|| MERI MAANSIK HALCHAL ||
|| मेरी (ज्ञानदत्त पाण्डेय की) मानसिक हलचल ||
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Wednesday, August 22, 2007
एसएमएस आर्धारित भुगतान व्यवस्था
मैने 8 मई'2007 को एक पोस्ट लिखी थी : पैसे ले कर चलना खतरनाक है. इस पोस्ट में मैने कहा था कि रोकड़ ले कर चलना/भुगतान करना उत्तरोत्तर जोखिम भरा होता जा रहा है. “द मेकेंजी क्वाटर्ली” के एक लेख के अनुसार या तो एटीएम की श्रृंखला या एसएमएस आर्धारित भुगतान व्यवस्था इसका उपाय है. एसएमएस आर्धारित व्यवस्था कहीं अधिक (1:33 के अनुपात में) सस्ती है और पीपुल्स बैंक ऑफ चाइना इस दिशा में सोच रहा है.
आज अस्वस्थता के कारण देर से उठने पर अखबार (बिजनेस स्टैण्डर्ड) के पहले पन्ने पर छपे विज्ञापन पर नजर पड़ी तो पाया कि कॉर्पोरेशन बैंक भारत में एसएमएस आर्धारित मोबाइल फोन से भुगतान व्यवस्था की शुरुआत कर चुका है. कार्पोरेशन बैंक का कहना है कि वह एम-कॉमर्स में कदम रखने वाला पहला पब्लिक सेक्टर बैंक है. यह सुविधा वह पे-मेट के साथ जुड़ कर दे रहा है. आप पे-मेट की साइट देखें. वह सिटी बैंक, कार्पोरेशन बैंक और चार-पांच और कम्पनियों के लोगो अपनी साइट पर चमका रहा है. बस, अब इंतजार है कि यह सुविधा मेरे गांव मे रहने वाला 4 बीघे का किसान अवधनारायण कब प्रयोग करने लगेगा!
समय बहुत तेज चल रहा है - परिवर्तन बड़ी तेजी से हो रहे हैं!
आप जरा विज्ञापन की कतरन पर नजर डाल लें:
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हमारे यहाँ KNET तो जमाने से था, काफी समय पहले MNET भी शुरु हो गया। वैसे अच्छी सेवा है, मोबाइल से पेमेन्ट करने वाली। हम तो भाई अपने डेबिट कार्ड से पेमेन्ट करते है, मोबाइल पर विश्वास नही जमा अभी।
ReplyDeleteपे-मेट की तरह एम-चेक भी है. दोनों सुविधाओं पर एक आलेख निरंतर पर यहां है.
ReplyDeleteपैसे का भुगतान तो मोबाइल, ईमेट,डीमेट, सीकेट से हो जायेगा, पर भुगतान का पईसा कऊन सा कारपोरेशन और कऊन सा बैंक देने आयेगा। सरजी खर्च के तौर-तरीकों पर तो हम सोच लेगे, पर कमाई का जुगाड़ बताइये ना।
ReplyDeleteराग दरबारी में आदरणीय़ श्रीलाल शुक्जी ने एक जगह जो लिखा है, उसका आशय़ है कि गांवों में दीवारों पर लिखे विज्ञापन बताते थे कि गांव वालों को बचत के लिए डाकखाने में जाना चाहिए। पर बचत के लिए कमाई कैसे होगी, बचत के लिए पैसा कहां से आयेगा, वह इश्तिहार नहीं ना बताते थे। आप भी नहीं बता रहे हैं।
बिल्कुल सही कह रहे हैं:
ReplyDeleteसमय बहुत तेज चल रहा है - परिवर्तन बड़ी तेजी से हो रहे हैं!
--हर बार हम आते हैं भारत तो बस मुँह से यही निकलता है-
बदले बदले मेरे सरकार नजर आते हैं
कभी इस पार तो कभी उस पार नजर आते हैं....पाजिटिव वे में. :)
सही है। वैसे आलोक पुराणिक जी की बात ज्यादा सही है कि आप पैसे जुगाड़ बतायें, खर्चा वे खुद कर लेंगे।
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