रामबिलास साल भर पहले लहरतारा पुल(बनारस), के नीचे गुमटी में रहता था और रिक्शा चलाता था. दिमाग से तेज है. कमाता भी ठीकठाक था. स्कूल के बच्चों को लेजाने - लेआने का काम भी उसके पास था. केवल दो ऐब के चलते वहां रह नहीं पाया. पहला ऐब तो नित्य नियम से शराब पीने का अनुष्ठान था/है. दूसरा ऐब है कर्ज लेकर अपनी अर्थव्यवस्था चलाने का. कर्ज मिलने पर शराब की मात्रा भी बढ़ जाती थी और अन्य शौक भी. जब कर्जा इतना ज्यादा हो गया कि पाटना उसे असम्भव लगने लगा तो एक दिन वह सपरिवार गायब हो गया. चार-पांच कर्जा देने वालों के कुल 5-7 हजार रुपये डूब गये.
भरतलाल (मेरे भृत्य) का वह मित्र है. भरतलाल को मालूम था कि वह भाग कर मिर्जापुर जिले में अपने गांव चला गया है पर यह बात लहरतारा में किसी को उसने नहीं बताई.
गांव में रामबिलास गलीचा बुनने लगा. बकौल भरतलाल वह टपटेल (?) के लिये अग्रिम पैसा लेकर बुनता था. यह टपटेल क्या होता है – जानने के लिये मैने अनेक प्रश्न किये भरत से. मेरी समझ में यह आया है कि “टफ्टेड गलीचा” जैसी कोई चीज है जो कम ऊन से बीनी जा सकती है, जिसे स्थानीय भाषा में टपटेल बना दिया गया है.
रामबिलास अपनी आदतों के चलते वहां भी कर्ज के बोझ से दब गया. एक दिन रातोंरात भाग कर इलाहाबाद चला आया. पिछले महीने भर से यहां है. रिक्शा चला रहा है. भरतलाल के अगुवा बनने पर एक कमरा भी पास में उसे मिल गया है 300 रुपये महीने पर. पानी नगरपालिका के नल से मिलता है, बिजली सामुहिक कंटिया से. बाकी के काम के लिये गंगा का कछार है ही! अब देखते हैं, यहां कितना दिन चल पाता है.
यहां वह सिविल लाइंस के पास एक रिक्शा-मालिक से 25 रुपये रोज पर रिक्शा ले कर चलाता था. फिर कुछ हो गया और वह रिक्शा छूट गया. शायद रिक्शा मालिक और पुलीस की सैटिंग में कुछ खोट हो गया. लिहाजा दूसरा रिक्शा मालिक तलाशा जाने लगा. तेलियरगंज में रिक्शे की एक खटाल है – वहां रामबिलास भरतलाल को बतौर गारण्टर ले कर गया. पर खटाल के मालिक ने भरतलाल की गारण्टी मानने से इंकार कर दिया. मालिक के अनुसार भरतलाल स्वयम बाहरी आदमी है. पैर घसीटते दोनो वापस आये. गये इस उत्साह से थे कि अगर रिक्शा मिल जायेगा तो रामबिलास भरत को चाट खिला कर रिक्शे पर बिठा वापस लायेगा!
मैने भरतलाल से तरह तरह के सवाल पूछ कर जानना चाहा कि रिक्शा चलाने का अर्थशास्त्र क्या है? उसने रामबिलास पासवान का उदाहरण सामने रख दिया. रामबिलास रिक्शा 25 रुपये किराये पर लेता था और दिन भर में 150-175 रुपये कमाता था. पचास रुपये की शराब पी जाता था. पचास रुपये प्रतिदिन का राशन और अन्य खर्च था. इस तरह अगर नित्य काम करे तो जिंदगी चल सकती है. पर जब तीन चार सौ इकठ्ठे हो जाते हैं तो रामबिलास बहकने लगता है. मोबाइल और रेडियो खरीदने की दमित इच्छा उभर आती है. काम पर जाने का मन नहीं करता. खाने-पीने के शौक सिर उठाने लगते हैं. फिर कर्ज लेने का चक्र चलने लगता है और उससे जो चक्रव्युह बनता है उसे रामबिलास भेद नहीं पाता. मोबाइल और रेडियो बिक जाते हैं. अंतत: वह रातोंरात भाग कर कहीं और जाने का उपक्रम करता है. यह उसके जीवन में बारबार हुआ है और होगा.
खैर, अभी रामबिलास को रिक्शा किराये पर मिल गया है. रोजी-रोटी चल रही है. आगे कुछ विशेष हुआ तो बताऊंगा.
कैसी कैसी आस
उनको भी ढ़ोता है कैसे
देखो रामबिलास
तीन दिन के अवकाश (विवाह की वर्षगांठ के उपलक्ष्य में) एवं कम्प्यूटर पर वायरस के अटैक के कारण टिप्पणी नहीं कर पाने का क्षमापार्थी हूँ. मगर आपको पढ़ रहा हूँ. अच्छा लग रहा है.
ReplyDeleteरामविलासजी को अपने घर की शांती के सुपरविजन में रखिये। सुधर जायेंगे।
ReplyDeleteराम बिलासजी को ब्लागिंग काहे नहीं सिखाते आप!
ReplyDeleteमोबाईल और रेडियो ख़रीदने की दमित इच्छा उभर आती है ।
ReplyDeleteदिल बैठ गया पढ़के । ज्ञान जी सच मानिए, अगर हम वहां होते तो मोबाइल तो नहीं लेकिन रामविलास को
रेडियो जरूर दिला देते ।
आजकल हमने ये काम सीख लिया है ।
किसी भी व्यक्ति को रेडियो की जरूरत है और
खरीद नहीं पा रहा है तो हम उसे एक रेडियो दिलवा देते हैं ।
पता नहीं क्यों मन को सुकून मिलता है ।
कोई खास क्रांति नहीं है । लेकिन रामविलास को रेडियो मिल जाए
तो जो खुशी उसको होगी वो हमें अपने लिए आई मेट फोन लेकर भी नहीं होगी ।
आपने एक बार कहा था आपको कविताये ज्यादा समझ नहीं आती तो फिर ये क्या है.
ReplyDeleteकितनी सारी इच्छायें हैं
कैसी कैसी आस
उनको भी ढ़ोता है कैसे
देखो रामबिलास
आप तो छुपे रूस्तम है जनाब.
@ बसंत आर्य - तुक बन्दी को बहुत भाव न दीजिये, वर्ना इस तरह की फोर-लाइनर रोज बनने लगेंगी!
ReplyDeleteऔर सब तो ठीक पर ये बनारसी रिक्शा इलाहाबाद मे कहॉ चलता है।
ReplyDeleteतुकबंदी जारी रखें। :)
राखी की बधाई और शुभकामनायें।
'केवल दो ऐब के चलते वहां रह नहीं पाया. पहला ऐब तो नित्य नियम से शराब पीने का अनुष्ठान था/है. दूसरा ऐब है कर्ज लेकर अपनी अर्थव्यवस्था चलाने का.'
ReplyDeleteयह रोग या ऐब तो सभी आय वर्ग मे फैल रहा है और एड्स से भी ज्यादा खतरनाक है।
मै इस रचना को दिल के अन्दर से उपजी सार्थक रचना मानता हूँ। बधाई।
सही चिंतन!!
ReplyDeleteफ़ोर लाईना रोज़ाना तैयार रखा जाए!!