Sunday, August 26, 2007

"यह पौधा मानवता का रक्षक बनेगा"!(?)


जट्रोफा से बायो डीजल बनाने पर बहुत सारे मित्र लोग बहुत कुछ कह चुके हैं. पंकज अवधिया (दर्द हिन्दुस्तानी) जी ने तो मुझे बहुत सामग्री भी दे दी थी यह बताते हुये कि इस खर-पतवार में बुरा ही बुरा है, अच्छा कुछ भी नहीं.

पर दो दिन पहले फ्रीकोनॉमिक्स ब्लॉग में एक पोस्ट है. उसमें भारत के रेल मंत्रालय के किसी हॉर्टीकल्चरिस्ट श्री ओ पी सिन्ह को उद्धृत कर कयास लगाया गया है कि यह वीड (जंगली खर-पतवार) मानवता की रक्षा करेगा. फ्रीकोनॉमिक्स ब्लॉग में वाल स्ट्रीट जर्नल को लिन्क किया गया है. इस पोस्ट पर टिप्पणियों में काफी अच्छी चर्चा हो रही है. कुछ लोग इसकी वकालत कर रहे हैं और कुछ पूरी तरह खिलाफ हैं. मुझे जो अच्छा लग रहा है वह यह है कि चर्चा हो रही है. अन्यथा हिन्दी ब्लॉगरी में तो सन 1907 के सामयिक विषय या फ़िर 2107 के सम्भावित विषयों पर चर्चा होती है; अगर आपस में वर्तमान की खींचतान न हो रही हो तो!

भारतीय रेल अब भी जट्रोफा प्लांटेशन करने में यकीन रखती है और बायो डीजल पर प्रयोग भी हो रहे हैं. ये श्री ओ पी सिन्ह कौन हैं, मुझे नहीं पता.

जट्रोफा में क्या है सब सही है, सब गलत है, सब चर्चा का विषय है या इसमें प्रबल राजनीति है समझ में नहीं आता. मैं विशेषज्ञ नहीं हूं. सो टांग नहीं अड़ाऊंगा इस बार क्यों कि बहुत से बन्धु इस विषय पर कड़ी राय रखते हैं. पर फ्रीकोनॉमिक्स ब्लॉग की पोस्ट ने मेरी जिज्ञासा को पुन: उभार दिया है.

मुझे तो एक बैरल फ्यूल की विभिन्न स्रोतों से बन रही कीमत (वर्तमान खनिज तेल की कीमत $70) जो उस ब्लॉग पर लिखी है, बड़ी आकर्षक लगती है जट्रोफा और गन्ने के पक्ष में:

  1. सेल्यूलोस: $305
  2. गेंहू: $125
  3. रेपसीड: $125
  4. सोयाबीन : $122
  5. चुकन्दर: $100
  6. मक्का: $83
  7. गन्ना: $45
  8. जट्रोफा: $43
यद्यपि उस ब्लॉग पर चर्चा में इन आंकडों पर सन्देह भी व्यक्त किया जा रहा है.

बाकी पर्यावरण के मुद्दे पर तो - अपन कुछ नहीं बोलेगा!

समाधान चाहिये - ऊर्जा की जरूरतों का. अगर नाभिकीय ऊर्जा कहें तो भाजपाई और कम्यूनिष्ट खड़े हो जाते हैं - देश बेच दिया. जट्रोफा है तो मोनोकल्चर है, जमीन बंजर होगी, जमीन इतनी नहीं कि लोगों के लिये अनाज भर हो सके. पनबिजली की सोचें तो पर्यावरण वादी और विस्थापन विरोधी झण्डा लिये है. नेपाल में बांध बना दो - दशकों से बन रहे हैं. हर तरफ पेंच है. समाधान चाहिये!

12 comments:

  1. उम्मीदें तो हैं, पर जी रिजल्ट आयें तब देखें। पिछले कई सालों में इत्ती तरह की टेकनोलोजी आयी हैं, और हल्ला मचाती आयी हैं, पर रिजल्ट नहीं दिये। इसलिए जब तक सालिड रिजल्ट ना आ जायें, तब तक कुछ कहना ठीक नहीं है। पर जिस तरह से कारपोरेट सेक्टर इसकी वकालत कर रहा है, उसे देखते हुए लगता है कि कुछ दम है इसमें। हिंदी में इस तरह के विषयों पर सरल टाइप की जानकारी आये, तो पब्लिक इनफोर्म हो। वरना तो सदा विधवा, सदा लड़ाका, सदा भड़ाका विषय हैं ही। पर लोग उनसे भी ऊब रहे हैं।

