये. मनमोहन सिंह के बारे में बहुतों को भ्रम है कि वे बहुत इमानदार आदमी हैं. मैंने देखा है दत्तोपंत ठेंगड़ी को तड़पते हुए. उन्हें समझ में नहीं आता था कि 1989 में जो आदमी साउथ-साउथ कमीशन का सेक्रेटरी जनरल था और सेक्रेटरी जनरल के नाते कहता हो कि भूमंडलीकरण पूरी तरह से गरीब मुल्कों के खिलाफ है वही आदमी दो साल में कितना बदल सकता है कि 1991 में उसने वित्तमंत्री बनते ही उदारीकरण के नाम पर लूटपाट के दरवाजे खोल देता है. हताशा में ठेंगड़ी जी कहते थे कि उन्होंने विस्मृति(एमनेसिया) हो गया है.

    विस्मृति के शिकार इस आदमी की याददाश्त एकबार फिर लौट आती है. जब अटल सरकार थी तो इन्होंने दो तीन लेख लिखे जिसमें कहा कि उदारीकरण खतरनाक साबित होगा. उन्होंने दरवाजा खोला था अटल सरकार तो दरवाजा उखाड़ने पर लगी हुई है. लेकिन प्रधानमंत्री बनते ही उन्हें पुनः एमनिसीया हो गया.

    ऐसे एमनिसीयाग्रस्त प्रधानमंत्री का समर्थन क्यों करना चाहिए. परमाणु समझौते पर मुझे बीएआरसी के पूर्व निदेशक प्रसाद साहब की बात ज्यादा तर्कसंगत लगती है, वे कहते हैं कि जो कार्य अमरीका प्रतिबंध लगाकर नहीं कर सका वह काम समझौता करके करना चाहता है. दुर्भाग्य से प्रसाद साहब की बात ज्यादा सुनी नहीं गयी.

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  3. मनमोहन सिंहजी की शराफत, सज्जनता का मामला तो एकदम क्लियर है। इसमें कोई शक नहीं है, पर सवाल यह है कि मनमोहन सिंह लीडर जैसे कहीं लगते नही। कहीं से इन्सपायरिंग व्यक्तित्व नहीं लगते। लंबे समय की ब्यूरोक्रेटिक आदतों ने उनके व्यक्तित्व को बहुत भुच्चू किस्म का बना दिया है। पालिटिकल पर्सनाल्टी के जो गुण हैं, वो उनमें सिरे से गायब हैं। पालिटिकल पर्सनाल्टी का बुनियादी गुण है, कि वह जो कुछ करे, जो कुछ बोले,उससे किसी में इंस्पायरेशन आये,जोश जज्बा आये। इंदिरा गांधी इस मामले में महान नेता थीं, तमाम गलतियों के बावजूद। अटलजी इस मामले में बेहतरीन नेता थे। चंद्रशेखर तक कई मामलो में इन्सपायर करते थे। लालूजी तक कई मामलों में बहुत इन्सपायरिंग नेता हैं। पर मनमोहनजी जैसे हैं, वैसे हैं। दरअसल इन्सपायर करने वाले लीडर अब बहुत कम रह गये हैं। ये इस देश का करतब है, कि अपने आप चले जाता है, नेताओं के बावजूद।
    दो लाइनें ये सुनिये -
    मैंने बच्चे से कहा-अटल बिहारी और मनमोहन सिंह में कौन नेता बड़ा है बता
    बच्चा बोला गुरुजी जरा सी बात नहीं पता, मनमोहन सिंह अटलजी के मुकाबले बहूत बहूत आगे के नेता हैं, कहने वाले चाहे जो भी कहते हैं,अरे अटलजी सिर्फ दो भाषाओं-हिंदी और इंगलिश में भाषण देते थे, पर मनमोहन सिंह तीन भाषाओं पूरी तीन भाषाओं हिंदी, इंगलिश और पंजाबी में चुप रहते हैं।

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  4. मनमोहन सिंग की सज्जनता, इमानदारी , ज्ञान आदि पर बिना प्रभावित हुए नहीं रहा जा सकता और यही तो इंसान को सम्मानिय बनाता है सही मायनों में. बाकि तो परिस्थिती जन्य बातों और राजनिती में क्या गलत, क्या सही. सभी अपनी ढपली बजा रहे हैं.

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  5. मनमोहन सिंह सज्जन हैं इस बात पर कोई सवाल नहीं खड़ा कोई सवाल नहीं खड़ा किया जा सकता। मैं व्यक्तिगत तौर पर उनका सम्मान और समर्थन करता हूँ। मगर राजनीति किसी के व्यक्तिगत सम्मान और समर्थन का मसला नहीं होता। वह तो नीतियों का प्रश्न है। जो भी विरोध और समर्थन होता है, वह नीतियों का होता है। जैसे मेरा आपसे वैचारिक असहमति होने पर भी आप के प्रति व्यक्तिगत सम्मान में कोई अंतर नहीं पड़ता।

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  6. जॉर्ज के शब्दों पर मत जाइए . उन शब्दों के पीछे की तडप को देखिए . माननीय मनमोहन सिंह अच्छे अर्थशास्त्री होंगे, अच्छे ब्यूरोक्रेट रहे होंगे . प्रधानमंत्री के रूप में वे जैसे हैं वैसे हैं .

    हां! यह मारण-उच्चाटन यज्ञ और पंसेरी लुढकाना जाहिल लोगों की वाहियात बातें हैं . सभ्य समाज में कोई यह सोच भी नहीं सकता .

    हम जिस विकराल समय में रह रहे हैं उसमें सज्जन व्यक्ति अक्सर कापुरुष होते हैं .

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--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय