अज़दक आजकल हज करने गये हैं/जाने वाले हैं. साम्यवादी विचार धारा वाले व्यक्ति के लिये चीन की यात्रा हज करने के बराबर ही है. वे यांगटीसीक्यांग नदी को निहार इतने गदगदायमान हो गये हैं कि गंगा को महिमा-मण्डित करने वाले भूपेन हजारिका की लत्तेरेकी-धत्तेरेकी कर दी. उनके अनुसार गंगा की स्तुति गा कर भाजपा के टिकट पर संसद का चुनाव लड़ने के कारण ही भूपेन हारे. शायद उनके मन माफिक विचारधारा का पुण्य स्मरण कर चुनाव लड़ते तो शूरवीर और विजयी होते!
भूपेन को पोस्ट पर लाने का काम यूनुस ने किया था. सो यूनुस को भी जी भर के नोचा उन्होनें. अब यूनुस तो श्रीश की तरह शरीफ इंसान हैं, लिहाजा सौरियाते हुये (सॉरी बोलते हुये - गलती मानते हुये) इसी पोस्ट की टिप्पणी में कुछ जवाब दिया. हमने भी अपने मैत्री धर्म को निभाते हुये यूनुस के पक्ष में टिप्पणी कर दी तो ठाकुर जी ने ठसक के हमें भी लपेट लिया:
“ज्ञानजी, चीन से लौट आवें तो इलाहाबाद आकर आपकी बगिया, कुटिया भी नोचेंगे. चिंता न करें.”
थोड़ी फिकर हो गयी है. अभय तिवारी, अजदक की चीन से वापसी कब है और इलाहाबाद में पदार्पण कब है? जरा बताना. मुझे अपनी कुटिया की सुरक्षा के लिये पुलीस सुरक्षा न मांगनी पड़े एडवांस में! :)
और है कोई माई का लाल (सॉरी, लाल तो साम्यवादी हो गया, है कोई माई का हरा) जो भूपेन हजारिका के पक्ष में एक-आध पोस्ट लिख दे.
यूनुस, भूपेन के दो-चार और गाने सुनवा दो भाई! और जरा जल्दी करना.
(1. अज़दकजी, खार न खायें. यह विशुद्ध मजे के लिये है. वैसे भी, लाल रंग के बावजूद आपका लेखन मुझे प्रिय है – यह मैं बार-बार कह चुका हूं! यह अलग बात है कि ज्यादातर बिरादर लोग उनकी पोस्ट पर पहले ही मौज ले चुके हैं. कई तो अपने-अपने तरीके से मन्दारिन सीख चुके हैं!
2. भूपेन हजारिका देश की शान हैं - वैसे ही जैसे लता मंगेशकर. उनको किसी विशेष शब्द के उच्चारण, भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ना, या किसी अन्य व्यक्तिगत कारण से इस प्रकार सार्वजनिक उपहास का पात्र बनाना उचित नहीं है. उत्कृष्टता में राजनीति नहीं घुसनी चाहिये. हां मुझे भाजपा या उसकी विचारधारा से कोई मोह नहीं है, उसकी जितनी निन्दा करना चाहें, अजदक जी करें.
3. पोस्ट पर इण्टरनेट से लिये यांगत्सी नदी के दो चित्र हैं.)
हम तो सोच रहे थे कि थोडी मौज आयेगी लेकिन ये तो पालिटिकली करेक्ट पोस्ट निकली, मौज ही नहीं आयी :-)
ReplyDeleteलगता है हमें ही थोडा भडकाने वाला लेख लिखना होगा :-)
हमने तो यहाँ अमेरिका में एक आन्दोलन (Jesus was a communist) चलाया हुआ है और हमें मौत की धमकी तक मिल चुकी हैं :-)
जब तक यह लाल -श्री समीर लाल के लिये नहीं है , तभी तक समझिये कि ठीक है.
ReplyDeleteवैसे, नवम्बर तक अगर प्रमोद जी लौटें तो आपकी सिक्यूरीटी फोर्स में हमको भी रख लिजियेगा-तब तक हम पहुँच जायेंगे न!!
सही फोटूआ हैं, इसी में बह रह होंगे वो अभी. :)
वैसे पूरी पोस्ट विशुद्ध मजा देने में सफल रही, इस हेतु बधाई ले लेवें.
ReplyDelete@ नीरज रोहिल्ला - क्या नीरज, पोस्ट उतार लें क्या? मौत तो अभी हमें नहीं चाहिये! :)
ReplyDeleteज्ञानदत्तजी,
ReplyDeleteआप चिन्ता न कीजिये, अब तो ब्लाग जगत के हैवीवेट समीरजी ने भी वेट फ़ेंक दिया है अब काहे का डर :-)
एक और बात, क्या आप किसी ऐसे सज्जन को जानते हैं जो मनोज तिवारी के भोजपुरी गानों को सुनते हों? करीब ५ साल पहले उनका एक गाना सुना था, "M. A. में ले के एडमीशन कम्पटीशन देता" । बरसों हो गये तलाश करते करते अभी तक नहीं मिला बस इतना पता चला है कि मनोज तिवारी ने गाया है इस गाने को...
मजा आ गया बहुत बढिया लिखा
ReplyDeleteचीन पर जैसा प्रमोद जी लिख रहे हैं.. मैं चाहता हूँ कि वे अभी कुछ दिन वहीं बने रहें.. आप के लिए भी यही ठीक रहेगा.. तब तक बात आई -गई भी हो जाएगी..
ReplyDeleteवैसे आजकल लोग मुझसे मेरे बारे में कम और मेरे मित्र होने के नाते प्रमोद जी के बारे में ज़्यादा बाते करते हैं.. कल अनूप जी से फोन पर पहली दफ़ा बात हुई.. उन्होने भी सारे समय बस प्रमोद जी के ही गुण गाये..
हा हा । मज़ा आ गया । तो क्या करें भूपेन दा पर पूरी सीरीज़ ही कर डालें क्या ।
ReplyDeleteसही मज़े लिए आपने
बहुत ही रुचिकर शैली, आनंद आ गया पढ़कर। जरा फोटू-शोटू और लगाओ जी।
ReplyDeleteठाकुरों को सदैव राज करना चाहिए और पंडितों का परनाम करना चाहिए सुन रहे हो ना सिंह साहब । वैसे परमोद भाई के पोस्ट में ये लिखने की हिम्मत नहीं है हमारी । वैसे भाई, ठाकुर कलम चलाता है तलवार थोडे ही चलाता है हिम्मत रखिये ।
ReplyDeleteफोटू अच्छी हैं।
ReplyDeleteऊपर वाली टिप्पणी अजदक जी की पोस्ट के लिए थी गलती से आपके यहाँ छप गई।
ReplyDelete"और है कोई माई का लाल (सॉरी, लाल तो साम्यवादी हो गया, है कोई माई का हरा) जो भूपेन हजारिका के पक्ष में एक-आध पोस्ट लिख दे।"
ReplyDeleteहा हा :)
"अब यूनुस तो श्रीश की तरह शरीफ इंसान हैं"
अब तो पक्के बदनाम हो गए भईया हम। :)
बढ़िया लगा :)
ReplyDeleteजैसी आपकी पोस्ट मजेदार वैसी ही टिप्पणियां भी उतनी ही मजेदार।
श्रीश जी की शराफत का सबूत भी यहां देखने को मिल गया :)
सुना है इस नदी का पानी भी लाल है...सुनने में आता है कि वहां बांध बनाते समय, प्रदर्शन करने वाले लोगों को ‘लाल बादशाहों’ ने कुचल दिया था...
ReplyDeleteप्रमोद जी, एक ‘नन्दीग्रामी’ पोस्ट चीन के ‘लाल बादशाहों’ के लिए भी हो जाय...
हं हं? ओहो! अच्छा?
ReplyDeleteबहुत बढिया लिखा है पढ़ कर मजा आ गया:( टिप्पणीयां भी मजेदार हैं।
ReplyDeleteवाह दद्दा!! मस्त !!
ReplyDeleteभूपेन हजारिका के अलबम को अपलोड करने की फ़रमाईश हमें मिल गई है ई-मेल में, बस आज ही अपलोड कर देते हैं जिन्हे चाहिए हो वे उस लिंक से डाउनलोड कर लेवें
चीन पर बहुतों ने लिखा है . उसमें से बहुत कुछ पढा भी है . पर आज जब सोचता हूं तो सबसे पहले याद आता है अमरीकी लेखिका पर्ल एस. बक का लिखा उपन्यास 'द गुड अर्थ'. एक चीनी किसान के संघर्ष और जिजीविषा को बहुत सहानुभूति और करुणा के साथ चित्रित किया है लेखिका ने . हालांकि पुलित्ज़र और नोबेल पुरस्कार मिलने के बावजूद इस लेखिका को 'लाइटवेट' ही गिना जाता रहा है . पर आप प्रमोद की चीन यात्रा के संस्मरण के साथ ग्रामीण चीन की पृष्ठभूमि पर लिखे इस लाजवाब उपन्यास को भी ज़रूर पढें . आपको लगेगा कि भौगोलिक अंतर के बावज़ूद 'गोदान' के होरी और 'द गुड अर्थ' के वांग लुंग के दुख का रंग एक जैसा है . आप लाल-पीला-नीला-हरा-गेरुआ सब भूल जाएंगे .
ReplyDeleteआपकी इस पोस्ट पर कई लोगों ने एक से ज्यादा बार टिप्पणी लिखी है...मैने सोचा मैं भी एक और टिप्पणी लिख दूं....
ReplyDeleteजल्दी की वजह से मैं चित्र संख्या 1 पर ध्यान नहीं दे सका...देखने से लगता है जैसे इस चीनी नदी का रंग भगवा हो गया है....
बढ़िया है। मजा भी आ ही गया। बैठा है। आराम से।
ReplyDeleteप्रमोदजी की बात का बुरा न माने कोई। उ असल में आजकल फ़ीगर आफ स्पीच पर हाथ साफ़ कर रहे हैं इसलिये बाकी चीजों पर ध्यान नहीं दे पाये होंगे। :)