    ReplyDelete
  2. परिणाम् के इंतजार् में हैं हम् भी।

    ReplyDelete
  3. दुनिया वैकल्पिक ऊर्जा के मामले में काफी आगे बढ़ चुकी है
    पर हमारे यहां कई चीज़ें राजनीति की चपेट में आ जाती हैं ।
    ज़रूरत है ईमानदार कोशिशों की ।
    और हां धन्‍यवाद हमने ट्रांसलिटरेशन औज़ार अपने ब्‍लॉग पर
    चढ़ा लिया । आपके सहयोग से कई लोगों ने भी चढ़ाया होगा

    ReplyDelete
  4. ज्ञानदत्तजी,

    बायो डीजल का विषय आजकल काफ़ी उलझ सा गया है । ऊर्जा के क्षेत्र में काम करने वाले विशेषज्ञ इसको एक विकल्प मानने के लिये तैयार नहीं है । और इसके पर्यावरण पर पडने वाले प्रभावों का भी ठीक से अध्ययन नहीं हो पाया है । आपने अच्छा विषय सुझाया है, मैं इस विषय पर प्रमाणिक वैज्ञानिक जानकारी जुटाकर कुछ लिखने का प्रयास करूँगा ।

    साभार,

    ReplyDelete
  5. सही सोच है जी वैसॆ भी हमे यू के लिपट्स से क्या मिला है सिवाय पानी की समस्याओ के..इससे कम से कम डीजल तो मिलेगा

    ReplyDelete
  6. किसी भी चीज की अति बुरी है। 84 हजार हे. मे जैट्रोफा लगाना किसी विनाश से कम नही जान पडता है। प्रकृति विविधता चाहती है। हमारे देश मे बायोडीजल बनाने के कई विकल्प है। पर्यावरण मित्र उपायो को चुनना चाहिये। एक बात और। हम जैट्रोफा का भारत मे विरोध कर रहे है क्योकि यह विदेशी पौधा है। ब्राजील के लिये यह उपयुक्त हो सकता है। बाहरी वनस्पतियो के दुष्प्रभावो को वैसे ही हम झेल रहे है।

    ज्वलंत विषय पर चर्चा के लिये आभार।

    ReplyDelete
  7. पर्यावरण की समस्या तो बड़ी बांधों के साथ भी है पर हमें अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिये उन विकल्पों को चुनना ही होगा जो पर्यावरण के लिये कम से कम हानिकारक हों.
    बायो डीजल भी अच्छा विकल्प है.

    ReplyDelete
  8. हमें उर्जा के सभी स्रोतों के विषय में बिना किसी पूर्वाग्रह के विचार करना होगा ।
    घुघूती बासूती

    ReplyDelete
  9. उत्तर भारत में क्या स्थिति है पता नहीं.. यहाँ मुम्बई में तो आजकल नए पेड़ों के नाम पर अकेले गुलमोहर की ही इजारेदारी है.. सबसे कच्चा पेड़.. कोमलमलयसमीरे भी उसे भारी पड़ती है.. और जड़ समेत बाहर आ जाता है.. हर बारिश में हर सड़्क के कई पेड़ सड़्क चूमते पाए जाते हैं.. नीम को कोई नहीं पूछता.. कहीं इस सब चक्कर में लोग नीम को न भूल जायं.. बड़े काम का पेड़ है.. एक डर है.. व्यक्त कर दिया..

    ReplyDelete
  10. अच्छे विषय पर खींच लाये हैं | रतनजोत या जत्रोफा को समर्पित एक पूरी वेबसाईट बनी हुई है :

    http://www.jatrophaworld.org/

    ReplyDelete
  11. बहुत अच्छा विषय है। जहाँ तक वैकल्पिक ऊर्जा की बात है, इस बारे मे काफी अनुसंधान हो रहा है। अब इस पौधे के बारे तो हम ज्यादा कुछ नही जानते, लेकिन इतना जरुर जानते है, तेल पर निर्भरता खत्म होने के मायने है, दुनिया के कई तरीके की समस्याओं का सुलझना। बाकी मै पेट्रोल/तेल की ही खाता हूँ, इसलिए ज्यादा नही बोलूंगा।

    ReplyDelete
  12. ratnjyot..ko lawanik khnijo ki jmin me lgaye to jada pedawar hogi...prashasn espar eseeliye dhyn n de raha ki yah'teknoloji'badh gai to 'entarneshnl tel ko koi nhi puchega...aap ki samaj 'jagriti .Abhinandniy hai

    ReplyDelete

आपको टिप्पणी करने के लिये अग्रिम धन्यवाद|

हिन्दी या अंग्रेजी में टिप्पणियों का स्वागत है|
--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय